सोमवार, 30 अगस्त 2010

२ हमारा भूमण्डल

परमाणु ऊर्जा से भगवान बचाएं 

हेलन काल्डिकोट


जिस प्रदार्थ की राख या बचा हुआ हिस्सा रेडियोधर्मी होकर अगले ढाई लाख वर्षोंा तक जहरीला बना रहे, ऐसे पदार्थ के जहरीलेपन की सीमा की कल्पना भी नहीं की जा सकती । भारत में पिछले कुछ वर्षोंा से ऊर्जा के क्षेत्र में परमाणु ऊर्जा को लेकर सुनहरे सपने दिखाए जा रहे हैं ।
इस वक्त दुनियाभर में ४३८ परमाणु रिएक्टर कार्यरत है । परमाणु ऊर्जा उद्योग के सुझावों के अनुसार जीवाश्म इंर्धन पर आधारित ऊर्जा संयंत्रों को परमाणु ऊर्जा संयंत्रों से बदलने के लिए १००० मेगावाट के २ से ३ हजार नए परमाणु संयंत्र निर्मित करना होंगे । इसका अर्थ हुआ अगले ५० वर्षोंा तक प्रति सप्तह एक परमाणु ऊर्जा संयंत्र का निर्माण ! इस तथ्य के दृष्टिगत कि अमेरिका में सन् १९७८ के पश्चात एक भी नया परमाणु संयंत्र स्थापित नहीं हुआ है, यह विचार ही अव्यावहारिक लगता है । अगर हम जीवाश्म आधारित सारे विद्युत संयंत्र बदलने की सोच भी लें तो हमें यह भी याद रखना होगा कि इस स्थिति में आर्थिक रूप से सक्षम परमाणु इंर्धन की उपलब्धता मात्र ८ वर्ष तक के लिए संभव हो पाएगी ।
वैसे परमाणु उद्योग की अर्थव्यवस्था का अभी तक ठीक-ठाक आकलन ही नहीं हुआ है । उदाहरण के लिए यूरेनियम संवर्द्धन पर आने वाली लागत पर अमेरिकी सरकार जबरदस्त सब्सिडी देती है । संचालन के दौरान दुर्घटना होने की स्थिति मेंअमेरिका में मुआवजे की अधिकतम सीमा ६०० अरब अमेरिकी डॉलर है । इसमें से मात्र २ प्रतिशत जवाबदारी निजी क्षेत्र की है शेष ९८ प्रतिशत अमेरिकी सरकार द्वारा देय है । इसके अलावा अमेरिका में वर्तमान में कार्यरत सभी परमाणु रिएक्टरों को बंद करने (डी-कमीशन) की लागत भी करीब ३३अरब अमेरिकी डॉलर बैठेगी । इसमें वह लागत मौजूद नहीं है, जो कि रेडियोएक्टिव पानी को आगामी दो लाख पचास हजार वर्ष तक सुरक्षित रखने में आएगी ।
यह भी कहा जाता है कि परमाणु ऊर्जा प्रदूषण रहित है । परंतु सच इससे बहुत अलग
है । अमेरिका में विश्वभर में सर्वाधिक यूरेनियम का संवर्द्धन किया जाता है । वहां ऐसी सुविधा वाले पाडुकाह संयंत्र में इसके संवर्द्धन हेतु १५०० मेगावाट वालेकायेला संयंत्र जितनी विद्युत ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है, जिससे बड़ी मात्रा में कार्बन डाईआक्साइड का उत्सर्जन होता है । उपरोक्त एवं ओहियो स्थित एक अन्य संयंत्र पोर्ट्समाउथ पूरे देश में उत्सर्जित होने वाली क्लोरोफ्लोरोकार्बन (सीएफसी) गैस के ९३ प्रतिशत उत्सर्जन के लिए जवाबदार है । पोर्ट्समाउथ संयंत्र तो २००१ में बंद हो गया है, लेकिन केंटुकी संयंत्र अभी भी कार्य कर रहा
है ।
मांट्रियल समझौते के तहत अब सीएफसी गैस के उत्पादन और उत्सर्जन पर रोक लग गई है क्योंकि यह ओजोन को नुकसान पहुंचाने के लिए कार्बनडाईआक्साइड से २०,००० गुना अधिक गरम होती है । वास्तविकता तो यह भी है कि परमाणु इंर्धन चक्र के प्रत्येक चरण जैसे खनन व पीसने, परमाणु रिएक्टर व कूलिंग टॉवर का निर्माण, यूरेनियम का २० से ४० वर्ष की जीवन अवधि की समािप्त् पर, अत्यधिक रेडियोधर्मीरिएक्टर को डी-कमीशन करने में रोबोटों की सहायता, परिवहन एवं बड़ी मात्रा में रेडियोधर्मी अपशिष्ट के भंडारण में अत्यधिक जीवाश्म ऊर्जा की आवश्यकता पड़ती है परमाणु उद्योग के इस प्रचार कि यह ऊर्जा पर्यावरण अनुकूल और साफ-सुथरी है, के विरोध मेंयही कहा जा सकता है कि दोनों की बातें महज भ्रामक प्रचार ही हैं । परमाणु रिएक्टर प्रतिवर्ष पानी एवं वायु में करोड़ों रेडियोधर्मी समस्थानिक के सूक्ष्म कण छोड़ते हैं । इनका वायुमंडल में प्रवाह पूर्णतया अनियंत्रित है क्योंकि परमाणु उद्योग की निगाह में ये विशिष्ट रेडियोधर्मी तथ्व जैविक रूप से नगण्य है । जबकि वास्तव में ऐसा नहीं है । आयोडीन १३१ सेल्लाफील्ड (ब्रिटेन), चेरनोबिल (रूस) और थ्री माईल आईलेण्ड (अमेरिका) से परमाणु दुर्घटना के दौरान निकला था । यह ६ हफ्तोंतक रेडियोधर्मी बना रहा और दूध एवं सब्जियों के माध्यम से मानव शरीर के फेफड़ों व अंतड़ियों में पैठ कर गया और अंत में इससे गर्दन में स्थित थायराईड का कैंसर विकसित हुआ ।
चेरनोबेल के निकट बेलारूस में सन् १९८६ से २००० के मध्य आठ हजार से अधिक बच्चें, किशोरों और वयस्कों में थायराईड कैंसर पाया गया । ऐसी मिसाल चिकत्सा इतिहास में अन्यत्र नहीं मिलती । वहीं स्ट्रोंटियम - ९० की आयु भी ६०० वर्ष है और यह गाय एवं बकरी के दूध के माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर स्तन, हड्डीऔर खून का कैंसर पैदा कर सकता है । केईसियम १३७ की आयु भी ६०० वर्ष है और यह जानवरों के मांस में प्रवेश कर जाता है । इसके माध्यम से मानव शरीर में प्रवेश कर यह सरकोमा नामक मांसपेशियों का कैंसर उत्पन्न करता है ।
प्लूटोनियम २३९ का जीवन ढाई लाख वर्ष का है । यह दुनिया का सर्वाधिक जहरीला पदार्थ है । इसके एक ग्राम के १० लाखवें हिस्से से भी कम से कैंसर हो सकता है । यह हड्डी और यकृत में लोहे की तरह जम जाता है और कैंसर को जन्म देता है । इसके माध्यम से आनुवांशिक बीमारियां हो सकती है, जिससे कि भावी पीढ़ी तक प्रभावित होगी । इसके अलावा क्रिस्टोन, झेनोन, आरगन व ट्रिटियम गैसों से भी आनुवांशिक बीमारियां हो सकती हैं ।
विश्व के ४३८ परमाणु संयंत्रों से निकलने वाले रेडियोधर्मी कचरे को लेकर सारा विश्व परेशान है ।१००० मेगावाट का परमाणु संयंत्र प्रतिवर्ष ३३ टन रेडियोधर्मी कचरा पैदा करता है । अमेरिका के १०२ परमाणु संयंत्रों की छत पर स्थित कूलिंग संयंत्रोंमें ८०,००० टन अत्यधिक रेडियोधर्मी कचरा पड़ा है । इसे ठिकाने लगाने के लिए अभी तक भंडारण हेतु स्थान ही नहीं मिल पाया है ।
लम्बे समय तक रेडियोधर्मी कचरे को रखना भी अपने आप में एक समस्या है । १९८७ में अमेरिकी संसद ने लासवेगास से १५० कि.मी.उत्तर पश्चिम में नेवेदा में स्थित युक्का पर्वत को इस कचरे के भंडारण के लिए चुना था । परंतु अपने ज्वालामुखी स्वभाव व भूकंप अनुकूल भौगोलिक स्थिति के कारण इस स्थान को भंडारण के उपयुक्त नहीं पाया गया । आतंकवादी हमलों के अंदेशे ने भी अब इसके भंडारण में जोखिम बढ़ा दी है ।
रेडिएशन के संपर्क मेंआने के ५ से ६० वर्ष की अवधि के भीतर कभी भी कैंसर हो सकता है । इसका सर्वाधिक प्रभाव बच्चें, वृद्धों और उन व्यक्तियों पर पड़ता है जिनकी प्रतिरोधक शक्ति का पहले ही हृास हो चुका हो । परमाणु ऊर्जा स्पष्टया जहरीली विरासत छोड़कर जाती है । यह वातावरण को गरम करने वाली गैसों को उत्पन्न करती है, साथ ही यह विद्युत उत्पादन के किसी भी अन्य प्रकार का स्वरूप से अधिक खर्चीली है तथा यह कभी भी परमाणु हथियारों को बढ़ावा दे सकती है ।
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