सोमवार, 17 मार्च 2014

विश्व महिला दिवस पर विशेष
मनरेगा और लैंगिक उत्पीड़न
सचिन कुमार जैन


    भारत में सर्वाधिकरोजगार देने वाले मनरेगा के कार्यस्थलों में महिलाओं का लैंगिक शोषण आम हो चला है। पुरुषवादी सोच के चलते भाषायी अश्लीलता और व्यवहारगत कदाचरण से महिलाओं को लगातार दबाया और डराया जा रहा है। आवश्यकता इस बात की है कि मनरेगा कार्यस्थलों पर लैंगिक उत्पीड़न अधिनियम-२०१३ सख्ती से लागू किया जाए ।
    सर्वोच्च् न्यायालय ने वर्ष १९९७ में कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न को रोकने के मकसदसे विशाखा दिशा-निर्देश दिए थे । इसके आठ  साल बाद भारत की संसद ने महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून पारित किया। २ फरवरी को इस कानून को अस्तित्व में आए आठ  साल हो गए हैं । भारत में सबसे ज्यादा महिलाएं काम करती हैं । मनरेगा को दुनिया में अपनी तरह का बहुत विशेष कानून माना जाना चाहिए । क्योंकि जिस दौर में `राज्य` तेजी से अपनी नैतिक और राजकीय जिम्मेदारियों से अलग होकर निजीकरण और खुले व्यापार को बढ़ावा दे रहे थे, तब भारत में एक ऐसा कानून बना जो गांव में रहने वाले लोगों को साल भर में कम से कम १०० दिन के  रोजगार की कानूनी गारंटी देता था ।
   लेकिन किसी को नहीं पता कि इस रोजगार गारंटी कानून में काम करने वाली महिलाओं के क्या हालात  हैं ? समाज में बोलचाल की भाषा में आमतौर पर लैगिक सूचकों का बेतहाशा उपयोग किया जाता है । लैंगिक उत्पीड़न रोकने वाले कानून के मुताबिक अब  इसे भी स्त्री के खिलाफ होने वाला अपराध माना जाएगा । इस नजरिए से मनरेगा के कार्यस्थल बिल्कुल भी सुरक्षित नहीं हैं । समय से मजदूरी दिए जाने के मामलों को भी कई बार इन्हीं सूचकों के माध्यम से दबा दिया जाता  है ।
    पिछले एक साल में लैंगिक शोषण के खिलाफ चले संघर्ष के  परिणामस्वरूप भारत सरकार ने २२ अप्रैल २०१३ को महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न (निवारण, प्रतिषेध एवं प्रतितोषण) अधिनियम २०१३ बना दिया । भारतीय दंडसंहिता के तहत पहले दर्ज होने वाले मामलों और इस कानून में किए गए प्रावधानों में सबसे बुनियादी अंतर `प्रक्रिया` का है । पहले के कानून में पुलिस की केंद्रीय भूमिका थी । अब इस कानून के अनुसार पुलिस तक जाने से पहले आंतरिक समिति (प्रत्येक कार्यस्थल पर नियोजक यानी संस्था या विभाग के भीतर हर स्तर पर बनेगी, जिसकी पीठासीन अधिकारी उस कार्यालय की वरिष्ठ महिला कर्मचारी होगी) जो प्रकरण का संज्ञान  लेगी और उसे जांच करने का पूरा अधिकार      होगा ।
    इस कानून में काम के बारे में कोई भी वचन कह कर उत्पीड़न करने, उत्पीड़न के लिए महिला के काम को प्रभावित करने, उत्पीड़न के लिए धमकी, लैंगिक उत्पीड़न के लिए उसे कमतर साबित करना या स्वास्थ्य या सुरक्षा समस्याओं से जुड़ा अपमानजनक आचरण भी शामिल है । कानून में स्पष्ट है कि इसमें शारीरिक संपर्क करना या व्यवहार की सीमाएं लांघना, लैंगिक स्वीकृति के लिए मांग या अनुरोध करना, अश्लील साहित्य दिखाना या लैंगिक प्रकृति का कोई शाब्दिक या अशाब्दिक आचरण करना भी शामिल है ।
    भारत में असंगठि त क्षेत्र में १५ करोड़ महिलाएं कार्यरत हैं । महत्वपूर्ण यह है कि यह नया कानून असंगठित क्षेत्र के कार्यस्थलों पर भी लागू होता है । अत: कानूनन वहां पर भी  समिति बनना चाहिए । यदि सरकार असंगठित क्षेत्र में काम करने वाली महिलाओं को संविधान के १४, १५ और २१वें अनुच्छेद के बारे में समझाना चाहती है तो उसे मनरेगा में इस कानून को लागू करने की पहल करना होगी । वैसे भी इसे लागू हुए नौ माह गुजर चुके हैं और नियम भी बन चुके हैं । परन्तु मनरेगा जैसी योजनाओं में इस कानून के अंतर्गत क्या व्यवस्था बनेगी, उसकी निगरानी कैसे होगी और महिलाओं को संरक्षण कैसे दिया जाएगा, इसके बारे में इस कानून के  नियम बहुत कमजोर हैं । महिलाओं का कार्यस्थल पर लैंगिक उत्पीड़न कानून और मनरेगा के परस्पर सह-सम्बन्धों पर कोई बात शुरु ही नहीं हुई है ।
    इसके पहले भी अन्य सरकारी विभागों में विशाखा के तहत व्यवस्था नहीं बनी थी और वहां लैंगिक शोषण जारी था । इसके बावजूद सात सालों तक यह सवाल ही नहीं उठा कि मनरेगा का कार्यस्थल भी इस व्यवस्था के तहत आना चाहिए । जब २००५-०६ में रोजगार का कानून और नियम बने, तब भी विशाखा के बारे में कोई संज्ञान नहीं लिया गया । कलेक्टरों से लेकर पंचायत के सरपंचों और सचिवों तक के लिए देश भर में १६७२० (अगस्त २०१३ तक) प्रशिक्षण शिविर आयोजित हो चुके हैं । पर यह विषय कहीं भी शामिल नहीं था कि मनरेगा के तहत काम करने वाली ३७४.५ लाख महिलाओं को कार्यस्थल पर लैंगिक शोषण के  खिलाफ कानूनी अधिकार प्राप्त होगा । मनरेगा में गर्भवती और धात्री महिलाओं और छोटे बच्चें के लिए झूलाघर का प्रावधान है । परंतु इसे पूर्णरूपेण इसलिए लागू नहीं किया गया, क्योंकि स्त्री को उसके इन हकों की स्वतंत्रता वह वर्ग नहीं देता, जिससे हमारे कलेक्टर और सरपंच-सचिव या मैट आते हैं ।
    व्यावहारिक तौर पर महिला मजदूर भी समान श्रम करती हैं । परंतु आखिर में उन्हें पुरुषों की तुलना में १८ प्रतिशत कम वेतन दिया जाता है । क्या यह एक किस्म से लैंगिक शोषण नहीं  है ? रोजगार के इस कानून के तहत कुल ७९५.९ लाख श्रमिक काम करते हैं, जिनमें से ४७.०९ प्रतिशत महिलाएं हैं । यानी मनरेगा भारत में सबसे बड़ा कार्यस्थल है, यहां सबसे ज्यादा महिलाएं काम करती हैं और जो कहीं न कहीं उनके शोषण का सबसे बड़ा स्थान भी  है । यहां मांगने पर भी काम न देने और काम करवा लेने के बाद मजदूरी न देने, कम मजदूरी देने, स्त्रियों के साथ लैंगिक भेदभाव तक की बेतहाशा आशंकाएं हैं ।
    मनरेगा में वेतन और मजदूरी के बारे में कई अध्ययन हुए पर लैंगिक शोषण के स्थिति के बारे में एक भी अध्ययन सरकारी या गैर सरकारी संस्था ने नहीं किया है। इसी कानून में पहली बार सामाजिक अंकेक्षण को स्थान मिला, पर सामाजिक अंकेक्षण में स्त्रियों के  साथ होने वाले व्यवहार का आंकलन नहीं होता । इसमें केवल यह देखा जा रहा है कि कितनी महिलाओं को काम मिला, जबकि अब यह देखने का समय है कि समानता और गरिमा से जीवन जीने के अधिकार के तहत उन्हें लैंगिक उत्पीड़न से मुक्त सुरक्षित वातावरण का अधिकार भी मिलता है कि नहीं ! इस कानून का सही क्रियान्वयन इसलिए जरूरी है ताकि बेटियों के माता-पिता को यह विश्वास हो सके कि समाज में उनकी ५ साल की बेटी के साथ बलात्कार नहीं होगा । ज्यादातर मजदूर गांव में झूलाघर के  अभाव में अपने साथ अपने बच्चेंको काम पर ले जाते हैं ।
    लैंगिक उत्पीड़न निवारण अधिनियम कहता है कि जिस भी असंगठित क्षेत्र में कम से कम १० कर्मकार या श्रमिक हैं, वहां इस कानून के प्रावधान लागू होंगे । मनरेगा का कानून भी कहता है कि जहां कम से कम १० लोग काम मांगेंगे, वहीं पर नया काम खुलेगा (यानी वह एक नया कार्यस्थल होगा)। वर्ष २०११-१२ में भारत में ५३.२ लाख व  वर्ष २०१२-१३ में ८०.३ लाख कार्य प्रारंभ हुए हैं और वर्ष २०१३-१४ में मनरेगा के तहत ९७.२ लाख कार्य होंगे, जिसमें अनिवार्य रूप से  एक तिहाई महिलाएं होंगी । 
    लैंगिकउत्पीडन रोकने वाला कानून का प्रभावी होना महज इसलिए महत्वपूर्ण नहीं होगा कि इसमें कितने मामले दर्ज होते हैं, बल्कि यदि इसकी प्रक्रिया सही ढंग से चलाई जाए तो यह करोड़ों महिलाओं को शोषण के खिलाफ मानसिक और भावनात्मक रूप से तैयार कर देगा । हमें मनरेगा दिशा-निर्देशों, नियमों, मूल्यांकन के तौर-तरीकों और सामाजिक अंकेक्षण में भी कार्यस्थल पर लैंगिक शोषण की रोकथाम के लिए एक सक्रिय व्यवस्था बनाना होगी ।

कोई टिप्पणी नहीं: