मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

३ प्रकाश पर्व पर विशेष

रोशनी के नये आयाम
सेव्वी सौम्य मिश्रा
सी.एफ.एल. के बाद एल.ई.डी. तकनीक के आने से रोशनी को नए आयाम मिलने की उम्मीद है । इससे ऊर्जा संकट से गुजर रहे भारत को काफी राहत मिलने की उम्मीद है । परंतु इसका मूल्य अभी इसकी लोकप्रियता में बड़ी रूकावट है । वे लगभग ५० वर्षो से हमारे आसपास मौजूद हैं । पहले ये विभिन्न रंगों - लाल, नारंगी, हरा, पीला, नीला - में मिलते थे । अब यह पूर्णत: सफेद रूप में है । इन्हें प्रकाश उत्सर्जक यंत्र (लाईट इमिटिंग डायोड्स - एल.ई.डी.) के रूप में जाना जाता हैं, जिन्होंने काफी लम्बा सफर तय किया है । किसी भी इलेक्ट्रोनिक उपकरण का बटन दबाते ही ये अपनी चमक दिखाते हैं । हमारे देश में भी इनका उपयोग बिजली की बचत के विकल्प के तौर पर घरों, सड़कों को रोशन करने के लिए सीमित मात्रा में होने लगा हैं । इस वर्ष के प्रारंभ में दिल्ली में कुछ स्थानों पर १५० वॉट के सोलर वेपर लेम्प को ५० वॉट एलईडी से बदल दिया गया । नई दिल्ली नगर निगम के मुख्य अभियंता के अनुसार इसे देखरेख की आवश्यकता नहीं पड़ती । वातावरण की नमी और तापमान का इस पर कोई असर नहीं पड़ता । इन तकनीक से ऊर्जा की बचत होगी परंतु व्यापक स्तर पर उपयोग करने के पूर्व नगर निगम सोच विचार कर रहा है ा बैगलुरु मे एईडी का सर्वप्रथम प्रयोग सन् २००१ मे ट्रेफिक लाईट संकेतक मे किया गया था । अब दिल्ली इस मामले मे बैगलुरू का अनुसरण कर रहा है । हैदराबाद और चैन्नई जैसे महानगरो में भी इनका प्रयोग किया जा रहा है । इन दिनो एलईडी का इस्तेमाल कारपोरेट घरानों, रेल्वे स्टेशनों, शोरूम और विरासत के स्थलों पर बहुतायत में दिखाई देता है । एलईडी का सीधा पड़ने वाला प्रकाश संग्रहालयों, दुकानों और स्मारकों के अलावा हवाई बाधा चेतावनी तथा पानी के अंदर रोशनी को उभारने में सहायक होता है । अपनी ऊर्जा कार्यक्षमता की बदौलत सफेद एलईडी का बाजार पिछले पांच वर्षोंा में अत्यंत लोकप्रिय हो गया है । इसके चलते निकट भविष्य में एलईडी, सीएफएल का स्थान ले लेंगें क्योंकि ५ वॉट का एलईडी १५ वॉट सीएफएल केे बराबर रोशनी देता है जिससे बिजली के बिल में प्रतिवर्ष ७७ रूपए की बचत होगी । दूसरी ओर जहां सीएफएल का जीवन २५० दिन है और साधारण बल्बों का ४४ दिन वहीं एलईडी का जीवन इतना है कि इसे लगाकर भूला जा सकता है । भारत में पिछले वर्ष लगभग ४० लाख एलईडी आयात किए गए है ं। वर्तमान में इसका बाजार १२० करोड़ रूपए का है जो २० प्रतिशत प्रतिवर्ष की रफ्तार से बढ़ रहा है । जबकि इसका विश्वव्यापी बाजार करीब ४.८ अरब डॉलर के बराबर का है। पिछले तीन वर्षोंा में वाहनों में इसके उपयोग में २५ प्रतिशत की वृदि्घ हुई है अभी तक इनका इस्तेमाल वाहनों के पीछे की बत्ती धुंधरोधी व डेश बोर्ड की रोशनी हेतु किया जा रहा है । अब वाहन की मुख्य हेडलाईट की बारी है । वाहनों के लिए इनका छोटा होना ही सबसे बड़ा गुण है । जहां तक इनके उपयोग का सवाल है एलईडी रोशनी को कम किया जा सकता है । इसमें धक्का सहन करने की क्षमता है। यातायात संकेतक के रूप में ये सर्वश्रेष्ठ है। इतना ही नहंी इनसे सीएफएल जितना भी ऊर्जाक्षरण नहीं होता। रेडिएशन न छोड़ने के कारण ये अत्यधिक सुरक्षित भी हैं । साथ ही इसमें पारे जैसी घातक धातु भी नहीं होने से इन्हें नष्ट करने की कोई समस्या नहीं है। विशेषज्ञ मानते हैं कि अपशिष्ट निपटान के अभाव में सीएफएल आधारित रोशनी की व्यवस्था शीघ्र ही समाप्त् हो जाएगी । आगामी तीन वर्षोंा में एलईडी की कीमतों में इतनी कमी आ जाएगी कि ये सीएफएल का स्थान ले सकेंगी । भारत सरकार के उर्जा विभाग के अंतर्गत कार्यरत स्वतंत्र नियामक (बी) एलईडी को भविष्य की रोशनी बता रहे हैं। एक ऊर्जा अर्थशास्त्री संदीप गर्ग के अनुसार ऊर्जा कार्यक्षमता के मानकों का स्तर बढ़ाने के लिए तकनीक के सुधार पर अत्यंत जोर देना आवश्यक है । एलईडी को अपनाने में एक बड़ा रोड़ा इसका मूल्य है । १० रूपए में मिलने वाले सादे बल्ब का स्थान १०० रूपए वाली सीएफएल ने ले लिया है । एलईडी की यही फिटिंग ८०० रूपए की पड़ेगी । पिछले साल इसकी कीमत १२०० रूपए थी । निर्माताआें का दावा है कि इसका अधिक मूल्य की समस्या का निराकरण बचत से हो जाता है । परंतु वर्तमान मूल्य पर उनकी लागत १० साल में वापस हो पाएगी । जबकि उपभोक्ता यह पूर्ति अधिकतम दो वर्ष में चाहते है । अतएव आवश्यक है कि एलईडी के मूल्य को घटाकर ३०० रूपए तक लाया जाए । एलईडी को प्रोत्साहित करने हेतु निर्माता सरकार से सब्सिडी की उम्मीद लगा रहे हैं। उनका कहना है कि सरकार इस पर सौर फोटो वोल्टिक पेनल पर लगने वाली दर से करारोपण करे । वर्तमान में एलईडी निर्माताआें का सीआईआई या फिक्की में कोई प्रतिनिधित्व नहीं है । अतएव इन्हें स्वयं ही भारतीय मानक ब्यूरो (बीआईएस) के लिए मार्गदर्शिका तैयार करना होगी । मानक स्थापित होने से सरकार को सब्सिडी के निर्धारण में सहायता मिलेगी । वैसे बीआईएस ने एलईडी को लेकर बरती जाने वाली सुरक्षा, कार्यक्षमता और तकनीकी विवरणों के आकलन को लेकर एक समिति का गठन किया है एलईडी का मूल्य घटाने के लिए इसके निर्माण में वृद्धि आवश्यक है । एलईडी का निर्माण तीन चरणों में होता है - चिप निर्माण , पैकेजिंग (चिप को इलेक्ट्रॉनिक अवयवों से जोड़ना) और रोशनी के लिए फिटिंग लगाना । भारत एलईडी का आयात पैकेजिंग या रोशनी के लिए तैयार वाली स्थिति में करता है । अगर भारत में पैकेजिंग इकाईयां स्थापित हो जाती है तो इसके मूल्य में ३० प्रतिशत की कमी आ सकती है । एलईडी को लोकप्रिय बनाने में एक बड़ी रूकावट इनसे निकलने वाली गर्मी का प्रबंधन है । अगर इसमें गर्मी को व्यवस्थित नहंी किया जाता है जो रोशनी कम होती जाएगी और यंत्र का जीवन भी कम हो जाएगा । अतएव इसका उत्पादन व्यापक स्तर पर करने से पूर्व उच्च्स्तरीय मानक स्थापित करना आवश्यक है । बी ने योजना बनाई है कि १६ राज्यों में एक -एक किलोमीर की सड़कों को एलईडी रोशनी से जगमगाया जाए । इसी के साथ प्रत्येक राज्य के एक गांव को भी एलईडी की रोशनी से झिलमिलाते के प्रस्ताव पर स्वतंत्र नियामक गंभीरता से विचार कर रहा है । इससे राज्यों में एलईडी की मांग में वृद्धि हेागी । ***वेलेंटाइन डे पर बाघ दिवस मनाएगा भारत पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने घोषणा की है कि बाघों के संरक्षण के लिहाज से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित करने के लिए भारत अगले साल वेलेंटाइन डे पर बाघ दिवस की शुरूआत करेगा । इसकी शुरूआत जिम कार्बेट नेशनलपार्क से की जाएगी । श्रीरमेश ने कहा कि भारत ने १४ फरवरी २०१० से कॉरबेट में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बाघ दिवस शुरू करने का प्रस्ताव रखा है , इसका समापन नवंबर २०१० में रणथंभोर नेशनल पार्क में होगा । श्री रमेश ने संवाददाताआें से कहा - ये दोनों आयोजन दर्शाएंगें कि भारत बाघ संरक्षण के क्षेत्र में क्या कर रहा है । गौरतलब है कि रूस सितम्बर २०१० में विश्व बाघ शिखरवार्ता का आयोजन करने जा रहा है ।

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