शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

पर्यावरण समाचार
म.प्र. में जहरीला होता जा रहा है भूजल

पिछले दिनों मध्यप्रदेश में नदियों-तालाबों के प्रदूषित होने के बाद अब भू-जल की स्थिति भी ठीक नहीं है । मध्यप्रदेश में जमीन के नीचे का पानी भी तेजी से प्रदूषित हो रहा है । प्रदेश के कई हिस्सों में स्थिति इतनी चिंताजनक है कि जमीन में काफी गहराई पर भी शुद्ध जल मिलना मुश्किल होता जा रहा   है ।  
प्रदेश में भू-जल को लेकर पिछले चार सालों में मॉनीटर किए कूपोंएवं बोरवेल के भू-जल स्त्रोंतो की गुणवत्ता अध्ययन रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है । यह अध्ययन मध्यप्रदेश राज्य भूजल सर्वेक्षण संगठन द्वारा किया गया है । इस अध्ययन रिपोर्ट में बताया गया है कि भूजल फ्लोराइड, नाइट्रेट, लौह तत्व तथा खारेपान के कारण प्रदूषित हुआ है । प्रदेश के ९ जिलों में नाइट्रेट के कारण भू-जल प्रदूषित हुआ है । रिपोर्ट में कहा गया है कि इन जिलों में पैदा वाली मुख्य फसलें कपास, गन्ना, सोयाबीन, गेहूं और ज्वार है । इन फसलों के अधिक उत्पादन के लिए उपयोग में आने वाली नाइट्रोजन उर्वरकों की अधिकता भूजल में नाइट्रेट के रिसाव का मुख्य कारण हो सकता है । 
रिपोर्ट के अनुसार मुख्य रूप से १८ जिले बैतूल, खरगौन, बड़वानी, खंडवा, बुरहानपुर, धार, झाबुआ, अलीराजपुर, भोपाल, रायसेन, सीहोर, विदिशा, भिंड, मंडला, शिवपुरी, सिवनी, छिंदवाड़ा और जबलपुर के ९३ विकासखण्डों की १३०० से ज्यादा बसाहटों में भू-जल स्त्रोतों में एक या एक से अधिक घुलनशील घातक तत्व जैसे फ्लोराइड, नाइट्रेट, लौहतत्व, और खारेपन की मात्रा मानक स्तर से अधिक पाए जाने के कारण पानी पीने या सिंचाई योग्य नहीं पाया गया । इन ९३ विकासखण्डों में से पेजयल के लिए १७ ब्लाक सुरक्षित, २३ ब्लाक सेमी क्रिटिकल तथा ५१ ब्लॉक क्रिटिकल श्रेणी में रखे गए हैं । इसके अलावा कृषि के लिए जल में खारेपन की मात्रा के अनुसार ७९ ब्लाक सुरक्षित, १० सेमीक्रिटिकल और ४ ब्लाक को क्रिटिकल श्रेणी में रखा गया है । 
प्रदेश के ९ जिलों मंडला, डिेंडोरी, झाबुआ, अलीराजपुर, शिवपुरी, सिवनी, धार, छिदवाड़ा और  जबलपुर के २९ ब्लॉक की १७० बस्तियोंमें फ्लोराइड की मात्रा मानक स्तर १.५ मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक पाई गई है । कई बस्तियों में फ्लोरोसिस बीमारी के लक्षण पाए गए है । सिवनी के बरघाट ब्लाक के धाना गांव मेंफ्लोराइड की सबसे अधिक मात्रा १४.२ मिली ग्राम प्रति लीटर पाई गई है ।
इसी प्रकार १० जिलों खरगौन, बड़वानी, झाबुआ, बैतूल, धार, भोपाल, रायसेन, सीहोर और विदिशा के ८१ ब्लाक में मानीटर किए गए १२२७ बसाहटों के कूपों एवं बोरवेल में से ८३१ (६८ प्रतिशत) में नाइट्रेट मानक स्तर ४५ मि.ली ग्राम प्रति लीटर से काफी ज्यादा पाया गया । बड़वानी ब्लाक के बड़वानी गांव में नाइट्रेट सबसे अधिक ७८८ मिली ग्राम प्रति लीटर है । 
घुलनशील लौह तत्व की उपस्थित प्रमुख रूप से बैतूल जिले के ७ ब्लॉक की २३ बसाहटों में एवं रायसेन जिले की तीन बसाहटों में अपने मानक स्तर १.० मिली ग्राम प्रति लीटर से अधिक पाया गया है । भिंड जिले के ग्राम केसवी मेंसबसे अधिक खारापन ३४१० (मानक मात्रा १५००) माइक्रोमोस सेमी पाया गया है । 
प्रदेश में भू-जल का उपयोग मुख्यत: कृषि एवं पेयजल के लिए किया जाता है । सामान्यत: माना जाता है कि जमीन के भीतर गहराई पर पाया गया पानी अधिक साफ और कम रासायनिक प्रदूषित होता है, पर प्रदेश के कई इलाकोंमें काफी गहराई पर जा चुके भू-जल स्त्रोतों में भी नाइट्रेट एवं फ्लोराइड से प्रदूषित जल मिलना शुरू हो चुका है । जो चिंता का विषय है । 
इसके संबंध में कुछ सुझाव निम्न हो सकते है :- 
जहां भू-जल में घातक तत्व पाए गए है, वहां सुनिश्चित किया जाए कि पीने के पानी का उपयोग सिर्फ पीने के लिए हो । 
फ्लोराइड एवं लौहतत्व वाले इलाकों में भू-जल स्त्रोत बंद कर वैकल्पिक प्रबंध किए जाए । जिन खाद्य पदार्थो में फ्लोराइड अधिक होता है, उनका उपयोग प्रभावित क्षेत्रों में नहीं किया जाए । जैविक उर्वरक एवं प्राकृतिक खाद के उपयोग को बढ़ावा दिया जाना चाहिए । रेन वाटर हार्वेस्टिंग एवं परलोकेशन टैंक के जरिए भू-जल स्तर बढ़ाकर भू-जल स्त्रोतों हानिकारक तत्वों की मात्रा कम की जा सकती है । 

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