शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

सम्पादकीय
सर्पदंश की दवा का थमता विकास
     एक ओर तो आधुनिक चिकित्सा तेजी से प्रगति कर रही है, वहीं सांप काटे की दवा के विकास के मामले में हम बहुत पिछड़ रहे हैं । तथ्य यह है कि दुनिया भर में सांप काटने से प्रति वर्ष २ लाख लोग मारे जाते हैं और कई लाख लोग अपंग हो जाते हैं । देखा जाए तो मच्छर के बाद सांप ही दूसरा सबसे ज्यादा जानलेवा जन्तु है ।
    हाल ही में डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (सरहदों से मुक्त डॉक्टर्स) नामक संगठन ने बताया है कि औषधि जगत की अग्रणी कंपनियां सर्पविष की दवा से हाथ खींच रही है । सर्पदंश के उपचार की स्थिति इतनी विकट हो चुकी है कि डॉक्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने सर्पदंश को दुनिया की सबसे ज्यादा उपेक्षित जन स्वास्थ्य समस्या कहा है ।
    प्रतिविष के विकास का काम मूलत: धन के अभाव में रूका है । ऐसा नहीं है कि शोधकर्ताआें के पास इस दिशा में कोई विचार नहीं है मगर उन विचारों पर काम करने के लिए धन मिलना मुश्किल हो गया है । प्रतिविष बनाने के लिए आम तौर पर सांप का विष किसी पशु के शरीर में प्रविष्ट कराया जाता है और फिर उस पशु के शरीर में बनी एंटीबॉडीज को एकत्रित किया जाता है । पशु को विष इतनी कम मात्रा में दिया जाता है कि वह खतरनाक नहीं होता । मगर इस तरीके से प्रतिविष बनाने का मतलब यह होता है कि सांप की हर प्रजाति और हर किस्म के लिए अलग-अलग प्रतिविष तैयार करना जरूरी होता है । सर्पदंश का कोई ऐसा प्रतिविष नहीं जो सारे सांपों के जहर के खिलाफ कारगर हो । इस तरह के सार्वभौमिक प्रतिविष को संभव बनाने के लिए प्रयास चल रहे है । प्रतिविष की खुराक को सस्ता करने की दिशा में एक कोशिश यह भी चल रही है कि पशुआें की बजाय एंटीबॉडीज का उत्पादन बैक्टीरिया में करवाया जाए ताकि लागत कम हो सके । सर्पदंश की दवा किसी अस्पताल में ही देनी होती है मगर दिक्कत यह होती है कि मरीज अस्पताल तक पहुंच ही नहीं पाता । इसके लिए कोशिश करना चाहिए कि घटना स्थल पर प्राथमिक उपचार हो सके और मरीज को अस्पताल पहुचने की मोहलत मिल जाए ।

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