विज्ञान जगत
हत्यारे रोबोट से भयभीत सभ्यता
चिन्मय मिश्र
अफगानिस्तान पर अमेरिकीं आक्रमण ने युद्ध के साजो-सामान में एक नए घातक अस्त्र `ड्रोन विमानों` को जगह दिलवा दी । ये ड्रोन विमान हजारों मील दूर बैठे लोगों द्वारा संचालित होते हैं और मनचाही जगह को खाक कर देते हैं ।
ड्रोन विमानों के इस विध्वंसकारी प्रवेश के युद्ध की तस्वीर ही बदल डाली है और उसमें क्रूरता और संवेदनहीनता लगातार बढ़ती जा रही है । किसी शादी ब्याह या चौपाल में अपने समुदाय के साथ कथित युद्ध अपराधी को अब चिन्हित कर नहीं मारा जाता बल्कि वह सारा क्षेत्र/घर ही उड़ा दिया जाता है । गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने कहा था `जब मैंकार्रवाही करूंगा तो २० लाख डॉलर के एक प्रक्षेपास्त्र को १० डॉलर के किसी खाली तंबू पर नहीं छोड़ूंगा जो किसी ऊंट के कूल्हे पर जाकर लगे ।`
हत्यारे रोबोट से भयभीत सभ्यता
चिन्मय मिश्र
अफगानिस्तान पर अमेरिकीं आक्रमण ने युद्ध के साजो-सामान में एक नए घातक अस्त्र `ड्रोन विमानों` को जगह दिलवा दी । ये ड्रोन विमान हजारों मील दूर बैठे लोगों द्वारा संचालित होते हैं और मनचाही जगह को खाक कर देते हैं ।
ड्रोन विमानों के इस विध्वंसकारी प्रवेश के युद्ध की तस्वीर ही बदल डाली है और उसमें क्रूरता और संवेदनहीनता लगातार बढ़ती जा रही है । किसी शादी ब्याह या चौपाल में अपने समुदाय के साथ कथित युद्ध अपराधी को अब चिन्हित कर नहीं मारा जाता बल्कि वह सारा क्षेत्र/घर ही उड़ा दिया जाता है । गौरतलब है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश ने कहा था `जब मैंकार्रवाही करूंगा तो २० लाख डॉलर के एक प्रक्षेपास्त्र को १० डॉलर के किसी खाली तंबू पर नहीं छोड़ूंगा जो किसी ऊंट के कूल्हे पर जाकर लगे ।`
वस्तुत: क्रूरता को अभी विराम नहीं दिया जा रहा है और इस भयावहता या जघन्यता की अगली कड़ी के रूप में अब `रोबोट` सैनिक तैयार करने की कोशिश प्रारंभ हो गई है । अगर सबकुछ ऐसा ही चला तो अगले बीस वर्षों में किसी विज्ञान फिल्म की यह परिकल्पना हकीकत में बदल जाएगी । इसके विध्वंसक प्रभावों को लेकर सभी ओर चिंता जाहिर की जा रही है और यह प्रयास किए जा रहे हैं कि विकसित होने के पहले ही इन्हें प्रतिबंधित कर दिया जाए । लेकिन क्या इन `हत्यारे रोबोटों` को रोक पाना इतना आसान है ? हाल ही में जेनेवा में नि:शस्त्रीकरण पर हो रहे सम्मेलन में इस संबंध में विस्तृत चर्चा हुई है ।
इस नए आयुध को कमोवेश परमाणु बम से अधिक हानिकारक माना जा रहा है । इसकी वजह यह है कि ये नए रोबोट सिर्फ स्वचलित ही नहीं होंगे बल्कि ये स्वतंत्र या स्वायत्त भी होंगे और कमोबेश ड्रोन विमानों से भी उन्नत होंगे । जिन्हें कि मानव द्वारा निर्देशित किया जाता है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र के इस नि:शस्त्रीकरण सम्मेलन के प्रमुख माइकल मोलेर ने कहा है कि `मैं प्रतिनिधियों से निर्भीक होकर कोर निर्णय लेने की अपील करता हूं । अक्सर अंतरराष्ट्रीय कानून ज्यादतियों के खिलाफ तभी कार्यवाही करते हैं जब वो हो जाती हैं । आपके सामने मौका है कि समय रहते यह निर्णय लें और सुनिश्चित करें कि जीवन को समाप्त करने का निर्णय पूरी मजबूती के साथ मानव के नियंत्रण में रहे ।`
मजेदार बात यह है कि जिस व्यक्ति ने `रोबोट` शब्द को वर्तमान अर्थों में प्रचलित किया वह संभवत: इसके अंतिम परिणाम को भी भांप चुका था। गौरतलब है कि सन् १९२० में चेकोस्लोवाकिया ने नाट्य लेखक कारेल कापेक ने एक वैज्ञानिक गल्प नाटक `रोजुम यूनिवर्सल रोबोट्स` लिखा । चेक भाषा में रोबोट के अर्थ हैं कोल्हू का बैल या नीरस काम में लगा होना या दासता । वही रोबोटेनी का अर्थ है कृषि दास । कापेक रोबोट वर्तमान `क्लोन` के ज्यादा नजदीक बैठता है । वे तकनीक ओर बहुत आशा से नहीं देखते थे । उनके मस्तिष्क में हमेशा प्रथम विश्वयुद्ध की विभीषिकाओं की स्मृति बनी रहती थी, जिसमें तकनीक का मानवता के खिलाफ व्यापक उपयोग किया गया था । कापेक बहुत अच्छे से जानते थे कि भावना रहित तकनीक मानवता के लिए व्यर्थ साबित होगी । उनके अनुसार कई बार हम सब रोबोट की तरह ही व्यवहार करते हैं ।
कथानक के अनुसार सन् १९२० में रोजुम नाम का एक व्यक्ति समुद्रीय जीवन विज्ञान के अध्ययन हेतु एक द्वीप में आया । सन् १९३२ में अचानक उसके हाथ में एक रसायन आ गया जो कि एक जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) की तरह कार्य करता था । रोजुम ने इससे एक कुत्ता और मनुष्य बनाने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा अंतत: सन् १९५० या ६० में उसका भतीजा रोबोट बनाने में सफल हो गया । लेकिन इस नाटक के तीसरे अंक में ज्ञात होता है कि रोबोट की सर्वव्यापकता अब खतरा बनती जा रही है । परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि रोबोट उस कारखाने पर कब्जा कर लेते हैं और एक व्यक्ति अलक्वेस्ट को छोड़कर सभी को मार देते हैं । चूंकि अलवेस्ट `रोबोट` जैसे ही कार्य का आदी था इसलिए बच गया । नाटक के उपसंहार में पता चलता है कि अनेक बरस बीत गए हैं `रोबोट क्रांति` के फलस्वरूप सभी मनुष्य सिवाए अलक्वेस्ट के, मारे जा चुके हैं ।
अलक्वेस्ट किसी बचे मनुष्य को तलाशने का आग्रह करता है, लेकिन वहां एक भी बाकी नहीं बचा है । रोबोटों की सरकार पुन: उससे आग्रह करती है कि वह फार्मूले को पूरा करे और इस प्रक्रिया में वह अन्य किसी भी रोबोट का मारकर उसका शवच्छेदन (डिसेक्शन) कर सकता है। इस बीच दो रोबोटों में मानवीय भावना का विकास हो गया और वे आपस में प्रेम करने लगे । अलक्वेस्ट इससे नाराज हो गया । उसने दोनों को डिसेक्शन की धमकी दी । वे दोनों उससे स्वयं को ले जाने और दूसरे को छोड़ने का आग्रह करने लगे । अलक्वेस्ट को लगा कि ये नए एडम और ईव हैं ।
मगर यह तो एक कहानी है । क्या वास्तव में रोबोट ऐसी किसी स्थिति को प्राप्त हो सकते हैं या हमें पूरी मानवता के नष्ट होने का इंतजार करना ही पड़ेगा । वैसे यहां दक्षिण कोरिया के सेमसंग चौकीदार रोबोट का उल्लेख करना समीचीन होगा । इस रोबोट में क्षमता है कि वह किसी भी असामान्य गतिविधि को भांप सकता है, घुसपैठिये से बातचीत कर सकता है और किसी मानव नियंत्रक द्वारा अधिकृत किए जाने के बाद उसे गोली भी मार सकता है । परंतु सबसे चिंताजनक बात यह है कि संभवत: इस दिशा में अगला कदम यह होगा कि वह बिना मानव आदेश के भी `स्वविवेक` से गोली चला सकता है । गौरतलब है इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान के राजदूत जमीर अकरम ने कहा `प्राणघातक स्वतंत्र आयुध प्राणियों को सैन्य तकनीक में प्रयोग को अगली क्रांति कहा गया है और इसे बारूद एवं परमाणु हथियारों की खोज के समकक्ष ही रखा गया है ।`
सन् १९३२ में लीग ऑफनेशंस ने महान भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन से कहा था कि वे युद्ध को लेकर अपने किसी समकक्ष से संवाद करें। आइंस्टीन ने प्रख्यात मनोवैज्ञाानिक सिगमंड फ्रायड को `क्या दुनिया को युद्ध से बचाने का कोई उपाय है` विषय पर पत्र में लिखा था, `निहित स्वार्थों वाले एक छोटे समूह के लिए लोगों में युद्ध उन्माद पैदा करना इसलिए संभव होता है क्योंकि आदमी के भीतर ही घृणा और विध्वंस की लिप्सा होती है । सामान्य समय में यह हिंसा प्रच्छन्न रहती है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में इसे पागलपन में बदला जा सकता है।`
फ्रायड ने भी इस बात से सहमति जताई थी । इसके अगले ही साल १९३३ में हिटलर ने जर्मनी की बागडोर संभाली और...! लेकिन इसके भी दो दशक पहले यानि प्रथम विश्वयुद्ध के पहले गांधीजी ने पश्चिमी युद्ध सभ्यता पर हिंद स्वराज में लिखा था, `यह सभ्यता ही ऐसी है कि अगर हम धीरज धर कर बैठ गए, तो सभ्यता की चपेट में आए हुए लोग खुद की जलाई हुई आग में जल मरेंगे । पैगंबर मोहम्मद साहब की सीख के मुताबिक यह शैतानी सभ्यता है । हिंदू धर्म इसे निरा `कलजुग` कहता है । मैं आपके सामने इस सभ्यता का हूबहू चित्र नहीं खींच सकता, यह मेरी शक्ति के बाहर है । लेकिन आप समझ सकेंगे कि इस सभ्यता के कारण अंग्रेज प्रजा में सड़न ने घर कर लिया है । यह सभ्यता दूसरों का नाश करने वाली और खुद नाशवान है ।`
तकरीबन सौ वर्षों पश्चात उनकी बात अक्षरश: सच साबित हो रही है । मोन्सेंटो जैसी कंपनियों ने कारखानों जैसे खेतों में टर्मिनेटर बीज बना दिए जिनमें पुर्नउत्पादन या प्रजनन की क्षमता नहीं है और अब इससे आगे जाकर अब वे जीएम बीज फैलाकर पूरी धरती की प्रजनन क्षमता को अपने नियंत्रण में कर देना चाहते हैं । स्वतंत्र रोबोट हत्यारे बनाकर उन्हें सैनिकों में परिवर्तित करना भी मनुष्य और मनुष्यता को सीमित करने का ही अगला उपाय है । कारेल कापेक ने रोजुम युनिवर्सल रोबोट लिखते समय यह सोचा भी नहीं होगा कि महज ९० वर्षों में उनका डर सही साबित हो जाएगा । अत्यंत आशावादी होते हुए अंत में उन्होंने अपने रोबोट को आदम एवं ईव के रूप में देखा था, जिनसे मानवता का नया इतिहास प्रारंभ होगा । लेकिन हमारे समय में तो आदमी स्वयं ही रोबोट बनता जा रहा है ।
इस नए आयुध को कमोवेश परमाणु बम से अधिक हानिकारक माना जा रहा है । इसकी वजह यह है कि ये नए रोबोट सिर्फ स्वचलित ही नहीं होंगे बल्कि ये स्वतंत्र या स्वायत्त भी होंगे और कमोबेश ड्रोन विमानों से भी उन्नत होंगे । जिन्हें कि मानव द्वारा निर्देशित किया जाता है। इसीलिए संयुक्त राष्ट्र के इस नि:शस्त्रीकरण सम्मेलन के प्रमुख माइकल मोलेर ने कहा है कि `मैं प्रतिनिधियों से निर्भीक होकर कोर निर्णय लेने की अपील करता हूं । अक्सर अंतरराष्ट्रीय कानून ज्यादतियों के खिलाफ तभी कार्यवाही करते हैं जब वो हो जाती हैं । आपके सामने मौका है कि समय रहते यह निर्णय लें और सुनिश्चित करें कि जीवन को समाप्त करने का निर्णय पूरी मजबूती के साथ मानव के नियंत्रण में रहे ।`
मजेदार बात यह है कि जिस व्यक्ति ने `रोबोट` शब्द को वर्तमान अर्थों में प्रचलित किया वह संभवत: इसके अंतिम परिणाम को भी भांप चुका था। गौरतलब है कि सन् १९२० में चेकोस्लोवाकिया ने नाट्य लेखक कारेल कापेक ने एक वैज्ञानिक गल्प नाटक `रोजुम यूनिवर्सल रोबोट्स` लिखा । चेक भाषा में रोबोट के अर्थ हैं कोल्हू का बैल या नीरस काम में लगा होना या दासता । वही रोबोटेनी का अर्थ है कृषि दास । कापेक रोबोट वर्तमान `क्लोन` के ज्यादा नजदीक बैठता है । वे तकनीक ओर बहुत आशा से नहीं देखते थे । उनके मस्तिष्क में हमेशा प्रथम विश्वयुद्ध की विभीषिकाओं की स्मृति बनी रहती थी, जिसमें तकनीक का मानवता के खिलाफ व्यापक उपयोग किया गया था । कापेक बहुत अच्छे से जानते थे कि भावना रहित तकनीक मानवता के लिए व्यर्थ साबित होगी । उनके अनुसार कई बार हम सब रोबोट की तरह ही व्यवहार करते हैं ।
कथानक के अनुसार सन् १९२० में रोजुम नाम का एक व्यक्ति समुद्रीय जीवन विज्ञान के अध्ययन हेतु एक द्वीप में आया । सन् १९३२ में अचानक उसके हाथ में एक रसायन आ गया जो कि एक जीवद्रव्य (प्रोटोप्लाज्म) की तरह कार्य करता था । रोजुम ने इससे एक कुत्ता और मनुष्य बनाने का प्रयास किया, लेकिन वह असफल रहा अंतत: सन् १९५० या ६० में उसका भतीजा रोबोट बनाने में सफल हो गया । लेकिन इस नाटक के तीसरे अंक में ज्ञात होता है कि रोबोट की सर्वव्यापकता अब खतरा बनती जा रही है । परिस्थितियां ऐसी बनती हैं कि रोबोट उस कारखाने पर कब्जा कर लेते हैं और एक व्यक्ति अलक्वेस्ट को छोड़कर सभी को मार देते हैं । चूंकि अलवेस्ट `रोबोट` जैसे ही कार्य का आदी था इसलिए बच गया । नाटक के उपसंहार में पता चलता है कि अनेक बरस बीत गए हैं `रोबोट क्रांति` के फलस्वरूप सभी मनुष्य सिवाए अलक्वेस्ट के, मारे जा चुके हैं ।
अलक्वेस्ट किसी बचे मनुष्य को तलाशने का आग्रह करता है, लेकिन वहां एक भी बाकी नहीं बचा है । रोबोटों की सरकार पुन: उससे आग्रह करती है कि वह फार्मूले को पूरा करे और इस प्रक्रिया में वह अन्य किसी भी रोबोट का मारकर उसका शवच्छेदन (डिसेक्शन) कर सकता है। इस बीच दो रोबोटों में मानवीय भावना का विकास हो गया और वे आपस में प्रेम करने लगे । अलक्वेस्ट इससे नाराज हो गया । उसने दोनों को डिसेक्शन की धमकी दी । वे दोनों उससे स्वयं को ले जाने और दूसरे को छोड़ने का आग्रह करने लगे । अलक्वेस्ट को लगा कि ये नए एडम और ईव हैं ।
मगर यह तो एक कहानी है । क्या वास्तव में रोबोट ऐसी किसी स्थिति को प्राप्त हो सकते हैं या हमें पूरी मानवता के नष्ट होने का इंतजार करना ही पड़ेगा । वैसे यहां दक्षिण कोरिया के सेमसंग चौकीदार रोबोट का उल्लेख करना समीचीन होगा । इस रोबोट में क्षमता है कि वह किसी भी असामान्य गतिविधि को भांप सकता है, घुसपैठिये से बातचीत कर सकता है और किसी मानव नियंत्रक द्वारा अधिकृत किए जाने के बाद उसे गोली भी मार सकता है । परंतु सबसे चिंताजनक बात यह है कि संभवत: इस दिशा में अगला कदम यह होगा कि वह बिना मानव आदेश के भी `स्वविवेक` से गोली चला सकता है । गौरतलब है इस सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र संघ में पाकिस्तान के राजदूत जमीर अकरम ने कहा `प्राणघातक स्वतंत्र आयुध प्राणियों को सैन्य तकनीक में प्रयोग को अगली क्रांति कहा गया है और इसे बारूद एवं परमाणु हथियारों की खोज के समकक्ष ही रखा गया है ।`
सन् १९३२ में लीग ऑफनेशंस ने महान भौतिक विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टीन से कहा था कि वे युद्ध को लेकर अपने किसी समकक्ष से संवाद करें। आइंस्टीन ने प्रख्यात मनोवैज्ञाानिक सिगमंड फ्रायड को `क्या दुनिया को युद्ध से बचाने का कोई उपाय है` विषय पर पत्र में लिखा था, `निहित स्वार्थों वाले एक छोटे समूह के लिए लोगों में युद्ध उन्माद पैदा करना इसलिए संभव होता है क्योंकि आदमी के भीतर ही घृणा और विध्वंस की लिप्सा होती है । सामान्य समय में यह हिंसा प्रच्छन्न रहती है, लेकिन विशेष परिस्थितियों में इसे पागलपन में बदला जा सकता है।`
फ्रायड ने भी इस बात से सहमति जताई थी । इसके अगले ही साल १९३३ में हिटलर ने जर्मनी की बागडोर संभाली और...! लेकिन इसके भी दो दशक पहले यानि प्रथम विश्वयुद्ध के पहले गांधीजी ने पश्चिमी युद्ध सभ्यता पर हिंद स्वराज में लिखा था, `यह सभ्यता ही ऐसी है कि अगर हम धीरज धर कर बैठ गए, तो सभ्यता की चपेट में आए हुए लोग खुद की जलाई हुई आग में जल मरेंगे । पैगंबर मोहम्मद साहब की सीख के मुताबिक यह शैतानी सभ्यता है । हिंदू धर्म इसे निरा `कलजुग` कहता है । मैं आपके सामने इस सभ्यता का हूबहू चित्र नहीं खींच सकता, यह मेरी शक्ति के बाहर है । लेकिन आप समझ सकेंगे कि इस सभ्यता के कारण अंग्रेज प्रजा में सड़न ने घर कर लिया है । यह सभ्यता दूसरों का नाश करने वाली और खुद नाशवान है ।`
तकरीबन सौ वर्षों पश्चात उनकी बात अक्षरश: सच साबित हो रही है । मोन्सेंटो जैसी कंपनियों ने कारखानों जैसे खेतों में टर्मिनेटर बीज बना दिए जिनमें पुर्नउत्पादन या प्रजनन की क्षमता नहीं है और अब इससे आगे जाकर अब वे जीएम बीज फैलाकर पूरी धरती की प्रजनन क्षमता को अपने नियंत्रण में कर देना चाहते हैं । स्वतंत्र रोबोट हत्यारे बनाकर उन्हें सैनिकों में परिवर्तित करना भी मनुष्य और मनुष्यता को सीमित करने का ही अगला उपाय है । कारेल कापेक ने रोजुम युनिवर्सल रोबोट लिखते समय यह सोचा भी नहीं होगा कि महज ९० वर्षों में उनका डर सही साबित हो जाएगा । अत्यंत आशावादी होते हुए अंत में उन्होंने अपने रोबोट को आदम एवं ईव के रूप में देखा था, जिनसे मानवता का नया इतिहास प्रारंभ होगा । लेकिन हमारे समय में तो आदमी स्वयं ही रोबोट बनता जा रहा है ।
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