कविता
पितृ छाया
प्रेम वल्लभ पुरोहित राही
गाँव में पानी स्त्रोत के पास
पूर्वजों का पाला-पोसा
बुढ़ा-बुजुर्ग देवतुल्य पीपल का वृक्ष
कई दशकों से आते-जाते
गाँव में पलायन की वेदना झेलते
बचे-कुचे कुछ लोगों को
छाया-प्रतिबिम्बित करते आ रहा
कि पलायन की पीड़ा । मुझे मरने को विवश कर रही ।
मैं, जिन्दा हूँ तो-अपनों के ढेर सारे स्नेहिल प्यार से
लेकिन अब किसी का आना-जाना नहीं.....
मेरे मरने पर । देख नहीं पाओगे
अपने पितृों की छाया
जिन्हें कई पीढ़ियों से मेरी शाखाआें में
सुरक्षित हैं उनकी आत्मायें
तभी तो देख पाते हो तुम, उनकी पितृात्माआें को
हाँ, चाहते हो पूर्वजों की छाया निरंतर देखना
तो, हम सभी वृक्षों को संवारते जाना
लगा लेना गाँव के चौं-दिशा
अपने पूर्वजों के नाम के पीपल, आम और वट वृक्ष
दिखती रहे युग-युगोंतक पूर्वजों की छाया
और, सबको मिलती रहे- पितृ छाया ।
पितृ छाया
प्रेम वल्लभ पुरोहित राही
गाँव में पानी स्त्रोत के पास
पूर्वजों का पाला-पोसा
बुढ़ा-बुजुर्ग देवतुल्य पीपल का वृक्ष
कई दशकों से आते-जाते
गाँव में पलायन की वेदना झेलते
बचे-कुचे कुछ लोगों को
छाया-प्रतिबिम्बित करते आ रहा
कि पलायन की पीड़ा । मुझे मरने को विवश कर रही ।
मैं, जिन्दा हूँ तो-अपनों के ढेर सारे स्नेहिल प्यार से
लेकिन अब किसी का आना-जाना नहीं.....
मेरे मरने पर । देख नहीं पाओगे
अपने पितृों की छाया
जिन्हें कई पीढ़ियों से मेरी शाखाआें में
सुरक्षित हैं उनकी आत्मायें
तभी तो देख पाते हो तुम, उनकी पितृात्माआें को
हाँ, चाहते हो पूर्वजों की छाया निरंतर देखना
तो, हम सभी वृक्षों को संवारते जाना
लगा लेना गाँव के चौं-दिशा
अपने पूर्वजों के नाम के पीपल, आम और वट वृक्ष
दिखती रहे युग-युगोंतक पूर्वजों की छाया
और, सबको मिलती रहे- पितृ छाया ।
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