देश में ८२ पक्षी प्रजातियों पर विलुिप्त् का खतरा
बड़े पैमाने पर हो रही जंगलों की कटाई, बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप और शिकार के चलते भारत में पक्षियों की ८२ प्रजातियां विलुप्त् होने के कगार पर हैं । देश ही नहीं बल्कि अंतराष्ट्रीय स्तर के संगठन और पक्षी विज्ञानी भी प्रकृति के इन डाकियोंकी कम होती संख्या को लेकर चिंतित हैं । विलुप्त्प्राय जीव जंतुआें को लेकर काम करने वाले अंतरर्राष्ट्रीय संरक्षण संघ आइ्रयूसीएन : को रेड लिस्ट के मुताबिक भारत मेंपक्षियों की १२२८ प्रजातियां पाई जाती हैं जिनमें से लगभग ८२ विलुप्त् होने के कगार पर हैं । इस सूची में कहा गया है कि सफेद सिर वाली बतख, ऑक्सीउरा, ल्यूसेफाला:, कैरिना स्कलचुलाटा, गे्रेट इंडियन बस्टर्ड, बंगाल फ्लोरिकन, लेजर फ्लोरिकन तथा गिद्ध प्रजातियों एजीपियस मोनाचुस,जिप्स बेंगालेंसिज, जिप्स इंडिकस, जैसे पक्षियों की बहुत सी प्रजातियों को आज अपने अस्तित्व के लिए जूझना पड़ रहा है । इनमें से बहुत से पक्षी तो अब देखने को भी नहीं मिलते जिससे पारिस्थितिकी असंतुलन का खतरा है । आईयूसीएन के अनुसार इन पक्षियों के विलुप्त् होने का कारण जहां जंगलों की तेजी से हो रही कटाई है, वहीं शिकार ओर प्राकृतिक आवासों में बढ़ता मानवीय हस्तक्षेप भी इन्हें मौत की नींद सुलाने का काम कर रहा है । साइबेरियाई सारस, जेर्डन्स कासेर्सर, फॉरेस्ट ऑलेट, ओरियंटल स्टोर्क ग्रेटर एडयूटेंट प्रजाति के पक्षी भी धीरे-धीरे विलुप्त् होते जा रहे हैं। पक्षी विज्ञानियों का कहना है कि आज जिस तरह से पक्षियों का सफाया हो रहा है, उसे देखते हुए कहा जा सकता है कि पारिस्थितिकी डगमगाने की आरे है जिसका मानव जीवन पर असर पड़ेगा । गिद्धों की मौत को लेकर अध्ययन करने वाले एचके प्रसाद का कहना है कि पशुआें के शवों को ठिकाने लगाने वाला यह पक्षी तेजी से विलुप्त् हो रहा है । इस पक्षी की मौत के लिए पशुआें को लगाया जाने वाला दर्द निवारक इंजेक्शन जिम्मेदार है जिसकी दवा पशुआें की मांसपेशियों में जमा हो जाती है ओर पशु के मरने पर जब गिद्ध उसे खातेहै तो यह दवा गिद्धों के शरीर में भी पहुंच जाती है । इस दवा के चलते गिद्धोंकी शारीरिक प्रणाली धीरे-धीरे काम करना बंद कर देती है और वे अकाल मौत मर जाते हैं । खेतोंमे इस्तेमाल किए जाने वाले कीटनाशकों के चलते राष्ट्रीय पक्षी मोर के अस्तित्व पर भी संकट पैदा हो गया है । ***
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