सामयिक
मूर्तियां बनीं प्रदूषण की सूचक
डॉ. किशोर पंवार
पिछले दिनों इन्दौर से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र में चौंका देने वाली खबर सचित्र छपी है : क्यों काली पड़ रही सिन्दूर चढ़ी मूर्तिया ? पारसी मोहल्ला, चिड़ियाघर के सामने बड़े बालाजी, सत्यनारायण मंदिर की हनुमान प्रतिमा सिन्दूर चढ़ाने के दो घंटे बाद काली पड़ रही है । पारसी मोहल्ला के मुरली मनोहर मंदिर के पुजारी राहुल जोशी ने कहा कि पहले हर हफ्ते हनुमानजी को चौला चढ़ता था परन्तु पहले कभी मूर्ति काली नहीं पड़ी थी । शंका हुई कि कहीं घी तो मिलावटी नहीं है ? तो तेल मिलाकर सिन्दूर चढ़ाया गया, वह भी काला हो गया । अलग-अलग दुकानों से सिन्दूर बुलवाया गया, वह भी काला पड़ रहा है । रहवासियों ने क्षेत्र के वायु प्रदूषण स्तर जांचने की मांग की है ।
खबर ने रसायन शास्त्री डॉ. एस.एल. गर्ग का एक्सपर्ट कमेंट भी छपा है । उनका कहना है कि तांबा, चांदी और देव प्रतिमांए संभवत: हाइड्रोजन सल्फाइड गैस के कारण काली पड़ रही हैं । या तो कहीं से यह गैस वहां पहुंच रही है या नदी में किसी रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप बन रही है । दरअसल ये सब मंदिर खान नदी के किनारे या उसके आसपास ही स्थित है ।
मूर्तियां बनीं प्रदूषण की सूचक
डॉ. किशोर पंवार
पिछले दिनों इन्दौर से प्रकाशित एक दैनिक समाचार पत्र में चौंका देने वाली खबर सचित्र छपी है : क्यों काली पड़ रही सिन्दूर चढ़ी मूर्तिया ? पारसी मोहल्ला, चिड़ियाघर के सामने बड़े बालाजी, सत्यनारायण मंदिर की हनुमान प्रतिमा सिन्दूर चढ़ाने के दो घंटे बाद काली पड़ रही है । पारसी मोहल्ला के मुरली मनोहर मंदिर के पुजारी राहुल जोशी ने कहा कि पहले हर हफ्ते हनुमानजी को चौला चढ़ता था परन्तु पहले कभी मूर्ति काली नहीं पड़ी थी । शंका हुई कि कहीं घी तो मिलावटी नहीं है ? तो तेल मिलाकर सिन्दूर चढ़ाया गया, वह भी काला हो गया । अलग-अलग दुकानों से सिन्दूर बुलवाया गया, वह भी काला पड़ रहा है । रहवासियों ने क्षेत्र के वायु प्रदूषण स्तर जांचने की मांग की है ।
खबर ने रसायन शास्त्री डॉ. एस.एल. गर्ग का एक्सपर्ट कमेंट भी छपा है । उनका कहना है कि तांबा, चांदी और देव प्रतिमांए संभवत: हाइड्रोजन सल्फाइड गैस के कारण काली पड़ रही हैं । या तो कहीं से यह गैस वहां पहुंच रही है या नदी में किसी रासायनिक क्रिया के फलस्वरूप बन रही है । दरअसल ये सब मंदिर खान नदी के किनारे या उसके आसपास ही स्थित है ।
सिन्दुर हिन्दू स्त्रियों की मांग की शोभा है । यह गणेश, हनुमान और भैरव की प्रतिमाआें का श्रृंगार भी है । देश में लाखों लोग हनुमान एवं गणेश के मंदिर से अपने माथे पर बड़ा सा सिन्दूर का टीका लगाकर निकलते हैं जो इन देवों के आशीर्वाद का प्रतीक है ।
अब खबर है कि वही सिन्दूरी चौला और टीका काला हो गया है । दरअसल, भगवान के शरीर पर यह कालिख तो हम सबने मिलकर लगाई है । लगाया तो था सिन्दूर पर हो गया वह काला, हमारी करतूतों से । वे दिन आ गए हैं जब हवा में घुले जहर का असर प्रतिमाआें पर भी पड़ने लगा है । यह एक खतरे का संकेत है ।
बायोइंडीकेटर यानी सूचक जीव- ऐसे पेड़-पौधें, जंतु और सूक्ष्मजीव जो पर्यावरण के हालात का संकेत देते हैं । जैसे अमरीका में एस्ट्रागेलस नाम का पौधा जहां उगता है वहां सेलेनियम और यूरेनियम की उपस्थिति निश्चित मानी जाती है । एक्वेलेजिया केनाडेंसिस जमीन में नीचे लाइम स्टोन की खदान का सूचक है ।
कुछ पौधों की पत्तियों पर विशेष प्रकार के लक्षण उत्पन्न होने से हवा एवं पानी में जहरीली धातुआें एवं गैसों की अधिकता की सूचना मिलती है । जैसे ट्यूलिप की पत्तियों के किनारे झुलसना, हवा मेंफ्लोराइड की अधिकता बताता है । हमारे देश में आम, अमलतास, शीशम और बेशरम की पत्तियों के किनारे एवं बीच-बीच में जल धब्बे हवा में सल्फर डाईऑक्साइड प्रदूषण की सूचना देते हैं । जंगलों में लाइकेन (पत्थरफूल) की अनुपस्थिति हवा मेंसल्फर डाईऑक्साइड एवं फ्लोराइड की बढी हुई मात्रा की स्पष्ट चेतावनी होती है । पानी में कोलीफार्म बैक्टीरिया की अधिकता जल-मल प्रदूषण का पैमाना है । ये सब प्रदूषण सूचक जीव हैं । ये जैविक सूचक कहलाते हैं ।
परन्तु अब जो सूचक हमारे सामने आए है वे तो भगवान हैं । ये प्रदूषण के एक नए सूचक डिवाइन इंडीकेटर या दैवी सूचक हैं । जैविक सूचकों की चेतावनी तो हमने आज तक सुनी नहीं । यदि इन दैवी सूचकों की भी न सुनी तो फिर प्रदूषण के कहरसे हमें भगवान भी नहीं बचा पाएंगे । सीवेज या नदी-नालों का काला गंदा पानी । इसमें रसोई एवं टायलेट के व्यर्थ पदार्थ होते हैं । एक मध्यम श्रेणी के सीवेज में ७५ प्रतिशत तैरने वाले कणीय पदार्थ एवं लगभग ४० प्रतिशत छानने योग्य ठोस कार्बनिक पदार्थ होते हैं । यह कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थो का मिश्रण है ।
कार्बनिक पदार्थो में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं यूरिया होते हैं । इसके अलावा इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, आयरन और सल्फर होते हैं । यदि उद्योगों का पानी भी नालों में मिलता है तो उसमें तांबा, जस्ता, केडमियम, लेड (सीसा) वगैरह भी पाए जाते हैं । सीवेज में कई संक्रमणकारी सूक्ष्मजीव होते हैं । जैसे वायरस, प्रोटोजोआ और बैक्टीरिया । इनसे कई रोग फैलने का खतरा होता है, जैसे पोलियो, पेचिश, दस्ता, टायफाइड और वायरल हिपेटाइटिस (पीलिया) आदि ।
जब सीवेज मेंऑक्सीजन की मात्रा शून्य हो जाती है तब कुछ बैक्टीरिया श्वसन के लिए नाइट्रेट का अपचयन करते हैं । जब नाइट्रेट भी खत्म हो जाता है तब ये सल्फेट का अपचयन करते हैं जिससे हाइड्रोजन सल्फाइड गैस बनती है । सीवेज में दुर्गन्ध मुख्य रूप से हाइड्रोजन सल्फाइड, क्लोरीन, अमोनिया और फीनॉल्स के कारण आती है । शैवाल, फफूंद और अन्य सूक्ष्मजीव ही गंध का कारण होते हैं । गंदा पानी जितना ज्यादा अम्लीय होता है उतनी ही ज्यादा मात्रा में हाइड्रोजन सल्फाइड गैस बनती है ।
इस गैस की अधिकता से आसपास रहने वालों को आंखों में जलन, गले में खराश, खांस, उल्टी आना जैसे लक्षण पैदा होते हैं । ज्यादा परेशानी होने पर सांस फूलना और फेफडोंमें पानी भरने की भी शिकायत हो जाती है । अत: नालों की नियमित सफाई जरूरी है ।
साफ पानी में किचन और टायलेट का पानी मिलने से उसमें ऑक्सीजन की कमी हो जाती है । स्वच्छ पानी में घुलित ऑक्सीजन ५-७ मिलीग्राम प्रति लीटर होती है । परन्तु प्रदूषित पानी में यह २-३ मिलीग्राम प्रति लीटर रह जाती है । ज्यादा प्रदूषित पानी में यह शून्य भी हो सकती है । कार्बनिक प्रदूषण बढ़ने से पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा घटती है परन्तु बीओडी (जैविक ऑक्सीजन मांग) बढ़ जाती है । जब पानी में ऑक्सीजन की बहुत कमी हो जाती है तब पानी के वे सभी जीव-जन्तु मर जाते हैं जिन्हें जीने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है ।
अनॉक्सी परिस्थिति में दूसरे प्रदूषक पैदा होते हैं । जैसे हाइड्रोजन सल्फाइड, अमोनिया, कार्बनिक डाईसल्फाइड और मीथेन । हाइड्रोजन सल्फाइड पानी में पाए जाने वाले धात्विक आयनों से क्रिया करके सल्फाइड बनाती है जैसे जिंक सल्फाइड, आयरन सल्फाइड, लेड सल्फाइड आदि ।
ये सभी सल्फाइड काले भूरे रंग के होते हैं । यही कारण है कि गंदे नालों का पानी काला होता है । इन नालों की तलछट से हवा के बुलबुले भी निकलते रहते हैं जिनमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन सल्फाइड और मीथेन गैस होती है ।
सिन्दूर को अंग्रेजी में वर्मीलान कहते हैं । यह मरक्यूरिक सल्फाइड है जो सिन्दूरी रंग का होता है । लगता है मांग में भरने वाला सिन्दूर यही है । यह जहरीला है । दूसरा सिन्दूर रेड लेड है जो लेड टेट्राऑक्साइड है । यह सिन्दूरी लाल रंग का होता है । हनुमान और गणेश की प्रतिमा पर चढ़ाया जाने वाला सिन्दूर यही है । इसे तेल या घी में मिलाकर चढ़ाया जाता है । मांग में भरने वाले सिन्दूर में भी इसे मिलाया जाता है । दोनों जहरीले पदार्थ है ।
गंदे नालों में बनने वाली हाइड्रोजन सल्फाइड का जो टेस्ट प्रदूषण जांच प्रयोगशाला में लगना चाहिए था, वह अब भगवान के दरबार में लग रहा है । बढ़ते प्रदूषण के संदर्भ में हमने पेड़-पौधों की पत्तियों, फूलोंऔर फलोंे पर बने जख्म (लक्षण) नहीं देखे । धरती पर घटती तितलियों और पक्षियों की संख्या पर गौर नहीं किया । वायु प्रदूषण एवं जल प्रदूषण से प्रति वर्ष हो रही हजारों मानव मृत्युआें पर ध्यान नहीं दिया । परन्तु जो टेस्ट भगवान लगा रहे हैं उस पर तो अब जरा गौर कर लें । सिन्दूर यानी लेड टेट्राऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड गैस मिलकर लेड सल्फाइड बनता है । संभवत: यही क्रिया देव प्रतिमाआेंपर हुई है, और वे काली हो गई है ।
इस सिन्दूर का रंग फिर से हमें लौटाना है । अजब व सुखद संयोग है कि इधर हनुमान जी ने चेतावनी दी और उधर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने खान नदी शुद्धीकरण योजना की घोषणा की । उम्मीद की जाना चाहिये कि सिन्दूर सिन्दूरी ही रहेगा, कालिख नहीं बनेगा ।
अब खबर है कि वही सिन्दूरी चौला और टीका काला हो गया है । दरअसल, भगवान के शरीर पर यह कालिख तो हम सबने मिलकर लगाई है । लगाया तो था सिन्दूर पर हो गया वह काला, हमारी करतूतों से । वे दिन आ गए हैं जब हवा में घुले जहर का असर प्रतिमाआें पर भी पड़ने लगा है । यह एक खतरे का संकेत है ।
बायोइंडीकेटर यानी सूचक जीव- ऐसे पेड़-पौधें, जंतु और सूक्ष्मजीव जो पर्यावरण के हालात का संकेत देते हैं । जैसे अमरीका में एस्ट्रागेलस नाम का पौधा जहां उगता है वहां सेलेनियम और यूरेनियम की उपस्थिति निश्चित मानी जाती है । एक्वेलेजिया केनाडेंसिस जमीन में नीचे लाइम स्टोन की खदान का सूचक है ।
कुछ पौधों की पत्तियों पर विशेष प्रकार के लक्षण उत्पन्न होने से हवा एवं पानी में जहरीली धातुआें एवं गैसों की अधिकता की सूचना मिलती है । जैसे ट्यूलिप की पत्तियों के किनारे झुलसना, हवा मेंफ्लोराइड की अधिकता बताता है । हमारे देश में आम, अमलतास, शीशम और बेशरम की पत्तियों के किनारे एवं बीच-बीच में जल धब्बे हवा में सल्फर डाईऑक्साइड प्रदूषण की सूचना देते हैं । जंगलों में लाइकेन (पत्थरफूल) की अनुपस्थिति हवा मेंसल्फर डाईऑक्साइड एवं फ्लोराइड की बढी हुई मात्रा की स्पष्ट चेतावनी होती है । पानी में कोलीफार्म बैक्टीरिया की अधिकता जल-मल प्रदूषण का पैमाना है । ये सब प्रदूषण सूचक जीव हैं । ये जैविक सूचक कहलाते हैं ।
परन्तु अब जो सूचक हमारे सामने आए है वे तो भगवान हैं । ये प्रदूषण के एक नए सूचक डिवाइन इंडीकेटर या दैवी सूचक हैं । जैविक सूचकों की चेतावनी तो हमने आज तक सुनी नहीं । यदि इन दैवी सूचकों की भी न सुनी तो फिर प्रदूषण के कहरसे हमें भगवान भी नहीं बचा पाएंगे । सीवेज या नदी-नालों का काला गंदा पानी । इसमें रसोई एवं टायलेट के व्यर्थ पदार्थ होते हैं । एक मध्यम श्रेणी के सीवेज में ७५ प्रतिशत तैरने वाले कणीय पदार्थ एवं लगभग ४० प्रतिशत छानने योग्य ठोस कार्बनिक पदार्थ होते हैं । यह कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थो का मिश्रण है ।
कार्बनिक पदार्थो में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा एवं यूरिया होते हैं । इसके अलावा इसमें नाइट्रोजन, फास्फोरस, आयरन और सल्फर होते हैं । यदि उद्योगों का पानी भी नालों में मिलता है तो उसमें तांबा, जस्ता, केडमियम, लेड (सीसा) वगैरह भी पाए जाते हैं । सीवेज में कई संक्रमणकारी सूक्ष्मजीव होते हैं । जैसे वायरस, प्रोटोजोआ और बैक्टीरिया । इनसे कई रोग फैलने का खतरा होता है, जैसे पोलियो, पेचिश, दस्ता, टायफाइड और वायरल हिपेटाइटिस (पीलिया) आदि ।
जब सीवेज मेंऑक्सीजन की मात्रा शून्य हो जाती है तब कुछ बैक्टीरिया श्वसन के लिए नाइट्रेट का अपचयन करते हैं । जब नाइट्रेट भी खत्म हो जाता है तब ये सल्फेट का अपचयन करते हैं जिससे हाइड्रोजन सल्फाइड गैस बनती है । सीवेज में दुर्गन्ध मुख्य रूप से हाइड्रोजन सल्फाइड, क्लोरीन, अमोनिया और फीनॉल्स के कारण आती है । शैवाल, फफूंद और अन्य सूक्ष्मजीव ही गंध का कारण होते हैं । गंदा पानी जितना ज्यादा अम्लीय होता है उतनी ही ज्यादा मात्रा में हाइड्रोजन सल्फाइड गैस बनती है ।
इस गैस की अधिकता से आसपास रहने वालों को आंखों में जलन, गले में खराश, खांस, उल्टी आना जैसे लक्षण पैदा होते हैं । ज्यादा परेशानी होने पर सांस फूलना और फेफडोंमें पानी भरने की भी शिकायत हो जाती है । अत: नालों की नियमित सफाई जरूरी है ।
साफ पानी में किचन और टायलेट का पानी मिलने से उसमें ऑक्सीजन की कमी हो जाती है । स्वच्छ पानी में घुलित ऑक्सीजन ५-७ मिलीग्राम प्रति लीटर होती है । परन्तु प्रदूषित पानी में यह २-३ मिलीग्राम प्रति लीटर रह जाती है । ज्यादा प्रदूषित पानी में यह शून्य भी हो सकती है । कार्बनिक प्रदूषण बढ़ने से पानी में घुलित ऑक्सीजन की मात्रा घटती है परन्तु बीओडी (जैविक ऑक्सीजन मांग) बढ़ जाती है । जब पानी में ऑक्सीजन की बहुत कमी हो जाती है तब पानी के वे सभी जीव-जन्तु मर जाते हैं जिन्हें जीने के लिए ऑक्सीजन की जरूरत होती है ।
अनॉक्सी परिस्थिति में दूसरे प्रदूषक पैदा होते हैं । जैसे हाइड्रोजन सल्फाइड, अमोनिया, कार्बनिक डाईसल्फाइड और मीथेन । हाइड्रोजन सल्फाइड पानी में पाए जाने वाले धात्विक आयनों से क्रिया करके सल्फाइड बनाती है जैसे जिंक सल्फाइड, आयरन सल्फाइड, लेड सल्फाइड आदि ।
ये सभी सल्फाइड काले भूरे रंग के होते हैं । यही कारण है कि गंदे नालों का पानी काला होता है । इन नालों की तलछट से हवा के बुलबुले भी निकलते रहते हैं जिनमें मुख्य रूप से हाइड्रोजन सल्फाइड और मीथेन गैस होती है ।
सिन्दूर को अंग्रेजी में वर्मीलान कहते हैं । यह मरक्यूरिक सल्फाइड है जो सिन्दूरी रंग का होता है । लगता है मांग में भरने वाला सिन्दूर यही है । यह जहरीला है । दूसरा सिन्दूर रेड लेड है जो लेड टेट्राऑक्साइड है । यह सिन्दूरी लाल रंग का होता है । हनुमान और गणेश की प्रतिमा पर चढ़ाया जाने वाला सिन्दूर यही है । इसे तेल या घी में मिलाकर चढ़ाया जाता है । मांग में भरने वाले सिन्दूर में भी इसे मिलाया जाता है । दोनों जहरीले पदार्थ है ।
गंदे नालों में बनने वाली हाइड्रोजन सल्फाइड का जो टेस्ट प्रदूषण जांच प्रयोगशाला में लगना चाहिए था, वह अब भगवान के दरबार में लग रहा है । बढ़ते प्रदूषण के संदर्भ में हमने पेड़-पौधों की पत्तियों, फूलोंऔर फलोंे पर बने जख्म (लक्षण) नहीं देखे । धरती पर घटती तितलियों और पक्षियों की संख्या पर गौर नहीं किया । वायु प्रदूषण एवं जल प्रदूषण से प्रति वर्ष हो रही हजारों मानव मृत्युआें पर ध्यान नहीं दिया । परन्तु जो टेस्ट भगवान लगा रहे हैं उस पर तो अब जरा गौर कर लें । सिन्दूर यानी लेड टेट्राऑक्साइड और हाइड्रोजन सल्फाइड गैस मिलकर लेड सल्फाइड बनता है । संभवत: यही क्रिया देव प्रतिमाआेंपर हुई है, और वे काली हो गई है ।
इस सिन्दूर का रंग फिर से हमें लौटाना है । अजब व सुखद संयोग है कि इधर हनुमान जी ने चेतावनी दी और उधर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने खान नदी शुद्धीकरण योजना की घोषणा की । उम्मीद की जाना चाहिये कि सिन्दूर सिन्दूरी ही रहेगा, कालिख नहीं बनेगा ।
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