सोमवार, 13 अगस्त 2012

कविता
बुलाते है, पीपल बाबा
                             कुमार शर्मा अनिल
बेटा ! बस एक बार, एक बार
चले आओ गाँव ।
सपने में बार-बार
अपनी मजबूत शाखों को
बाहों की तरह पसारकर
बुलाते हैं पीपल बाबा ।
नींद खुलने पर देर तक
पसीने में नहाया मैं
भटकता रहता हॅूं
अतीत की स्मृतियों में ।
गाँव की चौपाल पर
मजबूत हरी-भरी शाखों से
सबका अभिवादन करते
नंग-धड़ंग बच्चें को
बाहों में भर, स्नेह से दुलारते
अल्हड़ किशोरियों, सुहागनों को
शाखों पर झूला झुलाते
अंधेरा होते ही
घर जाने की हिदायत देते
गाँव-भर के शुभचिंतक पीपल बाबा ।
बैलोस गाँव !
अल्हड़ गलियों को समझाता-बुझाता
घर की दहलीजों को मर्यादाएं बताता
खेतों को बदलते मौसम समझाता
न कोई अपराध, न खून-खराबा
गाँव के गौरवशाली अतीत पर
तब कितना इतराते थे पीपल बाबा ।
अब ढेरों आशंकाआें से त्रस्त
शहर के आगमन पर स्तब्ध
चकित से हैं पीपल बाबा ।
चिंतित पीपल बाबा
बुलाते हैं मुझे बार-बार
बेटा, बस आखिरी बार
मिल जा गाँव आकर ।
मैं सोच में निमग्न हॅूं
लम्बी फेहरिस्त, ढेरों काम
कैसे मिलेगी फुरसत ।
पत्नी सुझाव देती है
पच्चीस बरस नहीं गए
तो पाँच महीने और रूक जाओ
तब तक वहाँ भी पहुँच जाएंगे
मोबाइल, इंटरनेट और टेलीफोन
जी भरके कर लेना फिर बात उनसे
जो भी होंये तुम्हारे पीपल बाबा ।
पत्नी को समझाना व्यर्थ है
गॉव जाना तो चाहता हूूँ मैं
पर एक आशंका है मन में
शहर जब लील चुका होगा
पूरा का पूरा गाँव
तब क्या शर्त है कि मुझे
पीपल बाबा, वहीं चौपाल पर
शाखों से स्वागत करते मिलेंगे
और वहां उनकी जगह
नहीं होगा कोई बीयर-बार

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