विज्ञान जगत
प्रयोगशाला में बना इंसानी दिमाग
संध्या रायचौधरी
ऑस्ट्रियन एकेडमी ऑफ साइंसेज में इंस्टिट्यूट ऑफ मॉलिक्यूलर बायोटेक्नॉलॉजी के वैज्ञानिकों ने स्टेम कोशिकाआें का इस्तेमाल करके प्रयोशाला में इंसानी दिमाग का छोटा रूप तैयार करने का दावा किया है ।
इन वैज्ञानिकों ने टेस्ट ट्यूब में उस स्तर के दिमाग को तैयार करने में सफलता हासिल की है जो नौ सप्तह के भू्रण में दिमाग का स्तर होता है । प्रयोगशाला में तैयार दिमाग इंसानी दिमाग से बस इस मायने में अलग है कि इसमें सोचने समझने की शक्ति नहीं है । लेकिन यह सफलता का पहला चरण है इसलिए यह मानकर चला जा रहा है कि आने वाले सालों में जो दिमाग तैयार होगा उसमें यह शक्ति भी होगी ।
वैसे प्रयोगशाला में पहले भी वैज्ञानिक दिमागी कोशिकाएं बनाने में सफल रहे हैं लेकिन इस बार उन्होनें चार मि.मी. आकार का दिमाग बनाने में सफलता हासिल की है जो अब तक प्रयोगशाला में बना सबसे बड़ा दिमाग है । कहा जा सकता है कि यह कृत्रिम दिमाग के विकास मेंमहत्वपूर्ण उपलब्धि है ।
प्रयोगशाला में बना इंसानी दिमाग
संध्या रायचौधरी
ऑस्ट्रियन एकेडमी ऑफ साइंसेज में इंस्टिट्यूट ऑफ मॉलिक्यूलर बायोटेक्नॉलॉजी के वैज्ञानिकों ने स्टेम कोशिकाआें का इस्तेमाल करके प्रयोशाला में इंसानी दिमाग का छोटा रूप तैयार करने का दावा किया है ।
इन वैज्ञानिकों ने टेस्ट ट्यूब में उस स्तर के दिमाग को तैयार करने में सफलता हासिल की है जो नौ सप्तह के भू्रण में दिमाग का स्तर होता है । प्रयोगशाला में तैयार दिमाग इंसानी दिमाग से बस इस मायने में अलग है कि इसमें सोचने समझने की शक्ति नहीं है । लेकिन यह सफलता का पहला चरण है इसलिए यह मानकर चला जा रहा है कि आने वाले सालों में जो दिमाग तैयार होगा उसमें यह शक्ति भी होगी ।
वैसे प्रयोगशाला में पहले भी वैज्ञानिक दिमागी कोशिकाएं बनाने में सफल रहे हैं लेकिन इस बार उन्होनें चार मि.मी. आकार का दिमाग बनाने में सफलता हासिल की है जो अब तक प्रयोगशाला में बना सबसे बड़ा दिमाग है । कहा जा सकता है कि यह कृत्रिम दिमाग के विकास मेंमहत्वपूर्ण उपलब्धि है ।
टेस्ट ट्यूब में इस दिमाग को बनाने के लिए भ्रूण की स्टेम कोशिका या वयस्क त्वचा कोशिका का उपयोग किया गया । इसे दो महीने तक बायो रिएक्टर में पोषक तत्वों और ऑक्सीजन की मौजूदगी में विकसित किया गया । वैज्ञानिकों ने देखा कि कोशिकाएं स्वयं ही विकसित होकर दिमाग के विभिन्न हिस्सों के रूप में खुद को संगठित करने में सफल रही हैं । जैसे सेरेब्रल कॉर्टेक्स, रेटिना और हिपोकैम्पस जो बाद में इंसानों में स्मृति के विकास में महत्वपूर्ण होता है ।
वैज्ञानिक फिलहाल कह रहे हैं अभी हम वास्तविक दिमाग बनाने से काफी दूर हैं । शोधकर्ताआें में से एक डॉक्टर जुरजेन नोबिलिच ने कहा भी है, प्रयोगशाला में बना दिमाग, दिमाग के प्रतिरूप के विकास के लिए और दिमाग में होने वाली बीमारियों के अध्ययन के लिए अच्छा मॉडल है । नोबिलिच के मुताबिक अंतत: हम अधिक आम बीमारियों जैसे शिजोफे्रनिया या ऑटिज्म की ओर बढ़ना चाहेंगे । हालांकि ये बीमारियां वयस्कों में ही दिखती हैं लेकिन यह पाया गया है कि इनसे संबंधित विकृतियां दिमाग के विकास के समय ही पैदा हो जाती हैं ।
वैज्ञानिक प्रयोगशाला में बने इस दिमाग को और अधिक विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं । हालांकि उन्होनें एक साल तक इस दिमाग को टेस्ट ट्यूब में रखा लेकिन यह चार मि.मी. से ज्यादा नहीं बढ़ा । मतलब यह कि अभी वैज्ञानिकों को सही-सही नहीं पता चला है कि आखिर दिमाग में विकास का मुख्य अवयव क्या है । वैसे दिमाग को समझने, उसका प्रतिरूपण करने और थोड़ी निष्ठुर भाषा में कहें तो उस पर कब्जा जमाने की फिराक में वैज्ञानिक हमेशा से रहे हैं ।
करीब एक दशक पहले ब्रिटेन की मशहूर पत्रिका दी इकॉनॉमिस्ट में एक सनसनीखेज खुलास किया गया था । यह खुलासा था कि ब्रिटेन तथा अमरीका के कुछ तंत्रिका वैज्ञानिक चुपके-चुपके मानव मस्तिष्क पर प्रयोग कर रहे हैं । ऐसे प्रयोग करने वाले एक वैज्ञानिक के हवाले से कहा गया था कि कुछ महिलाआें के मस्तिष्क में जब मामूलजी सी छेड़छाड़ की गई तो उन्हें गहरे आनन्द की अनुभूति हुई । सुनने में यह भले मामूली सी बात लगे लेकिन वास्तव में यह मामूली थी नहीं । इस मामूली सी दिखने वाली घटना के दो बड़े आयाम हैं । एक तो वही इंसानी जिज्ञासा । दुनिया में जो चीज इंसान के लिए जितनी ज्यादा चुनौती पेश करती है, इंसान उसके लिए उतना ही ललक रखने लगता है । दिमाग कुदरत की सबसे जटिल और रहस्यमयी रचना है ।
इसलिए इंसान सबसे ज्यादा दिमाग को जानने के लिए ही रोमांचित रहता है फिर वह चाहे वैज्ञानिक ही क्यों न हो । लेकिन इसका एक आपराधिक पहलू भी है । मस्तिष्क से छेड़छाड़ का मतलब है कि दिमाग को मुट्ठी में कैद करने की कोशिश । यह खौफनाक है क्योंकि वैज्ञानिकों और समाज शास्त्रियों के समूह को आशंका है कि अगर सचमुच फेरबदल की ताकत इंसान ने हासिल कर ली या कृत्रिम दिमाग वास्तविकता बना गया तो मानवीय गुलामी का एक ऐसा दौर शुरू हो सकता है जिसकी अभी तक कल्पना भी नहीं की गई है । नि:संदेह इसके कुछ फायदे भी हो सकते हैं। मगर सच्चई यह भी है कि ऐसी तमाम खोजें इन्हीं फायदों के लिए शुरू नहीं की जाती हैं, इनका मकसद कुछ और होता है ।
यहां भी आशंका यही है कि एक बार मस्तिष्क नियंत्रण की कुंजी का पता चल गया तो फिर यह कहना बहुत मुश्किल होगा कि उसका कौन, कैसा उपयोग करेगा । मानव शरीर पर हुए अनुसंधानों में आज तक सबसे अधिक अनुसंधान मस्तिष्क पर ही हुए है । फिर भी सच्चई यही है कि हम अब भी मस्तिष्क के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते । भाषाआें को सीखने और समझने का मैकेनिज्म, प्रेम और नफरत की रहस्यात्मकता और सच तथा झूठ के द्वंद्व की गहनता आज भी मस्तिष्क की कुछ ऐसी अबूझ पहेलियां हैं जहां तक वैज्ञानिक या पहुंच नहीं पाए हैं और यदि पहुंच भी गए हैं तो उनके दावे विश्वास पैदा नहीं करते । वैज्ञानिकों के लिए अभी भी चेतना, भावना, स्मरण एवं तर्क शक्ति, ज्ञान का भंडार, स्वप्नों की अनोखी दुनिया, यहां तक कि मनुष्य की वास्तविक मौत जैसी बातें भी अबूझ पहेलियों की तरह ही हैं । इन तमाम अबूझ पहेलियों की खान है हमारा मस्तिष्क । यही वजह है कि चिकित्सा विज्ञान में मस्तिष्क को लेकर हमेशा आकर्षण रहा है ।
२०वीं सदी के उतरार्ध में मस्तिष्क को लेकर पूरी दुनिया में वैज्ञानिकों का रूझान बढ़ा जो २१ वीं शताब्दी के इस दूसरे दशक में भी जारी है । यही वजह है कि आज न केवल मस्तिष्क संबंधी तमाम अनुसंधान चर्चा में है बल्कि तंत्रिका विज्ञान मस्तिष्क में हस्तक्षेप कर सकने की स्थिति में पहुंच गया लगता है ।
डॉ. स्नाइडर ने मानव भ्रूण के मस्तिष्क में कुछ ऐसी खास कोशिकाएं ढूंढ निकाली हैं जो आने वाले समय में दिमाग की एक प्रकार की कोशिका नहीं बल्कि कई तरह की कोशिकाआें को जन्म देगी । इन अलादीनी चिराग माफिक न्यूरल स्टेम सेल को तंत्रीय कोशिका नाम दिया गया है जो वास्तव में एक तरह से स्टेम कोशिका है । अपने गहन परीक्षण के दौरान डॉ. स्नाइडर ने इस स्टेम कोशिका को प्रयोगशाला में मस्तिष्क जैसी परिस्थितियों में कई बार विकसित कर पाने में सफलता हासिल की है । हालांकि बीच में इसकी प्रगति रिपोर्ट से दुनिया अनजान रही लेकिन अब लग रहा है कि जो अनुमान कुछ साल पहले लगाए गए थे वे अब जल्द ही सफल होंगे यानी वैज्ञानिक ऐसी मस्तिष्क कोशिकाआें को विकसित कर पाने के बहुत नजदीक पहुंच गए हैं जिन्हें वे इंसान के दिमाग में मृत कोशिकाआें का स्थान लेने के लिए इंजेक्शन द्वारा रोप सकेंगे ।
नि:संदेह डॉ. स्नाइडर और उनके सहायकों ने इस महत्वपूर्ण खोज के संबंध में तमाम मानवीय उपयोग गिनाए हैं जो सचमुच इंसान के जीवन को बहुत खुबसूरत बना सकते हैं । लेकिन जिस तरह महान तकनीक, विचार और वस्तु की आनन-फानन में अनुकृति तैयार हो जाती है उसी तरह हर महान खोज के उपयोगी लक्ष्यों के साथ ही उसके खतरनाक प्रयोग भी चिन्हित हो जाते हैं । जब ये स्टेम कोशिकाएं बड़े पैमाने पर तैयार हो जाएंगी तो इन्हें मस्तिष्क में इंजेक्शन के माध्यम से रोपकर क्षतिग्रस्त मस्तिष्क को दुरूस्त किया जा सकेगा ।
एक बार अगर इंसान मस्तिष्क में छेड़छाड़ करने में माहिर हो गया तो फिर इंसानियत पर इस बात का खतरा मंडराने लगेगा कि वैज्ञानिक लोगों के दिमाग को अपनी इच्छानुसार डिजाइन करने लगेंगे । हालांकि स्वस्थ कृत्रिम दिमाग के बहुत फायदे गिनाए जा सकते हैं । जैसे इससे भुलक्कड़पन रोका जा सकेगा, बिगड़े मानसिक संतुलन को नियंत्रित किया जा सकेगा । संभव है इन्हीं के दम पर कोई नया रहस्य भी उघड़े या फिर प्रयोगशाला में तैयार कोशिकाआें का इस्तेमाल किसी को जीनियस बनाने के लिए भी हो । लेकिन इसका उपयोग इसके उलट भी हो सकता है ।
समाज शास्त्रियों को आशंका है कि एक बार दिमाग से छेड़छाड़ की कोशिका में अगर वैज्ञानिक मेधा सफल हो गई तो इसका उपयोग आतंकवादी भी कर सकते हैं । वैसे ये मजाक नहीं, सच है क्योंकि जब से वैज्ञानिकों ने दिमाग की संरचनात्मक गुत्थी को सुलझाने मेंे सफलता हासिल की है तब से आतंकवादी कई मस्तिष्क वैज्ञानिकों को अगवा कर चुके हैं और उनसे यह राज जानने की कोशिश भी कर चुके हैं कि उनका खतरनाक से खतरनाक उपयोग क्या हो सकता है । हालांकि अभी आतंकवादी ऐसा कुछ नहीं कर पाए हैं जो वे करना चाहते हैं ।
वैज्ञानिक फिलहाल कह रहे हैं अभी हम वास्तविक दिमाग बनाने से काफी दूर हैं । शोधकर्ताआें में से एक डॉक्टर जुरजेन नोबिलिच ने कहा भी है, प्रयोगशाला में बना दिमाग, दिमाग के प्रतिरूप के विकास के लिए और दिमाग में होने वाली बीमारियों के अध्ययन के लिए अच्छा मॉडल है । नोबिलिच के मुताबिक अंतत: हम अधिक आम बीमारियों जैसे शिजोफे्रनिया या ऑटिज्म की ओर बढ़ना चाहेंगे । हालांकि ये बीमारियां वयस्कों में ही दिखती हैं लेकिन यह पाया गया है कि इनसे संबंधित विकृतियां दिमाग के विकास के समय ही पैदा हो जाती हैं ।
वैज्ञानिक प्रयोगशाला में बने इस दिमाग को और अधिक विकसित करने की कोशिश कर रहे हैं । हालांकि उन्होनें एक साल तक इस दिमाग को टेस्ट ट्यूब में रखा लेकिन यह चार मि.मी. से ज्यादा नहीं बढ़ा । मतलब यह कि अभी वैज्ञानिकों को सही-सही नहीं पता चला है कि आखिर दिमाग में विकास का मुख्य अवयव क्या है । वैसे दिमाग को समझने, उसका प्रतिरूपण करने और थोड़ी निष्ठुर भाषा में कहें तो उस पर कब्जा जमाने की फिराक में वैज्ञानिक हमेशा से रहे हैं ।
करीब एक दशक पहले ब्रिटेन की मशहूर पत्रिका दी इकॉनॉमिस्ट में एक सनसनीखेज खुलास किया गया था । यह खुलासा था कि ब्रिटेन तथा अमरीका के कुछ तंत्रिका वैज्ञानिक चुपके-चुपके मानव मस्तिष्क पर प्रयोग कर रहे हैं । ऐसे प्रयोग करने वाले एक वैज्ञानिक के हवाले से कहा गया था कि कुछ महिलाआें के मस्तिष्क में जब मामूलजी सी छेड़छाड़ की गई तो उन्हें गहरे आनन्द की अनुभूति हुई । सुनने में यह भले मामूली सी बात लगे लेकिन वास्तव में यह मामूली थी नहीं । इस मामूली सी दिखने वाली घटना के दो बड़े आयाम हैं । एक तो वही इंसानी जिज्ञासा । दुनिया में जो चीज इंसान के लिए जितनी ज्यादा चुनौती पेश करती है, इंसान उसके लिए उतना ही ललक रखने लगता है । दिमाग कुदरत की सबसे जटिल और रहस्यमयी रचना है ।
इसलिए इंसान सबसे ज्यादा दिमाग को जानने के लिए ही रोमांचित रहता है फिर वह चाहे वैज्ञानिक ही क्यों न हो । लेकिन इसका एक आपराधिक पहलू भी है । मस्तिष्क से छेड़छाड़ का मतलब है कि दिमाग को मुट्ठी में कैद करने की कोशिश । यह खौफनाक है क्योंकि वैज्ञानिकों और समाज शास्त्रियों के समूह को आशंका है कि अगर सचमुच फेरबदल की ताकत इंसान ने हासिल कर ली या कृत्रिम दिमाग वास्तविकता बना गया तो मानवीय गुलामी का एक ऐसा दौर शुरू हो सकता है जिसकी अभी तक कल्पना भी नहीं की गई है । नि:संदेह इसके कुछ फायदे भी हो सकते हैं। मगर सच्चई यह भी है कि ऐसी तमाम खोजें इन्हीं फायदों के लिए शुरू नहीं की जाती हैं, इनका मकसद कुछ और होता है ।
यहां भी आशंका यही है कि एक बार मस्तिष्क नियंत्रण की कुंजी का पता चल गया तो फिर यह कहना बहुत मुश्किल होगा कि उसका कौन, कैसा उपयोग करेगा । मानव शरीर पर हुए अनुसंधानों में आज तक सबसे अधिक अनुसंधान मस्तिष्क पर ही हुए है । फिर भी सच्चई यही है कि हम अब भी मस्तिष्क के बारे में बहुत ज्यादा नहीं जानते । भाषाआें को सीखने और समझने का मैकेनिज्म, प्रेम और नफरत की रहस्यात्मकता और सच तथा झूठ के द्वंद्व की गहनता आज भी मस्तिष्क की कुछ ऐसी अबूझ पहेलियां हैं जहां तक वैज्ञानिक या पहुंच नहीं पाए हैं और यदि पहुंच भी गए हैं तो उनके दावे विश्वास पैदा नहीं करते । वैज्ञानिकों के लिए अभी भी चेतना, भावना, स्मरण एवं तर्क शक्ति, ज्ञान का भंडार, स्वप्नों की अनोखी दुनिया, यहां तक कि मनुष्य की वास्तविक मौत जैसी बातें भी अबूझ पहेलियों की तरह ही हैं । इन तमाम अबूझ पहेलियों की खान है हमारा मस्तिष्क । यही वजह है कि चिकित्सा विज्ञान में मस्तिष्क को लेकर हमेशा आकर्षण रहा है ।
२०वीं सदी के उतरार्ध में मस्तिष्क को लेकर पूरी दुनिया में वैज्ञानिकों का रूझान बढ़ा जो २१ वीं शताब्दी के इस दूसरे दशक में भी जारी है । यही वजह है कि आज न केवल मस्तिष्क संबंधी तमाम अनुसंधान चर्चा में है बल्कि तंत्रिका विज्ञान मस्तिष्क में हस्तक्षेप कर सकने की स्थिति में पहुंच गया लगता है ।
डॉ. स्नाइडर ने मानव भ्रूण के मस्तिष्क में कुछ ऐसी खास कोशिकाएं ढूंढ निकाली हैं जो आने वाले समय में दिमाग की एक प्रकार की कोशिका नहीं बल्कि कई तरह की कोशिकाआें को जन्म देगी । इन अलादीनी चिराग माफिक न्यूरल स्टेम सेल को तंत्रीय कोशिका नाम दिया गया है जो वास्तव में एक तरह से स्टेम कोशिका है । अपने गहन परीक्षण के दौरान डॉ. स्नाइडर ने इस स्टेम कोशिका को प्रयोगशाला में मस्तिष्क जैसी परिस्थितियों में कई बार विकसित कर पाने में सफलता हासिल की है । हालांकि बीच में इसकी प्रगति रिपोर्ट से दुनिया अनजान रही लेकिन अब लग रहा है कि जो अनुमान कुछ साल पहले लगाए गए थे वे अब जल्द ही सफल होंगे यानी वैज्ञानिक ऐसी मस्तिष्क कोशिकाआें को विकसित कर पाने के बहुत नजदीक पहुंच गए हैं जिन्हें वे इंसान के दिमाग में मृत कोशिकाआें का स्थान लेने के लिए इंजेक्शन द्वारा रोप सकेंगे ।
नि:संदेह डॉ. स्नाइडर और उनके सहायकों ने इस महत्वपूर्ण खोज के संबंध में तमाम मानवीय उपयोग गिनाए हैं जो सचमुच इंसान के जीवन को बहुत खुबसूरत बना सकते हैं । लेकिन जिस तरह महान तकनीक, विचार और वस्तु की आनन-फानन में अनुकृति तैयार हो जाती है उसी तरह हर महान खोज के उपयोगी लक्ष्यों के साथ ही उसके खतरनाक प्रयोग भी चिन्हित हो जाते हैं । जब ये स्टेम कोशिकाएं बड़े पैमाने पर तैयार हो जाएंगी तो इन्हें मस्तिष्क में इंजेक्शन के माध्यम से रोपकर क्षतिग्रस्त मस्तिष्क को दुरूस्त किया जा सकेगा ।
एक बार अगर इंसान मस्तिष्क में छेड़छाड़ करने में माहिर हो गया तो फिर इंसानियत पर इस बात का खतरा मंडराने लगेगा कि वैज्ञानिक लोगों के दिमाग को अपनी इच्छानुसार डिजाइन करने लगेंगे । हालांकि स्वस्थ कृत्रिम दिमाग के बहुत फायदे गिनाए जा सकते हैं । जैसे इससे भुलक्कड़पन रोका जा सकेगा, बिगड़े मानसिक संतुलन को नियंत्रित किया जा सकेगा । संभव है इन्हीं के दम पर कोई नया रहस्य भी उघड़े या फिर प्रयोगशाला में तैयार कोशिकाआें का इस्तेमाल किसी को जीनियस बनाने के लिए भी हो । लेकिन इसका उपयोग इसके उलट भी हो सकता है ।
समाज शास्त्रियों को आशंका है कि एक बार दिमाग से छेड़छाड़ की कोशिका में अगर वैज्ञानिक मेधा सफल हो गई तो इसका उपयोग आतंकवादी भी कर सकते हैं । वैसे ये मजाक नहीं, सच है क्योंकि जब से वैज्ञानिकों ने दिमाग की संरचनात्मक गुत्थी को सुलझाने मेंे सफलता हासिल की है तब से आतंकवादी कई मस्तिष्क वैज्ञानिकों को अगवा कर चुके हैं और उनसे यह राज जानने की कोशिश भी कर चुके हैं कि उनका खतरनाक से खतरनाक उपयोग क्या हो सकता है । हालांकि अभी आतंकवादी ऐसा कुछ नहीं कर पाए हैं जो वे करना चाहते हैं ।
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