संयुक्त राष्ट्र में युगरत्ना का संबोधन
पिछले दिनों संयुक्त राष्ट्र संघ मुख्यालय में आयोजित एक समारोह में संबोधन के लिए लखनऊ की १३ वर्षीय छात्रा युग रत्ना श्रीवास्तव को आमंत्रित किया गया । तरूमित्र नामक संस्था से जुड़ी लखनउ में वनस्पति शास्त्र के प्राध्यापक आलोक श्रीवास्तव की बेटी युगरत्ना ने तीन वर्ष पूर्व सेन्ट फ्रान्सिस स्कूल में अध्ययन करते हुए युवाआें द्वारा संचालित तुन्झा (टू नेचर) नामक पर्यावरण गाथा का नेत़ृत्व किया था । इस प्रकल्प का एक आयोजन कुछ माह पूर्व कोरिया में आयोजित था । उसमें युगरत्ना ने प्रथम स्थान प्राप्त् किया था, उसी की अगली कड़ी में वे न्यूयार्क पहुंची । सुश्री युगरत्ना ने संयुक्त राष्ट्र संघ में भाषण करते हुए कहा कि विश्व की तीन अरब छात्रों की ओर से मैं आपके सामने खड़ी हूँ, हमारी अगली पीढ़ी हमे लांछित न करंे, अब आपको कुछ करना होगा । प्रदूषण के राक्षस को नष्ट करने की योजना बनाना आपका कर्तव्य है । इस अवसर पर खचाखच भरे सभागार में महासचिव बान की मून , अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा,चीन के राष्ट्रपति हू जिन्ताव, भारत के विदेश मंत्री एस.एम. कृष्णा और पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश के अतिरिक्त विश्व के विभिन्न देशों के १२५ से अधिक राजनेता एवं राजनियक उपस्थित थे ।दुनिया में १७२९१ जीवों की प्रजातियां खतरे में वैज्ञानिकों ने एक ताजा शोध में पाया है कि दुनिया में पाए जाने वाले जीवों में से एक तिहाई लुप्त् होने की कगार पर हैं । पशु-पक्षियों के संरक्षण पर काम करने वाली सस्था आईयूसीएन ने ४७६७७ जीवों की एक रेड- लिस्ट जारी की है जिसमें १७२९१ जीवों की प्रजातियां गंभीर खतरे में हैं । रेड-लिस्ट में दर्ज२१ प्रतिशत स्तनधारी जीव हैं , ३० प्रतिशत मेंढकों की प्रजातियाँ हैं, ७० प्रतिशत पौधे हैं और ३५ प्रतिशत बिना रीढ़ की हड्डी वाले यानी साँप जैसे जीव हैं । वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके लिए जिम्मेदार खतरों, खासकर वे जगह जहाँ इस तरह के जीव रहते हैं, पनपते हैं , उनके संरक्षण के लिएा उचित कदम नहीं उठाए जा रहते हैं । आईयूसीएन की निदेशक जेन स्मार्ट का कहना है कि इस बात के वैज्ञानिक सबूत मिल रहे हैं कि इस तरह के जीवों पर खतरा बढ़ता जा रहा है । उनका कहना है कि हाल ही के विश्लेषणों से स्पष्ट है कि २०१० का जो लक्ष्य था इन खतरों को कम करने का वो अभी पूरा नहीं हो पाएगा ।बाघों के पास भी होगा अपना आई कार्ड अगर आप किसी नेशनल पार्क में जाएं और वहां बाघ के गले में आई कार्ड लटकता पाएं तो हैरान होने की जरूरत नहीं । देश भर के विभिन्न अभयारण्यों के प्रत्येक बाघ के लिए जल्द ही पहचान पत्र जारी किया जाने वाला है । इसमें इन बाघों के बारे में जानकारी दर्ज होगी । सरकार का कहना है कि पहचान पत्र जारी होने से अभयारण्य के अधिकारी बाघों की गतिविधियों का पता लगाने में सक्षम होंेगे और इससे बाघ संरक्षण में मदद मिलेगी। नदियों को कागजों पर जोड़ने में करोड़ो रूपये खर्च नदियों को जोड़ने की परियोजना के तहत जमीन पर भले ही अब तक कोई नदी नहीं जुड़ पाई हो, लेकिन कागजों पर देश भर की नदियों को जोड़ने का काम लगभग पूरा हो गया है । इस परियोजना के लिए विभिन्न सरकारी महकमों ने रिपोर्ट बनाने के कार्य पर ही ४५ करोड़ रूपए बहा दिए। मजे की बात यह है कि कागजों में नदियों को जोड़ने की कवायद के बाद अब सरकारी और गैर सरकारी स्तर पर इस बात पर बहस हो रही है कि नदियों को जोेड़ने की परियोजना देश और पर्यावरण के हित में है या नहीं । प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह से लेकर केंद्रीय पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ही नहीं कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी और विश्व हिन्दू परिषद के नेता अशोक सिंघल भी नदियों को जोड़ने की इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर नई बहस खड़ी कर रहे हैं । परियोजना के खिलाफ उठ रहे विरोध के बीच एनडब्ल्यूडीए ने हिमालय से निकलने वाली १४ और भारतीय प्रायद्वीप की १६ नदियों को जोड़ने की महत्वाकांक्षी परियोजना की व्यावहारिकता रिपोर्ट तैयार कर ली है । मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार अभिकरण ने केन-बेतवा लिंक के लिए विस्तृत रिपोर्ट भी तैयार कर ली है जबकि पार, तापी, नर्मदा और दमनगंगा, पिंजल लिंक योजनाआें के लिए रिपोर्ट २०११ तक तैयार कर ली जाएगी । लेकिन सवाल यह कि क्या यह परियोजना कागजों से निकल कर जमीन पर भी साकार होगी? श्री वाजपेयी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार ने १९९९ में नदियों को जोड़ने की योजना बनाई थी । इस योजना के तहत देश की प्रमुख नदियों को २०१५ तक एक दूसरे को जोड़ने का लक्ष्य रखा गया था । ***
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