शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

कृषि जगत
संभव है किसान संकट का समाधान
भारत डोगरा
    ग्रामसुधार के माध्यम से ही किसानों पर कहर बरपाते संकटों से बचा जा सकता है। आवश्यकता है ग्रामीण अर्थव्यवस्था को परिपूर्णता में देखने की । कृषि व अन्य उत्पादक कार्यों को अलग अलग करके देखने से ग्रामीण समाज पर संकट बढ़ता जा रहा है । जबकि ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सभी स्त्रोत एकदूसरे से जुड़े हुए रहते हैं ।
    किसानों के संकट व खेती किसानी की गंभीर समस्याओं की ओर ध्यान तो बार बार दिलाया जाता है, परंतु समाधान के तौर पर प्राय: अल्प कालीन राहत की ओर ही अधिक झुकाव रहता है। उपज की कीमत बढ़ा देने के अतिरिक्त, क्षतिपूर्ति करने व कर्ज अदायगी पर कुछ रोक लगा देने पर अक्सर जोर दिया जाता है । इस तरह की राहत की जरूरत भी समय समय पर हो सकती है और इसकी मांग भी की जानी चाहिए ।       विशेष तौर पर इस समय जब बहुत से किसान सूखे की गंभीर स्थिति से जूझ रहे हैं तो ऐसी राहत की जरूरत और भी अधिक है। परंतु बहुपक्षीय व जटिल किसान संकट केवल ऐसे उपायों मात्र से हल नहीं हो सकता है । इसके लिए तो कहीं अधिक व्यापक व बहुपक्षीय प्रयास चाहिए जो समग्र रूप में ग्राम सुधार से जुड़ते हों ।
     यदि ऐसा हो तो पर्यावरण की रक्षा व समाज सुधार के कई कार्य भी साथ साथ हो सकेंगे । गांवों में कई रचनात्मक कार्यों के लिए व्यापक एकता बन सकेगी । किसान संगठनों को इन व्यापक संभावनाओं की ओर भी ध्यान देना चाहिए । वैसे भी संकीर्ण आधार का आंदोलन न तो बहुत आगे बढ़ सकता है न टिकाऊ सिद्ध हो सकता है ।
    किसान संगठन स्वयं एक मांग उठाते रहे हैंकि उनके उत्पादन का उचित मूल्य मिले और समय पर भुगतान सुनिश्चित हो । यह मांग बहुत न्यायसंगत तो है लेकिन इसके साथ यह सवाल भी जरूरी है कि कहीं इस स्थान की खेती ऐसी तो नहीं है जो पर्यावरण की दृष्टि से प्रतिकूल   हो । मान लीजिए कि ऐसे स्थान पर बड़े पैमाने पर गन्ना उगाया जा रहा है जहां पानी की कमी है व गन्ने में अधिक पानी लगने के कारण जलसंकट उत्पन्न हो रहा है। इस स्थिति में यदि गन्ने का मूल्य बढ़ाया जाएगा तो गन्ने का उत्पादन और बड़े क्षेत्र में बढ़ाने को प्रोत्साहन मिलेगा व इस कारण क्षेत्र के अन्य सब लोगों के लिए जलसंकट और बढ़ेगा । अत: मांग इस रूप में होनी चाहिए कि किसान जलसंकट हल करने वाली खेती की ओर बढ़ सकें तथा इसके लिए उन्हेंे पर्याप्त सरकारी सहायता प्राप्त हो ।
    अत: किसानों के लिए न्यायसंगत मूल्य की मांग को इस रूप में प्रस्तुत किया जाना चाहिए कि किसान मूलत: उन्हीं फसलों को उगाएंगे जो क्षेत्र की मुख्य खाद्य फसलें हैं । इन फसलों को सरकार स्थानीय सार्वजनिक वितरण प्रणाली, राशन की दुकानों, आंगनवाड़ी व पोषण कार्यक्रमों के लिए खरीदेगी । यह खरीद इस मूल्य के आधार पर होगी कि किसानों को पर्याप्त बचत व आय हो । किसान फसल की अच्छी गुणवत्ता सुनिश्चित करेंगे व जहरीली दवाओं आदि का उपयोग फसल में नहीं करेंगे । यदि इस रूप में उचित व न्यायसंगत मूल्य की मांग उठाई जाए तो यह बहुत सार्थक है व खाद्य व पर्यावरण रक्षा से जुड़ जाती है । इस तरह के समग्र कार्यक्रम को अपना कर पर्यावरण की रक्षा व समाज सुधार जैसे अन्य महत्वपूर्ण लक्ष्य भी साथ साथ प्राप्त हो सके ।

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