सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

पर्यावरण समाचार
अनाजों के कुदरती सम्बंधियों पर खतरा
    एक अध्ययन के मुताबिक तेज गति से होता जलवायु परिवर्तन गेहूं-चावल जैसे फसलों के कुदरती सम्बंधियों के लिए बड़ा खतरा बन सकता है और संभव है कि वर्ष २०७० तक ये जंगली किस्में नदारद हो  जांए । यूएस के एरिजोना विश्वविद्यालय के जॉन विएन्स के नेतृत्व मेंकिए गए इस अध्ययन का निष्कर्ष है कि इन फसलों के जंगली संबंधी जलवायु परिवर्तन की तेज रफ्तार से तालमेल बनाने मेंअसमर्थ  रहेंगे ।
    गेहूं और चावल दुनिया की दो प्रमुख फसलें है जो इंसानों द्वारा उपभोग की जाने वाली कुल कैलोरी में से आधी उपलब्ध कराती है । ये तथा ज्वार, बाजरा, मक्का जैसे अन्य अनाज घास कुल के पौधें है । वैसे तो इन फसलों को जंगली किस्मों के सफाए का खाद्यान्न सुरक्षा पर सीधे-सीधे कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा । मगर आगे का विकास अवरूद्ध हो सकता है । ये जंगली किस्में जेनेटिक विविधता की महत्वपूर्ण स्त्रोत है । चाहे सूखा प्रतिरोधी किस्म का विकास करना हो या किसी रोग के खिलाफ प्रतिरोधी किस्म की दरकार हो, हम इन्हीं जंगली किस्मों का मुंह ताकते हैं ।
    बायोलॉजी लेटर्स में प्रकाशित इस अध्ययन में घास की २३६ प्रजातियों का अध्ययन इस दृष्टि से किया गया कि वे जलवायु परिवर्तन के साथ कितनी तेजी से तालमेल बना पाती है । तालमेल बनाने के दो ही तरीके हैं । पहला है कि किसी एक प्राकृतवास के लिए अनुकूलित किस्म जलवायु परिवर्तन के साथ कितनी तेजी से तालमेल बना पाती है । तालमेल बनाने के दो ही तरीके हैं । पहला है कि किसी एक प्राकृतवास के लिए अनुकूलित किस्म जलवायु परिवर्तन होने पर वहां से निकलकर किसी अनुकूल प्राकृत वास में जम जाए । दूसरा तरीका यह है कि उनमें इस तरह से विकास हो कि वे पुराने मगर बदले हुए परिवेश में अनुकूलित  हो जाएं ।
    जहां तक नए प्राकृत वास में पहुंचने का सवाल है तो इसका एक ही उपाय होता है कि संबंधित पौधे के बीज दूर-दूर तक बिखरे और वहां जाकर फले-फूलें । घासों के लिए यह सहज नहीं है क्योंकि उनके बीज बहुत दूर तक नहीं बिखरते  ।

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