शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

बाल जगत

पेड़ोंे से बनते हैं जीवित पुल
(कार्यालय संवाददाता द्बारा)

पेड़ हमेशा से हमारे मित्र रहे हैं । इनका इस्तेमाल हम कई रूपों में करते हैं, लेकिन मेघालय के चेरापूंजी में पेड़ों का अनोखा प्रयोग किया जाता है । यहां पाए जाने वाले रबर ट्री की जड़ों से स्थानीय लोग नदी के ऊपर ऐसा मजबूत पुल बना देते हैं कि उस पर से एक साथ ५० लोग गुजर सकते हैं । इन्हें जीवित पुल कहते हैं ।
शहरों में ओवरब्रिज जरूर पत्थर, सीमेंट और कांक्रीट से बनाए जाते हैं। इनको बनाने में करोड़ों रूपये का खर्च आता है, लेकिन क्या आपने कभी किसी जीवित पुल के बारे में सुना है ? पेड़-पौधों में भी जीवन होता है तो अगर किसी पेड़ को काटे बिना उससे पुल बना दिया जाए तो उस पुल को ही जीवित पुल या प्राकृतिक पुल कहेंगे ।
हमारे देश के मेघालय राज्य में कई जीवित पुल हैं । इस राज्य के चेरापूंजी मेंतो जीवित पुलों की भरमार है । चेरापूंजी वही जगह है, जहां बहुत बारिश होती है । इस क्षेत्र में रबर ट्री नामक एक वृक्ष पाया जाता है, जिसका वानस्पतिक नाम फाइकस इलास्टिका होता है । यह बनयान ट्री यानी वटवृक्ष जैसा होता है । जिसकी शाखाएं जमीन को छूकर नई जड़ बना लेती हैं । इसी तरह इस पेड़ की अतिरिक्त जडें अलग दिशा में बढ़ सकती हैं । मेघालय में खासी जनजाति के लोग रहते हैं । ये लोग सैकड़ों साल में रबर ट्री की सहायता से कई जीवित पुल बना चुके हैं । दरअसल यहां पहाड़ों से अनेक छोटी-छोटी नदियां बहती हैं । इस नदियों के एक किनारे से दूसरे किनारे तक जाने के लिए जीवित पुल का ही उपयोग किया जाता है, जिन्हें यहां के लोग बनाते हैं । यहां की भाषा में इन पुलों को जिंग केंग इरो कहते हैं ।
जीवित पुल बनाने के लिए नदी के एक किनारे के पेड़ों की जड़ों को नदी के दुसरे किनारे की दिशा में बढ़ाने के प्रयास किए जाते हैं । ऐसा करने के लिए लोग सुपारी के पेड़ के खोखले तनोंका उपयोग करते हैं । तनों की सहायता से पहले पेड़ की जड़ को नदी के दूसरे तट तक ले जाया जाता है । जब जड़ वहां जमीन को जकड़ लेती है, तब उसे वापस पेड़ की ओर लाते हैं । इस तरह कई पेड़ों की जड़ें मिलकर एक पुल का निर्माण करती है । सुरक्षा के लिए इन पुलोंके नीचे की ओर पत्थर बिछाकर उपयुक्त रास्ता बना दिया जाता है और दोनोंओर लोहे या किसी अन्य प्रकार की जाली लगा दी जाती है ।
मेघालय में आर्द्रता यानी नमी अधिक होती है, जिस कारण यहां पेड़ों की जड़ें जल्दी बढ़ती है, लेकिन इनके बनने में५० से ६० साल या इससे भी ज्यादा का समय लग जाता है । इतनी लंबी अवधि में पेड़ की जड़ें मजबूत होती रहती हैं । उसके बाद जीवित पुल सैकड़ों वर्षोंा तक काम में आते हैं । हैरानी की बात यह है कि इस पुल पर एक बार में लगभग ५० लोग चल सकते हैं ।
चेरापूंजी में टिम्बर (पेड़ों को काटकर प्राप्त् लट्ठे) द्वारा बनाए पुल अधिक दिन तक नहीं चल सकते । वहां इतनी ज्यादा बारिश होती है कि पुल जल्द ही गलने लगते हैं, लेकिन इस प्रकार के प्राकृतिक पुल नहीं गलते । वहां कुछ पुल तो पांच शताब्दी पुराने भी हैं । पुल बनाने वाले पेड़ों की जड़ों को इस तरह से दिशा देते हैं कि वो एक दूसरे से उलझकर आगे बढ़े और पुल को मजबूती मिले । ऐसे ही एक प्राकृतिक पुल का नाम इबल-डेकर पुल है । इस पुल की विशेषता यह है कि एक बार पुल बनने के बाद उसकी जड़ों को ऊपर की ओर दोबारा मोड़कर दुसरा पुल भी बनाया गया था । विश्व में यह अपनी तरह का एकमात्र पुल है । ***

1 टिप्पणी:

http://kavyalya.aimoo.com ने कहा…

nice sharing
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