रामसेतु मानव निर्मित नहीं
नासा ने कहा है कि रामेश्वरम् के पास मिट्टी के टापुआे से बना प्राचीन एडम्स ब्रिज मानव निर्मित नहीं है । वरन् प्राकृतिक रूप से बना हुआ है । इसके पास ही सेतुसमुद्रम् शिपिंग चैनल प्रोजेक्ट (एसएससीपी) का काम चल रहा है । यह जानकारी सेतुसमुद्रम् कॉर्पोरेशन लि. के सीएमडी तथा तूतिकोरन पोर्ट ट्रस्ट के अध्यक्ष एनके रघुपति ने दी। श्री रघुपति ने बताया कि परियोजना के एक अधिकारी ने २६ जुलाई को ई-मेल भेजकर नासा से कहा था वह उपग्रह सूचनाआे के आधार पर बताए कि एडम्स ब्रिज मानव निर्मित है या नहीं । इसके जवाब में नासा ने बताया कि भारत और श्रीलंका को जोड़ने वाले छोटे - छोटे टापुआे से बना एडम्स ब्रिज विभिन्न प्राकृतिक क्रियाआे का परिणाम है, इन्हें किसी मानवीय गतिविधि द्वारा बनाए जाने के कोई सबूत नहीं मिले हैं । नासा का यह निष्कर्ष इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि अनेक हिंदू संगठन तथा कुछ राजनीतिक दल रामार ब्रिज (रामसेतु या एडम्स ब्रिज) को ध्वस्त करने का यह करते हुए विरोध कर रहे हैं कि इसे भगवान राम के लिए हनुमानजी तथा उनकी वानरसेना ने बनाया था । इनका दावा है कि नासा ने तस्वीरों जारी करते समय बताया था कि यह पुल मानव निर्मित है । श्री रघुपति ने कहा कि राजनीतिक दलों द्वारा मुद्दा उठाए जाने पर भी नासा ने स्पष्ट किया था कि एडम्स ब्रिज की तस्वीरें नासा की थीं , उनकी उनकी व्याख्या नासा ने नहीं की थी । नासा ने कहा था कि उपग्रह से ली गई तस्वीरें यह नहीं बता सकती हैं कि पुल मानव ने बनाया था या नहीं ।
नेपाल में गिद्धों के लिए अनूठा रेस्तरां
विकसित देशों में पालतू कुत्तों व दूसरे जीवों के लिए होटल और भोजनालय उपलब्ध हैं, लेकिन दुनिया के सबसे गरीब देशों मे से एक नेपाल ने विलुप्त्प्राय गिद्धों के लिए एक अनूठा भोजनालय स्थापित किया है । इस तरह के भोजनालय कई और इलाकों में स्थापित किए जाएगें । कभी ये गिद्ध नेपाल के विभिन्न इलाकों में झ्ुड में नजर आते थे , लेकिन रहस्मय तरीके से ये जीव गायब होते जा रहे हैं । भारत, नेपाल, पाकिस्तान जैसे देशों में ९० फीसदी से अधिक गिद्ध मौत के शिकार बन चुके हैं । माना जाता है कि पश्ुआे और खासकर गायों के इलाज में डिक्लौफैनक नामक दवा के इस्तेमाल के कारण गिद्धों की आबादी खतरे में पडी । पशुआे के मरने के बावजूद उनके कंकाल में इस दवा की मात्रा बरकरार रहती है । जैसे ही गिद्ध इन मृत पशुआे का मांस खाते हैं, इस दवा के कारण गिद्धों का गुर्दा खराब हो जाता है । इन एशियाई देशों में तीन प्रजातियों के गिद्धों में से ९० फीसदी से अधिक के खात्मे के पीछे इस दवा की खास भूमिका रही है । यूं तो नेपाल समेत कई देशों की सरकारों ने इस दवा के इस्तेमाल पर रोक लगा दी , लेकिन अभी भी नेपाल में पशुआे के इलाज के लिए इस दवा का इस्तेमाल किया जाता है । इससे चिंतित होकर नेपाल के एक संगठन बर्ड कंजरवेशन नेपाल (बीसीएन) ने अनूठी पहल की है । इस संगठन ने गिद्धों के लिए रसायन मुक्त भोजनालयों की व्यवस्था की है । गिद्धें के लिए पहला ऐसा भोजनालय पश्चिमी नेपाल के नवलपरासी जिले के कावासोती गांव में स्थापित किया गया है। बीसीएन ने वहां एक भूखंड खरीदा है जहां मरणासन्न पशुआे को रखा जाता है। यह कंपनी किसानों से बूढ़े और बीमार पशुआे की ख्ररीददाराी करता है और फिर इनका डिक्लोफैनक के बजाए किसी और वैकल्पिक दवा से इलाज किया जाता है। जब पशु की मौत हो जाती है तो उसके पार्थिव अवशेष को खुले मैदान में छोड़ दिया जाता है । डिक्लोफैनक से मुक्त यह मांस गिद्धों के लिए लाभदायक होता है । डिक्लौफैनक के बजाए मरणासन्न पशुआे को मैलोक्सीकम दवा दी जाती है जो गिद्धों के लिए खतरनाक नहीं है । इस तरह के कई और रेस्तरां गिद्धों के लिए बनेंगें । पंचनगर गांव में भी गिद्धों के लिए एक ऐसा ही भोजनालय बना है ।
एडीबी गंगा की गंदगी दूर करेगा
एशियन डेवलपमेट बैक ने गंगा के प्रदूषण रोकने के लिए एक योजना तैयार की है । एडीबी ने नंदप्रयाग, गौचर, कर्णप्रयाग, मुनि की रेती, देवप्रयाग, कीर्तिनगर व ऋषिकेश में सीधे प्रवाहित हो रहे मल मूत्र को रोकने के लिए ४८ करोड़ रूपये स्वीकृत किए हैं । इस धनराशि से इन शहरों का सीवरेज सिस्टम दुरूस्त किया जायेगा । एडीबी की दस वर्षीय योजना के चतुर्थ चरण में गंगा के प्रदूषण को रोकने की दिशा में कारगर कदम उठाये जाएेंगें । एडीबी की इस पहल को गंगा प्रदूषण रोकने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम मना जा रहा है । एशियन डेवलपेमेंट बैंक ने उत्तराखंड की विभिन्न विकास परियोजनाआे के लिए १३५६ करोड़ (३.०१मिलियन डॉलर) रूपये की धनराशि को भी हरी झंडी दी है। इस धनराशि से राज्य के ३१ छोटे बड़े नगरों की विभिन्न नागरिक समस्याएं हल की जएएगी । एडीबी से मिली धनराशि से प्रदेश के नगरों की पानी, ससवीरेज, सॉलिड वेस्ट मेनेजमेंट, सड़क, ट्रेफिक व नदियों के प्रदूषण को दूर किया जायेगा । एडीबी उत्तराखंड के शहरों के विकास में खर्च होने वाली इस धनराशि को १० वर्ष के अंदर चार चरणें में प्रदान करेगा एडीबी की ओर से जारी सूची के अनुसार राज्य के १३ नगरों की जलापूर्ति, १० की सीवेज सिस्टम, २९ शहरों में सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लान, १० कस्बों में सड़क व ट्रेफिक मैनेजमेंट व ७ शहरों में जारी गंगा के प्रदूषण को रोका जाएगा। देहरादून की महापौर श्रीमती मनोरमा ने एडीबी के अधिकारियों का आभार प्रकट करते हुए कहा कि इस योजना से उत्तराखंड का कायाकल्प हो जायेगा । ऑल इंडिया काउंसिल ऑफ मैयर्स की चेयरपर्सन श्रीमती मनोरमा ने बताया कि हाल ही में फिलीपींस यात्रा के दौरान उत्तराखंड की समस्याआे के संदर्भ में एडीबी के अधिकारियों से विस्तृत वार्ता हुई थी वार्ता के बाद बैंक ने उदार रवैया अपनाते हुए विभिन्न नागरिक समस्याआे को दूर करने का बीड़ा उठाया है ।बढ़ते मरूस्थल से ५ करोड़ प्रभावित होंगें संयुक्त राष्ट्र ने एक रिपोर्ट में कहा है कि मरूस्थलों के बढ़ते क्षैत्रफल के कारण लाखों लोग अपने घर छोड़ने को मजबूर हो सकते हैं । संयुक्त राष्ट्र की इस रिपोर्ट के मुताबिक अगले १० सालों में करीब पाँच करोड़ लोग विस्थापित हो सकते हैं,खासकर सब सहारा और मध्य एशिया में । यह रिपोर्ट २५ देशों के करीब २००० विशेष्ज्ञाो ने मिलकर तैयार की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि भूमि का मरूस्थल में बदलना पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है और विश्व की एक तिहाई जनसंख्या इसका शिकार बन सकती है । रिपोर्ट के अनुसार भूमि का जरूरत से ज्यादा दोहन और सिंचाई के गलत तरीकों से बात और बिगड़ रही है । जलवायु परिवर्तन को भी मिट्टी के बदलते स्वरूप का एक मुख्य कारण बताया गया है । संयुक्त राष्ट्र की रिपोर्ट में कहा गया है कि कृषि के कुछ सरल तरीके अपनाने से वातावरण में कार्बन की मात्रा कम हो सकती है । इसमें सूखे क्षैत्रों में पेड़ उगाने जैसे कदम शामिल हैं ।
उ.प्र. में खेत बंजर होने का खतरा
उ.प्र.कृषि विभाग की ओर से पिछले दिनों राज्य के सभी नौ कृषि जलवायु क्षैत्र (एग्रो क्लाइमेट जोन) में कराए गए एक सर्वेक्षण के बाद जो चौंकाने वाली रिपोर्ट सामने आई है , उसके आधार पर विभाग किसानों को सचेत कर रहा है। रिपोर्ट के अनुसार राज्य के बहुत से क्षैत्रों में रसायनों का इतना अधिक इस्तेमाल हो चुका है कि खेत लगभग बंजर होने की स्थिति मे पहुंच चुके हैं । रिपोर्ट के अनुसार पौधे के वानस्पतिक विकास के लिए जिम्मेदार पोष्क तत्व नाइट्रोजन प्रदेश में सभी कृषि जलवायु क्षैत्र में न्यूनतम स्तर पर पहुंच चुका है, जबकि जड़ के विकास के लिए महत्वपूर्ण पोषक तत्व फास्फोरस तो कई क्षैत्रों में अति न्यूनतम स्तर पर है । अन्य पोषक तत्वों में जिंक व सल्फर पश्चिमी मैदानी क्षैत्र में तेजी से कम हो रहा है, जबकि बुंदेलखंड को छोड़कर सभी कृषि जलवायु क्षैत्र में आयरन की काफी कमी है । पश्चिमी मैदानी क्षैत्र तथा मध्य- पश्चिमी मैदानी क्षैत्र को छोड़कर अन्य क्षैत्रों में मैंगनीज की भारी कमी है । रिपोर्ट में इस बात पर विशेष टिप्पणी की गई है कि कई क्षैत्रों में सूक्ष्म पोषक तत्व की स्थिति लगातार दयनीय हो रही है, अगर जल्द ही इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो भविष्य में इन जमीनों पर उत्पादन की आशा निरर्थक होगी । यह सब खेती के तेजी से मशीनीकरण के चलते हुए हुआ है । यदि शीघ्र भूमि की जल धारण क्षमता को बढ़ाने के उपाय नहीं किए गए तो पूरे प्रदेश में खेती की स्थिति भयावह हो सकती है ।
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