चौबीस घंटे पानी, एक नया शिगूफा
गौरव द्विवेदी
शहरी बुनियादी सुविधाआें के क्षेत्र में पानी का महत्वपूर्ण स्थान है और जलप्रदाय नगर निकायों की प्रमुख जिम्मेदारियों में से एक है । लेकिन आर्थिक सुधारों के प्रभाव में इसे भी निजी हाथों में सौंपा जा रहा है । एक दिन छोड़कर भी जलप्रदाय नहीं कर पा रहे नगर निकाय अब निजीकरण हेतु नागरिकों को २४ ७ जलप्रदाय (चौबीसों घण्टे सातों दिन यानी लगातार जलप्रदाय) के सपने दिखा रहे हैं । २४ ७ जलप्रदाय व्यवस्था को केन्द्र के स्तर भी न केवल खूब प्रचारित किया जा रहा है बल्कि इसे प्रोत्साहित भी किया जा रहा है । २४ ७ जलप्रदाय के पक्ष में दिए जाने वाले तर्कोंा में पाइप लाईन लीकेज के कारण अशुद्धि मिलने की संभावना, क्षतिग्रस्त पाइप लाइनों से पानी का नुकसान, व्यक्तिगत स्तर पर जलभण्डारण के खर्च की बचत, बासी पानी को फेंकने से जलहानि की कमी आदि प्रमुख हैं । यदि अपने देश के संदर्भ में देखें तो हुबली-धारवाड़ (कर्नाटक) के कुछ वार्डोंा में तथा नागपुर के एक वार्ड में फ्रांस की कंपनी विओलिया के माध्यम से २४ ७ जलप्रदाय का प्रयोग शुरू किया गया है मध्यप्रदेश में इस तरह का पहला प्रयोग खण्डवा में होने जा रहा था । लेकिन ठेकेदार कंपनी विश्वा इन्फ्रास्ट्रक्चर्स ने जलप्रदाय शुरू करने के पहले ही टेण्डर की शर्ते बदलकर ६ घंटा प्रतिदिन जलप्रदाय कर दिया है । सार्वजनिक क्षेत्र के निकाय महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण द्वारा मलकापुर (महाराष्ट्र) में करीब २० हजार नल कनेक्शनों के लिए २४ ७ जलप्रदाय का काम शुरू किया है । मध्यप्रदेश के चार शहरों इंदौर, भोपाल, ग्वालियर और जबलपुर में भी प्रारंभिक रूप से एक-एक झोन में २४ ७ जलप्रदाय की प्रक्रिया जारी है । भोपाल और ग्वालियर में यह काम निजी कंपनी को सौपा गया है । २४ ७ जलप्रदाय के पैरोकार तर्क देते हैं कि पानी को वित्तीय संसाधन के हिसाब से देखा जाना चाहिए । इसलिए इसके अंतर्गत पूर्ण लागत वापसी के साथ लाभ का भी प्रावधान होना चाहिए तभी इसमें निवेश बढ़ेगा और सेवा बेहतरहोगी । यदि आर्थिक दृष्टि से देखा जाए तो २४ ७ जलप्रदाय व्यवस्था काफी महंगा सौदा है । लीकेज रोकने हेतु पाईपलाईन बदलाव आदि के कारण इसकी स्थापना लागत काफी अधिक होती है । नागपुर शहर के लिए यह लागत एक हजार करोड़ रूपए होगी । नागपुर नगर निगम के लिए इतनी राशि की व्यवस्था कठिन काम है । ऐसे में इतनी बड़ी राशि या तो अनुदान से या कर्ज से या फिर निजी क्षेत्र से ही आ सकती है । कर्ज या निवेश की स्थिति में निवेशित राशि की ब्याज और सुनिश्चित लाभ सहित वसूली करनी होगी । वसूली करने का एक मात्र विकल्प शुल्क दर वृद्धि ही है । परियोजनाआें की बड़ी लागत, पाईपलाईन में एक निश्चित दबाव बनाए रखने हेतु लगातार पम्पिंग, ट्रीटमेंट लागत आदि के कारण परियोजना का संचालन / संधारण खर्च भी अपेक्षाकृत अधिक होता है । परियोजनाआें के निजी हाथों में जाने पर निवेशित पूंजी ब्याज सहित वसूलने के साथ इस पर सुनिश्चित लाभ का भी प्रावधान किया जाता है । ऐसे में यदि पेयजल की दरें कम रखी गई तो वसूली पर्याप्त् नहीं होगी और यदि दरें अधिक रखी गई तो गरीब पानी से भी वंचित कर दिए जाएंगे । चूंकि कंपनियां वसूली तो पूरी ही करेगी ऐसे में संदेह है कि गरीबी रेखा के नीचे जीने वाली ४०% शहरी आबादी को भी २४ ७ पेयजल उपलब्ध करवाया जाएगा ? यदि उपलब्ध करवा भी दिया तो क्या वे पानी का बिल चुकता कर पाएंगे ? संसाधनों के बंटवारे को लेकर समुदाय में तनाव बढ़ रहे हैं । खेती के लिए बने बांधों और जलाशयों के पानी को शहरों और उद्योगों की और मोड़ा जा रहा है । नागपुर में पेंच और गोसीखुर्द परियोजना से पानी आता है । मुम्बई को वैतरणा, भत्सा आदि जलाशयों से पानी मिलता है राजस्थान की बिसलपुर परियोजना में पानी के लिए किसानों में खूनी संघर्ष हो रहा है लेकिन इसका पानी जयपुर, अजमेर तथा अन्य शहरों को निर्बाध रूप से दिया जा रहा है । ओड़िशा के हीराकुड बांध का पानी उद्योगों को दिए जाने के खिलाफ वहां किसान उग्र प्रदर्शन कर रहे हैं । नर्मदा न्यायाधिकरण द्वारा किए गए जल बंटवारे के अनुसार इंदिरा सागर और आेंकारेश्वर परियोजनाआें से पहले ही सिंचाई काफी कम है । लेकिन इसके बावजूद बगैर किसी पूर्व प्रावधान के इन जलाशयों का पानी ताप बिजलीघरों को दिए जाने का प्रबंध कर दिया गया है हाल ही में मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान ने बांधों में उद्योगों के लिए ५ प्रतिशत पानी आरक्षित रखने के घोषणा की है । इस घोषणा से समुदायों के मध्य विवाद और बढ़ सकते हैं । इस तरह के जलप्रदाय में भेदभाव अंतर्निहित है । जो पैसा नहीं दे सकता उसे जरूरत का पानी देने का कोई प्रावधान नहीं है । इससे शहरों के गरीब और अमीर इलाकों में संसाधनों के गैरबराबरीपूर्ण बँटवारे को कानूनी जामा पहनाया जाएगा । चौबीसों घण्टों नल में पानी रहने की जरूरत नहीं होती है । खाना खाने के दौरान या उसके बाद पानी का गिलास लेकर मटके की बजाय नगर निकाय के नल की और जाने की क्या जरूरत है ? या नहाने के लिए अपने घर की टंकी के बजाय सीधे नगर निगम की टंकी का पानी क्यों चाहिए ?वास्तव में जरूरत इस बात की है कि दिन में कम से कम एक बार निर्धारित समय पर घण्टा भर जलप्रदाय सुनिश्चित किया जा सके । यदि व्यक्ति समय से पानी प्रदाय किया जाए तो उसे वैसे ही २४ ७ पानी मिलता रहेगा । इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि लोगों को अपने खुद के भण्डारण से २४ ७ पानी मिले या फिर नगर निकाय की टंकी से । बल्कि महत्वपूर्ण यह है कि भुगतान कर सकने योग्य दरों पर सबको पर्याप्त् पानी उपलब्ध करवाना सुनिश्चित किया जाए । देश में लगातार दिन-रात जलप्रदाय के बहुत उदाहरण नहीं है । लेकिन जितने भी उदाहरण हमारे सामने हैं उससे इसकी अव्यावहारिकता तथा वित्तीय स्वावलंबन पर सवाल खड़े हो रहे हैं । इसीलिए निजी कंपनियाँ टेण्डर होने या जलप्रदाय शुरू होने के बाद शर्तों में बदलाव कर रही हैं । खण्डवा की जलप्रदाय योजना के टेण्डर भरने वाली ४ कंपनियों में ३ ने शहर में २४ ७ जलप्रदाय को अव्यावहारिक तथा महँगा बताया था । जबकि टेण्डर हासिल करने वाली चौथी कंपनी विश्वा इन्फ्रास्ट्रक्चर्स एवं सर्विसेस लिमिटेड ने सेवा शुरू करने के पूर्व ही जलप्रदाय का समय २४ घण्टे से घटाकर ६ घण्टे प्रति दिन कर दिया है । इसी प्रकार पिंपरी-चिंचवड़ नगर निगम पुणे ने भी दैनिक जलप्रदाय का समय ६ घण्टे कर दिया है । दिन -रात जलप्रदाय को सीधे निजीकरण से जोड़ा जा रहा है । बताया जा रहा है कि सार्वजनिक क्षेत्र की क्षमता नहींहै कि वह चौबीसों घंटे जलप्रदाय कर सके । इसलिए इस काम के लिए निजी कंपनियों को बुलाया जा रहा है । दिन-रात लगातार जलप्रदाय हेतु तीन मुद्दे महत्वपूर्ण माने गए हैं-बड़ा निवेश, आधुनिक तकनीक और बेहतर कार्यक्षमता । वर्तमान में जारी जलप्रदाय व्यवस्था में आमूलचूल बदलाव होता है इसलिए अधिक धन की आवश्यकता होती है । लीकेज तथा जलहानि रोकने हेतु बेहतर तकनीक की आवश्यकता होगी और इसे चलाने हेतु कार्यक्षम मानव संसाधन भी अपरिहार्य होगा । दुर्भाग्य से यह मान लिया गया है कि ये तीनों बातें सार्वजनिक क्षेत्र के बस में नहीं हैं । इस तरह दिन-रात लगातार जलप्रदाय निजीकरण को आगे धकेलने का एक जरिया मात्र हेै । जीवन के लिए जरूरी इस संसाधन का वितरण बाजार की शक्तियों के हाथों में जाने से समाज का सबसे कमजोर वर्ग तक इसकी पहुँच या तो सीमित हो जाएगी या फिर लगभग खत्म ही हो जाएगी । गरीबों के लिए ऐसी विकट स्थिति पैदा करना कल्याणकारी राज्य के लिए शर्मनाक है । ***
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