सोमवार, 17 अक्तूबर 2016

दीपावली पर विशेष
संकट में है माँ लक्ष्मी का वाहन
डॉ. गोपाल नारसन
    मां लक्ष्मी के वाहन उल्लू की रक्षा करने के बजाए लक्ष्मी साधक ही उल्लू की जान के दुश्मन बन जाते है ।
    अपने स्वार्थ के लिए उल्लू की बलि देकर अंधविश्वासी लोग सोचते हैं कि लक्ष्मी उन पर मेहरबान हो जाएंगी परन्तु क्या मां लक्ष्मी अपने ही वाहन उल्लू की बलि से प्रसन्न हो सकती है ? कदापि नहीं, बल्कि उल्टे मां लक्ष्मी की कृपा भी ऐसे अन्धविश्वासों को नहीं मिल पाएगी । निशाचर प्राणी उल्लू संरक्षित वन्यजीव है, जिसकी जान लक्ष्मी भक्तों के ही कारण खतरे में है । 
     वन्य जीवन तस्कर उल्लू का व्यापक स्तर पर दीपावली पर उल्लू की बलि के लिए उल्लू शिकार करते हैं । दीपावली पर धन की देवी लक्ष्मी के वाहन कहे जाने वाले उल्लू की पूजा-अर्चना करने के बजाए धार्मिक अंधविश्वासा के चलते कुछ  स्वार्थी लोग उल्लूआें की बलि दे रहे हैं । कहीं आस्था के नाम पर तो कहीं पौरूष शक्ति बढ़ाने के लिए उल्लू के अंगों का नाजायज उपयोग उल्लू की जान का दुश्मन बना हुआ है ।
    नेपाल से लेकर भारत के विभिन्न शहरों में उल्लूआें की तस्करी का बाजार गर्म है । वन्य जीव तस्कर उल्लूआें के प्रति इतने बेरहम है कि उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाते समय उल्लू कहीं आवाज न निकाले और तस्कर पुलिस की पकड़ में न आ जाए इसके लिए उल्लूआें को एक-एक सप्तह तक भूखा रखा जाता है । नेपाल और नेपाल की सीमा से लगे भारतीय इलाकों में उल्लूआें की बड़े पैमाने पर तस्करी हो रही है । इस तस्करी में एक किलोग्राम वजन से लेकर दस किलोग्राम वजन तक के उल्लू वन तस्करों का शिकार    बनें । जिन्होंने उल्लूआें की जान का सौदा कर बीस करोड़ रूपए तक का बड़ा अवैध कारोबार कर    डाला । लेकिन धन की देवी लक्ष्मी की सवारी उल्लू की तरफ कोई ध्यान नहीं दे रहा है ।
    जब उल्लू ही नहीं रहेगे तो धन की देवी लक्ष्मी आपके घर आएंगी कैसे ? पहले हर गांव शहर के पुराने वृक्षों की खोखर उल्लूआें का आशियाना हुआ करते थे । उल्लूआें का वृक्षों की साख पर बैठना आम बात हुआ करती थी । तभी तो उल्लूआें को लेकर एक कहावत भी है, हर शाख पर उल्लू बैठा है अंजाम-ए-गुलिस्ता क्या होगा ? लेकिन आज उल्लू ही गर्दिश में है । जब से तन्त्र-मन्त्र और काले जादू के नाम पर उल्लूआें का अवैध व्यापार होने लगा है । तब से उल्लू पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं । उल्लू संकटापन्न श्रेणी का वन्य जीव है इस कारण इसकी नस्ल बचाये रखने के लिए जनजागरूकता के साथ कानूनी सख्ती बरतने की भी आवश्यकता  है । लेकिन उल्लूआें की तस्करी व शिकार होने पर भी आज तक दोषियों को पकड़ा नहीं जा सका, ऐसे में वन्य जीव कानून भी सिर्फ दिखावा बनकर रह गया है ।
    पूजा पाठ के लिए उल्लू के शारीरिक अवशेषों के इस्तेमाल की सलाह देकर कुछ तान्त्रिक इस दुर्लभ वन्य जीव का अस्तित्व मिटाने में लगे है । प्रकृति-मित्रों की माने तो भारत के साथ-साथ नेपाल, पाकिस्तान, भूटान, बंगलादेश और दक्षिण पूर्वोत्तर देशों में काले जादू के लिए उल्लूआें  की मांग तन्त्र-मन्त्र के चक्कर में बढ़ जाती है । पाकिस्तान बार्डर अटारी क्षेत्र, अमृतसर, दिल्ली, उ.प्र. के श्रावस्ती, सिद्धार्थनगर, महाराजगंज, इलाहाबाद, बनारस, गोरखपुर, लखनऊ, कुशीनगर, देवरिया, बलरामपुर आदि क्षेत्रों के साथ-साथ आसाम, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश व महाराष्ट्र में विभिन्न जगहों पर उल्लूआें की अवैध मण्डी है । जहां तस्करी के माध्यम से उल्लू बिक्री के लिए पहुंचते हैं।
    उल्लूआें की इसी तस्करी और उनके शिकार के कारण उल्लू की जान खतरे मेंहै । वन्य जीव तस्कर अधिकतर मटमैले रंग के उल्लू का ही शिकार करते है । कुछ लोगों में यह भ्रान्ति है कि उल्लू के खून से न्यूकोडरमा, अस्थमा व नपुंसकता का इलाज हो सकता है लेकिन इसमें वैज्ञानिक स्तर पर कोई सच्चई नहीं है । काले जादू के लिए हानर्ड व ब्राउन फिस उल्लू का प्रयोग किया जाना बताया गया    है । उल्लू को पकड़ने के लिए शिकारी गोंद लगी लम्बी  डण्डी का प्रयोग करते है । इस प्रक्रिया में पचास प्रतिशत उल्लू डर व सदमे के कारण ही मर जाते है, शेष भी एक सप्तह में दम तोड़ देते हैं । ऐसे में उल्लू की संख्या लगातार कम हो रही है और यह संकटापन्न वन्यजीव अपने अस्तित्व को बचाने के लिए जीवन की भीख मांग रहा है ।
    तस्करी व मौत के शिकार वन्य जीव उल्लू की घटती संख्या के कारण उल्लू अब दिखने बंद हो गए है । उल्लू को संस्कृत में उल्लूक, नत्रचारी, दिवान्धर्धर, बंगाली में पेचक, अरबी में बूम, लेटिन में आथेनेब्रामा इण्डिका नाम से जाना जाता है । वही उल्लू को कुचकुचवा, खूसट, कुम्हार का डिंगरा, धुधवा व धुग्धु भी कहा जाता है । उल्लू की सबसे खास बात यह होती है कि वह अपना सिर १६० कोण से भी अधिक घूमा सकता है । निशाचर पक्षी होने के कारण उल्लू चूहे व खरगोश आदि खाकर अपनी उदर पूर्ति करता है ।
    ऐसे दुर्लभ जीव जो कि लक्ष्मी का वाहन भी माना जाता है को मारना निश्चित ही पाप है । यदि हमें अपने घर में लक्ष्मी चाहिए तो उल्लू को मारने से तौबा करनी होगी, साथ ही मां लक्ष्मी को खुश करने के लिए दुर्लभ होते जा रहे उल्लू की जान वन्य जीव तस्करों से बचाने के लिए आमजन को आगे आना होगा तभी लक्ष्मी के प्रिय वाहन उल्लू को सुरक्षित रखा जा सकता है ।
    जब उल्लू बच जाएगा तो लक्ष्मी भी सहज ही प्रसन्न हो  जाएंगी ।

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