पक्षी जगत
खरमोर : मालवा का मेहमान पक्षी
डॉ. खुशालसिंह पुरोहित
मध्यप्रदेश के खूबसूरत जंगल, जगलोें मेंउन्मुक्त विचरते बाघ, हिरण आदि पशु पक्षी पर्यावरण और वन विभाग द्वारा भ्रमण के लिये पर्यटकों को उपलब्ध करवाई जा रही बेहतर सुविधांए देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित कर रही हैं । जिसके चलते पिछले पाँच साल में प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों में पर्यटकों की संख्या पांच लाख से बढ़कर १४ लाख हो गयी है जिसमें एक लाख विदेशी पर्यटक भी शामिल है ।
मध्यप्रदेश में ९४ हजार ६८९ वर्ग किलोमीटर में वन क्षेत्र है । प्रदेश में १० राष्ट्रीय उद्यान और २५ वन्य प्राणी अभ्यारण्य है जो विविधता से भरपूर है । कान्हा, बाँधवगढ़, पन्ना, पेंच, सतपुड़ा एवं संजय राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिजर्व का दर्जा प्राप्त् है । वहीं करेरा (गुना) और घाटीगांव (ग्वालियर) विलुप्त्प्राय: दुर्लभ पक्षी सोनचिड़िया के संरक्षण के लिए और सैलाना (रतलाम) और सरदारपुर (धार) विलुप्त्प्राय दुर्लभ पक्षी खरमोर के संरक्षण के लिये और ३ अभ्यारण्य चंबल केन एवं सोन घड़ियाल और अन्य जलीय प्राणियों के संरक्षण के लिये स्थापित किये गये है ।
खरमोर : मालवा का मेहमान पक्षी
डॉ. खुशालसिंह पुरोहित
मध्यप्रदेश के खूबसूरत जंगल, जगलोें मेंउन्मुक्त विचरते बाघ, हिरण आदि पशु पक्षी पर्यावरण और वन विभाग द्वारा भ्रमण के लिये पर्यटकों को उपलब्ध करवाई जा रही बेहतर सुविधांए देशी-विदेशी पर्यटकों को आकर्षित कर रही हैं । जिसके चलते पिछले पाँच साल में प्रदेश के राष्ट्रीय उद्यानों एवं अभयारण्यों में पर्यटकों की संख्या पांच लाख से बढ़कर १४ लाख हो गयी है जिसमें एक लाख विदेशी पर्यटक भी शामिल है ।
मध्यप्रदेश में ९४ हजार ६८९ वर्ग किलोमीटर में वन क्षेत्र है । प्रदेश में १० राष्ट्रीय उद्यान और २५ वन्य प्राणी अभ्यारण्य है जो विविधता से भरपूर है । कान्हा, बाँधवगढ़, पन्ना, पेंच, सतपुड़ा एवं संजय राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिजर्व का दर्जा प्राप्त् है । वहीं करेरा (गुना) और घाटीगांव (ग्वालियर) विलुप्त्प्राय: दुर्लभ पक्षी सोनचिड़िया के संरक्षण के लिए और सैलाना (रतलाम) और सरदारपुर (धार) विलुप्त्प्राय दुर्लभ पक्षी खरमोर के संरक्षण के लिये और ३ अभ्यारण्य चंबल केन एवं सोन घड़ियाल और अन्य जलीय प्राणियों के संरक्षण के लिये स्थापित किये गये है ।
मध्यप्रदेश के रतलाम जिले में सैलाना में खरमोर बड़ी संख्या में प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु में चार माह के लिए आते हैं । इनकी राष्ट्रीय स्तर पर घटती हुई संख्या के कारण इस पक्षी को संकटापन्न की श्रेणी में रखा है । इनका रहवास घास का वह क्षेत्र है जो सामान्यत: खेतों के आसपास स्थित है । मालवा क्षेत्र में ग्रामीण लोग इसे भटकुकड़ी नाम से भी पहचानते हैं । सैलाना क्षेत्र के अतिरिक्त धार जिले के सरदारपुर क्षेत्र में भी खरमोर पक्षी प्रतिवर्ष आते हैं ।
खरमोर पक्षी का आकार साधारण मुर्गी के बराबर होता है । खरमोर पक्षियों के आगमन से सामान्यत: १० से १५ दिवस पश्चात् नर पक्षी घास के मैदानों में अपनी टेरीटरी निर्धारण का प्रयास करने लगते हैं । इसके शर्मीले होने के कारण इसे दूर से ही देखा जाता है । कई बार नर पक्षी बिना कोई टेरीटरी निर्धारित किए खेतों में घूमते-घूमते भी छोटी छोटी जम्प करते हुए देखे गए हैं । घास की ऊँचाई २० सेमी, होने के पश्चात् नर पक्षी अपनी टेरीटरी स्थापित कर एक स्थल पर कूदना (जम्प) प्रारंभ कर देते हैं । सामान्यत: नर पक्षी तीन से चार फुट की ऊँचाई तक कूदते हैं और कई बार एक दिन में ४०० बार तक भी एक ही स्थल पर कूदते हुए देखे गए हैं । कूदते समय नर पक्ष अपने पंखों का सफेद भाग विशेष रूप से प्रदर्शित करते हैं और एक तेज विशेष प्रकार की टर्र-टर्र आवाज करते हैं जो कि ५०० मीटर तक सुनी जा सकती है । सामान्यत: नर पक्षी ऊँचे स्थलों का कूदने के लिए चयन करते हुए देखे गए हैं, ताकि दूसरे नर पक्षी को स्पष्ट तौर पर उनकी टेरीटरी का आभास हो सके तथा उन्हें मादा को आकर्षित करने में भी सुविधा रहे । अक्टूबर के प्रथम सप्तह तक सामान्यत: कूदना अथवा प्रदर्शन करना समाप्त् हो जाता है । खरमोर की इस कूद को निहारने के लिए रतलाम जिले के सैलाना स्थित शिकारवाड़ी क्षेत्र ने पक्षीविदों को हमेशा आकर्षित किया है ।
एक शताब्दी पूर्व खरमोर पूरे भारतवर्ष में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिणी तट तक पाए जाते थे । ऐसा माना जाता रहा था कि समस्त ऐसे खुले क्षेत्र जो घास से परिपूर्ण थे, वहाँ खरमोर पक्षी किसी न किसी अवधि में अवश्य प्रवास करते थे । बीसवीं शताब्दी के मध्य तक ऐसा माना जाता रहा कि खरमोर पक्षी मुख्यत: गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश के विभिन्न भागोंमें प्रजनन के लिए आते हैं और प्रजनन उपरान्त दक्षिणी भारत में पलायन करते रहे हैं । बीसवीं शताब्दी के अन्त तक खरमोर पक्षी की संख्या कम होना स्पष्ट तौर पर पाया जाने लगा और वर्षा ऋतु में प्रजनन के लिए ये केवल कुछ मुख्य घास के मैदानों में ही दिखाई देने लगे । वर्ष १९८० के पश्चात् से खरमोर की संख्या में कमी आने से इनके रहवास इत्यादि के बारे में विशेष ध्यान दिया जाने लगा और कई क्षेत्रों को अभ्यारण्य भी घोषित किया गया । बर्ड लाइफ इन्टरनेशनल द्वारा इसे संकटापन्न घोषित किया गया है ।
महान पक्षी प्रेमी सालीम अली ने स्वयं सैलाना क्षेत्र में आकर खरमोर संरक्षण के लिए प्रेरणा दी थी । श्री अली की प्रेरणा से मध्यप्रदेश सरकार ने १४ जून, १९८३ को रतलाम जिले के ८५१.७० हेक्टर वन क्षेत्र तथा ग्राम सैलाना और शेरपुर के ४४५.७३ हेक्टेयर राजस्व क्षेत्र को खरमोर पक्षी अभ्यारण्य क्षेत्र वन्यप्राणी संरक्षण के लिए अधिसूचित किया है । राजस्व क्षेत्र सैलाना के अन्तर्गत ३५५ हेक्टेयर क्षेत्र शिकारवाड़ी के नाम से जाना जाता है । यह क्षेत्र पूर्व में सैलाना रियासत का शिकारगाह रहा है, यह खरमोर देखने के लिए उचित स्थान है । यह क्षेत्र ऊँचा-नीचा होकर चारों और खेतों से घिरा हुआ है । शेरपुर में ९० हेक्टेयर क्षेत्र में घास बीड़ अभ्यारण्य के अन्तर्गत अधिसूचित है ।
वन विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष उपरोक्त अधिसूचित क्षेत्र को वर्षा ऋतु प्रारंभ होने से पूर्व चराई से रोकने के लिए प्रयास किए जाते हैं । अभ्यारण्य के आसपास के ग्रामीणों से चर्चा की जाकर चराई रोकने के लिए समझाइश दी जाती रही है । वर्षा सीजन समाप्त् होने के उपरान्त वन क्षेत्र मेंउपलब्ध घास को नि:शुल्क ग्रामीणों को उपलब्ध कराया जाता है । खरमोर पर हुए विभिन्न शोध कार्यो से यह स्पष्ट हुआ है कि वर्षा ऋतु प्रारंभ होते ही खरमोर का घास के मैदान में आना प्रारंभ हो जाता है और सामान्यत: दो-तीन दिवस की अच्छी वर्षा उपरान्त खरमोर की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होती है । वर्षाकाल के प्रथम १५ दिवसों में अच्छी वर्षा होना खरमोर की संख्या अधिक होने के संकेत देता है ।
खरमोर संरक्षण में जनसहयोग -
अभ्यारण्य के अधिसूचित क्षेत्र के अतिरिक्त रतलाम जिले में कई घास बीड़ें निजी आधिपत्य में भी विद्यमान हैं । बी.एन.एच.एस. और विभाग के सर्वे इत्यादि से ज्ञात हुआ है कि इन निजी घास बीडों में भी खरमोर प्रवास करते रहे हैं । वन विभाग के आधिपत्य में न होने से इन घास बीड़ों के प्रबंधन और सुरक्षा इत्यादि के संबंध में वन विभाग द्वारा कोई विशेष प्रयास पृथक से किया जाना संभव नहीं हो पाता था । विभिन्न स्तरों पर अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि निजी क्षेत्रों में आने वाले खरमोर का संरक्षण तब ही संभव है, जब क्षेत्र मालिक को प्रोत्साहन दिया जाए । इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए वन विभाग द्वारा खरमोर संरक्षण इनामी योजना वर्ष २००५ से लागू की गई । इस योजना के अनुसार यदि किसी व्यक्ति द्वारा खरमोर के आने की सूचना दी जाती है और वनकर्मियोंद्वारा खरमोर सूचना के आधार पर पाया जाता है तो सूचना देने वाले व्यक्ति को एक हजार रूपये का इनाम दिया जाता है । यदि सूचना के उपरांत खरमौर का निजी घास बीड़ और खेत में संरक्षण पूर्ण सीजन तक किया जाता है तो संरक्षण करने वाले कृषक को कुल पांच हजार रूपये प्रोत्साहन राशि के रूप में दिए जाते हैं । वर्ष २००५ में इस योजना का प्रचार यथा संभव किया जाकर कुल १२ खरमोर अभ्यारण्य के बाहर क्षेत्र में विभिन्न कृषकों की सहायता से दिखाई देना संभव हो सके । इस योजना के अन्तर्गत घास बीड़ मालिकों द्वारा रूचि ली जा रही है और प्रतिवर्ष खरमोर निजी घास बीड़ों में दिखाई दे रहे है ।
यह सुखद है कि खरमोर संरक्षण में समुचित जन सहयोग मिल रहा है । वैसे भी आजकल रंग-बिरंगे पक्षियों को निहारने के अवसर समाप्त् होते जा रहे हैं । मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का सिलसिला लगातार जारी है । दुनिया में बढ़ती प्राकृतिक आपदाआेंके रूप में इनके नतीजे हम भुगत भी रहे हैं । इंसानों की गलतियों का खामियाजा अब पशु-पक्षियों को भी भुगतना पड़ रहा है । ऐसे में प्रवासी पक्षी खरमोर के प्रति मालवी लोगों द्वारा आत्मीयतापूर्ण व्यवहार कर संरक्षण प्रदान करना सचमुच सुखद संकेत है ।
रतलाम जिले के साथ ही प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से भी पक्षी प्रेमी प्रति वर्ष बड़ी संख्या में खरमोर देखने के लिए सैलाना पहुँचते है । पर्यटकों के भ्रमण के लिए उपयोग जानकारी निम्न है :-
१. उचित अवधि - अगस्त और सितम्बर माह (वर्षा की स्थिति पर निर्भर)
२. उचित समय - प्रात: और सांयकाल
३. उचित स्थल - शिकारवाड़ी (यह स्थल सैलाना से तीन किलोमीटर और रतलाम से २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है)
४. उचित साधन - दूरबीन
५. उचित सलाह - घास बीडों में घूमने के लिए लांग बूट साथ ले जाने से सुविधा होगी ।
खरमोर पक्षी का आकार साधारण मुर्गी के बराबर होता है । खरमोर पक्षियों के आगमन से सामान्यत: १० से १५ दिवस पश्चात् नर पक्षी घास के मैदानों में अपनी टेरीटरी निर्धारण का प्रयास करने लगते हैं । इसके शर्मीले होने के कारण इसे दूर से ही देखा जाता है । कई बार नर पक्षी बिना कोई टेरीटरी निर्धारित किए खेतों में घूमते-घूमते भी छोटी छोटी जम्प करते हुए देखे गए हैं । घास की ऊँचाई २० सेमी, होने के पश्चात् नर पक्षी अपनी टेरीटरी स्थापित कर एक स्थल पर कूदना (जम्प) प्रारंभ कर देते हैं । सामान्यत: नर पक्षी तीन से चार फुट की ऊँचाई तक कूदते हैं और कई बार एक दिन में ४०० बार तक भी एक ही स्थल पर कूदते हुए देखे गए हैं । कूदते समय नर पक्ष अपने पंखों का सफेद भाग विशेष रूप से प्रदर्शित करते हैं और एक तेज विशेष प्रकार की टर्र-टर्र आवाज करते हैं जो कि ५०० मीटर तक सुनी जा सकती है । सामान्यत: नर पक्षी ऊँचे स्थलों का कूदने के लिए चयन करते हुए देखे गए हैं, ताकि दूसरे नर पक्षी को स्पष्ट तौर पर उनकी टेरीटरी का आभास हो सके तथा उन्हें मादा को आकर्षित करने में भी सुविधा रहे । अक्टूबर के प्रथम सप्तह तक सामान्यत: कूदना अथवा प्रदर्शन करना समाप्त् हो जाता है । खरमोर की इस कूद को निहारने के लिए रतलाम जिले के सैलाना स्थित शिकारवाड़ी क्षेत्र ने पक्षीविदों को हमेशा आकर्षित किया है ।
एक शताब्दी पूर्व खरमोर पूरे भारतवर्ष में हिमालय की तराई से लेकर दक्षिणी तट तक पाए जाते थे । ऐसा माना जाता रहा था कि समस्त ऐसे खुले क्षेत्र जो घास से परिपूर्ण थे, वहाँ खरमोर पक्षी किसी न किसी अवधि में अवश्य प्रवास करते थे । बीसवीं शताब्दी के मध्य तक ऐसा माना जाता रहा कि खरमोर पक्षी मुख्यत: गुजरात, राजस्थान और मध्यप्रदेश के विभिन्न भागोंमें प्रजनन के लिए आते हैं और प्रजनन उपरान्त दक्षिणी भारत में पलायन करते रहे हैं । बीसवीं शताब्दी के अन्त तक खरमोर पक्षी की संख्या कम होना स्पष्ट तौर पर पाया जाने लगा और वर्षा ऋतु में प्रजनन के लिए ये केवल कुछ मुख्य घास के मैदानों में ही दिखाई देने लगे । वर्ष १९८० के पश्चात् से खरमोर की संख्या में कमी आने से इनके रहवास इत्यादि के बारे में विशेष ध्यान दिया जाने लगा और कई क्षेत्रों को अभ्यारण्य भी घोषित किया गया । बर्ड लाइफ इन्टरनेशनल द्वारा इसे संकटापन्न घोषित किया गया है ।
महान पक्षी प्रेमी सालीम अली ने स्वयं सैलाना क्षेत्र में आकर खरमोर संरक्षण के लिए प्रेरणा दी थी । श्री अली की प्रेरणा से मध्यप्रदेश सरकार ने १४ जून, १९८३ को रतलाम जिले के ८५१.७० हेक्टर वन क्षेत्र तथा ग्राम सैलाना और शेरपुर के ४४५.७३ हेक्टेयर राजस्व क्षेत्र को खरमोर पक्षी अभ्यारण्य क्षेत्र वन्यप्राणी संरक्षण के लिए अधिसूचित किया है । राजस्व क्षेत्र सैलाना के अन्तर्गत ३५५ हेक्टेयर क्षेत्र शिकारवाड़ी के नाम से जाना जाता है । यह क्षेत्र पूर्व में सैलाना रियासत का शिकारगाह रहा है, यह खरमोर देखने के लिए उचित स्थान है । यह क्षेत्र ऊँचा-नीचा होकर चारों और खेतों से घिरा हुआ है । शेरपुर में ९० हेक्टेयर क्षेत्र में घास बीड़ अभ्यारण्य के अन्तर्गत अधिसूचित है ।
वन विभाग द्वारा प्रत्येक वर्ष उपरोक्त अधिसूचित क्षेत्र को वर्षा ऋतु प्रारंभ होने से पूर्व चराई से रोकने के लिए प्रयास किए जाते हैं । अभ्यारण्य के आसपास के ग्रामीणों से चर्चा की जाकर चराई रोकने के लिए समझाइश दी जाती रही है । वर्षा सीजन समाप्त् होने के उपरान्त वन क्षेत्र मेंउपलब्ध घास को नि:शुल्क ग्रामीणों को उपलब्ध कराया जाता है । खरमोर पर हुए विभिन्न शोध कार्यो से यह स्पष्ट हुआ है कि वर्षा ऋतु प्रारंभ होते ही खरमोर का घास के मैदान में आना प्रारंभ हो जाता है और सामान्यत: दो-तीन दिवस की अच्छी वर्षा उपरान्त खरमोर की संख्या में तेजी से बढ़ोतरी होती है । वर्षाकाल के प्रथम १५ दिवसों में अच्छी वर्षा होना खरमोर की संख्या अधिक होने के संकेत देता है ।
खरमोर संरक्षण में जनसहयोग -
अभ्यारण्य के अधिसूचित क्षेत्र के अतिरिक्त रतलाम जिले में कई घास बीड़ें निजी आधिपत्य में भी विद्यमान हैं । बी.एन.एच.एस. और विभाग के सर्वे इत्यादि से ज्ञात हुआ है कि इन निजी घास बीडों में भी खरमोर प्रवास करते रहे हैं । वन विभाग के आधिपत्य में न होने से इन घास बीड़ों के प्रबंधन और सुरक्षा इत्यादि के संबंध में वन विभाग द्वारा कोई विशेष प्रयास पृथक से किया जाना संभव नहीं हो पाता था । विभिन्न स्तरों पर अध्ययन से स्पष्ट हुआ कि निजी क्षेत्रों में आने वाले खरमोर का संरक्षण तब ही संभव है, जब क्षेत्र मालिक को प्रोत्साहन दिया जाए । इस आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए वन विभाग द्वारा खरमोर संरक्षण इनामी योजना वर्ष २००५ से लागू की गई । इस योजना के अनुसार यदि किसी व्यक्ति द्वारा खरमोर के आने की सूचना दी जाती है और वनकर्मियोंद्वारा खरमोर सूचना के आधार पर पाया जाता है तो सूचना देने वाले व्यक्ति को एक हजार रूपये का इनाम दिया जाता है । यदि सूचना के उपरांत खरमौर का निजी घास बीड़ और खेत में संरक्षण पूर्ण सीजन तक किया जाता है तो संरक्षण करने वाले कृषक को कुल पांच हजार रूपये प्रोत्साहन राशि के रूप में दिए जाते हैं । वर्ष २००५ में इस योजना का प्रचार यथा संभव किया जाकर कुल १२ खरमोर अभ्यारण्य के बाहर क्षेत्र में विभिन्न कृषकों की सहायता से दिखाई देना संभव हो सके । इस योजना के अन्तर्गत घास बीड़ मालिकों द्वारा रूचि ली जा रही है और प्रतिवर्ष खरमोर निजी घास बीड़ों में दिखाई दे रहे है ।
यह सुखद है कि खरमोर संरक्षण में समुचित जन सहयोग मिल रहा है । वैसे भी आजकल रंग-बिरंगे पक्षियों को निहारने के अवसर समाप्त् होते जा रहे हैं । मनुष्य द्वारा प्रकृति के साथ छेड़छाड़ का सिलसिला लगातार जारी है । दुनिया में बढ़ती प्राकृतिक आपदाआेंके रूप में इनके नतीजे हम भुगत भी रहे हैं । इंसानों की गलतियों का खामियाजा अब पशु-पक्षियों को भी भुगतना पड़ रहा है । ऐसे में प्रवासी पक्षी खरमोर के प्रति मालवी लोगों द्वारा आत्मीयतापूर्ण व्यवहार कर संरक्षण प्रदान करना सचमुच सुखद संकेत है ।
रतलाम जिले के साथ ही प्रदेश के अन्य क्षेत्रों से भी पक्षी प्रेमी प्रति वर्ष बड़ी संख्या में खरमोर देखने के लिए सैलाना पहुँचते है । पर्यटकों के भ्रमण के लिए उपयोग जानकारी निम्न है :-
१. उचित अवधि - अगस्त और सितम्बर माह (वर्षा की स्थिति पर निर्भर)
२. उचित समय - प्रात: और सांयकाल
३. उचित स्थल - शिकारवाड़ी (यह स्थल सैलाना से तीन किलोमीटर और रतलाम से २५ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है)
४. उचित साधन - दूरबीन
५. उचित सलाह - घास बीडों में घूमने के लिए लांग बूट साथ ले जाने से सुविधा होगी ।
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