गुरुवार, 24 मार्च 2011

कविता


परचम हर जगह लहरायेंगे
सुश्री कमला भसीन

देश में गर औरतें अपमानित है, नाशाद है
दिल पे रख कर हाथ कहिये देश क्या आजाद है ।
जिनका पैदा होना ही अपशकुन है नापाक है
औरतों की जिन्दगी ये जिन्दगी क्या खाक है
काम कर कर के मरी है, मान फिर भी है नही
इस नाशुक्रे हिन्दुस्तां मेंऔरत कोई शै नहीं
कहने को इस देश में है देवियां तो बेशुमार
कर नहीं पाई वो लेकिन, औरतों का बेडा पार
पर्दानशीनी से हमको कौन सी इज्जत मिली
पर्दो में घुटती रहीं हम और पर्दो में जलीं
अब बना पर्दो का परचम हर जगह लहरायेंगे
हम यहां इन्सानियत का राज जल्दी लायेंगे
सदियों से हम सह रही हैं और न सह पायेंगी
ठान ली अब लड़ने की गर लड़के ही जी पायेंगी
कर शरारत देख ली लेकिन हुआ कहां फायदा अब शरारत छोड़ कर जीयेंगे हम बाकायदा
जो नहीं ललकारते शोषण को अत्याचार को
लानत है उस देश को उस देश की सरकार को
चुप है लेकिन ये न समझो हम सदा को हारे हैं
राख के नीचे अभी भी जल रहे अंगारे हैं
एक दो होते अगर तो शायद चुप हो बैंठते
देश में आधे मरद तो आधी हम हैं औरतें
नारियों की शक्ति को बिल्कुल न तुम ललकारना
काली माँ का रूप भी आता है हमको धारना
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