शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

हमारा भूमण्डल 
जैव इंर्धन और जलवायु परिवर्तन 
सेन्साट अगुवा - वीवा

पिछले कुछ वर्षो से जैव इंर्धन को जलवायु परिवर्तन को रोकने और ग्रीनहाउस गैसों में कमी का पर्याय मानकर प्रोत्साहित किया जा रहा है । जबकि इन फसलों की वजह से खाद्यसंकट खड़ा होने के  अलावा वन विनाश, नदियों का प्रदूषण जैसी समस्याओं में इजाफा हुआ है । ऐसे में आवश्यकता इस बात की है कि मानव सभ्यता अपनी जीवनशैली में परिवर्तन लाए ।
वैश्विक जलवायु संकट से मुक्ति के लिए ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन में कमी के फार्मूले को व्यापक प्रचारित किया जा रहा है । इसके बावजूद संयुक्त राष्ट्र संघ के अन्तर्गत पिछले २० वर्षों से हो रहे समझौतों के चलते प्रदूषण के उत्सर्जन में बढ़ोत्तरी हो रही है । वहीं दूसरी ओर वैश्विक दक्षिण (विकासशील) में जीवाश्म (फासिल) ईंधन बड़ी रफ्तार से निकाला जा रहा है जबकि वैश्विक उत्तर (विकसित) से ऊर्जा के बढ़ते उपभोग को लेकर सवाल जवाब नहीं किए जा रहे हैं। जलवायु समझौतों की एकमात्र उपलब्धि झूठे समाधान भर है । 
पर्यावरण संकट से ''निपटने'' के लिए ऐसा ही एक झूठा समाधान जैव इंर्धन (बायोयूल) के  नाम से सामने आया है । इसे विश्वभर में इन तर्कों के आधार पर प्रोत्साहित किया जा रहा है कि यह ऊर्जा संकट और ईंधन की कमी से निपटने का एक ''टिकाऊ'' माध्यम है, इससे ग्रीन हाउस गैसों में कमी आती है और यह विश्वभर के ग्रामीण समुदायों विशेषकर उष्णकटिबंधीय देशों एवं वैश्विक दक्षिण को विकास के अवसर प्रदान करता है । इसके अलावा कोलंबिया में जैव ईंधन को सार्वजनिक नीतियों के तंत्र, कृषि व्यापार (एग्रीबिजनेस) के पक्ष में सब्सिडी एवं कर छूट और हाइड्रोकार्बन (पेट्रोल आदि) में अनिवार्य मिलावट (ब्लेंडिग) के माध्यम से प्रोत्साहित किया जा रहा है ।
कोलंबिया में कृषि इंर्धन (एग्रोयूल) को पाम एवं गन्ने की एकल खेती के विस्तार से प्रोत्साहित किया जा रहा है । कुछ इलाकों में तो एक दशक में ही इनका उत्पादन क्षेत्र दुगना हो गया है और इस वजह से कोलंबिया लेटिन अमेरिका में जैव इंर्धनका दूसरा सबसे बड़ा निर्माता बन गया है। सन् २०१४ में तो कोलंबिया में जैसे गन्ने की खेती का विस्फोट सा हो गया और इसके अन्तर्गत २,३०,००० हेक्टेयर का क्षेत्र आ गया । इसमें से ४५००० हेक्टेयर एथनाल के लिए आबंटित हुआ जिससे कि प्रतिदिन १.१४५ मिलियन (करीब १.१ करोड़) लिटर एथनाल तैयार होता था । इसके अतिरिक्त ४७०००० हेक्टेयर में आइल पाम का रोपण किया गया । इसमें से २,९०,००० हेक्टेयर क्षेत्र उत्पादन हेतु तैयार हो गया है और इससे अन्य उत्पादों के अलावा करीब १.५ मिलियन (१५ लाख) लिटर एग्रोडीजल तैयार होता  है ।
सन् २०१२ में खनिज एवं ऊर्जा और कृषि मंत्रालयों ने घोषणा की थी कि अगले १० वर्षों में ३ करोड़ हेक्टेयर में ऊर्जा फसल लगाने का लक्ष्य है । इसमें से १ करोड़ हेक्टेयर एथनाल के निर्माण हेतु कच्च माल तैयार करने एवं बीस लाख हेक्टेयर एग्रोडीजल हेतु कृषि उत्पाद में इस्तेमाल किया जाएगा । उम्मीद है इस कृषि-उद्योग मॉडल को आगामी वर्षों में और भी बढ़ाया जाएगा । हालांकि कोलंबिया के कानूनों में भूमि की खरीदी की अधिकतम सीमा तय है । इसकी वजह है भूमि वर्ग विशेष के पास इकट्ठा न हो पाए और अपने सामाजिक सरोकारों को संरक्षित बनाए रखना । लेकिन कृषि व्यापार की वृद्धि में भूमि हड़प का प्रमुख योगदान है। पेसिफिक रुबिअलेस, मानुइलिटा, रिओपैला-केस्टीला, इंडुपाल्मा, बायोएनर्जी-ईकोपेट्रोल जैसी तमाम बड़ी कंपनियों ने अवैधानिक गतिविधियों के माध्यम से आल्टिल्लनुआरा क्षेत्र (पूर्वी मैदानी क्षेत्र) में १० लाख हेक्टेयर जमीन हथिया ली है । इन कंपनियों में सबसे ज्यादा नुकसान बायोएनर्जी नामक कंपनी पहुंचा रही है जो कि गन्ने के साथ ही साथ रबड़ का रोपण भी करती है । इसके अलावा यहां पर ला-फाझेण्डा जैसे अन्य क्षेत्रों में ढेरों प्रसंस्करण संयंत्र हैं । इस इलाके में अब गायें दिखती ही नहीं, केवल बड़े पैमाने पर वृक्षारोपण और छुट्टा मुट्टा चावल का क्षेत्र दिखाई देता है। इस ''प्रगति'' के चलते नदियां तो पहले ही प्रदूषित हो चुकी हैं ।  
भूमि हड़पने के अलावा ये कंपनियां भूमि और पानी पर नियंत्रण के माध्यम से गंभीर पारिस्थितिकीय संकट भी पैदा कर रही हैं । ऊर्जा फसलों के कारण क्षेत्र का विकास तो तेजी से हुआ है लेकिन स्थानीय कृषि प्रणाली कमजोर पड़ गई है और उपज में परिवर्तन आने से खाद्य सार्वभौमिकता समाप्त हो गई है। इसके परिणामस्वरूप खाद्य पदार्थांे के लिए दूसरे क्षेत्रों पर निर्भर रहने से मूल खाद्य पदार्थोके मूल्यों में भारी वृद्धि हुई है । सूखे की वजह से पाम के  क्षेत्र में पानी के नियंत्रण को लेकर हो रहे विवाद का असर स्थानीय समुदायों पर पड़ रहा है । अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा समिति के अनुमानों को ठीक मानें तो सन् २०३० तक ऊर्जा के कुल बाजार में जैव ईंधन की हिस्सेदारी ४ प्रतिशत तक हो जाएगी । इसी के  साथ खाद्य उत्पादन के लिए भूमि की कमी और बड़ी मात्रा में वनों का एवं जैवविविधता के विनाश भी हमारे सामने आएंगे ।
गंभीर पर्यावरणीय विश्लेषण बताते हैं कि यातायात प्रणाली में हेतु बड़े पैमाने पर बायोमास को प्रोत्साहन देना दक्षिण में (विकासशील देशों) कृषि व्यापार बढ़ाने की नीति का हिस्सा है। गौरतलब है भीमकाय बहुराष्ट्रीय कंपनियां इस हेतु बीज, कीटनाशक आदि उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।  जाहिर सी बात है इस रणनीति का क्रियान्वयन कृषि एवं पर्यावरणीय सीमाओं का उल्लंघन, क्षेत्रों पर कब्जा एवं समुदायांे और संस्कृति की लूट, भूमि की हड़प एवं कीटनाशक तथा पानी को प्रदूषित कर एकल कृषि को स्थापित कर, स्थानीय प्रजातियों के पारिस्थितिकीय चक्र एवं रहवास में बाधा डालकर तथा भूमि उपयोग एवं दृष्यबंध में परिवर्तन कर किया जा सकता है । इसकी वजह से पदार्थ एवं ऊर्जा का प्रवाह अनेक स्थानों से होने लगता है जिसके कि नकारात्मक सामाजिक एवं पर्यावरणीय प्रभाव पड़ते हैं । अतएव विशिष्ट क्षेत्र पर गंभीर परिणाम डालने के साथ ही साथ कृषि ईंधन वनों के विनाश और भूमि के उपयोग में परिवर्तन के  कारण ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन का कारण भी बनता है। वे पर्यावरणीय समझौते के अन्तर्गत उत्सर्जन मंे कमी का अपना दायित्व पूरा नहीं करते और जलवायु संकट के किसी भी समाधान पर नहीं  पहुंचते ।
झूठे समाधान वैश्विक पर्यावरणीय संकट के वास्तविक विकल्पों से ध्यान हटाने का एक रास्ता है इसका सही रास्ता पेट्रोल की लत के शिकार समाज के रूपांतरण, कारों के उपयोग में विश्वव्यापी कमी, ऊर्जा का अत्यधिक इस्तेमाल करने वाले वैश्विक उत्तर से सवाल-जवाब एवं वैश्विक उत्सर्जन को लेकर उसकी ऐतिहासिक जिम्मेदारी से निकलता है । दुर्भाग्य से संयुक्त राष्ट्र संघ के जलवायु परिवर्तन सम्मेलन में इसकी झलक नहीं दिखाई दी । वास्तविक समाधान तो कहीं और पाये जा रहे हैं और इन्हें तमाम तरीकों से अभिव्यक्त भी किया जा रहा है। इन्हें समुदायों, सामाजिक आंदोलनों, प्रचार अभियानों, संगठनों व पर्यावरणविदों एवं छात्रों के बीच पाया जा सकता    है । 
ये सब स्थानीय कृषि प्रणाली, खाद्य एवं ऊर्जा सार्वभौमिकता, समुदाय एवं जल प्रबंधन तथा वनों के माध्यम से पर्यावरणीय संकट के समाधान खोज रहे हैं । इसी के माध्यम से हम एक ऐसे विश्व को प्राप्त कर सकते हैं जो अधिक न्यायपूर्ण और आनंद देने वाला   होगा । ऐेसे प्रस्ताव लगातार सामने आएंगे और मानवता की बेहतरी के लिए कार्य करते रहेंगे भले ही जलवायु समझौते अपने झूठे समाधानों की रट लगाते रहें । 

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