रविवार, 19 फ़रवरी 2012

ज्ञान विज्ञान

डिस्पोजेबल कप्स से मधुमक्खियों की शामत

मधुमक्खियों की बस्तियों में गिरावट के चलते कृषि उत्पादकता में कमी की खबरें दुनिया भर से मिल रही हैं । मधुमक्खियों की संख्या में कमी के कई सारे जैविक व भौतिक कारण बताए गए हैं । जैसे बीमारियों, कीटनाशक, पर्यावरणीय तनाव वगैरह । वैसे इस संदर्भ में पर्यावर-जनित कारणों का अध्ययन बहुत कम हुआ है ।
हाल में मदुरै कामराज विश्वविद्यालय के वनस्पति विज्ञान विभाग के एस. चन्द्रशेखरन व उनके साथियों ने पर्यावरण के अजीबो-गरीब कारक को मधुमक्खियों की संख्या में गिरावट के लिए जिम्मेदार पाया है । अपने अध्ययन में उन्होनें देखा कि डिस्पोजेबल कागजी कपों के इस्तेमाल की इसमें महत्वपूर्ण भूमिका है । उन्होनें स्पष्ट किया है कि इन कागजी कपों का इस्तेमाल आजकर कई पेय पदार्थो के सेवन में किया जाता है । बाद में इनमें शक्कर युक्त अवशेष रह जाते हैं । इसे पाने के लिए मधुमक्खियां इन पर मंडराती रहती हैं और फूलों पर जाना भूल जाती हैं । इस तरह ये कप भोजन का स्त्रोत न रहकर मौत के कुंए बन जाते हैं ।

चन्द्रशेखरन व साथियों ने मई २०१० से एक वर्ष तक पंाच कॉफी हाउसों में मधुमक्खियों का अवलोकन किया। इन कॉफी हाउसों में औसतन प्रतिदिन करीब १२२५ तक कागजी कप फेंके जाते है ।
देखा गया कि जब मधुमक्खियां शकर का घोल पीने इन कपों पर आती हैं, तो प्राय: इनमें गिर जाती हैं । इसकी वजह से हरेक दुकान में प्रतिदिन औसतन १६८ मधुमक्खियां मारी गई । शोधकर्ताआें ने इन पांच काफी हाउसों में ३० दिन की अवधि में २५.२११ मधुमक्खियों को मरते देखा । मृत्यु दर पर कप की गहराई, बचे हुए पदार्थ की मात्रा वगैरह का असर पड़ता है । बाद में जब ये कप रीसायक्लिंग के लिए भेजे जाते हैं तो वे मक्खियां भी मार डाली जाती हैं जो चाशनी में डूबने से बच गई होती हैं । यहां प्रतिदिन करीब ७०० मधुमक्खियां मारी जाती है ।
ग्लोबल वार्मिग नहीं, अब हिम युग

धरती के गरम होने और उससे पिघलने वाली बर्फ के कारण समुद्र के जलस्तर के बढ़ने के खतरों से आगाह किया जाता रहा है । लेकिन अब वैज्ञानिक ताजा आंकड़ों के आधार कह रहे है कि पिछले पन्द्रह साल से धरती के तापमान में वृद्धि नहीं हुई है । यह सिलसिला आगे भी जारी रहेगा । यहां तक कि हिम युग के आने का खतरा भी मंडरा रहा है । पिछली बार १७ वीं सदी में लगभग ७० साल तक लगातार तापमान में गिरावट दर्ज की गई थी और तब लंदन की मशहूर थेम्स नदी जम गई थी ।
दुनिया भर में ३० हजार जगहों से इकट्ठा किए गए आंकड़े कहते हैं कि १९९७ के बाद से धरती के तापमान में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई है । इसकी वजह यह है कि २० वीं सदी में लगातार उच्च् स्तर पर ऊर्जा छोड़ने के बाद अब सूर्य न्यूनतम स्तर की ओर बढ़ रहा है । इसे हिम युग के वापस लौटने का संकेत माना जा रहा है । ऐसे में गर्मियों में सर्दी पडेगी, सर्दियां जमा देने वाली होगी और अनाज उगाने लायक मौसम छोटा हो जाएगा ।
वैज्ञानिकों का कहना है कि सूर्य अपनी ऊर्जा के उच्च्तम स्तर से न्यूनतम की ओर बढ़ रहा है । इसे साइकिल २५ का नाम दिया गया है । इसी साइकिल के कारण गर्मीकम होगी । यह दौर आगे भी जारी रहेगा । सूर्य की गतिवधि में १७९० से १८३० के दौरान भी ऐसा ही बदलाव देखा गया था । इसके अलावा १७१५ के बीच भी सूर्य ऊर्जा छोड़ने के न्यूनतम स्तर पर था ।
यद्यपि हिम युग की वापसी के बारे में अमेरिकी अंतरिक्ष संस्था नासा के वैज्ञानिकों के इस निष्कर्ष पर सवाल उठाने वाले विशेषज्ञों की भी कमी नहीं है । उनका तर्क है कि सूर्य के ऊर्जा स्तर में कमी आएगी लेकिन धरती पर होने वाली औघोगिक गतिविधियों के कारण बढ़ रहे तापमान के कारण इसका ज्यादा असर नहीं पड़ेगा । इस पर डेनमार्क के नेशनल स्पेस इंस्टीट्यूट के निदेशक हेनरी स्वेंसमार्क की टिप्पणी काबिल-ए-गौर है। वे कहतें है, कुछ मौसम वैज्ञानिकों को यह समझाने में काफी वक्त लगेगा कि धरती के लिए सूर्य अहम है । यह अपने तरीके से यह दिखा देगा ।इसके लिए उसे हमारी जरूरत नहीं पड़ेगी ।

बैक्टीरिया से बनायी नियॉन लाईट

आनुवंशिक दृष्टि से परिवर्तित किए गए ई-कोलाई बैक्टीरिया ने विज्ञान की दुनिया में धूम मचा रखी है । सेन डिएगो स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया के जीव वैज्ञानिकोंव जैविक इंजीनियरों ने ई-कोलाई बैक्टीरिया से एक ऐसी जीवित नियॉन लाइट बनाई है, जो सामान्य नियॉन लाइट की तरह ही चमकती है । वैज्ञानिकों का कहना है कि बैक्टीरिया एक-दूसरे के साथ एक खास ढंग से संवाद करते है ।
वैज्ञानिक भाषा में उनके आपसी संवाद की विधि को कोरम सेंसिंग कहते हैं । इसके जरिए बैक्टीरिया आपस में समन्वय के लिए मॉलिक्यूल्स का हस्तांतरण करते हैं । इससे उनमें एक जैसी प्रतिक्रियाके लिए जिम्मेदार उत्प्रेरक अथवा ट्रिगर को नियंत्रित करने का तरीका मिल जाए तो बैक्टीरिया से एक जैसी प्रतिक्रिया करवाई जा सकती है । वैज्ञानिकोंने जब जीन इंजीनियरिंग के जरिए बैक्टीरिया की जैविक घड़ी में चमक उत्पन्न करने वाला एक खास प्रोटीन जोड़ा तोे उसने एक चमकदार प्रतिक्रिया उत्पन्न की । यह आश्चर्यजनक उपलब्धि थी । लेकिन ई-कोलाई के लाखोंजीवाणुआें को एक साथ चमक उत्पन्न करने के लिए प्रेरित नहीं किया जा सकता । इसके लिए वैज्ञानिकों ने एक सुक्ष्म द्रव्ययुक्त चिप (माइक्रोलुइडि चिप) बनाई । यह स्थानीय ट्रिगर का इस्तेमाल करती है व चिप पर जमा बैक्टीरिया की कालोनी इसके असर में रिएक्ट करती है ।
रिसर्च टीम के प्रमुख जैफ हेस्टी का कहना है कि बैक्टीरिया आधारित जैविक सेंसर किसी भी नमूने की लंबी समय तक निगरानी रख सकते हैं, जबकि इस समय ऐसे कार्योंा के लिए प्रचलित किट का इस्तेमाल एक ही बार हो सकता है । विषैले तत्वों या रोगाणुआें की मात्रा पर बैक्टीरिया की प्रतिक्रियाअलग-अलग ढंग से होती है, अत: वे यह बता सकते हैं कि इनकी मात्रा का स्तर कितना खतरनाक है । नई खोज ने कई दिलचस्प संभावनाएं उत्पन्न कर दी हैं । निकट भविष्य में कृत्रिम जीव विज्ञान और जैव प्रौद्योगिकी जैसे विज्ञान के नए उभरते हुए क्षेत्रोंमें जैविक सेंसर बहुत उपयोगी होंगे ।


झुक रही हैं ताजमहल की मीनारें

दुनिया के सात आश्चर्यो में शुमार ताजमहल की चारों मीनारें १९७७ के मुकाबले कुछ और झुक गई हैं । दक्षिणी-पश्चिमी मीनार सबसे ज्यादा ३.५७ सेंटीमीटर झुकी है । यह बात ताजमहल की स्थिति पर अध्ययन के बाद दी गई सर्वे ऑफ इंडिया की रिपोर्ट में कही गई है । रिपोर्ट में ताजमहल की स्थिति की अनवरत निगरानी की सिफारिश के साथ यह भी कहा गया है कि मीनार में आया झुकाव या बदलाव बहुत अहम नहीं है और ये मानकों के भीतर ही है ।
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर सर्वे ऑफ इंडिया की यह रिपोर्ट भी अदालत में दी हैं । मालुम हो कि ताजमहल की सुरक्षा को खतरे के बारे में मीडिया में आई खबरों पर सुप्रीम कोर्ट ने स्वयं संज्ञान लेकर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को स्थिति का अध्ययन कर रिपोर्ट देने को कहा था । इसके बाद ही सर्वेऑफ इंडिया से ताजमहल का जिओडेटिक सर्वे करने को कहा गया था । सर्वे के मुताबिक १९७६-१९७७ से स्थिर ताजमहल की दक्षिणी-पश्चिमी मीनार में पिछले तीन दशकों से झुकाव बढ़ा है । ये २००९-१० में बढ़ कर करीब ३.५७ सेंटीमीटर ज्यादा झुक गई । इस मीनार में पहले की अपेक्षा झुकने की दर में वृद्धि हुई है । उत्तर पूर्वी मीनार में ज्यादा झुकाव नहीं आया है । ताजा जांच में यह मीनार ०.५२ सेंटीमीटर झुकीं थीं जो कि निर्धारित मानकों के भीतर ही हैं ।
रिपोर्ट में कहा गया है कि तुलनात्मक अध्ययन का यही नतीजा निकलता है कि ताजमहल और उसकी मीनारें फिलहाल स्थिर और दुरूस्त हैं । लेकिन रिपोर्ट में ताजमहल पर पर्यटकों के बढ़ते दबाव के कारण उसकी स्थिति की सतत निगरानी और जांच का सुझाव दिया गया है । कहा गया है कि कुछ वर्षो तक लगातार प्रतिवर्ष ताजमहल की स्थिति का अध्ययन कराने के लिए सर्वे ऑफ इंडिया के सर्वेयर जनरल से एक दल तैनात करने का अनुरोध किया गया है ।

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