हमारी सांस से डोलती prithviigaar
गार स्मित
गार स्मित
संयुक्त राज्य अमेरिका पर्यावरण सुरक्षा एजेंसी (ईपीए) ने कार्बन डाईऑक्साईड को क्लीअर एयर एक्ट (स्वच्छ वायु अधिनियम) की धारा २०२ (अ) के अंर्तगत दूषित करने वाले एक तत्व के रूप में परिभाषित कर दिया है । एक वयस्क सामान्य तौर पर प्रति मिनट २५० मिलीलिटर ऑक्सीजन खींचता है और २०० मिली लिटर कार्बन डाईआक्साइड छोड़ता है । इस तरह करीब ६.६ अरब मनुष्यों के फेफड़े निरन्तर कार्यशील रहते है जिनसे प्रतिवर्ष २.१६ खरब टन कार्बन डाईआक्साइड वातावरण में इकट्ठा होती है । मनुष्यों द्वारा सांस लेने के दौरान छोड़ी गई कार्बनडाईआक्साईड वैश्विक कार्बन डाईआक्साईड उत्सर्जन की ९ प्रतिशत बैठती है जो कि ५० करोड़ कारों द्वारा छोड़ी गई गैस के बराबर है । वहीं संयुक्त राष्ट्र संघ का अनुमान है कि सन् २०५० तक विश्व की आबादी में ३७ प्रतिशत की वृद्धि हो जाएगी । ये फेफड़े भी प्रतिवर्ष ८२४ अरब टन अतिरिक्त गैस उत्सर्जन करेंगे । पृथ्वी पर सांस लेने वाले जीवों का प्रार्दुभाव करीब ६० करोड़ वर्ष पूर्व हुआ है । तब से कार्बन डाईआक्साईड और ऑक्सीजन के स्तरों में उतार चढाव आता रहा है । आक्सीजन के मामले में यह १६ से ३५ प्रतिशत तक रहा है । औद्योगिक क्रांति के पूर्व मानवीय सांस का हिसाब-किताब ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं था क्योंकि प्रकृति के चक्र से न्यूनतम छेड़छाड़ होती थी । जितनी भी कार्बन डाईआक्साईड निकलती थी वह पेड़-पौधों द्वारा सोख ली जाती थी, जानवर पेड़ पौधे खाते थे तथा पेड़-पौधों और जानवरों को मनुष्य खा जाते थे । परंतु जब से हमने जीवाश्म इंर्धन जलाना प्रारंभ किया तब से डायनासोर के समय से चला आ रहा कार्बन समीकरण बदल गया है । आऊट आफ थिन एयर : डानासोर्स, बर्ड एण्ड अर्थ एन्शिन्ट एटमॉसफियर के लेखकों का आकलन है कि पृथ्वी के पांच विशाल की विलुिप्त् अधिक कार्बन डाईऑक्साइड और कमतर ऑक्सीजन के दौर में हुई । आक्सीजन के स्तर में थोड़ी सी गिरावट को प्राणियों की थोकबंद विलुिप्त् से जोड़ा जा सकता है । पृथ्वी की अनेक प्रजातियां पहले ही बड़ी संख्या में समाप्त् होती जा रही है । दूसरी ओर बाघ से लेकर ध्रुवीय भालु विलुिप्त् की कगार पर खड़े है । सिर्फ हमारी कारें और कारखाने ही कार्बन डाईऑक्साइड नहीं छोड़ते, हमारे भोजन का हिस्सा बना मांस भी जान लेवा साबित हो रहा है । खाद्य एवं कृषि संगठन का कहना है कि वैश्विक तापमान वृद्धि से निपटने के लिए मीथेन मांस और दुधारू पशु, भौगोलिक बायोमास का २० प्रतिशत उत्सर्जित करते है । पशुआें ने पृथ्वी के ३० प्रतिशत भाग पर कब्जा जमा रखा है और ग्रीन हाऊस गैसों में उनका योगदान १८ प्रतिशत है जो कि यातायात क्षेत्र से भी अधिक है । इससे भी बुरी स्थिति यह है कि गाय मीथेन गैस का अत्यधिक उर्त्सजन करती है । मीथेन गैस, कार्बन डाईऑक्साइड के मुकाबले वैश्विक तापमान वृद्धि में २३ गुना ज्यादा योगदान करती है इसी तरह गाय नाईट्रस आक्साईड भी छोड़ती है जो कि कार्बन डाईआक्साइड से २८६ गुना अधिक ताप एकत्रित करता है इतना ही नहीं हमने कार्बन डाईआक्साइड संचित करने वाले वनों और उत्तरी अमेरिका के घास के विशाल मैदानों के स्थानापन्न के रूप मेंका उत्सर्जन करने वाले जानवरो में विशाल बाड़ो को अपना लिया है मीथेन के उत्सर्जन में कमी पर तुरंत ध्यान देना आवश्यक है । इसीलिए पर्यावरण विशेषज्ञ डॉ. राजेन्द्र पचौरी ने मांस न खाने हेतु वैश्विक अपील जारी की है । यह एक अत्यन्त साधारण चुनाव है कि या तो आज आप भुने मांस को छोड़े या कल के अपने टिकाऊ भविष्य को दांव पर लगा दें । इस दौरान लंदन स्कूल ऑफ इकोनोमिक्स की रिपोर्ट बताती है कि जलवायु परिवर्तन के हल हेतु किसी हरी तकनीक में निवेश करना पांच गुना सस्ता है । ब्रिटिश वैज्ञानिक जेम्स लव लॉक का अनुमान है कि इस शताब्दी के अंत तक कार्बन डाईआक्साइड की चपेट में आकर जलवायु विप्लव से करीब १० अरब लोग अपने प्राण गवां चुके होंगे और इस घरती पर मात्र एक अरब लोग बचेंगे । हम सांस की नियामत को समझें और सब लोग रूक कर गहरी सांस भरें । अब समय आ गया है कि लवलॉक की चेतावनी को ध्यान में रखते हुए हम अपने इस ग्रह पर जीवन को बचाए रखने में अपनी जिम्मेदारी स्वीकारें । हम जिस अवस्था में पहुंच रहे हैं उसमें मानवता की अगली सांस उसकी अंतिम सांस सिद्ध हो सकती है । ***
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