शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

सामयिक
साल २०१६, हाथी वर्ष हो  
डॉ. डी. बालसुब्रमण्यन

कैसे एशियाई हाथी को जीनोम कई अनूठे (और अक्सर मोहक) गुणों से सम्बंधित होता है, यह बहुत ही स्फूर्तिदायक शोध का विषय है । 
चीनी परम्परा में २०१५-१६ को रैम यानी भेड़ वर्ष घोषित किया गया है । हिन्दू कैलेण्डर में इसे मन्मथ कहा है । लेकिन, मैं २०१६ वर्ष को हाथी वर्ष कहना चाहता हॅू । इस बात के सम्मान में कि हमने २०१५ के खत्म होने तक हाथी के बारे में क्या कुछ किया है।
यह बात २०१५ के शुरूआत की है । डॉ. वी.जे. लिन्च और उनके सहयोगियों ने एशियाई हाथी के जीनोम का विश्लेषण प्रकाशित किया, और मैमथ हाथी से उसकी तुलना  की । फिर दिसम्बर २०१५ की शुरूआत में एक संयुक्त शोध परियोजना के तौर पर बायोसाइंस पत्रिका में एशियाई हाथी की जीनोम की श्रृंखला पर एक पर्चा प्रकाशित हुआ जिसमें बताया गया था कि एशियाई हाथी के कितने जीन्स की अभिव्यक्ति होती है । इसे भारतीय विज्ञान शिक्षा व अनुसंधान संस्थान (आइसर), पूणे के डॉ. संजीव गालान्डे और भारतीय विज्ञान संस्थान, बैंगलुरू के प्रोफेसर आर. सुकुमार और उनके साथियों ने लिखा है । उन्होंने एशियाई हाथी में १८१ अनूठे प्रोटीन्स और १०३ अनूठी आरएनए प्रतिलिपियां खोजी हैं । 
लगभग इसी समय, यूएस के दो समूहों (ऊटा विश्वविघालय के डॉ. शिफमैन और शिकैगो विश्वविघालय के डॉ. लिन्च) ने रिपोर्ट किया कि हम मनुष्यों के पास ट्यूमर से लड़ने वाले जीन पी-५३ की केवल एक ही प्रतिलिपि होती है जबकि हाथी में इसकी २० से ज्यादा प्रतिलिपियां होती है । इस प्रकार हाथी में कैंसर के खिलाफ प्रतिरोध हम मनुष्यों से कहीं ज्यादा है । ( इसकी बहुत ही अच्छी समीक्षा बी. संध्या रानी द्वारा लिखी गई है) ।
प्रोफेसर आर. सुकुमार (भारतीय विज्ञान संस्थान, बैगलुरू) और उनकी साथ डॉ. टी.एन.सी. विद्या  (जवाहरलाल नेहरू प्रगत अनुसंधान केन्द्र, बैंगलुरू) जैसे हाथी विशेषज्ञों ने नीलगिरी और कर्नाटक के नागरहोल-बांदीपुर नेशनल पार्क के हाथियों पर अध्ययन किया । उनका अध्ययन यह समझने पर केन्द्रित है कि इकॉलाजी और पर्यावरणीय कारकों का अकेले हाथी और हाथियों के झंुड के व्यवहार से क्या संबंध है । उन्होनें कई वर्ष इसको करने में व्यतीत किए हैं । और तो और, स्थानीय लोगों के बीच डॉ. सुकुमार यात्रई (हाथी) डॉक्टर के नाम से मशहूर है । 
यह बात तो काफी लम्बे समय से पता रही है कि हाथी बहुत ही बुद्धिमान और नवाचारी जन्तु है । भारत के कई हिस्सों के लोक-साहित्य, कविता-कहानियों, पंचतंत्र और पुराणों की कथाआें और सुकुमार,  विद्या और अन्य वैज्ञानिकों के वास्तविक अवलोकनों से पता चलता है कि हाथियों में मात्र कुदरती बुद्धि ही नहीं होती, बल्कि वे नवाचार कर सकते हैं और कदम-कदम पर सोचते हैं । 
यह तो सर्वविदित है कि वे आइने में अपना अक्स पहचानते हैं (वैसे ही जैसे प्रायमेट्स करते हैं) ।
औजार बनाना और किसी खास उद्देश्य के लिए अपने आसपास की चीजों का इस्तेमाल करना मात्र संज्ञान क्षमता का उदाहरण नहीं है बल्कि इसमें नवाचार भी झलकता  है । चिम्पैंजी जैसे प्रायमेट्स हमारे सबसे करीबी रिश्तेदार हैं, जो औजार बनाने और उनका इस्तेमाल करने के लिए जाने जाते हैं, और यहां तक कि जड़ी-बूटी के लिए सही पेड़-पौधों के चयन करने में भी । हाथी भी औजार  औजार  निर्माता और उपयोगकर्ता हैं इस बात को आप नीचे दिए गए दो उदाहरणों में देख सकते हैं ।
एक लिंक पर देखा कि कैसे एक हाथी भोजन प्राप्त् करने के लिए पास मेंपड़ी छड़ी को पेड़ पर मारता है ।
इसी तरह देखे कि कैसे हाथी पास मेंपड़े टायर पर पैर रखकर भोजन तक पहुंचने की कोशिश करता है । 
ये उदाहरण इस बात की पुष्टि करते हैं कि हाथी कितने बुद्धिमान और नवाचारी होती हैं । डॉ. विद्या ने पिछले साल अपने शोध पत्र में रिपोर्ट किया था कि एक एशियाई हाथी ने पर-ममत्व का अनोखा व्यवहार प्रदर्शित किया । पर ममत्व का मतलब है किसी पराए शिशु की परवरिश करना । यह बहुत ही उल्लेखनीय और चमत्कारी है जिसने हमारे मन में हाथियों की प्रति आदर को और बढ़ा दिया है । इसमें बताया गया है कि कैसे वयस्क मादा हाथी जेनेटी (जी हां, डाँ विद्या झुंड में प्रत्येक हाथी को पहचानती है और उन्हें नाम से पुकारती है), जो खुद अभी गर्भधारण के लिए परिपक्व नहीं है, अपनी सूंड का सहारा अपनी दोस्त दाना के बच्च्े को देती है । यह बच्च बहुत थका हुआ और भूखा है लेकिन उसकी मां दाना कहींऔर व्यस्त है । बच्च अपनी मां के थन से दूध पीना चाहता है । बच्च जेनेटी के स्तन को चूसने की कोशिश करता है । जेनेटी पहले तो उसे झिड़क देती है मगर वह हार नहीं मानता । 
इसके बाद वह कुछ अनोखा काम करती है - वह अपनी सूंड उस बच्च्े को देती है और बच्च सूंड की नोक को वैसे ही चूसता है जैसे मनुष्य के बच्च्े अंगूठा चूसते हैं और उसके बाद वह बच्च सहज महसूस करने लगता है । 
यह वाकया एक बार नहीं कई बार हुआ जब जेनेटी शिशु हाथी को पालती । इस प्रकार किसी और के बच्च्े को सहज महसूस कराना । डॉ. विद्या का कहना है कि यह उदाहरण दिखाता है कि हाथियों के पास दिमाग और सहानुभूति का सिद्धांत होता है । 
ये यह भी बताती है कि अपनी सूंड के जरिए कई कामों को अंजाम देना हाथियों में संज्ञान की अनुभूति में मददगार हो सकता है । दुख कि बात है कि डॉ. विद्या का हाथी से संबंधित यह महत्वपूर्ण शोध पत्र किसी खुली पहुंच वाली शोध पत्रिका में प्रकाशित नहीं हुआ । 

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