प्रसंगवश
वृक्षों प्रजातियों के चुनाव में सावधानी जरूरी
कुछ समय पहले ओडिशा में चक्रवात के दौरान देखा गया कि जहां स्थानीय प्रजातियों के मजबूत पेड़ लगे थे, वे चक्रवात की मार सहने में कहीं अधिक सक्षम सिद्ध हुए, वहीं विदेशी व सजावटी प्रजातियों के पेड़ ज्यादा क्षतिग्रस्त हुए । इतना ही नहीं, नारियल की विदेशी प्रजातियों के पेड़ों की भी चक्रवात की तेज हवाआेंसे अधिक क्षति हुई जबकि स्थानीय प्रजातियों के पेड़ चक्रवात का सामना करने में सफल रहे । इससे यह संदेश मिला है कि वृक्षारोपण व बागवानी में स्थानीय प्रजातियों के पेड़ों को अधिक महत्व देना चाहिए । यह केवल समुद्र तटीय क्षेत्रों का नहीं अपितु पूरे देश का अनुभव रहा है कि स्थानीय प्रजातियों व किस्मों की उपेक्षा होने से कई तरह की क्षति हुई है ।
पहले गांवों में व सड़कों के आसपास जो पेड़ होते थे वे स्थानीय जलवायु व मौसम के अनुकूल होते थे और कई तरह की विषम परिस्थितियों, जैसे तूफान, बाढ़ व सूखे के प्रति उनकी सहन क्षमता अधिक होती थी । उनमें मिट्टी व जल संरक्षण की क्षमता भी बेहतर थी । इन वृक्षों की एक बड़ी भूमिका कुपोषण दूर करने में भी रही है क्योंकि इनके माध्यम से कई तरह के पौष्टिक फल व अन्य खाद्य पदार्थ सबसे निर्धन गांववासियों को सुलभ रहे हैं । ऐसे कुछ वृक्षों से पौष्टिक सब्जियों व औषधियां भी उपलब्ध होती रही हैं । इन वृक्षों में खेती किसानी व पर्यावरण की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले अनेक पक्षियों व कीट-पतंगों को भी आश्रय व भोजन मिलता रहा है । स्थानीय प्रजातियों के अनेक पेड़ पौष्टिक चारे का बहुमूल्य स्त्रोत रहे हैं । पशुपालन को मजबूती देने में इनकी बड़ी भूमिका रही है ।
स्थानीय प्रजातियों के मिश्रित वनों की एक बड़ी भूमिका यह रही है कि वे अधिक टिकाऊ है व इनके वृक्ष एक दूसरे के पूरक होते हैं । जैसे अलग-अलग प्रजातियों के ऐसे पेड़ों की जड़े एक-दूसरे की राह में बाधा नहीं बनती है । दूसरी ओर, जब कृत्रिम रूप से एक ही किस्म के पेड़ सरकारी पौधारोपण कार्यक्रम में लगते हैं तो उनकी जड़ों में आपसी प्रतिस्पर्धा व टकराव की स्थिति बन सकती है जिससे इनका आधार मजबूत नहीं होता और ये हल्के आंधी-तूफान से भी गिर जाते हैं । अत: वृक्षारोपण व बागवानी के कार्यक्रमों में मिश्रित स्थानीय प्रजातियों पर जोर दिया जाना चाहिए । हाल के समय में विदेशी व सजावटी पेड़ों को जो अधिक महत्व दिया गया है वह उचित नहीं है । विभिन्न परियोजनाआें व राजमार्ग आदि के निर्माण में बहुत सी स्थानीय प्रजातियों के बहुमूल्य पेड़ों को अनावश्यक रूप से काटा जा रहा है । कई बार इससे आर्थिक स्वार्थ में जुड़े होते है । जहां तक संभव हो, सभी वृक्षों को बचाने का भरपूर प्रयास किया जाना चाहिए ।
वृक्षों प्रजातियों के चुनाव में सावधानी जरूरी
कुछ समय पहले ओडिशा में चक्रवात के दौरान देखा गया कि जहां स्थानीय प्रजातियों के मजबूत पेड़ लगे थे, वे चक्रवात की मार सहने में कहीं अधिक सक्षम सिद्ध हुए, वहीं विदेशी व सजावटी प्रजातियों के पेड़ ज्यादा क्षतिग्रस्त हुए । इतना ही नहीं, नारियल की विदेशी प्रजातियों के पेड़ों की भी चक्रवात की तेज हवाआेंसे अधिक क्षति हुई जबकि स्थानीय प्रजातियों के पेड़ चक्रवात का सामना करने में सफल रहे । इससे यह संदेश मिला है कि वृक्षारोपण व बागवानी में स्थानीय प्रजातियों के पेड़ों को अधिक महत्व देना चाहिए । यह केवल समुद्र तटीय क्षेत्रों का नहीं अपितु पूरे देश का अनुभव रहा है कि स्थानीय प्रजातियों व किस्मों की उपेक्षा होने से कई तरह की क्षति हुई है ।
पहले गांवों में व सड़कों के आसपास जो पेड़ होते थे वे स्थानीय जलवायु व मौसम के अनुकूल होते थे और कई तरह की विषम परिस्थितियों, जैसे तूफान, बाढ़ व सूखे के प्रति उनकी सहन क्षमता अधिक होती थी । उनमें मिट्टी व जल संरक्षण की क्षमता भी बेहतर थी । इन वृक्षों की एक बड़ी भूमिका कुपोषण दूर करने में भी रही है क्योंकि इनके माध्यम से कई तरह के पौष्टिक फल व अन्य खाद्य पदार्थ सबसे निर्धन गांववासियों को सुलभ रहे हैं । ऐसे कुछ वृक्षों से पौष्टिक सब्जियों व औषधियां भी उपलब्ध होती रही हैं । इन वृक्षों में खेती किसानी व पर्यावरण की रक्षा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले अनेक पक्षियों व कीट-पतंगों को भी आश्रय व भोजन मिलता रहा है । स्थानीय प्रजातियों के अनेक पेड़ पौष्टिक चारे का बहुमूल्य स्त्रोत रहे हैं । पशुपालन को मजबूती देने में इनकी बड़ी भूमिका रही है ।
स्थानीय प्रजातियों के मिश्रित वनों की एक बड़ी भूमिका यह रही है कि वे अधिक टिकाऊ है व इनके वृक्ष एक दूसरे के पूरक होते हैं । जैसे अलग-अलग प्रजातियों के ऐसे पेड़ों की जड़े एक-दूसरे की राह में बाधा नहीं बनती है । दूसरी ओर, जब कृत्रिम रूप से एक ही किस्म के पेड़ सरकारी पौधारोपण कार्यक्रम में लगते हैं तो उनकी जड़ों में आपसी प्रतिस्पर्धा व टकराव की स्थिति बन सकती है जिससे इनका आधार मजबूत नहीं होता और ये हल्के आंधी-तूफान से भी गिर जाते हैं । अत: वृक्षारोपण व बागवानी के कार्यक्रमों में मिश्रित स्थानीय प्रजातियों पर जोर दिया जाना चाहिए । हाल के समय में विदेशी व सजावटी पेड़ों को जो अधिक महत्व दिया गया है वह उचित नहीं है । विभिन्न परियोजनाआें व राजमार्ग आदि के निर्माण में बहुत सी स्थानीय प्रजातियों के बहुमूल्य पेड़ों को अनावश्यक रूप से काटा जा रहा है । कई बार इससे आर्थिक स्वार्थ में जुड़े होते है । जहां तक संभव हो, सभी वृक्षों को बचाने का भरपूर प्रयास किया जाना चाहिए ।
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