मंगलवार, 14 मई 2013

संपादकीय 
एक उदाहरण बन गया है पिपलांत्री गांव

देश मेंकन्या भू्रण हत्या रोकने के मामलोंमें त्वरित कार्यवाही के साथ-साथ लोगों की सोच में भी बड़े बदलाव की जरूरत है । यह बात कई बार रेखांकित हुई है । समाज बेटियों की उपयोगिता समझे, इसके लिए लोगों में वैज्ञानिक सोच विकसित की जाए । वैज्ञानिक सोच किस तरह बेटियों को बचाने में मदद्गार साबित होगी, यह बात राजस्थान के छोटे से गांव पिपलांत्री की मिसाल से समझी जा सकती है ।
    राजसमंद जिले का यह गांव न केवल अपने यहां बेटियोंको बचा रहा है, बल्कि उनके बहाने पर्यावरण को प्रोत्साहन भी दे रहा है । यह सब सामुदायिक सहयोग से संभव हुआ । पिपलांत्री के पूर्व सरपंच श्यामसुंदर पालीवाल ने अपनी बेटी की मौत के बाद उसकी याद में पेड़ लगाने की पहल को पूरे गांव ने अंगीकार किया । पिपलांत्री में जब किसी घर में कोई बेटी जन्म लेती है, तो वहां के लोग मिल-जुलकर एक सौ ग्यारह पेड़ लगाते है और उनके फलने-फूलने से लेकर देखरेख तक का पूरा इंतजाम खुद करते है ।
    इस अनूठी पहल से बीते छह वर्षो में इस इलाके में ढाई लाख से ज्यादा पेड़ और उन्हें दीमक से बचाने के लिए इतनी ही तादाद में एलोवेरा (ग्वारापाठा) के पेड़ लगाए जा चुके है । इस पहले से गांव में दो बड़े बदलाव आए । एक, लड़कियों के प्रति समाज का नजरिया बदला, तो दूसरा, बड़ी तादात में फलदार पेड़ पौधों लगने से इलाके का पर्यावरण सुधार ही, गांव के लोगोंके लिए रोजगार के मौके भी बढ़ गए । गांव में इसके लिए एक नई परिपाटी शुरू की गई । किसी भी घर मेंलड़की की पैदाइश पर उसके माता-पिता को एक शपथ पत्र पर दस्तखत करना होता है, जिसमें कुछ शर्तेहोती है । मसलन वे बेटी की शादी कानूनी उम्र से पहले नहीं करेंगे, उसे नियमित तौर पर स्कूल भेजेगे और उनके नाम पर लगाए गए पेड़ों की देखभाल करेंगे आदि । इस सकारात्मक शर्तो के साथ एक अहम काम और किया जाता है, लड़की के पिता से दस हजार रूपये लिए जाते है और उसमें गांव वालों की ओर से एकत्रित किए २१ हजार रूपये मिलाकर उस रकम को लड़की के नाम से खोले गए बैंक खाते में बीस वर्ष के लिए जमा कर देते है जिससे लड़की को आर्थिक आधार मिलता है ।

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