ग्लोबल वार्मिग के न्यूनीकरण के कदम
प्रेमचन्द श्रीवास्तव
आज सारा विश्व-धरती के गर्मातें जाने की समस्या से परेशान है । जलवायु में परिवर्तन हो रहा है मौसम अपना तेवर दिखा रहा है । कही चरम सूखा तो कही अत्यधिक वर्षा से जल प्लावन द्वारा फसलें तैयार होने के पूर्व ही नष्ट होती जा रही है। रेगिस्तानी क्षेत्रों में पशु पानी के अभाव में मर रहें है जल-स्रोत तो सूखाते जा रहे है पृथ्वी का जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है । ऐसा नहीं कि लोग वैश्विक तापन की समस्या और सम्भावित खतरों को समझ नहीं रहे हैं । विभिन्न देशों की सरकारें भी जागरूक है इसलिए हमें इस समस्या से भयाक्रंात होकर हाथ पर हाथ धरे बैठने की जगह समाधान की ओर ध्यान देना होगा इस संबंध में पहल हो चुकी है । वैश्विक तापन के खतरे को कम करने के लिए मेजर इकॉनामीज फोरम एम ई एफ पर भारत ने २.९ दो डिग्री सेन्टीग्रेड ताप कम करने के लक्ष्य का अनुमोदन कर दिया है । क्योटो प्रोटोकोल पर भारत ने पहले भी हस्ताक्षर कर दिये था । भारत के ऐसा करने पर भारत सरकार को बड़ी आलोचना का, भारत में ही , सामना करना पड़ा है । संबंधित अधिकारियों, जो इस मुद्दे को लेकर संघर्षरत थे, उनका कहना है कि उनके प्रयासों पर इससे पानी फेर दिया है जुलाई २००९ में ही इस संबंध में उन्होने अपना विचार भी व्यक्त कर दिया है किन्तु उन अधिकारियों को अब स्वीकार कर लेना चाहिए कि उनका संघर्ष उनकी लड़ाई गलत दिशा में चल रही थी । भारत निचले अक्षांतर वाला कटिबंधी देश है इसलिए ताप के बढ़ने के प्रति भारत की दशा अत्यंत नाजुक है भारत में मौसम परिवर्तन भारत की प्रगति और खुशहालीके लिए बाधा रहा है । और ग्लोबल वार्मिंग वैश्विक तापन के साथ मौसम में बदलाव होता ही रहेगा । तिब्बत के पठार प्लेटो हिन्दुकुश और हिमालय पर्वत क्षेत्र में ताप वृद्धि के प्रभाव से उत्तर एशिया में सुरक्षा का मुद्दा उठ खड़ा होगा । और दक्षिण एशिया के देशों के बीच आपसी संबंधों में उत्तेजना का जन्म होगा । प्रक्षेपित हिमपात में परिवर्तनों के परिणाम स्वरूप प्रायद्वीपीय भारत में पानी की उपलब्द्धता की परिवर्तनशीलता में वृद्धि होगी । सागरों के जलस्तर में वृद्धि से समुद्रतटीय बस्तियों को खतरा होगा । जलवायु परिवर्तन पर गठित अंतर सरकारी पैनल द्वारा निर्धारित सूची के अनुसार सबसे ज्यादा अपवादात्मक रूप से नाज़ुक स्थिति गंगा-ब्रह्मपुत्र नदियों का मुहाना है । प्रारंभ में ही प्राप्त् प्रभाव इंगित करते है कि भारत के सुन्दरवन और बांग्लादेश पर बड़े प्रभाव पड़ेगे भारत को गंभीर रूप से मौसम प्रवासियों का सामना करना पड़ेगा । इसलिए यह तथ्य भारत के राष्ट्रीय हित में है कि वह जहाँ तक संभव हो, ताप वृद्धि को कम करने का संकल्प करे ताकि ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को सीमित किया जा सके । भारत ने कम से कम २०उ ताप कम करने के मसौदे पर हस्ताक्षर किया है । लक्ष्य को प्राप्त् करने के लिए हरित पौधगृह गैसों के उत्सर्जन के स्तर मे कमी की जाये और दूसरे मार्ग की खोज जिससे हरित पौधगृह गैसों के स्तर को आवश्यक स्तर तक ले जाना आवश्यक स्तर तक ले आना । २०उ ताप कम करने के लिए धीरे-धीरे हरित पौधगृह गैसो के उत्सर्जन को लगातार कम करते जाना होेगा । ताकि हम आज जितनी हरित पौधगृह गैसों का उत्सर्जन कर रहे उसकी मात्रा को कम करते करते २०५० तक आधी कर दें । २०उ के लक्ष्य पर हस्ताक्षर करके भारत ने कुछ खोया नहीं है । भारत का लक्ष्य और मांग अभी भी अपनी जगह पर बनी हुई है । वैसे बात तभी बन सकती है जब विकसित देश इसके लिए सही दिशा में अधिक सक्रियता से प्रयास करें। इस संबंध में हम तर्क कर सकते है कि विकसित देशों को कार्बन डाईऑक्साइड गैस के उत्सर्जन में कमी का ऊँचा लक्ष्य रखकर सन् २०२० तक २५-४० प्रतिशत कमी का लक्ष्य पुरा कर लेना चाहिए जैसा कि अतंराष्ट्रीय प्रदूषण नियंत्रण कौंसिल ने निर्धारित किया है । किन्तु विकसित देशों ने उत्सर्जन में कमी करने का लक्ष्य मात्र २०उ रखा है । ऐसी दशा में विकासशील देश क्या करें ? किसी बहस में न पड़ कर विकासशील देशों को निर्धारित लक्ष्य को निर्धारित समय तक अवश्य पुरा लेना चाहिए। यह भारत सहित विकासशील देशों के हित में है । विकसित देश उत्सर्जन में ५० प्रतिशत की कमी करके ताप का लक्ष्य २०उ प्राप्त् कर लें, आवश्यक नहीं है । लक्ष्य नहीं भी प्राप्त् हो सकता है इसलिए सन् २०५० तक अचानक लक्ष्य पा लेना मुश्किल होगा और ऐसी दशा में हमें तैयार रहना होगा कि हमारी अगली पीढ़ी के बच्च्े कार्बन से प्रदूषित पर्यावरण में रहने के लिए विवश होंगे । भारत, चीन और कुछ अन्य तेज गति से विकास करने वाले देशों में कार्बन प्रदूषण का अधिकांश उत्सर्जन जिन स्रोतो से होगा उन्हे रेखांकित किया जाना अभी शेष है । हमारे पास यह चुनाव है कि हम कम से कम कार्बन उर्त्सजित करने वाली प्रौद्योगिकियों को विकसित करें । मौसम संबंधी बातचीत या समझौते हमारी कार्यसूची में कहीं ज्यादा है ।वरन इसके कि हम बहुत दूर की सोचें समझौते जो बर्फ की तरह जमें हुए रूके पड़े थे, अब पिघल रहे हैं । या यों कहे ं की समझौतो के लिए पृष्ठभूमि तैयार है । क्योटो प्रोटोकॉल के बाद पहली बार ऐसा हुआ है कि जी-८ सम्मेलन के अवसर पर विकसित देशों ने सन् २०५०तक कार्बन डाइऑक्साइड गैस के उत्सर्जन में ५० प्रतिशत की कमी करना स्वीकार कर लिया है । अमेरिकी सीनेट ने बोनस बिल का प्रस्ताव रखा है ब्रिटेन के प्रधानमंत्री गोर्डन ब्राउन ने पिछले दिनों एक अवसर पर बोलते हुए स्पष्ट किया है कि विकासशील देशों को सहायता राशि के अतिरिक्त मौसम परिवर्तन पर खर्च के लिए एक प्रावधान किया गया है । इसलिए जलवायु परिवर्तन पर हुई एम.ई.एफ की बातचीत के विषय में निष्कर्ष रूप में यह कहा जा सकता है कि यह समझौता भारत के हित में है और विश्व के भी हित में है । ***
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें