हिमालय का पर्यावरण और जन भागीदारी
भारत डोगरा
हिमालय के पर्यावरण को बचाने का कार्य इस क्षेत्र के वनों व नदियों की रक्षा से जुड़ा है अतएव इसके साथ स्थानीय लोगों के सरोकारों और जरूरतों को जोड़ना जरूरी है । उत्तराखंड के उत्तरकाशी और ठिहरी जिलें में कई मोर्चो पर प्रयासरत संस्था हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान के कार्य की एक महत्वपूर्ण विशेषता यही रही है कि उसके माध्यम से वन व नदियों की रक्षा के महत्वपूर्ण प्रयास गांववासियों की दीर्घकालीन भलाई से जुड़ते हुए आगे बढ़े हैं । इन प्रयासों में उसे हिमालय सेवा संघ जैसी मित्र संस्थाआें का भी भरपूर सहयोग भी प्राप्त् हुआ है । चिपको आंदोलन के बाद के दौर में प्रेरणा प्राप्त् करने वाला वनों की रक्षा का एक महत्वपूर्ण आंदोलन था-रक्षा सूत्र आंदोलन । इस आंदोलन में जहां बहुत दूर-दूर के गांवों ने बढ़-चढ़कर भागीदारी की, वहां आंदोलन के आरंभी में व इसे स्थिरता देने में हिमालयी पर्यावरण शिक्षा संस्थान (हिपशिस) व इसके अध्यक्ष सुरेश भाई ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । चिपको आंदोलन के प्रयासों से उत्तराखंड के एक बड़े क्षेत्र में वन-कटाव पर रोक लग गई थी । पर वर्ष १०९४ के आसपास कुछ स्वार्थी तत्वों ने बहुत चालाकी से पेड़ कटवाने की साजिश रची । उन्होंने हरे पेड़ों को भी सूखे पेड़ों के रूप में कागजों पर दिखा दिया । हिपशिस ने इस संबंध में सरकारी रिकार्ड भी प्राप्त् कर लिए व इसके साथ मौके पर जांच कर स्पष्ट कर दिया कि सूखे पेड़ों के नाम पर हरे पेड़ों को कटाव टिहरी के रियाला वन जैसे क्षेत्रों में हो रहा है । सितम्बर १९९४ में लगभग दस हजार फीट की उँचाई पर स्थित वन के पेड़ों को बचाने के लिए ख्वारा, मेटी व डालगांव आदि ने बहुत चालाकी से वृक्षों की कटाव के ठेके कुछ ग्राम प्रधानों सहित स्थानीय असरदार लोगों को दे दिए थे । इसके बावजूद गांववासी इतना दबाव बनाया कि वृक्षों का कटाव कुछ समय के लिए रूक जाए । महिला बावजूद गांववासी इतना दबाव बनाया कि वृक्षों का कटाव कुछ समय के लिए रूक जाए । महिलाआें ने संकटग्रस्त वृक्षों पर रक्षा-सूत्र या रक्षा के घागे बांधे । रक्षा-बंधन त्यौहार की तरह यह धागे भी रक्षा का प्रतीक थे व एक तरह से पेड़ों को गांव की महिलाआें का संदेश था कि हम तुम्हारी रक्षा अवश्य करेंगे । अगले वर्ष (१९९५) जुलाई के आसपास गांववासियों व कार्यकर्ताआें को समाचार मिलने लगे कि वृक्षों की कटाव फिर शुरू करने की तैयारियां चल रही हैं । इस कटाव को रोकने के लिए पहले कटाव रांबंधी काफी जानकारी एकत्र की गई व गेंवाली, ज्यंूडाना, चैली व संड जैसे गांवों मे पर्यावरण शिविर भी लगाए गए । इसी वर्ष १०-११ अगस्त को लगभग ३०० महिलाआें ने वन में जाकर रक्षा-सूत्र बांधे व एक बार फिर यहां पेड़ काटने वालों को वन से खदेड़ा । बहुत उँचाई पर स्थित इन वनों में शीघ्र ही वन रक्षा के ये नारे गूंजने लगे -वन बनेगा देश बचेगागांव सब खुशहाल होगा चौरंगीवाला क्षेत्र में चौध्यार गांव की जेठी देवी व दिसोटी गांव की मंदोदरी देवी ने ट्रकों पर चढ़कर तब तक लकड़ी ले जाने दी जब तक पेड़ काटनेपर रोक लगने का फेसला नहीं हो गया । खोजबीन से अवैध कटाव के कई अन्य मामलों का पता चला । विस्तृत जांच रिपॉर्ट तैयार की गई व इस अवैध कटाव की जानकारी सरकार में ऊपर तक पहुंचाई गई व साथ ही मीडिया को भी उपलब्ध करवाई गई इसी के समानांतर रक्षा-सूत्र व जन-जागृति के प्रयास जारी रहे । दिल्ली स्थिति हिमालय सेवा संघ ने भी अवैध कटाई के मामलों की ओर ध्यान दिलाने में सहायता दी । अवैध कटाई में लिप्त् अनेक वन अधिकारियों को निलंबित करने के आदेश भी जारी हुए । वन रक्षा आंदोलन ने नदियों की रक्षा में वनों की भूमिका पर भी जोर दिया । आंदोलन का एक प्रमुख नारा यह रहा है -उँचाई पर पेड़ रहेंेगे नदी ग्लेशियर टिके रहेंगे नदियों की रक्षा के प्रति यह भावना तब और उभर कर सामने आई जब हिपशिस को आसपास से बांध व सुरंग बांध परियोजनाआें के दुष्परिणामोंके समाचार मिले । यह स्पष्ट होने लगा कि इन परियोजनाआें से एक औ नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बुरी तरह प्रभावित होगा, जल-जीवन नष्ट होगा व दूसरी ओर गांववासिंयों के खेल, चरागाह, जल-स्त्रोंतों आदि पर बहुत प्रतिकूल असर पड़ेगा । विस्फोंटों से लोगों के आवास बुरी तरह क्षतिग्रस्त होने लगे व भूस्खलनों का सिलसिला तेजी से बढ़ने लगा । इस स्थिति में हिपशिस ने लोगों को अपने अधिकारों की आवाज उठाने में न केवलसहायता की बल्कि उनकी समस्याआें को कई मंचो पर असरदार ढंग से उठाया एवं नदियों की रक्षा के सवाल को प्रभावित लोगों की समस्याआें से जोड़कर उठाया । बासंती नेगी (हरसिल) जैसी कुछ महिलाअेां ने जहां रक्षा सूत्र में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया था वे अब नदियों की रक्षा के आंदोलन से भी जुड़ गई व उन्होंने इसके लिए पदयात्राएंकी । बाधा परियोजनाआें के कारण जहां-जहां भी पेड़ संकटग्रस्त थे, वहां भी इन महिलाआें ने वृक्षों पर रक्षा सूत्र बांधे । वन व नदी रक्षा के इन आंदोलनों के साथ हिपशिस ने लगभग २५० परम्परागत जल संरक्षण निर्माण कार्यो (चाल) को बनाया है या उनकी मरम्मत की है । जलकूद घाटी (टिहरी) भागीरथ घाटी (उत्तरकाशी) में संस्था की वाटरशोड संरक्षण परियोजनाआें के भी अच्छे परिणाम मिले हैं । ***हो सकता है २०१२ में दूनिया को खतराखगोलविदों और भौतिकशास्त्रियों ने २०१२ में पृथ्वी के साथ क्षुद्र ग्रह एक्स की टक्कर होने की आशंका जाहिर की है । इसके कारण भूकंप, ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी से व्यापक विनाश हो सकता है । यह विनाश इतना ज्यादा हो सकता है कि इसमें पूरी मानव प्रजाति समाप्त् हो सकती है । जर्मनी के वैज्ञानिक रोसी ओडोनील, विली नेल्सन ने २१ दिसंबर २०१२ को प्लैनेट एक्स और पृथ्वी के बीच टक्कर की आशंका जाहिर की है । वैज्ञानिकों के अनुसार इस दिन यह प्लेनेट एक्स एकेए निबिरू पृथ्वी के काफी करीब से गुजरेगा । इसमें चुम्बकीय क्षेत्र महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है । एक स्थिति में प्लेनेट एक्स पृथ्वी से दूर भी जा सकता है, लेकिन बड़ी संभावना है कि यह पृथ्वी के काफी करीब आए और इसकी टक्कर हो जाए । हालांकि कुछ वैज्ञानिक इससे असहमत हैं । जाने-माने वैज्ञानिक इससे असहमत हैं । जाने-माने वैज्ञानिक प्रो. यशपाल के मुताबिक ब्रह्मांड में हजारों की संख्या में ऐसे क्षुद्र ग्रह और आकाशीय पिंड चक्कर लगा रहे हैं, जो किसी समय पृथ्वी के काफी करीब से गुजरेंगे या उनकी टक्कर होने की आशंका है । उन्होंने कहा एक्स के भी २०१२ में पृथ्वी के कई हजार किलोमीटर पास से गुजरने का अनुमान लगाया गया है, लेकिन इस बात की कम संभावना है कि प्लेनेट एक्स की पृथ्वी से टक्कर हो ।
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