गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

जनजीवन
कचड़ा सिर्फ सड़क पर नहीं होता
न्या. चन्द्रशेखर धर्माधिकारी

    स्वच्छता अभियान को महज भौतिकसंसाधनों से जोड़कर देखने से इसे गांधी द्वारा परिकल्पित स्वच्छता अभियान नहीं माना जा सकता । शुद्ध वातावरण के समानांतर शुद्ध अंत:करण भी अनिवार्य है । दोनों में से किसी एक की अनुपस्थिति हमें और हमारे समाज को अपूर्ण बनाती है ।
    स्वच्छ भारत अभियान या सफाई के कार्यक्रम का स्वागत इसलिए करना चाहिए क्योंकि यह  `फैशनेबल इवेंट` नहीं, बल्कि प्रायश्चित का कार्यक्रम है। `झाड़ू` गांधी की सामाजिक विषमता तथा जात-पात पर आधारित ऊंच-नीच की भावना समाप्त करने वाली सामाजिक क्रांति का प्रतीक थी । वैसे भी क्रांति का अंकगणित नहीं होता, `प्रतीक` होते हैं। 
     झाड़ू या सफाई का कार्यक्रम जाति निवारण का व वर्ग निराकरण का भी प्रतीक था । उस क्रांति के पीछे भारत के सभी लोगों में समरसता और समान भ्रातृत्व भावना निर्माण करना, जो धर्म, भाषा, प्रदेश या वर्ग पर आधारित सभी भेदभाव के परे हो, की भावना थी । असमानता में विश्वास रखने वालों के लिए स्वच्छता अभियान अखबार की खबर और हाथ में झाड़ू लेकर फोटो का पोज् छपवा लेने का कार्यक्रम है । सफाई कामगार को तो आज पीने के लिए स्वच्छ पानी भी नसीब नहीं होता । जिनके मन `स्वच्छ` नहीं होंगे, उनके लिए यह `स्वच्छता अभियान` गांधी के क्रांति के प्रतीक झाड़ू की जगह नहीं ले पाएगा ।
    इससे उस अभियान के पीछे की भावना ही लुप्त हो जाएगी । शेष बचेगी सिर्फ शासकीय औपचारिकता। हमारे समाज में आज सफाई कामगार से गंदगी और कचरा करने वाले उच्च्वर्णीय और उच्च्वर्गीय लोगों की प्रतिष्ठा अधिक है। विसंगति और विरोधाभासी जात-पात पर आधारित सामाजिक विषमता जब तक समाप्त नहीं होगी, तब तक यह अभियान प्राणदायी नहीं बनेगा । इस अभियान की `एकला चलो रे` की घोषणा भी स्वागत योग्य है । गांधीजी भी व्यक्तिगत चारित्र्य और व्यवहार पर जोर देते थे ।
    सफाई में विश्वास रखने वालों को स्पष्ट करना होगा कि वे जातिभेद या वर्गभेद पर आधारित विषमता को अपने निजी जीवन में स्थान नहीं देंगे और न ही उसमें शामिल होंगे । साथ ही `मेरा जीवन ही मेरा संदेश है`, मानने वाले गांधीजी की विचारधारा और जीवनप्रणाली का निजी तथा सार्वजनिक जीवन में पालन करेंगे । वे लोग उन मंदिरों में नहीं जाएंगे, जहां स्त्री और दलित को प्रवेश नहीं है । गांधीजी स्वयं तो उस विवाह समारोह में भी हाजिर ही नहीं रहते थे, जिसमें शादी का एक पक्ष हरिजन न हो । इसीलिए वे महादेव भाई देसाई के पुत्र नारायणभाई के विवाह में उपस्थित नहीं रहे ।
    स्वच्छता अभियान जब मन की शुद्धि और हरिजन सेवा का कार्यक्रम बनेगा, तभी तो `मन   शुद्ध` होगा और स्वच्छ मन से स्वच्छता के अभियान में शरीक होने का अधिकार प्राप्त होगा । वैसे भी सभी के पाप धोते-धोते आज गंगा भी मैली हो गई है । भारत मेें सार्वजनिक सड़कें `कचरा डालने के लिए और गंदगी करने के लिए तो अपने बाप की है, लेकिन साफ करने के लिए वह किसी के भी बाप की नहीं है । यह है `मातृभूमि` या भारत की  स्थिति ।
    `हरिजन` शब्द का उपयोग तो महात्मा गांधी के पूर्व संत नरसी मेहता ने भी किया है, जो नागर ब्राह्मण थे । उनकी भी निकटता हरिजनों से थी । झारखंड मुक्ति आंदोलन के नेता तथा सांसद शैलेंद्र महतो के अनुसार हरिजन शब्द का सर्वप्रथम उपयोग महर्षि वाल्मीकि ने किया है, जो स्वयं अस्पृश्य थे। गांधीजी ने `हरिजन-सेवा` का कार्यक्रम स्थापित किया । वे जानते थे एक का उद्धार दूसरा नहीं कर सकता । गांधीजी जानते थे कि स्वयं मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता । हरिजन-सेवा का उनका कार्यक्रम सवर्णों के उद्धार के लिए था ।
    झाड़ू के माध्यम से शौचालय-सफाई का कार्य प्रतिदिन वे स्वयं और आश्रमवासी करते थे । वे मानते थे कि पीढ़ियों से समाज के एक वर्ग को अस्पृश्य मानने वाले सवर्णों को प्रायश्चित के रूप में हरिजन सेवा करनी चाहिए । हरिजन वास्तव में हरिजन यानी भगवान के पुत्र हैं ।  उच्च् वर्ग के लोगों का स्वच्छ और पवित्र जीवन अस्पृश्यों की ही देन    है । गांधीजी मानते थे कि जब सफाई कर्मचारियों के हाथ में भगवद् गीता और ब्राह्मणों के हाथ में झाड़ू आएगी, तब अस्पृश्यता मिटकर सामाजिक समता निर्मित होगी ।
    यह प्रश्न भी उठा कि यदि हरिजन भगवान के बालक हैं, तो क्या बाकी के सब दुर्जन या शैतान की औलाद हैं? गांधी का विचार था कि `आजकल` की अस्पृश्यता से जब सवर्ण हिंदू आंतरिक निश्चय से तथा स्वेच्छा से मुक्त  होंगे, तब हम सारे अस्पृश्यजन हरिजन के रूप में पहचाने जाएंगे, क्योंकि तभी हम पर ईश्वर की कृपा होगी । जबकि हम उन्हें दबाकर, कुचलकर आनंद मनाते आए हैं । अभी भी हमें हरिजन होने की छूट है । आज हमें उनके प्रति किए गए पाप के बदले अंत:करण-पूर्वक पश्चाताप करना चाहिए । अस्पृश्यता समाप्त कर एकात्म और एकसमान समाज का निर्माण करना, गांधीजी का ध्येय था ।             गांधीजी अपने को भंगी, कातनेवाला, बुनकर और मजदूर कहते थे । वे स्वेच्छा से भंगी बने थे। (मेहतर शब्द भी महत्तर शब्द का अपभ्रंश है।) अस्पृश्यता-निवारण का प्रयत्न उनके  जीवन का अभिन्न अंग था । इस काम के लिए प्राण अर्पण करने तक वे तैयार थे । वे पुनर्जन्म नहीं चाहते थे, पर होना हो तो उनकी इच्छा थी कि अस्पृश्य का ही हो । सन् १९१६ में अहमदाबाद की सभा में मस्तक आगे करके और गर्दन पर हाथ रखकर अत्यंत गंभीरता के साथ उन्होंने घोषणा की थी कि `यह सिर अस्पृश्यता-निवारण के लिए अर्पित  है ।` इसलिए गांधीजी की दृष्टि में झाड़ू क्रांति की प्रतीक थी । उनका मानना था कि समता पर आधारित समाज द्वारा ही क्रांति लाई जा सकती है । वरना समाज किसी भी परतंत्रता या गुलामी से लड़ नहीं सकता । दलितों में सबसे दलित, वाल्मीकि   ही हैं। पुत्र के जीवन में मां का    जो स्थान है, वही समाज के जीवन में सफाई करने वाले कामगार का   है ।
    वे कहते थे, `मैं भंगी को अपनी बराबरी का मानता हूं और सबेरे उसका स्मरण करता हूं । अस्पृश्यता निवारण करने का अर्थ है अखिल विश्व पर प्रेम करना और उसकी सेवा करना । यह अहिंसा का ही एक अंग है । अस्पृश्यता समाप्त करने का मतलब है मानव समाज की भेदभाव की दीवारों को ढहा देना, इतना ही नहीं, जीवनमात्र की ऊंच-नीच को समाप्त करना । अस्पृश्यता हिंदू धर्म का कलंक है । अस्पृश्यता मानना कथित स्पृश्य लोगों का महापातक है। अस्पृश्यता के खिलाफ मेरी लड़ाई अखिल मानवजाति की अशुद्धि से लड़ाई है । कोई भी भंगी जिस दिन राष्ट्रसभा का कारोबार सम्हालेगा, तब मुझे सच्च आनंद होगा ।`
    `अंत्योदय से सर्वोदय` गांधीजी के आंदोलन की दिशा थी । उसमें दयाभाव के स्थान पर कर्त्तव्य भावना ही अधिक थी । इसी कारण तो उनके रचनात्मक कार्यक्रमों में `हरिजन सेवा` और सफाई को महत्वपूर्ण स्थान था । गांधीजी ने `हरिजन सेवा` को सवर्णों का कर्त्तव्य माना था और नवीनतम स्वच्छ भारत अभियान की भी यही भूमिका होना चाहिए ।
    गांधीजी की भगवान की प्रार्थना की भूमिका थी,
हे नम्रता के सागर !
दीन-दुखी (भंगी) की हीन कुटिया के  निवासी ।
गंगा, जमुना और ब्रह्मपुत्र के जलों से सिंचित
इस सुंदर देश में
तुझे सब जगह खोजने में हमें मदद दे
हमें ग्रहणशीलता और खुला दिल दे,
तेरी अपनी नम्रता दे,
हिंदुस्तान की जनता से
एकरूप होने् की शक्ति  और उत्कठा दे 
हे भगवान !
    नम्रता की यह भावना इस अभियान का अधिष्ठान होना   चाहिए ।

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