स्वास्थ्य बड़ा या रूपय्या ?
सुमन नारायणन
बहुराष्ट्रीय दवा कंपनियां येन-केन प्रकरेण अपने उत्पादों को पूरे विश्व पर थोपना चाहती हैं । भारत जैसे देशों में वैधानिक तरीक से बन रही जेनेटिक दवाईयों के निर्यात को बलपूर्वक रोकने के लिए सभी विकसित औद्योगिक देश एकजुट हो गए हैं। इस षडयंत्र के फलस्वरूप जहां भारतीय दवाई कंपनियों को आर्थिक हानि उठानी पड़ेगी वहीं इसके परिणामस्वरूप तीसरी दुनिया के करोड़ों लोग सस्ती दवाईयों से दूर हो जाएगें । इसका सीधा असर इन सबके स्वाथ्य के साथ ही साथ इन देशों की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा ।
कई औद्योगिक देश एसी आपसी प्रयत्नशील हैं, जो कि विकासशील देशों को कम मूल्य की दवाइयों की उपलब्धता को बाधित करेगी, जिसके परिणामस्वरूप वे पेटेंट वाली महंगी दवाइयों पर निर्भर हो जाएगें । इससे विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के ट्रेडमार्क संबंधी दिशानिर्देशों के मद्देनजर किसी ऐसी वस्तु को नकली जाली घोषित किया जा सकता है, जिससे कि पेटेंट का उल्लंघन होता प्रतीत हो रहा हों ।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) एवं डब्ल्यूटीओ की नकली को लेकर अपनी-अपनी परिभाषाएं हैं । डब्ल्यूएचओ उन सभी दवाईयों को नकली मानता है, जिनके अवयव या संघटक नकली हो, इनकी मात्रा गलत हो या नकली पैकिंगकी गई हो । डब्ल्यूएचओ को इस बात से कोई मतलब नहीं है कि इस तरह की दवाई जेनेरिक है या पेटेंट ।
इसके ठीक विपरित डब्ल्यूटीओ को मात्र ट्रेड मार्क उल्लंघन से मतलब है । उसे व्यापार संबंधित बौद्धिक संपदा अधिकार (ट्रीप) को लेकर भी अनेक आपत्तियां है । जिसमें एक यह भी है कि ये ट्रेडमार्क भले ही एक से ना हों मगर इनमें समानता भी दिखती हों तो उसे नकली करार दिया जा सकता है । जेनेरिक दवाईयों को लेकर ट्रिप का रवैया हमेंशा सख्त रहा है क्योंकि वे कहीं न कहीं पेटेंट की गई मूल औषधि से मिलती-जुलती दिखती हैं। परन्तु ट्रिप भी जेनेरिक औषधियों को नकली नहीं मानता है ।
अमेरिका, यूरोपिय यूनियन, जापान, न्यूजीलैंड एवं आस्ट्रेलिया इस परिभाषा में विस्तार कर बौद्धिक संपदा अधिकार (आईपीआर) में हुए किसी भी उल्लंघन को नकली करार देना चाहते हैं । केन्द्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय में आईपीआर विभाग के निदेशक टी.सी.जेम्स का कहना है कि एंटी काउंटरफीटिंग ट्रीटी (नकल के विरूद्ध संधि) (ए.सी.टी.ए.) के अन्तर्गत ऐसा कोई भी उत्पाद नकली घोषित किया जा सकता है, जिसका पेटेंट केवल एक ही देश में हो । इसके बाद इस बात का कोई अर्थ नहींरह जाता कि उस देश में जेनेरिक दवाईयों का निर्माण एवं आयात वैध हो । जेम्स का कहना है कि औद्योगिक देशों ने केन्या को इस बात के लिए राजी कर लिया है कि ऐसी जालसाजी के खिलाफ कानून पारित कर दें। मोरक्को, मेक्सिको एवं सिंगापुर में भी ऐसे ही कानून बने हुए हैं । अपनी बात को समझाते हुए जेम्स कहते हैं अगर कोई वस्तु पेटेंट वेटिकन में हुआ है तो वह वस्तु केन्या में नकली मान ली
जाएगी ।
सीमा संबंधी मामले - इस तरह की बहुस्तरीय जालसाजी विरोधी संधि के कारण भारतीय जेनेरिक दवाईयों का लेटिन अमेरिका के देशों को निर्यात कमोबेश असंभव हो
जाएगा । क्योंकि इन देशों तक दवाइयों के पहुंचने के बीच में कई देश आते हैं, जो आपस में इसतरह की संधि हेतु प्रयास कर रहे हैं । ये देश हैं मेक्सिको, अमेरिका, जापान, सिंगापुर, आस्ट्रेलिया, मोरक्को, केन्या व यूरोपियन यूनियन । ये सभी समुद्रतटीय देश हैं जो कि भारत एवं लेटिन अमेरिका के बीच में पड़ते
हैं ।
वास्तविकता यह है कि हम ऐसी स्थिति का स्वाद चख भी चुके हैं। २००३ में यूरोपियन यूनियन के देशों ने अपने राष्ट्रीय कानूनों में परिवर्तन करके स्वयं पेटेंट से संबंधित पक्षों के प्रति उत्तरदायी बना लिया है। इसके बाद इन देशों के कस्टम अधिकारी पेटेंटधारी की शिकायत पर आवागमन के दौरान भी वस्तु को जब्त कर सकते हैं ।
पिछले सात वर्षोंा में भारत द्वारा लेटिन अमेरिका को निर्यात की गई जेनेरिक दवाईयों को नियमित रूप से यूरोप के देशों में जब्त किया जा रहा है । गत वर्ष हालैंड के तटीय नगर रोटरडेम के कस्टम अधिकारियों ने ब्राजील जा रही उच्च् रक्तचाप के लिए इस्तेमाल में आने वाली भारत में निर्मित जेनेरिक औषधी लोसारटन को जब्त कर लिया था । गौरतलब है कि यह औषधि इन दोनों देशों में पेटेंट नहीं कराई गई है । डब्ल्यूटीओ की पेनल इस जब्ती के खिलाफ भारत की अपील की सुनवाई कर रही है । भारत के मामले को ब्रिटेन के एक न्यायालय द्वारा दिये गए फैसले से राहत की उम्मीद बंधी है, जिसमें ब्रिटेन कस्टम द्वारा जब्त किए गए मोबाईल फोन्स को छोड़ना पड़ा था । इस मामले में एक बड़ी फोन निर्माता नोकिया की शिकायत पर अधिकारियों ने जब्ती की कार्यवाही की थी, परंतु न्यायालय ने ट्रिप्स के प्रावधानों के अनुसार फैसला देते हुए निर्णय दिया कि नकली होने की अवस्था में भी परिवहन के दौरान वस्तु को जब्त नहीं किया जा सकता ।
निषेधाज्ञा - भारत के दवाई निर्माताआें की मुख्य संस्था इंडियन फामस्यिुटिकल अलाइंर्स को बौद्धिक संपदा के संबंध में सलाह देने वाले रघु कंपनियों की मांग के अनुरूप लचीला नहीं है ।अतएव अब ये कंपनियां सरकारोंसरकारों पर दबाव डालकर जालसाजी के विरूद्ध नए कदम उठा रही है । एसीटीए वर्तमान में प्रचलित बौद्धिक संपदा प्रणाली को अलग तरीकेसेलांघ सकता है । ट्रिप्स के अंतर्गत पेटेंटधारी के पक्ष में निर्णय देने के पहले न्यायालय को पेटेंट की वैधता भी आंकना होगी । इस संदर्भ में मेडिसिन्स सेंस फ्रंटियर्सफॉर एक्सेस टू ईसेंन्सियल मेडिसन की लीना मेघाने का कहना है न्यायालय को दवाईयों तक पहुंच के अधिकार के विरूद्ध किसी एक के संस्थान के पेटेंट संबंधी अधिकारों के मध्य संतुलन बनाना होगा । जालसाजी के विरूद्ध प्रस्तावित समझौता न्यायालयों को इस बात के लिए बाध्य कर देगा कि वे पेटेंट की वैद्यता सिद्ध होने के पूर्व ही जेनेरिक दवाईयों का उत्पादन और वितरण पर रोक लगा दें ।
जालसाजी विरोधी संधि की न्यायालयों से यह मांग रहेगी कि वे पेटेंट के संदिग्ध उल्लंघनकर्ता के बैंक खातों पर रोक एवं उसकी सम्पत्ति भी जब्त कर लें । सुश्रीमेघाने का कहना है कि यह लोगों को डराने का अच्छा तरीका है, जिससे कि वे केवल पेटेंट वाले उत्पाद ही इस्तेमाल करें ।
विकसित देशों की सरकारों ने जेनेरिक दवाईयों के परिवहन पर रोक लगाने के और भी तरीके खोजे हैं । २००८ में उन्होंने विश्व की शीर्ष डाक सेवा इकाई यूनिवर्सल पोस्टल यूनियन को इस बात के लिए बाध्य किया कि वे पेटेंट का उल्लंघन करने वाले संदिग्ध उत्पादों की पहचान करें एवं उनके परिवहन को रोकें । इस तरह अगर कोई इंटरनेट पर जेनेरिक दवाईयों का आर्डर करेगा तो यह डाक सेवा इस बात के लिए बाध्य है कि वह इसे जालसाली वाली मानकार इस पर रोक लगाए ।
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1 टिप्पणी:
कृपया बड़े अक्षर में जानकारी पोस्ट करे सभी को आसानी होगी पढ़ने में.आपके लेख नियमित पढता हू धन्यवाद.
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