गुरुवार, 19 नवंबर 2009

१३ विज्ञान हमारे आसपास

सफल रहा चंद्र अभियान
नवनीत कुमार गुप्त
चंद्रयान प्रथम कीसबसे बड़ी उपलब्धि चांद पर पानी का पता लगाने की रही है । नासा और इसरो के संयुक्त उपकरण मून मिनरोलॉजी मैपर यानी एम-३ ने ऑक्सीजन और हाइड्रोजन के अणुआें का पता लगाया है ।चांद पर पानी की उपस्थिति का पता लगाने के लिए अनेक वैज्ञानिक चंद्रयान प्रथम मिशन की सफलता को इस दशक की सबसे बड़ी वैज्ञानिक खेाज बता रहे हैं । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के चंद्रयान प्रथम को सफलतापूर्वक चांद की कक्षा में स्थापित करने के बाद से ही पूरा विश्व भारत की इस उपलब्धि पर फिदा हो गया था। उस समय हर भारतीय को गर्व था कि इसरो ने भारत को अंतरिक्ष क्षेत्र में नई ऊंचाईयों तक पहुंचाया है । चंद्रयान प्रथम के द्वारा इसरो ने चांद पर पहला मानव रहित यान भेजकर अपनी उपलब्धियों में इज़ाफा किया । भारत के चंद्रयान अभियान से पहले तक चंद्रमा की ओर करीब ६७ अंतरिक्ष अभियान भेजे गए जिनमें से काफी तो असफल रहे थे । च्रदंयान से पहले अमेरिका, रूस, जापान, चीन और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी चंद्रया तक अंतरिक्ष यान भेजे चुके थे । चंद्रयान प्रथम के प्रक्षेपण के बाद भारत वैष्विक स्तरपर एक उन्नत अंतरिक्ष टेक्नॉलॉजी वाले देशों की बिरादरी का हिस्सा बन गया है । २९ अगस्त को चंद्रयान प्रथम का संपर्क इसरो के भू स्टेशन से निर्धारित समय से पूर्व ही टूट गया था लेकिन चंद्रयान प्रथम अभियान को इस मायने में सफल कहा जा सकता है कि यह अब तक चांद पर भेजा जाने वाला सबसे सस्ता और कारगर मिशन था । हालंाकि दो सालों तक कार्य कर सकने वाला चंद्रयान केवल आठ महीनों में ही बेकार हो गया है लेकिन भारत के लिए यह अभियान काफी महत्वपूर्ण रहा है । चंद्रयान प्रथम ने चंद्रमा की कक्षा में ३१२ दिन कार्य करते हुए चंद्रमा के करीब ३४०० चक्कर लगाए हैं । मिशन के अंतिम समय तक इसरो को चंद्रयान प्रथक से लगभग ७० हजार चित्र और कई महत्वपूर्ण आंकड़े प्राप्त् हुए हैं । वैज्ञानिक इससे मिले आंकड़ोंका विश्लेषण करने में लगे हुए हैं। च्रदयान प्रथम परियोजना के निदेशक एम. अन्नादुरै के अनुसार मिशन अपना लगभग ९५ प्रतिशत कार्य कर चुका है। चंद्रयान प्रथम को पी.एस. एल.वी.-११ द्वारा श्री हरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतिरक्षि केंद्र से २२ अक्टूबर २००८ को प्रात: ६ बजकर २२ मिनट पर छोड़ा गया था । यह पहला मौका था जब भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने पृथ्वी के गुरूत्वाकषर्ण की सीमा से परे कोई अंतरिक्ष यान भेजा था। १४ नवंबर२००८ को चंद्रयान प्रथम ने तिरंगे को चांद पर लहराया । इस दिन चंद्रयान प्रथम ने मून इम्पेक्ट प्रोब अलग होकर चंद्रमा के दक्षिणी ध््राुव की ओर बढ़ा और २५ मिनट की यात्रा के बाद ८:३१ पर चंद्रमा की सतह से टकराया । इस प्रोब की सतह पर लगे कैमरों ने चंद्रमा की सतह के चित्र खीांचे औरचंद्रयान को भेजे। चंद्रयान प्रथम ने येचित्र भारत स्थित नियंत्रण कक्ष को भेज। इस पूरी प्रक्रिया में महज १.५ सेकंड का समय लगा । चंद्रयानप्रथम के बाद भारत चंद्रमा की सतह पर कोई वैज्ञानिक तंत्र उपकरण उतारने वाला तीसरा देश और चौथी अंतरिक्ष शक्ति बन गया है । इससे पूर्व अमरीका, भूतपूर्व सोवियत संघ और यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी यह कार्य कर चुके हैं । चंद्रयान प्रथम से पहले चीन ने सबसे कम लगात में चांद पर अपना अंतरिक्ष यान भेजा था। भारत ने चीन से भी आधी लागत में चांद पर चंद्रयान प्रथम भेजा और यह अब तक चांद पर भेजे जाने वाला सबसे सस्ता और कारगर मिशन रहा ।चंद्रयान का यांत्रिक स्वरूप चंद्रयान प्रथम अपने साथ भारतीय वैज्ञानिक उपकरणों के अलावा बुल्गारिया का एक उपकरण (रेडिएशन डोज़मॉनीटर), अमरीका के दो उपकरण, (मिनी सिंथेटिक एपरचर रेडार और मून मिनरोलॉजी मैपर) तथा यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी के तीन उपकरण (चंद्रयान -इमेजिंग एक्सरे स्पेक्ट्रोमीटर, स्मार्ट नीयर इन्फ्रारेड स्पेक्ट्रोमीटर और सब किलोवोल्ट एटम रिफ्लेक्टिंग एनालाइजर) भी ले गया था । चंद्रयान में ११ वैज्ञानिक यंत्र थे जिनमें चंद्रमा की सतह का सम्पूर्ण चित्र लेने के लिए और त्रिआयामी कार्टोगाफी मानचित्र तैयार करने के लिए भू-सतह केमरा लगा था । इसरो प्रथम के बाद चंद्रयान द्वितीय को चांद पर भेजने की तैयारी कर रहा है । भविष्य में चांद पर कम लागत वाले ऐसे अंतरिक्ष यान भेजे जाएंगें जो कई गुना अधिक जानकारी देंगें । भारत २०१५ तक चांद पर मनुष्य को भेजने की योजना भी बना रहा है । आशा है भारत के भावी अभियान अपने उद्देश्यों में सफल होंगें और अंतरिक्ष विज्ञान में हमारा देश निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होगा । ***

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