विशेष लेख
एजुसैट : अंतरिक्ष से अध्यापन का एक दशक
चक्रेश जैन
२० सितम्बर को अंतरिक्ष से अध्यापन कर रहे एजुसैट उपग्रह के दस साल पूरे हुए हैं । वास्तव में एजुसैट ने एक शिक्षक की भूमिका निभाई है । यह देश का पहला शैक्षणिक उपग्रह हैं, जो पूरी तरह विद्यार्थियों के ज्ञानवर्धन के लिए है । इसने महानगरों से लेकर सुदूर देहातों के विद्यार्थियों की कक्षा में लेक्चर दिया और बाद में प्रश्नों का समाधान किया । एजुसैट ने एक दशक तक शिक्षण-प्रशिक्षण के साथ विज्ञान लोकप्रियकरण में भी भूमिका निभाई है ।
एजुसैट : अंतरिक्ष से अध्यापन का एक दशक
चक्रेश जैन
२० सितम्बर को अंतरिक्ष से अध्यापन कर रहे एजुसैट उपग्रह के दस साल पूरे हुए हैं । वास्तव में एजुसैट ने एक शिक्षक की भूमिका निभाई है । यह देश का पहला शैक्षणिक उपग्रह हैं, जो पूरी तरह विद्यार्थियों के ज्ञानवर्धन के लिए है । इसने महानगरों से लेकर सुदूर देहातों के विद्यार्थियों की कक्षा में लेक्चर दिया और बाद में प्रश्नों का समाधान किया । एजुसैट ने एक दशक तक शिक्षण-प्रशिक्षण के साथ विज्ञान लोकप्रियकरण में भी भूमिका निभाई है ।
२० सितम्बर २००४ भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के इतिहास में वह गौरवशाली दिन है, जब श्री हरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केन्द्र से वैज्ञानिकों और तकनीकी विशेषज्ञों ने एजुसैट को समारोहपूर्वक विदाई दी थी । एजुसैट का अनुमानित जीवनकाल सात वर्ष था लेकिन उसने इस अवधि को पूरा करते हुए दीर्घायु का वरण किया है और दसवीं वर्षगांठ मनाई है ।
एजुसैट का एक और नाम जीसैट - ३ भी है । हालांकि यह नाम जनमानस के बीच लोकप्रिय नहीं हुआ है । सौर ऊर्जा चालित १९५० किलोग्राम वजनी एजुसैट उपग्रह पृथ्वी से ३६००० किलोमीटर की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में विराजमान है ।
शैक्षणिक उपग्रह एजुसैट में मुख्य रूप से केयूबैंड ट्रांसपोंडर और विस्तारित सी बैंड ट्रांसपोेडर लगे हुए हैं । ट्रांसपोंडर वे इलेक्ट्रानिक उपकरण हैं, जो भू-केन्द्रों द्वारा भेजे गए विद्युत चंुंबकीय संकेतों को ग्रहण करते हैं और उनको आवर्धित करके फिर से प्रसारित करते हैं । इस विधि के जरिए ही किसी उपग्रह तक कार्यक्रम भेजा जाता है और उसका प्रसारण होता है । पृथ्वी पर दो प्रकार के टर्मिनल स्थापित किए गए हैं । वे टर्मिनल जा उपग्रहों से प्राप्त् संकेतों को केवल ग्रहण करते हैं, उन्हें रिसीव ओनली टर्मिनल (आरओटी) कहते हैं । दूसरे प्रकार के वेटर्मिनल हैं, जहां सकेतों को ग्रहण करने के साथ उनका प्रसारण भी किया जा सकता है ।
हमारे यहां १९७५-७६ के दौरान पहली बार उपग्रह से शैक्षणिक कार्यक्रमों के प्रसारण का डेमो सफल रहा । इस कार्यक्रम का नाम सेटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरीमेंट यानी साइट था । यह अनूठा प्रयोग था । इसके लिए अमेरिकन एप्लीकेशंस टेक्नॉलॉजी सेटेलाइट एटीएस-६ का उपयोग किया गया था । साइट के जरिए ४५,००० अध्यापकों को भी प्रशिक्षित किया गया । इसके जरिए छह राज्यों के लगभग ढाई हजार गांवों में स्वच्छता, स्वास्थ्य और परिवार नियोजन के कार्यक्रम प्रसारित किए गए ।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने अक्टूबर २००२ में एजुसैट प्रोजेक्ट यानी शिक्षा के लिए एक विशिष्ट उपग्रह पर विचार किया । दरअसल शैक्षिक सेवाआें के लिए इनसैट श्रृंखला के उपग्रहों की सफलता को ध्यान में रखते हुए यह विचार सामने आया जो बाद में साकार हो गया । एजुसैट का विकास विद्यालयों, महाविद्यालयों और उच्च् शिक्षण संस्थानों को परस्पर जोड़ने के लिए किया गया है । बीते वर्षो में भारत में दूरस्थ शिक्षा के प्रोत्साहन और विस्तार में एजुसैट ने शानदार भूमिका निभाई है । इसमें विकासात्मक संचार भी सम्मिलित है।
हमारे देश के ग्रामीण और सुदूर देहात के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती रहा है । ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त् इन्फ्रास्ट्रक्चर और अच्छे अध्यापकों की आज भी कमी है । इस दृष्टि से देखा जाए तो एजुसैट ने अहम योगदान किया है । असल में इस उपग्रह के माध्यम से इन्फ्रास्ट्रक्चर से युक्त शैक्षणिक संस्थाआें को इन्फ्रास्ट्रक्चर रहित अर्ध-शहरी और ग्रामीण शैक्षणिक संस्थाआें से जोड़ा गया है । इस प्रणाली के माध्यम से अकेले एक अध्यापक ने देश के विभिन्न भागों में स्थित विद्यालयों और महाविद्यालयों में एक साथ हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाने का अभिनव इतिहास रचा है ।
एजुसैट के माध्यम से टेलीविजन स्टुडियो में बैठे विशेषज्ञ प्राध्यापक व्याख्यान देते हैं, जिसका महाविद्यालयों में उपलब्ध कराई गई रिसेप्शन सुविधाआें के जरिए प्रसारण होता है । इस प्रसारण को सुनने और देखने का मौका विद्यार्थियों को मिला है । एक बात और एजुसैट में उपलब्ध द्विपक्षीय संवाद सुविधा से विद्यार्थियों को प्रश्नोत्तर का अवसर भी मिला है । एजुसैट में क्षेत्रीय बीम होने का यह लाभ है कि अध्यापक ने अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा का संचालन किया । पूरे एक दशक के दौरान गुरूजी ने शैक्षिक जगत में नई पहचान बनाई है ।
कर्नावट का विश्वेश्रैया तकनीकी विश्वविघालय (वीटीयू) देश का पहला विश्वविद्यालय है, जिसने एजुसैट उपग्रह आधारित ई-कक्षा के माध्यम से एक हजार कक्षाआें का सफल आयोजन किया । इस विश्वविघालय के अन्तर्गत ११८ इंजीनियरिंग कालेजों के विद्यार्थियों को कम्प्यूटर विज्ञान सहित इंजीनियरी की विभिन्न विधाआें में पढ़ाया गया । एजुसैट कार्यक्रम के अन्तर्गत कर्नाटक के ही चामराजनगर के ९०० प्राथमिक विद्यालयों के बच्चें को शिक्षण के अभिनव तरीके से जुड़ने का मौका मिला । इग्नू ने शुरू में ही एजुसैट की मदद से प्राथमिक और उच्च्तर माध्यमिक शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए एक कॉन्सेप्ट पेपर भी तैयार किया था ।
एजुसैट ने शिक्षण-प्रशिक्षण के साथ विज्ञान लोकप्रियकरण के विराट मैदान में भी अपनी विलक्षण क्षमताआें का परिचय दिया है । विज्ञान प्रसार ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो की डेवलपमेंट एंड एजूकेशनल कम्युनिकेशन यूनिट डेकू के साथ एजुसैट नेटवर्क की स्थापना की है जिसका उद्देश्य विज्ञान लोकप्रियकरण है । विज्ञान प्रसार द्वारा एजुसैट नेटवर्क के माध्यम से पहले चरण मे ३ जनवरी २००६ से कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू किया गया है । वर्तमान में राज्यों की विज्ञान परिषदों के सहयोग से विज्ञान प्रसार के ५० सैटेलाइट इंटरेक्टिव टर्मिनल (एसआईटी) कार्यरत हैं । सैटेलाइट इंटरेक्टिव टर्मिनल (एसआईटी) नेटवर्क की विशेषता यह है कि इसमें सामान्य कार्यक्रमों के दौरान दर्शकों को अपने प्रश्नों का तत्काल समाधान मिल जाता है । विज्ञान प्रसार एजुसैट नेटवर्क का केन्द्र दिल्ली में है,ं जहां से कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है । विज्ञान प्रसार के एजुसैट नेटवर्क द्वारा ग्रीष्मकालीन विज्ञान महोत्सव, लोकप्रिय विज्ञान व्याख्यानों, प्रश्नोतरी, प्रशिक्षण कार्यशालाआें आदि का प्रसारण किया गया है ।
बीते वर्षो में एजुसैट उपग्रह ने अनेक तकनीकी संभावनाआें को साकार किया है, जिनमें रेडियो और टेलीविजन प्रसारण, वीडियो कॉन्फ्रेंसिग, ऑनलाइन शिक्षा, वेबकैम, डाटा प्रेक्षण, डीटीएच प्रणाली आदि सम्मिलित हैं । देश में एजुसैट के माध्यम से न केवल औपचारिक शिक्षा का सशक्तिकरण हुआ बल्कि विभिन्न सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूकता का प्रयास भी किया गया । इनमें ऊर्जा संरक्षण, पर्यावरण चेतना एवं जन स्वास्थ्य सम्मिलित है ।
एजुसैट नेटवर्क ने प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को कंपनियों के साथ संवाद का अवसर प्रदान किया और उद्योग जगत को अपने व्यवसाय के लिए विश्वविद्यालयों से अच्छे विद्यार्थियों के चयन मेंअत्यधिक मदद मिली । एजुसैट उपग्रह से मिले लाभ भारत तक सीमित नहीं है । दक्षिण एशियाई देशों को भी इसका लाभ मिला है । सारांशत: कहा जा सकता है कि एक दशक में एजुसैट उपग्रह यानी गुरूजी ने दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में भारत को नेतृत्वकारी भूमिका में पहुंचा दिया है ।
एजुसैट का एक और नाम जीसैट - ३ भी है । हालांकि यह नाम जनमानस के बीच लोकप्रिय नहीं हुआ है । सौर ऊर्जा चालित १९५० किलोग्राम वजनी एजुसैट उपग्रह पृथ्वी से ३६००० किलोमीटर की ऊंचाई पर भू-स्थिर कक्षा में विराजमान है ।
शैक्षणिक उपग्रह एजुसैट में मुख्य रूप से केयूबैंड ट्रांसपोंडर और विस्तारित सी बैंड ट्रांसपोेडर लगे हुए हैं । ट्रांसपोंडर वे इलेक्ट्रानिक उपकरण हैं, जो भू-केन्द्रों द्वारा भेजे गए विद्युत चंुंबकीय संकेतों को ग्रहण करते हैं और उनको आवर्धित करके फिर से प्रसारित करते हैं । इस विधि के जरिए ही किसी उपग्रह तक कार्यक्रम भेजा जाता है और उसका प्रसारण होता है । पृथ्वी पर दो प्रकार के टर्मिनल स्थापित किए गए हैं । वे टर्मिनल जा उपग्रहों से प्राप्त् संकेतों को केवल ग्रहण करते हैं, उन्हें रिसीव ओनली टर्मिनल (आरओटी) कहते हैं । दूसरे प्रकार के वेटर्मिनल हैं, जहां सकेतों को ग्रहण करने के साथ उनका प्रसारण भी किया जा सकता है ।
हमारे यहां १९७५-७६ के दौरान पहली बार उपग्रह से शैक्षणिक कार्यक्रमों के प्रसारण का डेमो सफल रहा । इस कार्यक्रम का नाम सेटेलाइट इंस्ट्रक्शनल टेलीविजन एक्सपेरीमेंट यानी साइट था । यह अनूठा प्रयोग था । इसके लिए अमेरिकन एप्लीकेशंस टेक्नॉलॉजी सेटेलाइट एटीएस-६ का उपयोग किया गया था । साइट के जरिए ४५,००० अध्यापकों को भी प्रशिक्षित किया गया । इसके जरिए छह राज्यों के लगभग ढाई हजार गांवों में स्वच्छता, स्वास्थ्य और परिवार नियोजन के कार्यक्रम प्रसारित किए गए ।
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने अक्टूबर २००२ में एजुसैट प्रोजेक्ट यानी शिक्षा के लिए एक विशिष्ट उपग्रह पर विचार किया । दरअसल शैक्षिक सेवाआें के लिए इनसैट श्रृंखला के उपग्रहों की सफलता को ध्यान में रखते हुए यह विचार सामने आया जो बाद में साकार हो गया । एजुसैट का विकास विद्यालयों, महाविद्यालयों और उच्च् शिक्षण संस्थानों को परस्पर जोड़ने के लिए किया गया है । बीते वर्षो में भारत में दूरस्थ शिक्षा के प्रोत्साहन और विस्तार में एजुसैट ने शानदार भूमिका निभाई है । इसमें विकासात्मक संचार भी सम्मिलित है।
हमारे देश के ग्रामीण और सुदूर देहात के विद्यार्थियों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती रहा है । ग्रामीण इलाकों में पर्याप्त् इन्फ्रास्ट्रक्चर और अच्छे अध्यापकों की आज भी कमी है । इस दृष्टि से देखा जाए तो एजुसैट ने अहम योगदान किया है । असल में इस उपग्रह के माध्यम से इन्फ्रास्ट्रक्चर से युक्त शैक्षणिक संस्थाआें को इन्फ्रास्ट्रक्चर रहित अर्ध-शहरी और ग्रामीण शैक्षणिक संस्थाआें से जोड़ा गया है । इस प्रणाली के माध्यम से अकेले एक अध्यापक ने देश के विभिन्न भागों में स्थित विद्यालयों और महाविद्यालयों में एक साथ हजारों विद्यार्थियों को पढ़ाने का अभिनव इतिहास रचा है ।
एजुसैट के माध्यम से टेलीविजन स्टुडियो में बैठे विशेषज्ञ प्राध्यापक व्याख्यान देते हैं, जिसका महाविद्यालयों में उपलब्ध कराई गई रिसेप्शन सुविधाआें के जरिए प्रसारण होता है । इस प्रसारण को सुनने और देखने का मौका विद्यार्थियों को मिला है । एक बात और एजुसैट में उपलब्ध द्विपक्षीय संवाद सुविधा से विद्यार्थियों को प्रश्नोत्तर का अवसर भी मिला है । एजुसैट में क्षेत्रीय बीम होने का यह लाभ है कि अध्यापक ने अपनी क्षेत्रीय भाषा में कक्षा का संचालन किया । पूरे एक दशक के दौरान गुरूजी ने शैक्षिक जगत में नई पहचान बनाई है ।
कर्नावट का विश्वेश्रैया तकनीकी विश्वविघालय (वीटीयू) देश का पहला विश्वविद्यालय है, जिसने एजुसैट उपग्रह आधारित ई-कक्षा के माध्यम से एक हजार कक्षाआें का सफल आयोजन किया । इस विश्वविघालय के अन्तर्गत ११८ इंजीनियरिंग कालेजों के विद्यार्थियों को कम्प्यूटर विज्ञान सहित इंजीनियरी की विभिन्न विधाआें में पढ़ाया गया । एजुसैट कार्यक्रम के अन्तर्गत कर्नाटक के ही चामराजनगर के ९०० प्राथमिक विद्यालयों के बच्चें को शिक्षण के अभिनव तरीके से जुड़ने का मौका मिला । इग्नू ने शुरू में ही एजुसैट की मदद से प्राथमिक और उच्च्तर माध्यमिक शिक्षा को बेहतर बनाने के लिए एक कॉन्सेप्ट पेपर भी तैयार किया था ।
एजुसैट ने शिक्षण-प्रशिक्षण के साथ विज्ञान लोकप्रियकरण के विराट मैदान में भी अपनी विलक्षण क्षमताआें का परिचय दिया है । विज्ञान प्रसार ने भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो की डेवलपमेंट एंड एजूकेशनल कम्युनिकेशन यूनिट डेकू के साथ एजुसैट नेटवर्क की स्थापना की है जिसका उद्देश्य विज्ञान लोकप्रियकरण है । विज्ञान प्रसार द्वारा एजुसैट नेटवर्क के माध्यम से पहले चरण मे ३ जनवरी २००६ से कार्यक्रमों का प्रसारण शुरू किया गया है । वर्तमान में राज्यों की विज्ञान परिषदों के सहयोग से विज्ञान प्रसार के ५० सैटेलाइट इंटरेक्टिव टर्मिनल (एसआईटी) कार्यरत हैं । सैटेलाइट इंटरेक्टिव टर्मिनल (एसआईटी) नेटवर्क की विशेषता यह है कि इसमें सामान्य कार्यक्रमों के दौरान दर्शकों को अपने प्रश्नों का तत्काल समाधान मिल जाता है । विज्ञान प्रसार एजुसैट नेटवर्क का केन्द्र दिल्ली में है,ं जहां से कार्यक्रमों का प्रसारण किया जाता है । विज्ञान प्रसार के एजुसैट नेटवर्क द्वारा ग्रीष्मकालीन विज्ञान महोत्सव, लोकप्रिय विज्ञान व्याख्यानों, प्रश्नोतरी, प्रशिक्षण कार्यशालाआें आदि का प्रसारण किया गया है ।
बीते वर्षो में एजुसैट उपग्रह ने अनेक तकनीकी संभावनाआें को साकार किया है, जिनमें रेडियो और टेलीविजन प्रसारण, वीडियो कॉन्फ्रेंसिग, ऑनलाइन शिक्षा, वेबकैम, डाटा प्रेक्षण, डीटीएच प्रणाली आदि सम्मिलित हैं । देश में एजुसैट के माध्यम से न केवल औपचारिक शिक्षा का सशक्तिकरण हुआ बल्कि विभिन्न सामाजिक मुद्दों के प्रति जागरूकता का प्रयास भी किया गया । इनमें ऊर्जा संरक्षण, पर्यावरण चेतना एवं जन स्वास्थ्य सम्मिलित है ।
एजुसैट नेटवर्क ने प्रतिभाशाली विद्यार्थियों को कंपनियों के साथ संवाद का अवसर प्रदान किया और उद्योग जगत को अपने व्यवसाय के लिए विश्वविद्यालयों से अच्छे विद्यार्थियों के चयन मेंअत्यधिक मदद मिली । एजुसैट उपग्रह से मिले लाभ भारत तक सीमित नहीं है । दक्षिण एशियाई देशों को भी इसका लाभ मिला है । सारांशत: कहा जा सकता है कि एक दशक में एजुसैट उपग्रह यानी गुरूजी ने दूरस्थ शिक्षा के क्षेत्र में भारत को नेतृत्वकारी भूमिका में पहुंचा दिया है ।
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