शुक्रवार, 21 जनवरी 2011

विशेष लेख

पर्यावरण संरक्षण और मानव विकास
एस.के.तिवारी

पर्यावरण के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाते हुए भारत ने अब तक अन्तराष्ट्रीय व्हेल नियम समझौता, जैव-विविधता संरक्षण समझौता, अंतराष्ट्रीय पादप संरक्षण समझौता, ओजोन परत को क्षीण करने वाले पदार्थोंा के बारे में मान्ट्रियल करार एवं मरूभूमि विस्तार नियंत्रण के लिए अंतराष्ट्रीय समझौता, अंटार्कटिका संधि जैसे विभिन्न करारों पर हस्ताक्षर किए हैं ।
पर्यावरण मनुष्य के शारीरिक, सामाजिक तथा आर्थिक विकास का महत्त्वपूर्ण पहलू है । आस-पास के इस महत्त्वपूर्ण पहलू की उपेक्षा का ही परिणाम है कि पर्यावरण की सुरक्षा आज विश्व के लिए चुनौती बनी हुई है ।
आज सम्पूर्ण मानव समाज तथा उसके सहयोगी जीव-जंतुआें, पेड़-पौधों, वायुमण्डल, खाद्यान्नों सभी क्षेत्रों में पर्यावरण का संकट व्याप्त् है । इस संकट का कारण भी मानव समाज है तथा परिणाम भी उन्हें ही भुगतने होंगे ।
जनसंख्या वृद्धि, गरीबी, बिगड़ती परिवहन व्यवस्था वनों की कटाई पर्यावरण के विनाश का प्रमुख कारण बने हुए हैं । आज
पर्यावरण के बिगड़ते हालात से सभी देश चिंतित हैं । स्थानीय, राष्ट्रीय तथा अन्तराष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलनों, गोष्ठियों, सेमिनारों तथा कार्यशालाआें के माध्यम से पर्यावरण की सुरक्षा पर विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। पृथ्वी सम्मेलन, जलवायु सम्मेलन, दिल्ली सम्मेलन सहित दर्जनों अंतराष्ट्रीय सम्मेलनों में इस पर घोर चिंता व्यक्त की गई है ।
आज विश्व की बेलगाम बढ़ती जनसंख्या पर्यावरण पर बहुआयामी असर होता है । संसार की सारी क्रियाएँ मानव के लिए ही होती हैं । खाद्यान्न आपूर्ति के लिए खेतों में बेतरतीब ढंग से खाद तथा कीटनाशकों का प्रयोग किया जाता है जो एक साथ जल तथा वायु प्रदूषित करने के साथ खाद्यान्नों, फलों-सब्जियों के सहारे मानव जीवन में जहर घोलते हैं । साथ ही कृषि के लिए उपयोगी कीड़े-मकोड़ों को भी मार डालते हैं । जलावन तथा फर्नीचरों के लिए धडल्ले से वनों की कटाई की जा रही है । इतना ही नहीं जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव कृषि-योग्य भूमि को कम करने पर भी पड़ रहा है । विकास के लम्बे-चौड़े दावों के बावजूद आज भी विश्व की करीब ८ अरब जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा गरीबी तथा कुपोषण का शिकार है । इसके बावजूद जनसंख्या वृद्धि की प्रवृति जारी है जो पर्यावरण को बिगाड़ने में अहम भूमिका अदा करती हैं ।
जहाँ तक पीने के पानी का प्रश्न है, वह प्रत्यक्षत: मानव के स्वास्थ्य एवं जीवनचर्चा से जुड़ा है । मानव, समाज, जीव- जन्तु तथा पेड़-पौधों के जीवन की रक्षा हेतु
नि:शुल्क प्रदत्त जल स्रोतों तथा नदियों में भी भारी प्रदूषण जारी है । औद्योगिक विकास का नकारात्मक पहलू नदियों की दुर्दशा के रूप में देखा जा सकता है । अधिकांश औद्योगिक इकाइयों को नदियों के किनारे स्थापित कर उसके स्वच्छ जल में गंदा तथा जहरीला प्रदूषित जल छोड़ जाता है । इस प्रदूषित जल के कारण जल प्राणी संकट में पड़ गए हैं । नदियों के आस-पास के गांवोंमें जल प्रदूषण के अलावा वायु-प्रदूषण, मच्छर-मक्खियों के भयानक प्रकोप आदि के चलते विभिन्न प्रकार की बीमारियोंका भी प्रकोप बढ़ता जा रहा है । विशेषज्ञों का अनुमान हैं कि दुनिया के तथा साथ ही भारत के भी अधिकांश जलस्रोत प्रदूषित हो चुके हैं।
पर्यावरणविदों का मानना है कि पर्यावरण को असंतुलित करने में ५०प्रतिशत वायु प्रदूषण जिम्मेदार है जो वायुमण्डल में विभिन्न कल-कारखानों से निकलने वाले धुएँ, गैस,धूल कण तथा जलावन, कोयला पदार्थोंा से वायुमण्डल को प्रदूषित करता है । कभी-कभी जंगलों में लगने वाली आग भी बड़े पैमाने पर प्रदूषण पैदा करतीे हैं । वायुमण्डल में इस प्रदूषण से कार्बन- डाई - ऑक्साइड, कार्बन-मोनो-ऑक्साइड, सल्फर-डाई-ऑक्साइड, हाइड्रोजन, सल्फाइड, नाइट्रस ऑक्साइड, सल्फर-डाई -ऑक्साइड इत्यादि गैस वायुमण्डल में प्रवेश करते हैं तथा इन गैसों में निरंतर वृद्धि होती जा रही है और इसके परिणामस्वरूप पृथ्वी का तापक्रम बढ़ता जा रहा है और दबाव समुद्रतल पर बढ़ रहा है । धातु प्रदूषण भी विभिन्न प्रकार के उद्योगोंका ही परिणाम है जो पर्यावरण में सीधा जहर घोल रहा है । रासायनिक गैस, सीसा, जींक, डिस्टीलरी पारा, क्रोमियम, आर्सेनिक, कैडमियम, आयुध, एस्बेस्टस से संबंधित औद्योगिक इकाइयाँ धातु-प्रदूषण फैलाकर पर्यावरण के संतुलन को तीव्र गति से बिगाड़ रही है ।
ध्वनि प्रदूषण की समस्या सम्पूर्ण विश्व खासकर भारत में विकराल रूप धारण किए हैं । इस प्रदूषण से अनिद्रा, हृदय रोग,मस्तिष्क रोग, अंधापन, चिड़चिड़ापन, श्रवणदोष जैसी अनेक बीमारियों का प्रकोप झेलने को मानव समाज विवश है । विशेषज्ञों तथा पर्यावरणविदों द्वारा लगातार सचेत किए जाने के बावजूद भी हम पर्यावरण की रक्षा के प्रति उदासीन है । इसी का परिणाम है कि भारत के मुम्बई, दिल्ली, चेन्नई तथा दूसरे देशों जैसे स्वीडन, चेकोस्लोवाकिया, हालैण्ड, फिनलैण्ड सहित कई स्थानों पर अम्लीय वर्षा हो चुकी है और धीरे-धीरे इसका विस्तार हो रहा है ।
जहाँ तक पर्यावरण की सुरक्षा की बात है, इसमें वनों तथा पेड़-पौधों का विशेष महत्त्व है । वन, मानव तथा जीव-जन्तुआें की सुरक्षा में प्रमुख भूमिका निभाते हैं । वनों से एक ओर जहाँ कार्बन-डाई-ऑक्साइड का खतरा घटता है वहीं दूसरी ओर मनुष्य को ऑक्सीजन प्राप्त् होती है । वन आस-पास की जलवायु को नम बनाकर बादलों को आकृष्ट करते हैंजिससे बाढ़ नियंत्रण तथा आंधी-तूफान से जान-माल की तबाही रूकती है । भारत में वनों की अंधाधुध कटाई और वन भूमि का इतर उपयोग रोकने के लिए वन संरक्षण अधिनियम, १९८० बनाया गया
था । वैसे जल, जलजीव, वायु प्रदूषण की रक्षा के लिए भी ३० अधिनियम बनाए गए हैं ।
पर्यावरण के क्षेत्र में अग्रणी भूमिका निभाते हुए भारत ने अब तक अन्तराष्ट्रीय व्हेल नियम समझौता, जैव-विविधता संरक्षण समझौता, अंतराष्ट्रीय पादप संरक्षण समझौता, ओजोन परत को क्षीण करने वाले पदार्थोंा के बारे में मान्ट्रियल करार एवं मरूभूमि विस्तार नियंत्रण के लिए अंतराष्ट्रीय समझौता, अंटार्कटिका संधि जैसे विभिन्न करारों पर हस्ताक्षर किए हैं । इस प्रकार अंतराष्ट्रीय स्तर पर किए जाने वाले समझौतों तथा राष्ट्रीय स्तर पर किए जोन वाले निर्णयों तथा कार्यक्रमोंके व्यापक प्रचार-प्रसार में मीडिया की मुख्य भूमिका अवश्य रही है परन्तु अभी भी इसे जन-जन तक ले जाना आवश्यक है ।
***

कोई टिप्पणी नहीं: