सोमवार, 11 मार्च 2013

पर्यावरण समाचार
जीएम फसलों को लेकर सरकारी दावे आधारहीन
    भारत में बीटी-बैंगन के स्थगन की तीसरी बरसी पर पूरे देश के करीब १५० वैज्ञानिकों ने पर्यावरण  व वन मंत्री (एमओइएफ) को पत्र लिख कर बताया है कि जीएम फसलों को लेकर खाघान्न सुरक्षा के जितने भी दावे हैं - वे आधारहीन और भ्रामक है ।
    इन वैज्ञानिकों ने निराशा जताई है कि ट्रांसजेनिक (जीन-संवर्द्धित) फसलों के नियमन के लिए जिम्मेदार पर्यावरण व वन मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में जीएमओ (जीन-संवर्द्धित संघटन) मामले की जनहित याचिका (पीआईएल) पर भारत सरकार की ओर से कृषि मंत्रालय को पक्ष रखने की अनुमति दे दी । पत्र में उन्होनें इशारा किया है कि खाद्यान्न सुरक्षा (फूड सिक्योरिटी) का अनिवार्य हिस्सा खाद्यान्न की सलामती भी (फूड सेफ्टी) है । इससे पहले २०१२ के नवम्बर में कृषि मंत्रालय ने सुप्रीम कोर्ट में यह दलील दी थी कि खाद्यान्न सुरक्षा के लिए ट्रांसजेनिक फसलें बेहद जरूरी है और भारत में इसके नियंत्रण की व्यवस्था मजबूत और दुरूस्त है ।
    जीएम-मुक्त भारत के लिए बने गठबंधन के संयोजक श्रीधर राधाकृष्णन ने कहा कि हम वन व पर्यावरण मंत्री जयंती नटराजन ने उस वैज्ञानिकता व स्वाधीनता को दर्ज करने की मांग करते हैं, तो उनके पूर्ववर्ती मंत्री ने दिखाई थी और बीटी-बैंगन को भारत का पहला जीएम खाद्यान्न बनने से रोका था । जीएम मुक्त भारत के लिए गठबंधन की सदस्य कविता कुरूगंती व्याख्या करते हुए बताती है कि दोषपूर्ण तकनीक जैसे ट्रांसजेनिक फसलें खाद्यान्न सुरक्षा से संबंधित नहीं है । वह कहती हैं कि पूरे देश के वैज्ञानिकों की ओर जंयती नटराजन को भेजी गई चिट्ठी साफ तौर पर दिखाती है कि खेती में उत्पादन को बढ़ाने के लिए गैर-ट्रांसजेनिक विकल्प मौजूद है ।
    मगर लोग इसे आपूर्ति की तरफ से समस्याप्रद मानते है । वैसे, यह समझना महत्वपूर्ण है कि आज खाघान्न सुरक्षा केवल खाघान्न उत्पादन के बारे में नहीं है, बल्कि गरीबी, आजीविका और विकास के बारे में भी है ।

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