गुरुवार, 24 मार्च 2011

विशेष लेख


ग्रामीण पर्यावरण और पर्यटन विकास
डॉ.सुनील कुमार अग्रवाल

गाँवों के विकास मे जल स्त्रोत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं तथा गावों के चारों ओर बाग बगीचे पाये जाते हैं । यद्यपि समय के परिवर्तन के साथ गावों की मूल संरचना में भी परिवर्तन हुए हैं किन्तु हमारी मूल संस्कृति को आज भी गाँव ही संजोये हुए हैं ।
ग्रामीण अंचल मेंपुरातन जीवन शैली आज भी हमारे और प्रकृति के अर्न्तसम्बन्धों का परिपाक करती हैं । किन्तु अब प्रौद्योगिकी के युग में लोकायित शैली भी यांत्रिक होती जा रही है । हस्त कौशल, हस्त शिल्प आदि को संरक्षित करना वक्त की जरूरत है । कृषि उत्पादोंसे निर्मित तरह-तरह की टोकरियों, मिट्टी के बर्तन, खिलौने आदि आज भी हमारे मन को लुभाते हैं । तीज त्यौहारों पर लोक नृत्य एवं लोक गीत गायन आयोजित होते हैं । ढोलक की थाप पर लोग थिरकते हैं । आज भी शुभ कार्य ढोलक के बिना अधूरे हैं ।
गाँव में प्रकृतिपरिवर्तन की दृश्यावलियाँ स्पष्ट दिखलाई देती है । हमारी संस्कृति किसी न किसी पर्व के प्रयोजन से जुड़ी रहती है । सूर्य उत्सव मनुष्य की प्रकृति के प्रति कृतज्ञता को अनुज्ञापित करते हैं। सामाजिक सरोकारों को जागृत करते हैं और निरंतर गतिशील रहने का मर्म भी देते हैं । गाँव की गोधुलि वेला को कौन भूल सकता है । सूर्योदय एवं सूर्यास्त के दृश्य नेत्रों में कैद हो जाते हैं । मन को बड़े लुभाते हैं ।
कहा जाता है भारत माता ग्राम्य वासिनी । भारत की पहचान हमारे गाँवों से है । ग्रामीण परिवेश से आशय मानवीय बस्तियों से है जिनके निवासी अपने जीवन यापन के लिए भूमि के विदोहन पर निर्भर करते हैं। ग्राम वासियों का मुख्य कार्य खेती करना, पशुपालन करना, मछलियाँ पकड़ना, वनोपज प्राप्त् करना तथा पेड़ों की लकड़ियों टहनियाँ काटना आदि होता है । कृषि कार्योंा की जानकारी रखने वाले खेतिहर मजदूर भी इन ग्रामीण बस्तियों में रहते हैं ।
प्रोफेसर ब्लाश के अनुसार - ग्रामीण बस्तियाँएक ही आवश्यकता की
व्यंजना है, यद्यपि इनके रूप भिन्न भिन्न हैं । यह भिन्नता जलवायु के भेदों और सामाजिक विकास के विभिन्न सोपान के कारण होती है । यह आवश्यक कृषि क्रिया को किसी एक स्थान पर केन्द्रीभूत करना
है । सब कृषकों के लाभ के लिए सहयोगी कार्यक्रम बनाया जाता है जिसके अनुसार कृषि पंचांग की तिथियाँऔर अन्य कार्योंा का समय निश्चित किया जाता है । जल के सहयोजन और नियंत्रण के लिए सहयोग, कुआें या तालाबों को खोदना, सार्वजनिक निर्माण के कार्योंा की सुरक्षा और फसलों के लिए अनुकूल वातावरण की तैयार - ये सब बातें सामूहीकरण के रूप हैं ।
सत्य ही, समूहन हमारी सभ्यता के विकास का अहम हिस्सा है । सभ्यता के विकास के साथ गांव के उत्थान के अनेक कार्यक्रम चलाए गए हैं। यद्यपि गांवों की अवधारणा कृषि कार्य से होती है तथापि गांवों का वर्गीकरण भू-आकृतितथा विहित कर्म के आधार पर ही किया गया है । कहीं मछुआें के गांव हैं तो कही औद्योगिक इकाइयों के समीप औद्योगिक गाँव हैं । कहीं खानों के निकट खनन गाँव हैं तो कहीं घाटियों के निकट घाटियों के गाँव हैं । पहाड़ियांे पर पहाड़ी गाँव हैं । अब तो खेल गाँव और रेल गाँव और कौन जाने कितनी तरह के गाँवों की अवधारणा अस्तित्वमान है । गाँवों का जैसा स्वरूप एवं विकास भारत में है वैसा अन्यत्र कहीं नहीं है । यही कारण है कि विदेशी मेहमान भी भारतीय ग्रामीण-जीवन से रू-ब-रू होना चाहते हैं । यही बात ग्रामीण पर्यटन का आधार सिद्ध हो रही है ।
भारतीय गाँव प्रागेतिहासिक हैं जो हमारी संस्कृतिका मूलाधार हैं । गाँव भी भारतीय लोक संस्कृति के वाहक तथा संरक्षक हैं। महात्मा गाँधी ने कहा था - यदि गाँव की प्राचीन सभ्यता नष्ट हो गई तो देश भी अन्तत: नष्ट हो जायेगा । गाँव आत्मनिर्भर ही नहीं होते वरन् वह शहरों का भी पेट भरते हैं । गाँवों में स्थानीय रूप से प्राप्त् सामग्रीका उपयोग किया जाता है । घर भी कच्च्े होते हैं । जो इंर्ट मिट्टी बॉस पुआल तथा घास फूस से बने होते हैं । पर्णकुटियाँ वृक्ष लताआें से घिरी होती हैं । गाँव की चौपाल सदैव चर्चित रहती है । गाँव में आपसी मेलजोल एवं सद्भाव अधिक होता है । गाँव में श्रम विभाजन द्वारा सभी लोग सद्भाव से कार्य करते हैं । यह अच्छा संकेत है किन्तु सार्थक एवं प्रकृति परक मिथकोंको जिन्दा भी रखना होगा ।
गाँवोंें के विषय में यह बात भी महत्वपूर्ण है कि गाँवों का आकार स्थाई एवं समान नहीं होता क्योंकि गाँव में कृषि जोत के घटने-बढ़ने, जनसंख्या का घनत्व कम या अधिक होने, तथा कृषि तकनीक में बदलाव के कारण रूपान्तरण होता रहता
है । गाँव का अपना परिचय तथा अपनी विशिष्टता होती है । गाँव की दृश्य भूमि एवं कृष्य भूमि का ग्रामीणों पर पूर्ण प्रभाव होता है । गाँव में अपनापन होता है । मानव स्वभाव से ही समूहन चाहता है यही हमारी परम्पराआें को पोषित करता है । गाँवों की अवधारणा एवं स्थापना से मानव को अपनी यायावरी से आराम मिला घुमक्कड़ी प्रवृत्ति को विराम मिला ।
भारत में ऋतु दशाआें तथा पारम्परिक विधाआें के अनुसार कृषि की प्रधानता है । हमारे अन्नदाता किसान दिन रात मेहनत करते हैं जिससे अन्नपूर्णा धरती हमारा पोषण करती है अत: गाँव हमारी संस्कृति का अभिन्न हिस्सा हैं ।
घुमक्कड़ी पर्यटन एवं आतिथ्य संस्कृति से तो हम चिर परिचित हैं । अब ईको टूरिज्म (पर्यावरण पर्यटन) की अवधारणा चर्चा में आई है । अन्तर्राष्ट्रीय पर्यटन सोसाइटी ने सन् १९९० में पर्यावरण पर्यटन की परिभाषा दी थी यदि पर्यटन उद्देश्यपूर्ण हो तथा उसके द्वारा पर्यावरण संरक्षण एवं जागरूकता को बल मिलता हो और जो स्थानीय निवासियों के जीवन स्तर को सुधारने में सहायक हो वह सराहनीय है और प्रोत्साहन योग्य है । इससे सकारात्मक विचारों का आदान प्रदान होता है । क्षेत्र विशेष की समस्याएं दूर करने में मदद मिलती है तथा जैव विविधता के संरक्षण की भी सुध ली जाती है । ईको टूरिज्म से न केवल प्राकृतिक पर्यावरण का विकास होता है वरन संस्कृति का भी उत्थान होता है तथा लोककलाआें को प्रोत्साहन मिलता है ।
हमारी सरकारें पर्यावरण पर्यटन को आधार बनाकर ग्रामीण क्षेत्रों का विकास करने हेतु आगे कदम बढ़ा रही हैं । हमारी ग्राम्य संस्कृति से रू-ब-रू होकर विदेशी मेहमान आकर्षित होते हैं और भारतीय संस्कृति की भूरी-भूरी प्रशंसा करते हैं । ग्रामीण परिधान और पहनावा खान-पान, फसल-समिधान आदि देखकर आश्चर्य करते हैं कि भारत अनेकता में एकता को समेटे है । ग्रामीण पर्वोत्सव परम्पराएं भी पर्यटकांे को बहुत लुभाती हैं अत: ग्रामीण पर्यावरण में पर्यटन की अपार संभावनाएं
है ं।
शहरी ऊबाऊ जीवन से ऊब कर लोग ग्रामीण परिवेश मे आना चाहते हैं । आजकल फार्म हाऊस बनाने का प्रचलन बढ़ा है । समृद्धिशाली लोग गाँव में विकास की बयार लाना चाहते हैं । यदि हम इस प्रवृत्ति को इस ढंग से लागू करने में कामयाब हो गये कि गाँव अपसंस्कृतिकी बुराई से बचें रहें तो बड़ी उपलब्धि होगी । क्योंकि शहरी संस्कृति से सुशिक्षित लोग गाँव आएेंगे तो पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ेगी । पर्यटन संरक्षण नीति को भी प्रोत्साहन मिलेगा । गाँवों में सुविधाएं बढ़ेंगी तो गाँव से शहरों की ओर पलायन निश्चित रूप से रूकेगा। पर्यटन को बढ़ावा देते समय इस बात का विशेष घ्यान रखना होगा कि हमारी ग्राम्या संस्कृति को कोई भी बुराई घेरने न पाये । सभी काम मर्यादित आचरण से हों।
दलअसल फार्म हाउस के निर्माण की प्रक्रिया काफी पहले शुरू हो गई थी । महानगरीय जीवन की आपाधापी से
बचने के लिए आर्थिक रूप से समृद्ध लोगोंने अपने नगर के आसपास ग्रामीण क्षेत्रोंमें जमीन खरीद कर उस पर फार्म हाउस बनवाये और बागवानी विकसित की ताकि वहां रहकर कुछ दिन सुकून से बिता सकें और पुन: ऊर्जावान हुआ जा सके । शहरी संघर्षपूर्ण जीवन से कुछ तो मोहलत मिले । गाँवों में कृषि के साथ-साथ ग्रामीण परिधान, खानपान तथा लोक कलाएँ पर्यटकों को भी लुभाती हैं । प्रकृतिके नजारों को नजदीक से देखते हुए शांति का अनुभव होता है ।
भारतीय संदर्भ में जैसा कि पहले भी कहा है कि हमारी सरकारें एग्रो टूरिज्म को बढ़ावा दे रही है । कुछ मॉडल गाँव चुनकर उन्हें पर्यटन हेतु विकसित किया जा रहा है । पर्यटन मंत्रालय ने संयुक्त राष्ट्र विकास परियोजना (यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोजेक्ट) की सहभागिता से समेकित पर्यटन परियोजना शुरू की । इसके तहत जिलाधिकारियोंको निर्देशित किया गया है कि वे सरकारी एवं गैर सरकारी संगठनों की सहायता से स्थानीय शिल्पकला विकसित करें तथा प्राकृतिक संसाधनों का परिवर्धन करें । अब तो विदेशी पर्यटकों को भी हमारे गाँव लुभाने लगे हैं और हम इससे विदेशी मुद्रा पाने लगे हैं । राज्य सरकारे इसको प्राथमिकता दे रही हैं ।
अब गाँवों को ऐसे टिकाऊ विकास की दरकार है जिससे गाँव का आदमी गाँव में ही अपना भविष्य संवारे । गाँव में पर्यटन के विकास की अपार संभावनाएं हैं । गाँव की विशिष्ट भौगोलिक स्थिति एवं प्राकृतिक दशा आकर्षित करती है । हस्तशिल्प को भी प्रोत्साहन मिलता है । ग्रामीण धरोहर को पर्यटन विकास के साथ और अधिक सुरूचिपूर्ण बनाया जा सकता है ।
ग्रामीण पर्यटन विकास में इस बात पर विशेष ध्यान देना होगा कि गाँव की मूल संस्कृति से छेड़छाड़ न हो । आधुनिक सुविधाएं मिले किन्तु ग्रामीण संस्कारों की आत्मा न मरने पाये । सावधान भी रहना होगा कि कहीं गाँवों का ही शहरीकरण न हो जाये और कंक्रीट के जंगल खड़े न हो क्योंकि यह स्थिति तो और भी अधिक घातक सिद्ध होगी । ग्रामीण पर्यावरण में पर्यटन विकास का उद्देश्य घरेलू पर्यटन से गाँव को सीधा बाजार मिलेगा ।
गाँव मे जब ग्रामीण सुविधाएं मिलेंगी तो पर्यटक को नया अंदाज मिलेगा। प्रकृतिके बीच में उसका अन्तर्मन भी खिलते हुए कमल सा खिल उठेगा । और वह यह बात समझेगा कि सच्च सुख साधनों के जखीरे में नहीं वरन प्रकृति के बीच मिलता है । पर्यटन विकास में गाँव की सीधी भागीदारी हो अपने तालाब, अपने बाग- बागान, अपने उद्यान, अपने वन, विकसित हों । गाँव आबाद हों सबमें संवाद हो । सब सुखी हों सम्पन्न हों और समृद्ध हों ।
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