शुक्रवार, 18 दिसंबर 2015

विज्ञान हमारे आसपास
कीटनाशक : धीमी मौत की आहट
सुश्री आकांक्षा
    पृथ्वी पर जीवन हवा, पानी, जमीन, जन्तु और पौधों पर ही निर्भर है । ये सब शुद्ध व पर्याप्त् मात्रा में होने चाहिये । अफसोस की बात है कि मानव आर्थिक विकास व बढ़ती जनसंख्या की समस्या का सामना करने के लिये ऐसे-ऐसे उपाय अपना रहा है कि इस पृथ्वी पर जीवन का मूल आधार ही नष्ट होने का खतरा हो गया है ।
    जल, हवा, अनाज, फल, सब्जी व अन्य खाद्य पदार्थ अधिकाधिक मात्रा में प्रदूषित हो रहे हैं । खेती योग्य जमीन घट रही है । जमीन का ताप बढ़ रहा है । धु्रवीय हिमखण्ड पिघल रहे है । ओजोन पर्त में छेद बढ़ रहा है जिससे विकीरण का दुष्प्रभाव बढ़ रहा है । इस तरीके से तो आगामी कुछ दशकों में मानव सभ्यता पृथ्वी से गायब हो जायेगी या विकृत हो जायेगी । 
     हाल ही में एक खबर पढ़ी अब तो मां का दूध भी जहरीला हो गया है । जिसमें बताया गया कि पशुआें के दुध मेंनिकल, सीसा व आइरन की मात्रा तय मानक से अधिक पाई गई ।
    यह खबर वाकई में चिंता पैदा करने वाली है । मनुष्य अब कहॉ तक बचेगा ? दूध तो सब को पीना पड़ता है बच्चे को बड़ों को ।
    कीटनाशकों के बुरे प्रभाव के बारे में पत्र-पत्रिकाआें और अखबारों में खबरें अक्सर आती रहती हैं पर इसे रोकने हेतु कोई बड़ा प्रभावी कदम अब तक नजर नहीं आया । क्या यह जहरीले रसायनों का बढ़ता प्रयोग वाकई में गौर करने लायक नहीं है या इस पर तब ध्यान दिया जायेगा जब सारी धरती बंजर हो जायेगी, कृषि योग्य जमीन शून्य हो जायेगी, अधिकांश जनसंख्या बीमार हो जायेगी, कोई दवा स्वास्थ्य देने लायक नहीं बचेगी ?
    पिछले दिनों में कई टीवी चैनलों ने बताया कि दिल्ली के आसपास के क्षेत्रों में पैदा होने वाली सब्जियों में बड़ी मात्रा में जहरीले रसायन, कीटनाशक व अवशिष्ट पाये गये हैं । दिल्ली के एक कोर्ट ने सरकार से इस बारे में जवाब मांगा है । सरकार ने इस पर नियंत्रण के लिये यद्यपि कई वर्षोसे पूर्व से कई आथोरिटी बना रखी है । जैसे - सेन्ट्रल इंसेक्टिसाइड बोर्ड एन्ड रजिस्ट्रेशन कमेटी, फूड सेफ्टी एण्ड स्टेन्डर्ड आथॉरिटी ऑफ इण्डिया, एग्रीकल्चर एण्ड प्रोशेस्ड फूड प्रॉडक्ट्स एक्सपोर्ट डिवलपमेंट अथोरिटी पर जमीन पर कोई फायदा  नजर नहीं आया ।
    सन् २०११ में कृषि विभाग की एक जारी की गई रिपोर्ट में देश के विभिन्न खाघान्न नमूनों में डी.डी.टी., लिंडेन, मोनोकोटफोस जैसे खतरनाक रसायन अधिक मात्रा में पाये गये । इलाहाबाद के टमाटर के एक नमूने में डीडीटी की मात्रा १०८ गुना अधिक, गोरखपुर के एक नमूने में सेब में क्लोरडेन नामक घातक रसायन पाया गया । सन् २०१४-१५ में एक अन्य कमेटी केन्द्रीय कीटनाशक अवशिष्ठ निगरानी योजना ने देश के २०,६७८ नमूनों के आठवेंभाग में प्रतिबंधित कीटनाशक पाये गये ।
    देश में ६७ रासायनिक कीटनाशक प्रतिबंधित है पर काफी संख्या में लोग इनका अंधाध्ंाुध प्रयोग कर रहे है । या तो उन्हें इसकी जानकारी नहीं है अगर है तो अधिक उत्पादन के लालच में इनका प्रयोग कर रहे हैं । कई कृषक भ्रमवश इनका अधिक व बिना जरूरत, पैदावार बढ़ाने के मकसद से इनका प्रयोग करते हैं ।
    कृषि में १३ रसायन नियंत्रित मात्रा के लिए प्रतिबंधित हैंपर इसका ध्यान रखने या चैक करने की जिम्मेदारी किस पर है पता ही नहीं चल रहा ?
    कई रसायन अन्य देशों में प्रतिबंधित कर दिये गये हैं जैसे मोनोकोटोफोस जिससे बिहार के एक स्कूल में२० बच्च्े मर गये थे, इन्डोसल्फोन जिसे ८१ देश प्रतिबंधित कर चुके हैं, भारत में धड़ल्ले से बिक रहे हैं । डीडीटी को अब भी प्रतिबंधित नहीं किया है ।
    अंधाधुंध प्रयोग के कारण औसत भारतीय अपने भोजन में १२.८ से ३१ पीपीएम डीडीटी, गेहूं में १.६ से १७.४, चावल में ०.८ से १६.४, दालों में २.९ से १६.९, मुंगफली में ३.० से १९.१, साग सब्जी में ५.० आलु में ६८.५ पीपीएम कीटनाशक खा रहा है । यह मानक से काफी ज्यादा है । अनाज, फल, सब्जी को पानी से धोने से भी अन्दर पहुंचे जहर को नहीं निकाला जा सकता । आल इण्डिया मेडिकल इंस्टीट्यूट ऑफ मेडीकल साइन्रेस के एक सर्वे के अनुसार एल्युमीनियम फोसफोइड से रोहतक में ११४ यूपी में ५५, हिमाचल में ३० व्यक्ति मारे गये या बीमार हुए ।
    हरियाणा के कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने कपास के खेत की मिट्टी में मेटासिस्टोक्स, साइपरमैरिन, क्लोरोपाइरीफॉस, क्वीनलफोस, साइपरमैथरीन, ट्राइजोफॉस के अवशेष पायेे ।
    वर्ष २००५ मेंसेंटर फोर साइन्स एण्ड एनवायरमेंट ने पंजाब में उगी कुछ फसलों में कीटनाशकों की मात्रा १५ गुना से ६०५ गुना तक पाई गई । मात्र कीटनाशकों के पैकेट्स पर बारीक अक्षरों में चेतावनी लिखी रहती है जिससे उसका ना के बराबर असर होता है । भारत में खाद्य पदार्थो में कीटनाशकों का अवशेष २० प्रतिशत है जबकि विश्व में यह २ प्रतिशत है । भारत में बिना अवशेषों के ४९ प्रतिशत खाद्य पदार्थ है जबकि विश्व में यह संक्ष्या ८० प्रतिशत है ।
    वर्तमान हालात विभिन्न संचार साधनों में प्रकाशित खबरों के आधार पर इस प्रकार है, निम्न जानकारी प्रकाश में आयी है -
    भारत में कुल ४० हजार कीटों की पहचान की गई इनमें १००० कीट लाभदायक माने गये हैं, ५० फीट साधारण है एवं ७० कीट ही काफी नुकसानदायक है ।
    इन थोड़े से कीटों के लिये देश मेंसैकड़ों की संख्या में घातक रसायनों का हल्ला बोल दिया गया है जैसे रोगोर, मैडा पराई, इमिडाक्लो-रापिअ, मैकोजेब, सॉफ, प्रोफिजिफोस, साइप्रोसिन, बीएचसी, एल्ड्रोन, मिथाइल पैराथियोन, टांक्साफेन, हेप्टाक्लोरलिन्डेन, एसिटामिप्रिड, फैम फिप्रोनल, एन्डोसल्फोन आदि ।
    थकज की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया मेंइतने कीटनाशकों के प्रयोग के बावजूद फसलोंमें नुकसान स्थिर ही है । कई जगह तो इनकी तनिक भी जरूरत नहीं है भारत में बिना इनके, कई स्थानों पर धान की अच्छी फसल ली गई है ।
    अत: इनके प्रयोग पर पुन: विचार करने की जरूरत है । कीटनाशक पदार्थ कीटों को ही नुकसान नहीं पहुचाते वे -
१. भूमि को बंजर बनाते हैं ।
२. लम्बे समय तक जमीन को जहरीला रखते हैं । नदियों का, तालाब का पानी तक जहरीला हो गया है कई स्थानों पर ।
३. जमीन से यह जहर नदियों व समुद्र में जाकर जैव श्रृंखला को प्रभावित करता है । अंत में मनुष्य तक पहुंचता है ।
४. कई प्रजातियों को तो गायब ही कर रहा है जैसे मोर, गिद्ध, कौआ, चील, चिड़ियाएें, लाभदायक कीड़े-मकोड़े स्थान-स्थान पर जनता ने यह महसूस भी किया है कि ये जीव अब नजर नहीं आते या इनकी सामूहिक मौत की खबर सामने आती है ।
५. खेत में काम करने वाले कृषक मजदूर कई तरह की बीमारियों से पीड़ित हो जाते हैं । एक अखबार के अनुसार अबोहर से बीकानेर चलने वाली ट्रेन नं. ३३९ को कैंसर एक्सप्रेस नाम दे दिया है जिसमें बड़ी संख्या में बीमार किसान मजदूर जाते है । पंजाब के ग्रामीण क्षेत्रों के २००१ से २००९ तक २३००७ लोग कैंसर से पीड़ित पाये गये ।
६. मनुष्यों में ये मितली, डायरिया, दमा, साइनस, एलर्जी, प्रतिरोधक क्षमता की कमी, मोतियाबिंद, कैंसर, लिवर-गुर्दे खराब, उल्टी, सिरदर्द व मृत्यु तक देते हैं ।
७. इनके प्रयोग के कुछ वर्षोबाद कम पैदावर से किसान को भयंकर नुकसान होने से आत्महत्याएें होना, उनका इस पेशे से पलायन करना घटित होता है । राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार १९९७ से २००९ के बीच १,९९,१३२ किसानों ने आत्महत्या की है ।
८. भारत निर्यात के लिये बड़ी मात्रा में कीटनाशक का उत्पादन भी करता है । इससे भोपाल कांड जैसे कांड की संभावना आशंका हरदम बनी रहती  है ।
९. इनके प्रचार प्रसार में उद्योगपतियों के आर्थिक हित मुख्य कारक हैं ।
    यह विचारणीय है कि यह उत्पादन बढ़ाने के नाम पर हम प्रकृति को गंभीर नुकसान तो नहीं पहुंचा रहे हैं ? कमाने के चक्कर में दूसरों को जबरदस्ती यह जहर क्यों बांट रहे है ? जीने का अधिकार तो सब को है । जब सब अधिकांश अनाज, फल सब्जी विक्रेता जहरीला पदार्थ बेचेंगे और राज्य सही ढग से कन्ट्रोल नहीं करेगा तो एक आम नागरिक क्या कर सकता है ? मानवाधिकार आयोग को क्या यह बड़ा मुद्दा अभी नहीं लगता ?
    आखिर पैदावार कब तक बढ़ाते रहेंगे कम होती जमीन में ? धरती के अनुपात में जनसंख्या को सीमित रखने पर ध्यान क्यों नहीं दिया जाता ? पैदावर बढ़ाने के लिये जैविक खाद, उन्नत बीज, कम पानी वाली फसलें व अन्य वैज्ञानिक तरीके अपना कर खाद्य समस्या को हल करने की जरूरत   है ।  जहर बनाकर किसी देश को भी बेचो शेष में वह मानव जाति को ही नुकसान पहुंचायेगा । धरती को जीने लायक रहने दिया जाये तो बुद्धिमता है ।

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