गुरुवार, 18 दिसंबर 2014

ज्ञान विज्ञान
बंदर विडियो देखकर उसकी तरह व्यवहार करते हैं

    मार्मोसेट (एक प्रकार का बंदर) पर किए गए अध्ययन से पता चला है कि वह केवल अपने परिवार के लोगों से ही नहीं सीखता है बल्कि वीडियो या स्क्रीनपर दिखाई देने वाले पात्रों से भी सीखता है । जंगली जीवों के व्यवहार को जानने के लिए इस तरह का वीडियो अध्ययन पहली बार किया गया है ।
    ऑस्ट्रिया के विएना विश्वविद्यालय की टीना गनहोल्ड और उनके साथियों ने मार्मोसेट पर एक अध्ययन किया । इसमें उन्होनें  मार्मोसेट  की एक फिल्म बनाई जब वह एक प्लास्टिक उपकरण में से जुगाड़ करके कोई खाने की चीज निकाल रहा था । इसके बाद उन्होनेंअटलांटिक जंगल में रहने वाले मार्मोसेट बंदरों को यह वीडियो दिखाया । 
    यह देखा गया हे कि युवा बंदर अपने ही सामाजिक समूह से सीखने में कुशलहोते है । मगर इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं है कि क्या वे अजनबियों से भी सीख सकते हैं । मार्मोसेट इलाका बनाने वाले प्राणी हैं । इसलिए संभव है कि बाहर से आने वाले किसी अन्य प्राणी को बर्दाश्त न करें और हमला कर दें । यहां तक कि पर्दे पर दिखाए जाने वाले अजनबी से भी व्यवहार ऐसा ही हो सकता है ।
    गनहोल्ड का कहना है कि हम यह नहीं जानते थे कि मार्मोसेट वीडियो बॉक्स का क्या करेंगे, क्या उसे तोड़ देंगे ? लेकिन इसका उल्टा हुआ वे सब इसकी तरफ आकर्षित हुए । मार्मोसेट इस वीडियो को देखकर उसकी तरह व्यवहार करने की कोशिश कर रहे थे ।
    इस वीडियो बॉक्स के आसपास वयस्क बंदरों की अपेक्षा कम उम्र के बंदर ज्यादा मंडरा रहे   थे । और उनमेंसे एक ने तो वीडियो में दिखाए गए काम को अंजाम भी दे दिया ।  मगर एक बंदर ने जब यह काम वीडियो देखकर सीख लिया तो उसके बाद कहना मुश्किल है कि बाकियों ने यह काम वीडियो देखकर सीखा था या अपने साथियों से ।
    गनहोल्ड का कहना है कि इस तकनीक का उपयोग कई तरह से किया जा सकता है । जैसे उनके प्राकृतिक आवास मेंदेखा जा सकता है  कि क्या बंदर अपने से प्रभावी समूह की बजाय अपने अधीन समूह का वीडियो देखना ज्यादा पंसद करते हैं ।

कॉफी की बात ही कुछ और है
    कॉफी, चाय व कई अन्य स्फूर्तिदायक पेय पदार्थोंा में कैफीन पाया जाता है । पहले माना जाता था कि पौधों में कैफीन निर्माण की क्रियाविधि एक बार विकसित हुई और फिर वह कई पौधों में बनी रही। मगर अब कॉफी के जीनोम के विश्लेषण से पता चला है कि कॉफी और चाय में कैफीन निर्माण अलग-अलग रास्तों से होता है । यानी जैव विकास में कैफीन निर्माण कई बार स्वतंत्र रूप से विकसित हुआ है । 
     कॉफी लोकप्रिय पेय पदार्थ  है । एक अनुमान के मुताबिक दुनिया में लगभग ११० लाख हैक्टर पर कॉफी उगाई जाती है और प्रतिदिन करीब २ अरब प्याले कॉफी पी जाती है । हम जो कॉफी पीते हैं वह दो प्रजातियों - कॉफी केनफोरा और कॉफी एरेबिका - के पौंधो के फलों को सड़ाकर, भूनकर  और पीसकर बनाई जाती है । प्रचलित भाषा में केनफोरा कॉफी  को रोबस्टा और दूसरी को अरेबिका कॉफी  कहते हैं । अरेबिका कॉफी में कैफीनकी मात्रा थोड़ी कम होती है ।
    हाल ही में वैज्ञानिकों ने कॉफी रोबस्टा के जीनोम का विश्लेषण पूरा कर लिया है । उन्होंने पाया कि रोबस्टा के पौधे में २५,००० जीन्स हैं जो प्रोटीन बनाने की क्षमता रखते हैं । अब उन्होंने यह देखा कि कैफीनबनाने वाले अन्य पौधों और कॉफी के बीच अंतर क्या हैं । यह साफ हो गया कि कॉफी के पौधे में कैफीनबनाने वाला एंजाइम और चाय व अन्य पौधों में कैफीनबनाने वाला एंजाइम अलग-अलग हैं । जब एंजाइम अलग-अलग है तो उनमें कैफीन निर्माण के रास्ते भी अलग-अलग होंगे ।
    इस शोध के मुखिया न्यूयॉर्क में बफेलो विश्वविघालय के विक्टर अलबर्ट का कहना है कि इससे स्पष्ट है कि कैफीन निर्माण की क्षमता का विकास वनस्पति जगत में कम से कम दो बार स्वतंत्र रूप से हुआ है ।
    तो इन पौधों के लिए कैफीन का ऐसा क्या महत्व है कि इसकी उत्पत्ति कई बार हुई ? एक तो कैफीन पौधों को कुछ सुरक्षा प्रदान करता   है । यह देखा गया है कि कॉफी के पौधे में सबसे ज्यादा कैफीन उसकी पत्तियों में पाया जाता है । ये पत्तियां जब जमीन पर गिरती हैं तो उस जगह अन्य पौधे नहीं उग पाते । शायद यह कॉफी के पौधों को चरने-कुतरने वाले जन्तुआें से भी बचाता है । मजेदार बात यह है कि जो कैफीन हमें स्फूर्ति प्रदान करता है वह प्रकृति मेंभी कुछ इसी तरह की भूमिका निभाता है । कॉफी के फूलोंका परागण कीट करते हैं । देखा गया है ये कीट कॉफी के नशे के आदी हो जाते हैं और उन पौधों पर बार-बार लौटना चाहते हैं । यही तो हम भी करते हैं ।

रास्ते का नक्क्षा बना, मधुमक्खियां लौटती हैं घर

    इस शोध ने मधुमक्खियों के विचारण को लेकर हमारी विचारधारा को और अधिक रोचक बना दिया है । फ्री यूनिवर्सिटी ऑफ बर्लिन ने न्योरोलोजिस्ट रेनडोल्फ मेंजल ने कहा है कि यह कई लोगों के लिए आश्चर्य की बात हो सकती है कि इतने छोटे से सिर में इतनी ज्यादा स्मृतियां बन सकती है, जो काग्निटिव मैप कहलाती है ।
    इस शोध से यह बात सामने आई है कि मधुमक्खियों को उनके छत्ते तक पहुंचाने का एकमात्र साधन सिर्फ सूरज नहीं  है । इसके बदले में वह खास मानचित्र का सहारा लेती है, जो उनके दिमाग में स्थान का नक्शा तैयार कर देता है, जिसकी मदद से वह अपने घर वापस लौट आती है । इंसानों के दिमाग  में यह मानचित्र रोज बनता है । इंसान बिना खिड़की वाले दफ्तर  में भी अपने घर की दिशा बता सकते है । ईस्ट लैसिंग स्थित मिशिगन स्टेट यूनिवर्सिटी के व्यवहारिक जैव वैज्ञानिक फ्रेड डायर ने कहा है कि वे अपने घर की तरफ इशारा कर सकते हैं, जबकि इसे देख नहीं सकते । 
    अध्ययन यक बताता है कि मधुमक्खियों भी कुछ इसी तरह कर सकती हैं । शोधकर्ताआें ने इसका पता लगाने के लिए मधुमक्खियों और सूरज के बीच अवरोध उत्पन्न किया । उन्होनें कृत्रिम तरीके से मधुमक्खियों को निन्द्रा की अवस्था में पहुंचाया और जब वह नींद से जागी, मेंजल और उनके साथियों ने उन्हें मुक्त किए गए स्थान से सैकड़ों मीटर दूर उनके छत्ते तक उनकी चाल की हार्मोनिक रडार प्रणाली के जरिए रिकार्ड   किया । जब मधुमक्खियों को जब अनजाने स्थान पर मुक्त किया गया, पहले वह गलत दिशा में उड़ी । वे अपनी छत्ते से विपरीत दिशा में     उडी । जब उनके अपने उठने के समय में बदलाव हुआ उन्हें सुबह होने का अहसास हुआ, इसलिए वे सूरज की किरणों पर आधारित दिशा के अनुसार, गलत दिशा में उड़ी । मेंजल कहते हैं कि लेकिन जब उन्होनें उड़ान दोबारा शुरू की, उन्होनें सूरज से मिलने वाले संकेतों को दरकिनार कर दिया । वह उसके सहारे चल रही थी, जो काग्निटिव मैप थी ।

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