पर्यावरण परिक्रमा
म.प्र. में प्लास्टिक अवशिष्ट से सड़कें बनेगी
मध्यप्रदेश में ग्रामीण विकास योजनाआें के बेहतर क्रियान्वयन के मकसद से अनेक नवाचार शुरू किये गये हैं, जिनसे गावों की तस्वीर बदल रही है । इसी क्रम मेंप्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में बनाई जा रही नई सड़कों और पूर्व में निर्मित सड़कों के पुनर्निर्माण मेंअब प्लास्टिक अपशिष्ट के उपयोग की पहल शुरू की गई है । इस नई तकनीक से बन रही सड़कों की चमक-दमक देखते ही बनती है । ये सड़कें अधिक टिकाऊ और मजबूत होती हैं ।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के वरिष्ठ अधिकारियों ने पहले तमिलनाडु जाकर सड़क निर्माण में प्लास्टिक अपशिष्ट के सफल उपयोग की तकनीक की विस्तार से जानकारी हासिल की । इंडियन रोड कांग्रेस ने भी इस बारे में विस्तृत मार्गदर्शिका सभी राज्यों को भेजी है । यह तकनीक पर्यावरण सुरक्षा, स्वच्छता के साथ आजीविका मुहैया करवाने में भी मददगार बन रही हैं । महानगरों और शहरों में रोजाना बड़ी तादाद में पोलीथीन बेग और अन्य प्लास्टिक अपशिष्ट कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है । जन स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए भी इसका सुरक्षित निपटान जरूरी है । सड़क निर्माण में इस अपशिष्ट के उपयोग से जहां स्वच्छता का वातावरण बनेगा, वहीं प्लास्टिक अपशिष्ट को एकत्रित करने वाले समूहों को आजीविका का नया साधन भी सुलभ होगा । इसके लिए स्वयं सेवी संगठन और कार्य एजेंसी की मदद से अपशिष्ट एकत्रित करने वालों को सुरक्षित तरीके सिखाने का इंतजाम भी होगा । प्रदेश के विभिन्न संभाग में पायलट प्रोजेक्ट के बतौर एक-एक चयनित ग्रामीण सड़क के पुननिर्माण परंपरागत सामग्री के साथ दस प्रतिशत मात्रा में प्लास्टिक अपशिष्ट को मिलाकर टिकाऊ और गुणवत्तापूर्ण निर्माण की दिशा में नई शुरूआत की गई हैं ।
ग्रामीण जन-जीवन को बेहतर बनाने तथा आवागमन सुविधाआें के विकास के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में बनाई जाने वाली सड़कों में प्लास्टिक अपशिष्ट के उपयोग के लिए मैदानी अमले और निर्माण एजेंसी को मौके पर ही प्रशिक्षण दिया जा रहा है । अब तक इंदौर, भोपाल और जबलपुर संभाग मेंचयनित एक-एक ग्रामीण सड़क पुनर्निर्माण के दौरान इस नई तकनीक की जानकारी संबंधित अमले को प्रदान की गई हैं ।
अब हिन्दी मेंहोगा एमबीबीएस
हिंदी भाषा मे अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग), प्रबंधन (मैनेजमेंट) और कृषि जैसे विषयों के बाद अब हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू करने की तैयारी अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय ने कर ली है । यदि मेडीकल काउंसिल ऑफ इंडिया बाधक नहीं बना तो अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विवि हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिले २०१५-१६ के शिक्षण सत्र से शुरू भी कर देगा । इसके बाद विवि प्रशासन, चिकित्सा की उच्च्तम पढ़ाई जैसे मास्टर ऑफ सर्जन (एमएस) और डॉक्टर ऑफ मेडीसन (एमडी) के लिए भी हिंदी पाठ्यक्रमों की तैयारी में जुटा हुआ है और आने वाले सालों में ये पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे । फिलहाल इस सत्र से विवि ने लेब टेक्नोलॉजी विषय में पैरामेडिकल, पाठ्यक्रम शुरू कर दिया है ।
अटल हिंदी विवि ने हिंदी एमबीबीएस पाठ्यक्रम का खाका भी तैयार कर लिया है । हालांकि हिंदी विवि ने तो इस पाठ्यक्रम को २०१४-१५ के शिक्षण सत्र से ही लागू करने की योजना बनाई थी । लेकिन वो परवान न चढ़ सकी ।
हिंदी मेंएमबीबीएस की राह में सबसे बड़ा रोड़ा इस पाठ्यक्रम के संचालन की अनुमति देने वाली शीर्ष संस्था मेडीकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) बन सकती है । इस पाठ्यक्रम को शुरू करने के लिए विश्वविद्यालय ने एमसीआई से सीधी अनुमति खत के जरिए मांगी लेकिन एमसीआई ने अपने जवाब में कहा कि हिंदी में ऐसा कोई भी पाठ्यक्रम संचालित नहीं किया जाता । इस जवाब के बाद हिंदी विवि ने हिंदी में एमबीबीएस का पाठ्यक्रम तैयार कर उसे मंजुरी के लिए एमसीआई को भेज दिया । फिलहाल एमसीआई ने चुप्पी साध ली है ।
अंग्रेजी भाषा से परेशान विद्यार्थियों के लिए अगर हिंदी में एमबीबीएस की शिक्षा शुरू हो जाएगी तो मध्यप्रदेश के साथ ही देश के हिंदी भाषी राज्योंखासतौर से इनके गांवों के हिंदी माध्यम से निकले प्रतिभाशाली विद्याथिर्योंा को मेडिकल में कैरियर बनाने का नया मौका मिलेगा ।
अगर हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू हो जाएगा तो देश में ये अपनी तरह का पहला एलौपेथी चिकित्सा का पाठ्यक्रम होगा ।
छात्रो ने बनाई विस्फोटक नष्ट करने वाली रोबोटिक व्हीकल
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के बारूदी सुरंग विस्फोट को नाकाम करने के लिए जगदलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के ६ छात्रों ने रोबोटिक व्हीकल बनाई है । छात्रों का दावा है कि इस मानवरहित रोबोटिक व्हीकल के जरिए घर बैठे ही जंगल, पहाड़ और सड़कों पर लगाए बम को ढूंढकर डिफ्यूज किया जा सकता है । फिलहाल यह जमीन में पांच फीट नीचे तक बम डिटेक्ट कर सकती है । छात्रों का कहना है कि कुछ राशि और खर्च कर इसकी कार्य क्षमता बढ़ाई जा सकती है । इलेक्ट्रानिक्स डिपार्टमेन्ट के फायनल ईयर के छात्र तपेन्द्र मंडल, देवेन्द्र यादव, सिकेश धु्रव, अरूण साहू, पोठान अनंत और अमित सिंह ने ६ माह की कड़ी मेहनत कर इस रोबोटिक व्हीकल को तैयार किया है ।
देवेन्द्र ने बताया कि उनका पूरा प्रोजेक्ट रेडियो फ्रिक्वेंसी पर काम करता है । इस व्हीकल के जरिए किसी भी मेटल को उसकी फ्रिक्वेंसी के हिसाब से ढूंढकर निकाला जा सकता है । बीएसएनएल के टीटीए दीपक शर्मा के अनुसार यह पूरी तरह से वायरलेस बेस्ड है । इसमें कुछ सुधार के बाद फिल्ड में उतारा जा सकता है ।
इस छोटी सी मानव रहित बम डिस्पोजल व्हीकल को सेटेलाइट से जोड़कर घर में बैठकर भी चलाया जा सकता है । इसमें जीपीएस सिस्टम लगाकर मोबाइल से भी ऑपरेट किया जा सकता है । व्हीकल के सामने एक कैमरा लग जाने के बाद इसे मोबाइल या सेटेलाइट से कनेक्ट कर घर बैठे ही विस्फोटक नाकाम किए जा सकते हैं । रोबोटिक व्हीकल तीन फीट लम्बी व दो फीट ऊंची है । इसे जंगल-पहाड़ समेत छोटे-छोटे पुल के नीचे लगे ह्यमू पाइपोंके अंदर भी ले जाया जा सकता है । व्हीकल महज चार हजार रूपये में तैयार हुई है । इसे सस्ता बनाने के लिए चेचिस में लकड़ी का प्रयोग किया गया है । इसमें मेटल डिटेक्टर, बम डिफ्यूज करने के लिए कटर और कुछ ट्रांसमीटर लगाए गए है । कटर भी रिमोट से चलता है ।
वैज्ञानिकों को १८ हजार नई प्रजातियां मिली
वैज्ञानिकों ने पिछले साल दुनियाभर में प्राणियों की १८ हजार नई प्रजातियों की खोज की । इनमें बिल्ली जैसा दिखने वाला भालू और जमीन में तीन हजार फीट नीचे रहने वाला बिना आंख का घोंघा शामिल है । वैज्ञानिकों ने पिछले दिनों को इन प्रजातियों का खुलासा करते हुए नई १० शीर्ष प्रजातियों की सूची भी जारी की । दुनिया भर में अब तक २० लाख प्रजातियों के होने की जानकारी थी । अब इनमें ये १८ हजार नई प्रजातियां और जुड़ गई है । वैज्ञानिकों का दावा है कि पृथ्वी पर अब भी करीब एक करोड़ प्रजातियों की खोज बाकी है । इनमें से कई तो विलुप्त् होने की कगार पर हैं । शीर्ष दस प्रजातियों के लिए बनी समिति के प्रमुख और नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल साइंस के जीव विज्ञानी एंटोनियो वाल्डेकेसस ने यह जानकारी दी ।
पश्चिमी गोलार्थ में पाया जाने वाला यह स्तनपायी है । यह बिल्ली और भालु का मिलाजुला रूप है । इसकी पत्तियां मुलायम लेकिन तलवार के आकार की है । इनमें सफेद फूल आते है । इनके तंतु नारंगी होते है । थाइलैण्ड के स्थानीय लोगों में यह जाना-माना था । लेकिन वैज्ञानिकों की पहुंच से दूर था ।
एक इंच लम्बा पीला कीड़ा अंटार्कटिका में मिला । बर्फ चट्टानों से चिपका रहता है । दो दर्जन पैरों के सहारे रेंगता है ।
यह उड़ने वाला कीट कोस्टारिका में मिला है । इसे दुनिया के सबसे छोटे कीटों में से एक माना जा रहा है ।
विलुप्त् पक्षियों की सूची में १५ भारतीय पक्षी भी शामिल
दुनिया भर के लुप्त्प्राय: पक्षियों की सूची में १५ भारतीय पक्षी भी शामिल हैं । जुलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन (जेडएसएल) तथा एल यूनिवर्सिटी ने दुनिया भर में पूरी तरह अलग-अलग और वैश्विक लुप्त्प्राय: इवोल्यूशनरी डिस्टिक्ट एण्ड ग्लोबली एन्डेन्जर्ड १०० प्रजातियों का अध्ययन किया है । अध्ययन में कहा गया है कि बेंगाल फ्लोरिकन, लेजर फ्लोरिकन, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, सोशिएबल लैपिविंग और जेर्डन्स कौर्सर वह पक्षी है जो घास वाले मैदानों तथा जंगलों के घटने से अपनी रिहायश में कमी के चलते संकट में हैं । चम्मच जैसी चोंच वाले सैंडपाइपर, साइबेरियाई सारस और सफेद चोच वाले हेरोन का अस्तित्व उनकी दलदली रिहायश पर निर्भर करता है । अध्ययन में कहा गया है कि मध्य भारत में पर्णपाती वनों के खत्म होने पर जंगली उल्लू का अस्तित्व ही नहीं बचेगा ।
म.प्र. में प्लास्टिक अवशिष्ट से सड़कें बनेगी
मध्यप्रदेश में ग्रामीण विकास योजनाआें के बेहतर क्रियान्वयन के मकसद से अनेक नवाचार शुरू किये गये हैं, जिनसे गावों की तस्वीर बदल रही है । इसी क्रम मेंप्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में बनाई जा रही नई सड़कों और पूर्व में निर्मित सड़कों के पुनर्निर्माण मेंअब प्लास्टिक अपशिष्ट के उपयोग की पहल शुरू की गई है । इस नई तकनीक से बन रही सड़कों की चमक-दमक देखते ही बनती है । ये सड़कें अधिक टिकाऊ और मजबूत होती हैं ।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना के वरिष्ठ अधिकारियों ने पहले तमिलनाडु जाकर सड़क निर्माण में प्लास्टिक अपशिष्ट के सफल उपयोग की तकनीक की विस्तार से जानकारी हासिल की । इंडियन रोड कांग्रेस ने भी इस बारे में विस्तृत मार्गदर्शिका सभी राज्यों को भेजी है । यह तकनीक पर्यावरण सुरक्षा, स्वच्छता के साथ आजीविका मुहैया करवाने में भी मददगार बन रही हैं । महानगरों और शहरों में रोजाना बड़ी तादाद में पोलीथीन बेग और अन्य प्लास्टिक अपशिष्ट कचरे के रूप में फेंक दिया जाता है । जन स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए भी इसका सुरक्षित निपटान जरूरी है । सड़क निर्माण में इस अपशिष्ट के उपयोग से जहां स्वच्छता का वातावरण बनेगा, वहीं प्लास्टिक अपशिष्ट को एकत्रित करने वाले समूहों को आजीविका का नया साधन भी सुलभ होगा । इसके लिए स्वयं सेवी संगठन और कार्य एजेंसी की मदद से अपशिष्ट एकत्रित करने वालों को सुरक्षित तरीके सिखाने का इंतजाम भी होगा । प्रदेश के विभिन्न संभाग में पायलट प्रोजेक्ट के बतौर एक-एक चयनित ग्रामीण सड़क के पुननिर्माण परंपरागत सामग्री के साथ दस प्रतिशत मात्रा में प्लास्टिक अपशिष्ट को मिलाकर टिकाऊ और गुणवत्तापूर्ण निर्माण की दिशा में नई शुरूआत की गई हैं ।
ग्रामीण जन-जीवन को बेहतर बनाने तथा आवागमन सुविधाआें के विकास के लिए प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में बनाई जाने वाली सड़कों में प्लास्टिक अपशिष्ट के उपयोग के लिए मैदानी अमले और निर्माण एजेंसी को मौके पर ही प्रशिक्षण दिया जा रहा है । अब तक इंदौर, भोपाल और जबलपुर संभाग मेंचयनित एक-एक ग्रामीण सड़क पुनर्निर्माण के दौरान इस नई तकनीक की जानकारी संबंधित अमले को प्रदान की गई हैं ।
अब हिन्दी मेंहोगा एमबीबीएस
हिंदी भाषा मे अभियांत्रिकी (इंजीनियरिंग), प्रबंधन (मैनेजमेंट) और कृषि जैसे विषयों के बाद अब हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू करने की तैयारी अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय ने कर ली है । यदि मेडीकल काउंसिल ऑफ इंडिया बाधक नहीं बना तो अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विवि हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम में दाखिले २०१५-१६ के शिक्षण सत्र से शुरू भी कर देगा । इसके बाद विवि प्रशासन, चिकित्सा की उच्च्तम पढ़ाई जैसे मास्टर ऑफ सर्जन (एमएस) और डॉक्टर ऑफ मेडीसन (एमडी) के लिए भी हिंदी पाठ्यक्रमों की तैयारी में जुटा हुआ है और आने वाले सालों में ये पाठ्यक्रम शुरू किए जाएंगे । फिलहाल इस सत्र से विवि ने लेब टेक्नोलॉजी विषय में पैरामेडिकल, पाठ्यक्रम शुरू कर दिया है ।
अटल हिंदी विवि ने हिंदी एमबीबीएस पाठ्यक्रम का खाका भी तैयार कर लिया है । हालांकि हिंदी विवि ने तो इस पाठ्यक्रम को २०१४-१५ के शिक्षण सत्र से ही लागू करने की योजना बनाई थी । लेकिन वो परवान न चढ़ सकी ।
हिंदी मेंएमबीबीएस की राह में सबसे बड़ा रोड़ा इस पाठ्यक्रम के संचालन की अनुमति देने वाली शीर्ष संस्था मेडीकल काउंसिल ऑफ इंडिया (एमसीआई) बन सकती है । इस पाठ्यक्रम को शुरू करने के लिए विश्वविद्यालय ने एमसीआई से सीधी अनुमति खत के जरिए मांगी लेकिन एमसीआई ने अपने जवाब में कहा कि हिंदी में ऐसा कोई भी पाठ्यक्रम संचालित नहीं किया जाता । इस जवाब के बाद हिंदी विवि ने हिंदी में एमबीबीएस का पाठ्यक्रम तैयार कर उसे मंजुरी के लिए एमसीआई को भेज दिया । फिलहाल एमसीआई ने चुप्पी साध ली है ।
अंग्रेजी भाषा से परेशान विद्यार्थियों के लिए अगर हिंदी में एमबीबीएस की शिक्षा शुरू हो जाएगी तो मध्यप्रदेश के साथ ही देश के हिंदी भाषी राज्योंखासतौर से इनके गांवों के हिंदी माध्यम से निकले प्रतिभाशाली विद्याथिर्योंा को मेडिकल में कैरियर बनाने का नया मौका मिलेगा ।
अगर हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम शुरू हो जाएगा तो देश में ये अपनी तरह का पहला एलौपेथी चिकित्सा का पाठ्यक्रम होगा ।
छात्रो ने बनाई विस्फोटक नष्ट करने वाली रोबोटिक व्हीकल
छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के बारूदी सुरंग विस्फोट को नाकाम करने के लिए जगदलपुर इंजीनियरिंग कॉलेज के ६ छात्रों ने रोबोटिक व्हीकल बनाई है । छात्रों का दावा है कि इस मानवरहित रोबोटिक व्हीकल के जरिए घर बैठे ही जंगल, पहाड़ और सड़कों पर लगाए बम को ढूंढकर डिफ्यूज किया जा सकता है । फिलहाल यह जमीन में पांच फीट नीचे तक बम डिटेक्ट कर सकती है । छात्रों का कहना है कि कुछ राशि और खर्च कर इसकी कार्य क्षमता बढ़ाई जा सकती है । इलेक्ट्रानिक्स डिपार्टमेन्ट के फायनल ईयर के छात्र तपेन्द्र मंडल, देवेन्द्र यादव, सिकेश धु्रव, अरूण साहू, पोठान अनंत और अमित सिंह ने ६ माह की कड़ी मेहनत कर इस रोबोटिक व्हीकल को तैयार किया है ।
देवेन्द्र ने बताया कि उनका पूरा प्रोजेक्ट रेडियो फ्रिक्वेंसी पर काम करता है । इस व्हीकल के जरिए किसी भी मेटल को उसकी फ्रिक्वेंसी के हिसाब से ढूंढकर निकाला जा सकता है । बीएसएनएल के टीटीए दीपक शर्मा के अनुसार यह पूरी तरह से वायरलेस बेस्ड है । इसमें कुछ सुधार के बाद फिल्ड में उतारा जा सकता है ।
इस छोटी सी मानव रहित बम डिस्पोजल व्हीकल को सेटेलाइट से जोड़कर घर में बैठकर भी चलाया जा सकता है । इसमें जीपीएस सिस्टम लगाकर मोबाइल से भी ऑपरेट किया जा सकता है । व्हीकल के सामने एक कैमरा लग जाने के बाद इसे मोबाइल या सेटेलाइट से कनेक्ट कर घर बैठे ही विस्फोटक नाकाम किए जा सकते हैं । रोबोटिक व्हीकल तीन फीट लम्बी व दो फीट ऊंची है । इसे जंगल-पहाड़ समेत छोटे-छोटे पुल के नीचे लगे ह्यमू पाइपोंके अंदर भी ले जाया जा सकता है । व्हीकल महज चार हजार रूपये में तैयार हुई है । इसे सस्ता बनाने के लिए चेचिस में लकड़ी का प्रयोग किया गया है । इसमें मेटल डिटेक्टर, बम डिफ्यूज करने के लिए कटर और कुछ ट्रांसमीटर लगाए गए है । कटर भी रिमोट से चलता है ।
वैज्ञानिकों को १८ हजार नई प्रजातियां मिली
वैज्ञानिकों ने पिछले साल दुनियाभर में प्राणियों की १८ हजार नई प्रजातियों की खोज की । इनमें बिल्ली जैसा दिखने वाला भालू और जमीन में तीन हजार फीट नीचे रहने वाला बिना आंख का घोंघा शामिल है । वैज्ञानिकों ने पिछले दिनों को इन प्रजातियों का खुलासा करते हुए नई १० शीर्ष प्रजातियों की सूची भी जारी की । दुनिया भर में अब तक २० लाख प्रजातियों के होने की जानकारी थी । अब इनमें ये १८ हजार नई प्रजातियां और जुड़ गई है । वैज्ञानिकों का दावा है कि पृथ्वी पर अब भी करीब एक करोड़ प्रजातियों की खोज बाकी है । इनमें से कई तो विलुप्त् होने की कगार पर हैं । शीर्ष दस प्रजातियों के लिए बनी समिति के प्रमुख और नेशनल म्यूजियम ऑफ नेचुरल साइंस के जीव विज्ञानी एंटोनियो वाल्डेकेसस ने यह जानकारी दी ।
पश्चिमी गोलार्थ में पाया जाने वाला यह स्तनपायी है । यह बिल्ली और भालु का मिलाजुला रूप है । इसकी पत्तियां मुलायम लेकिन तलवार के आकार की है । इनमें सफेद फूल आते है । इनके तंतु नारंगी होते है । थाइलैण्ड के स्थानीय लोगों में यह जाना-माना था । लेकिन वैज्ञानिकों की पहुंच से दूर था ।
एक इंच लम्बा पीला कीड़ा अंटार्कटिका में मिला । बर्फ चट्टानों से चिपका रहता है । दो दर्जन पैरों के सहारे रेंगता है ।
यह उड़ने वाला कीट कोस्टारिका में मिला है । इसे दुनिया के सबसे छोटे कीटों में से एक माना जा रहा है ।
विलुप्त् पक्षियों की सूची में १५ भारतीय पक्षी भी शामिल
दुनिया भर के लुप्त्प्राय: पक्षियों की सूची में १५ भारतीय पक्षी भी शामिल हैं । जुलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन (जेडएसएल) तथा एल यूनिवर्सिटी ने दुनिया भर में पूरी तरह अलग-अलग और वैश्विक लुप्त्प्राय: इवोल्यूशनरी डिस्टिक्ट एण्ड ग्लोबली एन्डेन्जर्ड १०० प्रजातियों का अध्ययन किया है । अध्ययन में कहा गया है कि बेंगाल फ्लोरिकन, लेजर फ्लोरिकन, ग्रेट इंडियन बस्टर्ड, सोशिएबल लैपिविंग और जेर्डन्स कौर्सर वह पक्षी है जो घास वाले मैदानों तथा जंगलों के घटने से अपनी रिहायश में कमी के चलते संकट में हैं । चम्मच जैसी चोंच वाले सैंडपाइपर, साइबेरियाई सारस और सफेद चोच वाले हेरोन का अस्तित्व उनकी दलदली रिहायश पर निर्भर करता है । अध्ययन में कहा गया है कि मध्य भारत में पर्णपाती वनों के खत्म होने पर जंगली उल्लू का अस्तित्व ही नहीं बचेगा ।
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