जानवरों पर प्रयोग नियंत्रित करने की तैयारी
पिछले दिनों दिल्ली में अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में बंदी बनाए गए जानवरों का मामला प्रकाश में आने के बाद केन्द्र सरकार एक कानून बनाने की तैयारी मेंहै । इसके तहत जानवरोंपर संस्थान का व्यक्तिगत रूप से किए जाने वाले प्रयोगों को नियंत्रित किया जाएगा । पिछले दिनों हॉलीवुड अभिनेत्री पामेला एंडरसन ने एम्स में प्रयोग के लिए बंद जानवरों को छोड़ने के लिए पत्र लिखा था ।
प्रस्तावित एनिमल वेल्फेयर एक्ट २०११ के लिए एक कमेटी बनाई गई है । इसका उद्देश्य जानवरों पर संस्थानों और व्यक्तिगत रूप से किए जाने वाले प्रयोग पर निंयत्रण और निगाह रखना है । कमेटी को जानवरों पर प्रयोग के दौरान अनावश्यक चोट और दर्द न हो ऐसे उपाय खोजने के निर्देश दिए गए हैं । कमेटी में सेंट्रल जू प्राधिकरण भारतीय पशु चिकित्सा काउंसिल तथा पशु कल्याण संस्थान के प्रतिनिधि, अधिकारी व गैर-अधिकारी शामिल हैं । संसद में मसौदा बिल पास होने के बाद पशु क्रूरता करते पाए जाने पर सजा के रूप में जेल और भारी जुर्माना लगाया जाएगा । इसके साथ ही कमेटी ने कहा कि संस्थानों को जानवरों पर विभिन्न प्रयोगों की जानकारी और वैकल्पिक उपाय पर किए गए प्रयोगों का रिकार्ड भी रखना होगा । अगर किसी संस्थान में प्रयोग हुआ है तो उसकी जिम्मेदारी उस संस्थान के मुखिया की रहेगी । पामेला ने एम्स में मौजूद बंदर और चूहों पर होने वाले शोध कार्योंा का एक वीडियो देखने के बाद पत्र लिखा था । इसमें एम्स से आग्रह किया है कि बंदरों को अभयारण्य में छोड़ दें । उन्होंने आरोप लगाया था कि पकड़े गए जानवरों पर नई दवाआें के विकास के दौरान प्रयोग किया जाता है ।
दूसरी हरित क्रांति की चुनौतियों
दूसरी हरितक्रांति की घोषणा पर केन्द्र सरकार ने कृषि पैदावार बढ़ाने का प्रयास तो किया है, लेकिन अब उसकी रफ्तार को तेज करने की आवश्यकता उच्च विकास दर प्राप्त् करने और खाद्य सुरक्षा बनाए रखने के लिए कृषि पैदावार में वृद्धि जरूरी है । आगामी आम बजट में कृषि सुधार के कारगर उपायोंको लागू करना सरकार के लिए गंभीर चुनौती होगी । बीते सालों में कृृषि सुधार के कुछ उपाय तो किए गये, लेकिन आधू अधूरे मन से, कृषि क्षेत्र मेंसुधार की सख्त जरूरत महसूस की जा रही है । कृषि विकास की दर ०.४ फीसदी से बढ़कर चालू सीजन में ५.४ फीसदी तक पहुंच गई लेकिन इस दर को बनाए रखने और किसानों की मुश्किलों को घटाने की चुनौती है । पिछले बजट में पैदावार बढ़ाने के लिए पूर्वी राज्यों में दूसरी हरितक्रांति की घोषणा की गई थी । कृषि विकास की मौजूदा दर से सरकार भले ही गदगद हो, लेकिन किसानों के लिए मुश्किलें बनी हुई हैं । इसीलिए माना जा रहा है कि वित्तमंत्री कृषि क्षेत्र में सुधार के कुछ नये व आकर्षक प्रावधान इस बार कर सकते हैं । घाटे में फंसी खेती को लाभ का कारोबार बनाने के कई प्रयास किए गये, लेकिन कृषि विपणन की माकूल व्यवस्था न होने से सारे प्रयास धराशायी हो गये । उच्च विकास दर के लिए कृषि उत्पादकता बढ़ानी ही होगी । राज्यों के कृषि उत्पाद विपणन समिति (एपीएससी) के कानून अलग-अलग हैं। खाद्यान्न के अंतरराज्यीय कारोबार पर कई तरह की बंदिशें, फसलों की खलिहान से सीधी बिक्री पर रोक, मंडी शुल्क, चुंगी शुल्क समेत कई स्थानीय करों के चलते कृषि क्षेत्र बुरी तरह प्रभावित है । संसाधनों के मंहगा होने से कृषि लागत बढ़ रही है । मार्केटिंग की व्यवस्था न होने से किसानों को अनाज सस्ता बेचना पड़ता है । वित्तमंत्री को इसके लिए कुछ करना होगा । गेहूँव चावल को छोड़ बाकी फसलों की आयात निर्भरता लगातार बढ़ रही है । जिसे घटाना वित्तमंत्री की चुनौतियों में शामिल होगा । घरेलू खपत का ५० फीसदी से अधिक खाद्य तेल आयात हो रहा है, जबकि दालों का आयात पिछले एक दशक में बढ़कर ४० से ४५ लाख टन पहुंच गया है । सीमांत वन क्षेत्र के डिजिटल मैप
केंद्र सरकार, प्रदेश के सीमांत और गैर वन क्षेत्रों (फ्रिंज फॉरेस्ट) का अध्ययन कर डिजिटल मैप तैयार कराएगी । योजना के प्रथम चरण में म.प्र. के २८ जिलों में यह अध्ययन किया जाएगा । केंद्रीय वन एवं मंत्रालय के अधीन गठित असिंचित क्षेत्र विकास प्राधिकरण यह अध्ययन करेगा । देशभर में ऐसे २७५ जिले चिह्रित किए गए हैं, जहां सीमांत वन क्षेत्र हैं । इनमें से अधिकांश क्षेत्रों में वन नहीं है, या कम हैं अथवा अविकसित वन क्षेत्र हैं । इन क्षेत्रों के वनों की दृष्टि से विकास के लिए केंद्रीय वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने विस्तृत कार्ययोजना तैयार की है ।
दो चरणों में इसका क्रियान्वयन किया जाएगा । पहले चरण में प्रदेश के २८ जिलों को लिया जा रहा है । हाल ही में केंद्रीय वन एवं पर्यावरण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) जयराम रमेश ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर पहले चरण के क्रियान्वयन के लिए राज्य सरकार से सहयोग मांगा है । राज्य के वन, कृषि उद्यानिकी विभागों के अलावा मृदा एवं जल परीक्षण एजेंसियों को अध्ययन करने आने वाली प्राधिकरण की टीम के साथ स्थानीय स्तर पर जोड़ने के लिए कहा गया है । इन क्षेत्रोंके अध्ययन के बाद इनके डिजिटल मैप तैयार किए जाएंगे ओर विस्तृत वनीकरण के कार्योंा की ऑनलाइन मॉनीटरिंग की जाएगी । इस प्रोजेक्ट की समयावधि दो वर्ष तय की गई है ।
दवाआें पर होगा बार कोड और मोबाइल नंबर
भारत में अब नकली दवाएं बेचना संभव नहीं होगा । मेडिकल स्टोर पर मिल रही दवा असली है या नकली, यह पता लगाने के लिए ग्राहक को किसी अधिकारी के पास जाने की जरूरत भी नहीं होगी । एक आम आदमी भी महज एक एसएमएस से पता लगा पाएगा कि जो दवा वह खा रहा है, वह असली ही है । पिछले दिनों १५ फरवरी को हुई बैठक में ड्रग कंसल्टेटिव कमेटी (डीसीसी) मंजूरी दी जा चुकी है ।अब इस अनुसंसाआें को ड्रग टेक्निकल एडवाइजरी बोर्ड को भेजा
जाएगा । यहां से मामला केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय जाएगा । नकली दवाआें की भारी शिकायतों को देखते हुए सरकार ने इसे मंजूरी देने का मन बना लिया है । अब तक इस तरह की व्यवस्था इटली, मलेशिया और यूरोपियन यूनियन देशों में लागू है ।
दवा के हर पत्ते पर (स्ट्रीप) पर बार कोड ओर यूनिक न्यूमरिक कोड (यूआईडी) होगा । साथ ही मोबाईल नंबर भी दिया जाएगा । क्या असली है या नकली यह जानने के लिए यह यूआईडी नंबर को इस मोबाइल पर एसएमएस करना होगा । उधर से जवाब मिलेगा और दवाई की सच्चाई सामने आ जाएगी ।
यह व्यवस्था लागू होते ही नकली दवाआें का बाजार खत्म हो जाएगा । हर मरीज पूरे विश्वास के साथ दवा ले पाएगा जो सौ फीसदी कारगर होगी ।
विकास के नाम पर पेड़ों की बलि
विकास और विनाश एक-दूसरे के पूरक हैं। ऐसा ही कुछ हो रहा है मध्यप्रदेश में सड़क, घर, पानी बिजली, उद्योग जैसी अहम जरूरतों की पूर्ति के लिए पिछले कुछ सालोंमें काफी काम हुए और इसके लिये लाखों पेड़ों की बलि चढ़ाई गई । सरकारी आंकड़ांे में बीते छह सालों में अकेलेभोपाल में साढ़े छह हजार पेड़ों की बलि विकास के लिए चढ़ चुकी है । जब प्रदेश के विभिन्न जिलों से विकास के नाम पर बलि चढ़े पेड़ोंें की जानकारी वाले आंकड़ों में भोपाल, इंदौर जैसे शहरों में सबसे ज्यादा संख्या में पेड़ों की बलि बीआरटीएस के तहत बन रहे सड़क के कारण चढ़ी है । भोपाल में सिमरोद से बैरागढ़ तक बन रहे २४ किमी लंबे बीआरटीएस कॉरिडोर के लिए २३३३ पेड़ काटे गए हैं । इंदौर में भी करीब ढाई से तीन हजार पेड़ों की बलि बड़े मार्गोंा के निर्माण में चढ़ाई गई है । कई मर्तबा पेड़ों की बलि का मामला न्यायालय तक पहुंचा तो कहा गया कि जितने पेड़ काटे गये हैं, उतने ही किसी ओर स्थान पर लगाओ । इन आदेशों की कागजी खानापूर्ति तो कर दी जाती है, लेकिन जहां पौधरोपण होता है, वहां कोई देखने नहीं जाता कि क्या हो रहा है । हाईकोर्ट ने एक मामले में जबलपुर नगर निगम को निर्देश दिए थे कि जितने पेड़ काटो, उसके दोगुने लगाओ, लेकिन क्रियान्वयन सिर्फ कागजों पर हुआ । वृक्ष काटने की अनुमति संबंधी अधिकार नगर निगमों के पास है, जहां बाकायदा रिकार्ड रखा जाता है, लेकिन अधिकांश मामलों में बिना अनुमति ही कुल्हाड़ी चला दी जाती है ।
भोपाल के विकास कार्य के तहत पिछले छह सालों में ६४९६ वृक्षों की बलि दी गई । सर्वाधिक २३३३ वृक्ष राजधानी में मिसरोद से बैरागढ़ तक बन रहे २४ किलो मीटर लंबे बीआरटी कॉरीडोर के लिए काटे गए । नर्मदा योजना पर भोपाल नगर निगम सीमा में ११०५ वृक्षों को काटा गया । यह आँकड़े तो वह हैं, जिनके लिए शासन से अनुमति ली गई थी । बिना अनुमति हजारों की संख्या में पेड़ कटे हैं । ऐसी ४८ संस्थाआें के खिलाफ प्रकरण भी दर्ज हुए हैं ।
विकास कार्योंा में न केवल शहरी सीमा में बल्कि आसपास के क्षेत्रोंको भी काफी हद तक प्रभावित किया है । जबलपुर एवं उसके आसपास के जंगलों का क्षेत्रफल निरंतर घटता जा रहा है । पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार नीम, पीपल, बरगद, शिवनाक, मोलसरी, पीपल ऐसे वृक्ष हैं जो प्रदूषण कम करते हैं, लेकिन वह भी अब शहरों में नहीं दिख रहे हैं ।
इन्दौर में सरकारी निर्माण कार्योंा के चलते जहां पिछले पाँच-छह सालों में डेढ़- दो हजार पेड़ों की बलि चढ़ाई गई है, वहीं भूमाफियों ने भवन एवं टाउनशिप निर्माण में हजारों पेड़ों की बलि चढ़ाई है । हैरत की बात तो यह है कि नगर निगम की सीमा से बाहर बिल्डरों ने बेखौफ होकर पेड़ काटे, क्योंकि वहां उन्हें किसी तरह की रोक-टोक नहीं थी ।
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