दीपावली सादगी से मनाएँ
`घर-घर दीप जले आया दीपावली का त्योहार/संग लाया ये अपने खुशियों की सौगात/कहीं रंगोली, कहीं पुताई तो कहीं रोशनी की है भरमार ।' दीपावली का नाम सुनते ही हमारे अंदर उत्साह आ जाता है, परंतु आज बदलते परिवेश में यह त्योहार अपना स्वरूप खो रहा है । हमें दीपावली को सादगी से मनाना चाहिए । इस दिन मिट्टी के दीये से रोेशनी करना चाहिए, क्योंकि इनका दीपावली में धार्मिक महत्व है । आज इन दीपों की जगह मोमबत्ती, मोम के दीये, विद्युत रोशनी ने ले ली है। इससे विद्युत का अपव्यय ज्यादा होता है । इसी के साथ दीपावली पर फोड़े जाने वाले पटाखे सबसे ज्यादा प्रदूषण करते हैं । आजकल बहुत शोर और प्रदूषण करने वाले पटाखे ज्यादा उपयोग में आते हैं। हमें उनका उपयोग खत्म कर उन पटाखों को अपनाना चाहिए जिनसे ध्वनि व वायु प्रदूषण नहीं होता है । इस तरह इस पावन पर्व को बिना शोर और प्रदूषण से हम सादगी से मना सकते है । लक्ष्मी पूजन के साथ अन्य बातों का ध्यान रखकर हम इस त्योहार का अधिक आनंद ले सकते है ।`दीपावली है दीपों का त्योहार/ इस दिन सभी एक-दूसरे को दें एक प्यार-सा उपहार ।
'प्रियंका ठक्कर, इन्दौर (म.प्र.)
इको फ्रेंडली दीपावली
इको फ्रेंडली दीपावली के लिए निम्न प्रयास किए जाएँ :-
१. पटाखों के अत्यधिक उपयोग से दीपावली अब प्रकाश पर्व न रहकर धूल-धुएँ एवं धमाकों का महापर्व बन गई है । अत: पटाखों का उपयोग न्यूनतम करें । बाजार में आजकल कम धुआँ एवं आवाज करने वाले पटाखे उपलब्ध हैं । यदि आवश्यक हो तो उनका उपयोग किया जाए । रात्रि ११ से दूसरे दिन सुबह ६ बजे तक पटाखों का उपयोग हर्गिज न करें । २. पटाखों से पैदा शोर से वृद्धों, गर्भवती महिलाआें एवं बच्चें को बचाने का यथासंभव प्रयास करें । ३. विद्युत से सजावट कम से कम करें, क्योंकि कोयला जलाकर विद्युत उत्पादन में भारी मात्रा में कार्बनडाय ऑक्साइड पैदा होती है, जो एक प्रमुख ग्रीन हाउस गैस है एवं ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है । ४. अभिनंदन पत्रों का उपयोग भी न्यूनतम करें, क्योंकि इनके निर्माण में हमारे देश के ही लगभग एक लाख वृक्ष काटे जाते हैं । ५. सजावट के लिए प्लास्टिक की सामग्री का उपयोग कम हो । प्राकृतिक वस्तुआे को सजावट में महत्व दिया जाए । ६. घरों को दीये एवं रंगोली से सजाएँ । ७. घरों की सफाई से निकला कचरा यथा स्थान डालें ।
ओपी जोशी, जय श्री सिक्का, इन्दौर (म.प्र.)
पटाखों से तौबा जरूरी
दीपावली आपसी प्रेम व भाईचारे का त्योहार है । यह त्योहार पाँच दिनों तक मनाया जाता है जिसमें हर दिन का अपना अलग महत्व है । सभी लोगों को पारंपरिक ढंग से यह पर्व शालीनता व मर्यादा में रहकर मनाना चाहिए । यह पर्व आपसी प्रेम व भाईचारे को बढ़ाने वाला है किंतु कई लोग शराब पीकर व जुआ खेलकर इस पावन पर्व की गरिमा को घृणित कर अपने परिवार की खुशियों को गम में बदल देते हैं । हमें शराब व जुए से बचना होगा । आज हमारे समाज में पटाखों का प्रचलन बढ़ता ही चला जा रहा है । चाहे शादी-ब्याह हो, कोई नेता की अगवानी हो, किसी व्यक्ति की अंतिम यात्रा हो या दीपावली पर्व पटाखों का कानफोडू शोर व आतिशबाजी प्रकृति के संतुलन को बिगाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा कर रहे है । पटाखों से ध्वनि प्रदूषण व वायु प्रदूषण हो रहा है जिससे कई प्रकार की बीमारियों से लोग ग्रस्त हो रहे हैं । पटाखे जलाने से कई लोग जल जाते हैं एवं कई जगह आग लगने से घर-मकान या फसलें जलकर राख हो जाती हैं । पटाखे फायदेमेंद तो नही हैं अपितु बहुत नुकसानदायक हैं । आज समय आ गया है कि हम दीपावली का सार्थक स्वरूप समझें ।
सुरेश सोलंकी, ठीकरी (बड़वानी) म.प्र.
दूर रखें धमाकों से बच्चें के कान
रोशनी का पर्व दीपावली दीपों का त्योहार है । अंधकार पर उजाले की जीत के रूप में भी हम इसे मनाते हैं । हमारे पुराणों में अग्नि को उजाले का स्वरूप भी कहा गया है । यदि किसी कारण उजाले का अभाव हो तो आवाज को भी खुशियाँ मनाने का तरीका माना गया है । दीपावली पर दीपक एवं पटाखे जीवन में उसी रोशनी और आवाज को प्रदर्शित करते हैं एवं ये दोनों ही खुशी मनाने के स्वरूप में स्वीकार किए गए हैं । बच्चें को इनसे दूर रखना चाहिए ।
मनमोहन राजावत, शाजापुर
1 टिप्पणी:
बहुत सामयिक सलाह है। हम सही अर्थों में उत्सव मनायें; अपने और अपने बच्चों के पैरों पर कुल्हाड़ी न मारें।
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