सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

खास खबर
सड़क हादसों का बढ़ता कहर
(विशेष संवाददाता )
    किसी भी राष्ट्र में सड़के, आर्थिक व सामाजिक विकास की धुरी होती है । वैकासिक प्रक्रिया में उत्तरोतर वृद्धि के साथ-साथ सड़कों की गुणवत्ता तथा देश की आर्थिक व्यवस्था में काफी सुधार हुआ है । देश में निर्मित नाना प्रकार की सड़कों ने भारतीय अर्थव्यवस्था की मजबूती के लिए नये द्वार खोले है ।    
    परन्तु विकास का केन्द्र बन गई यही सड़कें, जब नागरिकों के खून से लथपथ होने लगे, तो सवालों के साथ चिताएं भी वाजिब हो जाती है । आलम यह है कि भारत में हर घंटे होने वाले ५७ सड़क हादसों में औसत १७ लोग काल के गाल में समा रहे है । यह स्थिति दुनिया के सबसे युवा राष्ट्र के लिए तब अधिक अफसोसजनक हो जाती है, जब हम सुनते हैं कि कुल सड़क दुर्घटनाआें (२०१५) में करीब ५५ फीसदी भुक्तभोगी १५ से ३४ आयुवर्ग के किशोर व युवा है । आज देश के हर कोने से सड़क दुर्घटना के मामले प्रकाश में आ रहे हैं । शायद ही कोई ऐसा दिन होता होगा, जिस दिन सड़क दुर्घटना की खबरें समाचार जगत में नहीं तैरती होगी ।
    यातायात और मंत्रालय की शोध इकाई द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार २०१५ में देश में कुल ५,०१,४२३ सड़क दुर्घटनाएं हुई, जिनमें १,४६,१३३ लोगों की जानें चली गई । एक तथ्य यह भी है कि हमारे यहां जितने लोग आपदाआें और युद्ध में नहीं मरते, उससे कहीं अधिक लोग सड़क हादसों में प्रतिवर्ष अपनी जान गंवा देते है । देशभर में प्रतिदिन सन् १३७४ सड़क दुर्घटनाआें में रोजाना ४०० लोगों की मौत हो जाती है । चिंता की बात यह है कि मरने वालों में अधिकांशत: कामकाजी वर्ग के लोग ही होते है । इस कारण देश की अर्थव्यवस्था को गहरा ठेस पहुुंचता है । सरकार की मानें तो सड़क दुर्घटनाआें से हर साल ६० हजार करोड़ रूपये यानी ३ फीसदी जीडीपी का नुकसान हो रहा है ।
    आंकड़े बताते है कि २०१४ की तुलना में २०१५ में सड़क दुर्घटनाआें में २.५ फीसदी बढोत्तरी हुई है । जबकि, इसी दौरान सड़क दुर्घटनाआें में मरने वाले लोगों की संख्या में ४.६ फीसदी की वृद्धि हुई है । वहीं, २०१६ के शुरूआती छह महीने भी सड़क दुर्घटनाआें के मामले में काफी संवेदनशील रहे । इसके बावजूद लोग बेतरतीब ड्राइविंग से बाज नहीं आ रहे है । यातायात नियमों की अनदेखी व जागरूकता के अभाव के कारण सड़क दुर्घटनाआें का आम होना देश की एक बड़ी सामाजिक समस्या बन गई है । हर एक व्यक्ति गंतव्य पहुंचने को लालायित है, बशर्ते इसकी कोई भी कीमत उन्हें चुकानी पड़े । आखिर अपने जीवन और समाज के प्रति इतनी लापरवाही क्यों ?
    देश में सड़क दुर्घटना में वृद्धि होने के पीछे कई कारण उत्तरदायी रहे है । ड्रायवर की गलती सड़क दुर्घटनाआें के अहम कारण बनकर सामने आती हैं । सन २०१५ में ७७.१ फीसदी सड़क दुर्घटनाएं केवल ड्रायवर की गलती से हुई । जबकि वर्ष २०१४ में यह आंकड़ा ७८.८ फीसदी था । ड्रायवर द्वारा की गई गलती में सबसे पहले गति सीमा से अधिक तेज गति से गाड़ी चलाना    है । ६२.२ फीसदी दुर्घटना का कारण तेज गति से गाड़ी चलाना रहा । जबकि अन्य कारणों में ४.२ फीसदी शराब पीकर तथा ६.४ फीसदी अन्य नशीले पदार्थो का सेवन कर गाड़ी चलाना शामिल है । सड़क दुर्घटनाआें की व्यापकता का दूसरा बड़ा कारण चालकों के पास प्रशिक्षण का अभाव के रूप में सामने आया है । अत्यधिक भीड़ वाले जगहों पर स्थिति न संभलता देख नौसिखिए चालक अपना संतुलन खो बैठते है जिसके कारण कई दुर्घटनाएं हो जाती है ।
    देश के कस्बाई तथा कुछ हद तक शहरी क्षेत्रोंमें जहाँ ट्रैफिक नियमों का जोर नहीं है, वहां सिर्फ गाड़ियों में वस्तुआें को ही नहीं, बल्कि लोगों को भी ठूंस-ठूंसकर ले जाया जाता है, जिसके कारण आए दिन दुर्घटनाएं होती रहती है । सन २०१५ में सड़क दुर्घटनाआें का कुल १५.४ फीसदी यानी कुल ७७.११६ दुर्घटनाएं ओवरलोडेड वाहनों के कारण हुई । ऐसे दुर्घटनाआें में २५,१९९ लोगों को जान गंवानी पड़ी । देश में सड़कों की गुणवत्ता और डिजाइन में कई खामियां है । दूसरी तरफ, नागरिकों द्वारा ट्रैफिक नियमों की अनदेखी किसी से छिपी नहीं है । दोपहिया वाहन चालक हेलमेट, जबकि चार पहिया वाहनों में सवार लोग सीट बेल्ट लगाने से बचते नजर आते है ।

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