सोमवार, 11 मार्च 2013

पर्यावरण परिक्रमा
सोेने से ४० गुना महंगा है उल्कापिंड   

सेन्ट्रल रूस में गिरे उल्कापिंड के टुकड़े सोने से भी ४० गुना महंगे है  । रूसी वैज्ञानिकों ने घोषणा की है कि उन्हें उल्कापिंड के ५० टुकड़े मिल गए हैं । ये टुकड़े रूस की उराल की पहाड़ियों और चेलियाबिंस्क के आसपास गिरे थे ।
    युवा शोधार्थी एक के मुताबिक उल्कापिंड के टुकड़े बहुमूल्य हैं । इस उल्कापिंड के टुकड़े की कीमत २२०० डॉलर प्रति ग्राम (१.२१ लाख रूपये प्रति ग्राम) है, जो सोने से करीब ४० गुना अधिक है । रूसी विज्ञान अकादमी के सदस्य विक्टर ग्रोशोस्की ने कहा कि हम चेबरकुल झील के पास उल्कापिंड के ५० टुकड़े मिलने की पुष्टि करते हैं।
    अकादमी ने इन टुकडों का रासायनिक परीक्षण कराया । इसमें यह साबित हुआ कि ये बाहरी अंतरिक्ष से आए थे । यह उल्कापिंड रेंगुलर कॉन्ड्राइटस श्रेणी का है । इसमें लौह, क्राइसोलाइट और सल्फाइट के तत्व पाए गए हैं । रशियन एकेडमी ऑफ साइंस की टीम ने ये टुकड़े एकत्रित किए हैं । जिनका येकेटेरिंगबर्ग स्थित युरल्स फेडरल यूनिवर्सिटी की लेबोरेटरी में परीक्षण चल रहा है । इसमें १० फीसदी तक आयरन मिला है ।
दवा परीक्षण और सरकार
    हमारे देश में अवैध दवा परीक्षण को लेकर अभी तक सुप्रीम कोर्ट केन्द्र सरकार को फटकार लगाता रहा है, लेकिन अब देवा परीक्षण और उससे होने वाली मौतों के लिए कांग्रेस शास्ति राज्य आंध्रप्रदेश ने अपनी ही केन्द्र सरकार को पूर्ण रूप से जिम्मेदार ठहराया    है । सुप्रीम कोर्ट में दायर हलफनामे में प्रदेश सरकार ने कहा है कि इस संबंध में राज्य सरकार को सूचना नहीं दी जाती, बल्कि इसे केन्द्र सरकार की ओर से मंजूरी मिलती  है । आंध्रप्रदेश सरकार ने अपने हलफनामे में यह भी कहा है कि ड्रग्स एण्ड कॉस्मेटिक अधिनियम में कोई दण्डात्मक प्रावधान नहीं है, लिहाजा इस अधिनियम को सख्त बनाने के अलावा इस मामले में राज्य सरकारों को भी अधिकार दिया जाना चाहिए । बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा बेरोक-टोक आम लोगों पर दवाईयों के परीक्षण पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए पिछले दिनों सभी राज्य सरकारों को अपनी ओर से हलफनामा दाखिल करने को कहा था । ऐसे में आंध्रप्रदेश स्वास्थ्य मंत्रालय के मुख्य सचिव के आर किशोर ने अपने हलफनामे में कहा है कि क्लीनिकल ड्रग ट्रायल के मसले पर हमारे देश मेंसमुचित कानून नहीं है, जिसकी वजह से इस मामले में आरोपियों के खिलाफ ड्रग्स एण्ड कॉस्मेटिक अधिनियम के तहत कोई दण्डात्मक कार्यवाही नहीं की जा सकती ।
    उल्लेखनीय है कि इस साल के शुरूआत मेंसुप्रीम कोर्ट ने गैरकानूनी दवा परीक्षण पर केन्द्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा था कि इस काम मेंलगी बहुराष्ट्रीय कंपनियां जिस तरह से आम लोगों को बलि का बकरा बना रही हैं, उससे ऐसा लगता है कि सरकार कुंभकर्णी नींद में सो रही है । सुप्रीम कोर्ट ने तब आदेश दिया था कि अब सभी दवाआें के परीक्षण केन्द्र सरकार के स्वास्थ्य सचिव की देखरेख में   होंगे । शायद शीर्ष अदालत के इसी  फैसले के मद्देनजर अब केन्द्र सरकार ने विदेश मेंनिर्मित दवाआें के भारत में बिक्री या उपयोग की मंजूरी के मामले में एक मानक संचालन प्रक्रिया विकसित करने के मकसद से चार विशेषज्ञ समितियोंका गठन किया है, जो दवा परीक्षण की गतिविधियों की निगरानी कर अपनी रिपोर्ट स्वास्थ सचिवों के अधीन  काम करने वाली शीर्ष समिति को सौपेगी । इसके अलावा यह समितियां स्वास्थ्य मंत्रालय से संबद्ध संसदीय समिति की पिछले साल आई उस रिपोर्ट पर भी गौर करेगी, जिसने यहां सवाल उठाया था कि दवा और सौदंर्य प्रसाधन अधिनियम के खिलाफ जाकर विदेशों में बनी उन दवाइयों का भी बिक्री की इजाजत क्यों दे रहा है, जो उनके घातक दुष्परिणामों को देखते हुए पश्चिमी देशों में प्रतिबंधित हैं ।
    फिलहाल जो स्थिति है, उससे यहीं प्रतीत होता है कि प्रतिबंधित दवाआें की बिक्री को लेकर बहुराष्ट्रीय कंपनियों की बनाई गई दवाआें के परीक्षण के लिए सरकार अब तक एक तरह से सुविधाजनक माध्यम से काम करती रही है, जबकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार पिछले चार-पांच साल में २५ हजार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं । विडंबना यह है कि अब तक दवा परीक्षण के नाम पर तमाम नियम-कायदों की धज्जियां उड़ाने वाली दवा कंपनियों के खिलाफ न सिर्फ कोई कार्यवाही की जा सकी है, बल्कि केन्द्रीय मानक नियंत्रण संगठन की ओर से मुआवजे के लिए जिन फार्मूलोंपर आधारित दिशा-निर्देश तय करने की कोशिश हो रही है, उनमें भी परीक्षण को अंजाम देने वाली कंपनियों और डॉक्टरों की सुविधाआें का ख्याल रखा जाता है । दवा परीक्षण के शिकार अधिकतर गरीब तबके के लोग होते है, जिन्हेंपता नहीं चल पाता कि उनके साथ क्या गलत हो रहा है । जब कोई मामला तूल पकड़ता है तब मामूली रकम देकर उन्हें चुप करा दिया जाता है । ऐसे में सरकार की नई पहल से अवैध दवा परीक्षण के कारोबार पर पाबंदी लग पाएगी ।
सौर विद्युत सेल की क्षमता में इजाफा
    सौर-विद्युत सेले यानी सोलर फोटो-वोल्टेइक सेल काफी उपयोगी चीज है । इनकी मदद से हम सूर्य के प्रकाश को विघुत में बदल सकते हैं। मगर इनकी कार्यक्षमता काफी कम है और ये मंहगी भी बहुत होती है । मगर अब नैनो टेक्नॉलॉजी की मदद से इनकी कार्यक्षमता बढ़ाई जा सकती है और कीमत कम की जा सकती  है ।
    सौर प्रकाश विघुत से की कार्यक्षमता बढ़ाने का नुस्खा यह है कि पहले एक अर्ध-चालक सतह पर सोने के सूक्ष्म कण जमा कर दिए जाए । फिर सोने के इन कणों का उपयोग आधार के रूप में करते हुए इन पर फॉस्फोरस और इंडियम के यौगिकों के निहायत महीन तार निर्मित किए जाएं । ऐसे एक तार की मोटाई महज १८० नैनोमीटर होगी । गौरतलब है कि एक नैनोमीटर मीटर का एक अरब वां भाग होता है । इस तरह के नैनो-तारो से बनी सौर-विघुत सेल लगभग १४ प्रतिशत सौर ऊर्जा को विद्युत मेंबदल देगी ।
    उक्त नुस्खा जर्मनी के फ्रानहॉफर इंस्टीट्यूट फॉर सोलर एनर्जी सिस्टम्स में आजमाया गया है । देखा गया कि यह लगभग उतने ही प्रकाश को विद्युत में बदलता है कि जितना कि एक पारंपरिक इंडियम फॉस्फाइड की पतली परत से बनी सेल करती हैं जबकि इस नई सेल में नैनो तार वास्तव में कुल सतह के मात्र १२ प्रतिशत भाग पर ही होते  हैं । यानी ये काफी सस्ती हो सकती है ।
    इसका सबसे पहला नवाचार तो अर्ध-चालक का चुनाव है । यह इंडियम और फॉस्फोरम का एक मिश्रण है जो इस पर आपतित सौर ऊर्जा का अधिकांश हिस्सा सोख लेता है । फिलहाल यह ७१ प्रतिशत ऊर्जा सोखता है । इसमें सुधार की गुंजाइश है । इसके लिए एक तो नैनो तारों को बेेहतर ढंग से बनाना होगा और उनमें इंडियम और फॉस्फोरस का सही मिश्रण प्रयुक्त करना होगा ।
    इसके अलावा ऐसे सौर सेलों को मल्टीजंक्शन सौर सेलों में जोड़ा जाएगा । मल्टीजंक्शन सौर सेलों की विशेषता यह होती है कि उनमें एक से अधिक किस्म के अर्ध-चालकों को उपयोग किया जाता है और इन्हें एक के ऊपर एक परतों में संयोजित किया जाता है ताकि सूर्य से आपतित अधिकांश ऊर्जा को सोखा जा सके । फिलहाल ऐसी मल्टीजंक्शन सेलों की कार्यक्षमता ४३ प्रतिशत है । जब इनके साथ नई नैनो-तकनीक को जोड़ा जाएगा तो कार्यक्षमता में बहुत इजाफा होने की संभावना है ।
जैव संसाधन व्यवसायियों को देना होगा लाभांश
    मध्यप्रदेश के जैव संसाधनों से व्यावसायिक लाभ प्राप्त् करने वाले व्यक्ति, विभाग तथा कंपनियों को लाभ का अंश मप्र राज्य जैव विविधता बोर्ड की जैव विविधता निधि को देना होगा । इस राशि से क्षेत्रीय स्तर पर जैव विविधता संरक्षण एवं ग्रामीण क्षेत्रों के विकास के साथ-साथ वनों पर निर्भरता कम करने, वनीकरण का कार्य तेज करने तथा जैव संसाधनों से जीविका के साधन बढ़ाने संबंधी कार्य किये जाएंगे । साथ ही स्थानीय निकायों में गठित जैव विविधता प्रबंधन समितियों की व्यवस्थाआें को मजबूत किया जाएगा ।
    म.प्र. राज्य जैव विविधता बोर्ड के सदस्य सचिव डॉ. आरजी सोनी ने बताया कि यह प्रावधान जैव विविधता अधिनियम २००२ में किया गया है । इसके आधार पर म.प्र. द्वारा २००४ में बनाए गए नियम में लाभांश जमा करने का प्रावधान है ।
    जैव संसाधनों से तात्पर्य पौधे, जीव-जन्तु या उनके भाग से है । व्यावसायिक उपयोग से तात्पर्य वाणिज्य उपयोग के लिये औषधि, औघोगिक किण्वक, खाद्य सुंगध, सुवास, प्रसाधन, तेल राल, रंग, सत और जीन के अंतिम उपयोग से है । इसके अलावा मध्यप्रदेश जैव विविधता नियम के अनुसार मध्यप्रदेश से अनुसंधान अथवा वाणिज्यिक उपयोग के लिये जैव संसाधन तथा उनसे संबंधित ज्ञान प्राप्त् करने वाले व्यक्ति अथवा संस्थान को इसके लिये राज्य जैव विविधता बोर्ड में आवेदन करना अनिवार्य है ।

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