कचरे से बढ़ता प्रदूषण खतरनाक
इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के अनुपयोगी हो जाने से इकट्ठा हो रहे कचरे का निपटान ढंग से नहीं हो पाने के कारण पर्यावरण केखतरे बढ़ रहे है । एक अध्ययन के अनुसार भारत में प्रतिवर्ष डेढ़ लाख टन ई-वेस्ट या इलेक्ट्रॉनिक कचरा बढ़ रहा है । इसमें देश में बाहर से आने वाले कबाड़ को जोड़ दिया जाए तो न केवल कबाड़ की मात्रा दुगुनी हो जाएगी, वरन् पर्यावरण के खतरों और संभावित दुष्परिणामों का सही अनुमान नहीं लगाया जा सकेगा । प्रतिवर्ष भारत में बीस लाख कम्प्यूटर अनुपयोगी हो जाते हैं । इनके अलावा हजारों की तादाद में प्रिंटर, फोन, मोबाईल, मॉनीटर, टीवी, रेडियो, ओवन, रेफ्रिजरेटर, टोस्टर, वेक्यूम क्लीनर, वाशिंग मशीन, एयर कंडीशनर, पंखे, कूलर, सीडी व डीवीडी प्येयर, वीडियो गेम, सीडी, कैसेट, खिलौने, फ्लोरेसेंट, ट्यूब, ड्रिलिंग मशीन, मेडिकल इंस्टूमेंट, थर्मामीटर और मशीनें भी बेकार हो जाते हैं । जब उनका उपयोग नहीं हो सकता तो ऐसा कचरा खाली भूमि पर इकट्ठा होता रहता है, इसका अधिकांश हिस्सा जहरीला और प्राणीमात्र के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक होता है । कुछ दिनों पहले इस तरह के कचरे में खतरनाक हथियार व विस्फोटक सामगी भी पाई गई थी । इनमें धातुआे व रासायनिक सामग्री की भी काफी मात्रा होती है जो संपर्क में आने वाले लोगों की सेहत के लिए खतरनाक होती है । लेड, केडमियम, मरक्यूरी, एक्बेस्टस, क्रोमियम, बेरियम, बेेटीलियम, बैटरी आदि यकृत, फेफड़े, दिल व त्वचा की अनेक बीमारियों का कारण बनते हैं । अनुमान है कि यह कचरा एक करोड़ से अधिक लोगों को बीमार करता है । इनमें से ज्यादातर गरीब, महिलाएँ व बच्च्े होते हैं । इस दिशा में गंभीरता से कार्रवाई होना जरूरी है । महाराष्ट्र, गुजरात, पंजाब, आंध्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश, पश्चिमी बंगाल व मध्यप्रदेश में इस कचरे की मात्रा बढ़ती जा रही है । मुंबई, दिल्ली, बंगलोर, चेन्नई, कोलकाता, अहमदाबाद, हैदराबाद, पुणे, सूरत, नागपुर इसके बड़े केंद्र है । ये सब बारूद के ढेर पर बसे हैं । मेनन कमेटी की सिफारिश पर इसके लिए नियम भी बनाए गए थे, उनमें हर वर्ष सुधार भी होता रहा है । मगर देश के लोगों की मानसिकता अभी कबाड़ संभालने व कचरे से सोना निकालने की बनी हुई है । इस कारण कचरे से पर्यावरण प्रदूषण का खतरा बड़ता जा रहा है ।
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