कविता
पर्यावरण गीत
सूर्यकुमार पांडेय
मिला रतन अनमोल जगत का, तुमने इसे गंवाया है,
पर्यावरण मिटाने वालों, यह क्या हाल बनाया है ?
फूल, पत्तियां, चिड़िया, डालें, गुमसुम डरे-डरे से हैं
कल न सूख जाएं, जो पौधे अब तक हरे-भरे से हैं
वन-उपवन में जीव-जन्तु, सब लगते मरे-मरे से हैं
सारे चेहरों पर जैसे दुख का मौसम उग आया है
पर्यावरण .........
शहरों में है भीड़ बहुत, अब शोरोगुल से मुश्किल हैं
धुंआ भर गया आसमान में, मेघों का तन बोझिल है
कहीं चिमनियां, कहीं भटि्ठयां, आग उगलती हर मिल है
जहरीली बारिश होने का खतरा सिर पर छाया है ।
पर्यावरण .........
मिल वालों से पूछो, धनवानों से पूछो रे
राख बहाते गंगा में, उन नादानों से पूछो रे
सिर पर मैला ढोने वाले इंसानों से पूछो रे
इतना कूड़ा-कचरा लाकर किसने यहां बहाया है ।
पर्यावरण .........
पर्यावरण गीत
सूर्यकुमार पांडेय
मिला रतन अनमोल जगत का, तुमने इसे गंवाया है,
पर्यावरण मिटाने वालों, यह क्या हाल बनाया है ?
फूल, पत्तियां, चिड़िया, डालें, गुमसुम डरे-डरे से हैं
कल न सूख जाएं, जो पौधे अब तक हरे-भरे से हैं
वन-उपवन में जीव-जन्तु, सब लगते मरे-मरे से हैं
सारे चेहरों पर जैसे दुख का मौसम उग आया है
पर्यावरण .........
शहरों में है भीड़ बहुत, अब शोरोगुल से मुश्किल हैं
धुंआ भर गया आसमान में, मेघों का तन बोझिल है
कहीं चिमनियां, कहीं भटि्ठयां, आग उगलती हर मिल है
जहरीली बारिश होने का खतरा सिर पर छाया है ।
पर्यावरण .........
मिल वालों से पूछो, धनवानों से पूछो रे
राख बहाते गंगा में, उन नादानों से पूछो रे
सिर पर मैला ढोने वाले इंसानों से पूछो रे
इतना कूड़ा-कचरा लाकर किसने यहां बहाया है ।
पर्यावरण .........
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