शनिवार, 20 फ़रवरी 2016

विज्ञान वर्र्ष २०१५ 
जलवायु परिवर्तन में नवाचार को प्रोत्साहन
चक्रेश जैन 

विदा हो चुका वर्ष २०१५ विज्ञान के लिहाज से नई उपलब्धियों और नवाचारों का रहा । मनुष्य और मशीन के संगम का दौर तो पहले ही शुरू हो चुका है । गुजरे साल में इस दिशा में कुछ और उन्नति हुई । नई खोजों, नए आविष्कारों और अनुसंधानों ने कई वैज्ञानिक रहस्यों का उद्घाटन किया । बीते वर्ष में रोबोट विज्ञान के अध्येताआें ने ऐसे रोबोट बना लिए जो मौसम रिपोर्टर और आर्थिक संवाददाता की भूमिका में दिखाई दिए । पत्रकारिता के चुनौतीपूर्ण मैदान में रोबोट के बढ़ते हस्तक्षेप से यह प्रश्न भी उठा कि क्या आगे चलकर साहित्य में कविता और कहानी जैसी विधाआें में मौलिक लेखन करने वाले रोबोट का सृजन कर लिया जाएगा । यह सच है कि कृत्रिम बुद्धि के क्षेत्र में अनुसंधानों ने रोबोट को मनुष्य की सृजनात्मकता को टक्कर देने की दहलीज तक पहुंचा दिया है । गुजरे साल भी प्रौघोगिकी का बोलबाला दिखाई दिया । जीन संपादन यानी डीएनए के सम्पादन की नई तकनीक से नए जीवों के सृजन और नई औषधियों के निर्माण का मार्ग प्रशस्त हो चुका है । 
इस वर्ष ड्रोन भी चर्चा के केन्द्र में रहा । ड्रोन का नाम लेते ही दिमाग में एक ऐसे हवाई यंत्र का चित्र उभरने लगता है, जो हवा में उड़कर फोटोग्राफी करता है । अब यह यंत्र घरों में सामान पहुंचाने से लेकर आसमान में निगरानी करने वाला एक आवश्यक गैजेट बन चुका है । ड्रोन अंग्रेजी भाषा का शब्द है, जिसका अर्थ है परजीवी या नर मधुमक्खी । अभी ड्रोन का उपयोग फोटोग्राफी, गली-मोहल्लों की निगरानी, विज्ञापन आदि कार्यो में हो रहा है । भविष्य में इसका उपयोग प्राकृतिक आपदाआें के दौरान राहत पहुंचाने, देहातों में इंटरनेट सेवाएं उपलब्ध कराने आदि के लिए होगा ।
वर्ष २०१५ अंतर्राष्ट्रीय प्रकाश वर्ष के रूप में मनाया गया । विश्वविघालयों और वैज्ञानिक संस्थानों में विचारोत्तेजक गोष्ठियां हुई, शोध पत्र पढ़े गए । प्रकाश वर्ष को विराट के रूप में माने का उद्देश्य आम लोगों में प्रकाश और प्रकाश आधारित प्रौघोगिकी के बारे में जागरूकता पैदा करना था । सच तो यह है कि मानव समाज का चेहरा बदलने में प्रकाश की अहम भूमिका रही है । चिकित्सा, अंतरिक्ष, दूरसंचार ओर मनोरंजन के विविध रूपों में प्रकाश का लाभ समाज को मिल रहा है । यही वह वर्ष है, जब महान भौतिकी विज्ञानी अल्बर्ट आइंस्टाइन के सापेक्षतावाद के सामान्य सिद्धांत के सौ साल पूरे हुए । इस प्रसंग पर पूरे विश्व के वैज्ञानिकों ने आइंस्टाइन के ऐतिहासिक योगदान को याद किया । सापेक्षतावाद के सामान्य सिद्धांत ने ब्रह्मांड की उत्पत्ति और विकास की समझ बढ़ाने में हमारी सहायता की है । यही नहीं इस सिद्धांत से उन अनेक प्रश्नों के उत्तर मिले हैं, जो न्यूटन द्वारा प्रस्तुत सिद्धांत में नहीं दिए गए थे । 
विदा हो चुके वर्ष में पुरातत्वविदों ने दक्षिण अफ्रीका में एक गुफा से प्राप्त् पन्द्रह कंकालों के आधार पर मनुष्य की एक नई प्रजाति होमो नलेडी खोजने की घोषणा     की । जानकारों के अनुसार ये मानव कंकाल दो लाख वर्ष पुराने हो सकते हैं । इसमें प्राचीन और आधुनिक मानव प्रजाति दोनों के मिश्रित लक्षण मिले हैं । वैज्ञानिक शोध में बताया गया है कि होमो नलेडी रीति-रिवाजों के जानकार थे और संकेतों के जरिए विचारों का आदान-प्रदान करते थे । शोधकर्ताआें का मानना है कि यह खोज हमारे पूर्वजों के बारे में विचारों को बदल सकती है । विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्रिका साइंस ने इस खोज को वर्ष २०१५ की दस प्रमुख घटनाआें में स्थान दिया है । इस वर्ष जीवाश्म वैज्ञानिकों को चार पैरों वाले सर्प का जीवाश्म मिला, जिसका वैज्ञानिक नाम टेट्रापोडोफिस एम्लेक्टस रखा गया है । वैज्ञानिकों के अनुसार टी.एम्लेक्टस सर्प और छिपकलियों के बीच की कड़ी हो सकती है । 
इसी वर्ष अंतर्राष्ट्रीय मृदा विज्ञान वर्ष मनाया गया । मृदा वर्ष मनाने का मुख्य उद्देश्य आम लोगों में मिट्टी के वैज्ञानिक महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना था । प्राचीन समय से ही मानव जीवन में मिट्टी का विविध रूपों में उपयोग हो रहा   है । यह वही मिट्टी है जिसस दीया और लुभावने खिलौने बनाए जाते    हैं । वैज्ञानिकों के अनुसार फसलों की अच्छी पैदावार का आधार मिट्टी है । 
गुजरे साल के उत्तरार्द्ध में पेरिस में जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय सम्मेन हुआ, जिसमें लगभग २०० देशों के राष्ट्राध्यक्षों और वैज्ञानिकों ने शिरकत की । जलवायु परिवर्तन के मंडराते खतरोंसे पृथ्वी को बचाने पर गंभीर मंथन हुआ । सम्मेलन में वैश्विक तापमान वृद्धि को दो डिग्री सेल्सियस से कम रखने पर भी सहमति बनी और नया मसौदा जारी किया गया । वास्तव में, जलवायु परिवर्तन वैज्ञानिक मुद्दा है, जिससे बहुआयामी प्रभावी जुड़े हुए   हैं । 
इसी वर्ष अक्टूबर से जलवायु परिवर्तन के प्रति जागरूकता पैदा करने के उद्देश्य से नई दिल्ली से साइंस एक्सप्रेस क्लाइमेट एक्शन स्पेशल ट्रेन रवाना हुई । स्कूली बच्चें सहित लाखों लोगों ने प्रदर्शनी को देखा । यह एक चलित विज्ञान प्रदर्शनी थी । कहा जा सकता है, भारत सरकार ने आम लोगों को जलवायु परिवर्तन के वैज्ञानिक पहलुआें से परिचित कराने की दृष्टि से सराहनीय प्रयास किया । विज्ञान पत्रिका साइंस की इस वर्ष की टॉप टेन की सूची में जलवायु परिवर्तन को भी स्थान मिला है । मौसमविदों के अनुसार गुजरे साल में जुलाई माह सबसे गर्म रहा, जिसे जलवायु परिवर्तन के शुरूआती संकेत के रूप में देखा जा सकता है । 
बीता वर्ष अंतरिक्ष विज्ञान के लिए ऐतिहासिक सफलताआें का साल रहा । कुछ अभिनव और सुनहरे अध्याय जुड़े । गुजरे साल भी मंगल ग्रह चर्चा में रहा । विज्ञान की प्रतिष्ठित पत्रिका नेचर में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार मंगल ग्रह पर बहते जल के प्रमाण मिले हैं । जॉर्जिया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलॉजी में लुजेंद्र ओझा के नेतृत्व में शोधरत वैज्ञानिकों ने नासा से प्राप्त् चित्रों का विश्लेषण किया और बताया कि लाल ग्रह के रेतीले टीलों के ढलान पर बनी धारियां जलधाराआें की हैं, जो गर्मियों में बहती हैं और सर्दियों में जम जाती है । इस खोज से मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाआें को और अधिक बल मिला है । 
वर्ष २०१५ के उत्तरार्द्ध में अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा का न्यू होराइजन्स लगभग नौ वर्षो की अविराम यात्रा के बाद प्लूटों के समीप से गुजरा । न्यू होराइजन्स में अत्याधुनिक उपकरण लगे हुए है, जिनकी मदद से आगे चलकर नए रहस्यों पर रोशनी डाली जा    सकेगी । वर्ष २००६ में प्लूटो को सौर मण्डल के नवग्रहों में से भले ही बाहर कर दिया गया हो, लेकिन अभी भी यह अनुसंधान का केन्द्र बना हुआ है । इसी वर्ष २४ अप्रैल को अंतरिक्ष में टंगी हबल दूरबीन ने अपने जीवन के पच्चीस वर्ष पूरे किए और रजत जयंती मनाई । अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा ने इस अवसर पर नासा को बधाई पत्र भेजा । सच पूछा जाए तो हबल दूरबीन से प्राप्त् चित्रों से हमारी ब्रह्मांड संबंधी समझ का विस्तार हुआ है । हबल दूरबीन से प्राप्त् सूचनाआें के आधार पर अभी तक तेरह हजार वैज्ञानिक शोध पत्र प्रकाशित हो चुके है । 
अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने २३ जुलाई को केपलर दूरबीन की सहायता से सौर मण्डल के बाहर एक नए ग्रह केपलर-४५२ बी खोजने की घोषणा की । जानकारों के अनुसार यह ग्रह हमारी पृथ्वी जैसा है और इस पर जीवन की उम्मीद है । इसी वर्ष ६ मार्च को नासा का अंतरिक्ष यान डॉन ४.९ अरब किलोमीटर यात्रा के बाद बौने ग्रह सेेरेस के निकट पहुंचा । डॉन बौने ग्रह सेेरेस की परिक्रमा करने वाला पहला अंतरिक्ष यान है । सेरेस मंगल और बृहस्पति के बीच सौरमण्डल का सबसे बड़ा पिंड है । 
बीता वर्ष भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान के लिए नई उपलब्धियों का रहा । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन इसरो ने २८ मार्च को देश का चौथा नौवहन उपग्रह आईआरएन एसएस-१ डी का प्रक्षेपण किया । इसी वर्ष इसरो ने १० जुलाई को पीएसएलवी सी-२८ के जरिए ब्रिटेन के पांच उपग्रहों का सफलतापूर्वक कक्षा में पहुंचाया । भारत ने २७ अगस्त को संचार उपग्रह जीसैट-६ को अंतरिक्ष में स्थापित किया । इसमें देश में ही विकसित क्रायेजेनिक इंंजिन का उपयोग किया गया था । २८ सितम्बर को भारत की प्रथम अंतरिक्ष वेधशाला एस्ट्रोसैट को सफलतापूर्वक भेजा गया । इसके साथ भारत उन चुनिंदा देशों की बिरादरी में शामिल हो गया, जिनके पास अंतरिक्ष वेधशाला से जुड़े उपग्रह है । इसरो ने ११ नवम्बर को देश के नवीनतम संचार उपग्रह जीसैट-१५ का सफल प्रक्षेपण किया, जिसमें गगन पेलोड भी लगा है । हमने १६ दिसम्बर को पीएसएलवी सी-२९ के जरिए सिंगापुर के छह उपगहों का प्रक्षेपण किया । भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठनल इसरो को अंतरिक्ष प्रौघोगिकी के जरिए देश के विकास में विशेष योगदान के लिए अंतर्राष्ट्रीय गांधी शांति पुरस्कार प्रदान किया गया । इस पुरस्कार की शुरूआत १९९५ में हुई थी । इससे भारत का पहला सरकारी वैज्ञानिक संगठन है, जिसे यह अति प्रतिष्ठित सम्मान मिला है । 
सितम्बर में भोपाल में दसवां विश्व हिन्दी सम्मेलन हुआ, जिसमें पहली बार विज्ञान के क्षेत्र में हिन्दी पर विचार मंथन हुआ । विश्व हिन्दी सम्मेलन में विज्ञान संचार के अंतर्राष्ट्रीय कलिंग पुरस्कार से सम्मानित डॉ. नरेन्द्र सहगल ने व्याख्यान दिया । इस अवसर पर दैनिक विज्ञान समाचार पत्र निकालने का विचार भी रखा गया । पूरी तरह विज्ञान पर केन्द्रित सत्र में १९१५ से प्रकाशित हिन्दी की पहली विज्ञान पत्रिका विज्ञान के सम्पादक डॉ. शिव गोपाल मिश्र ने शोधपरक और विचारोत्तेजक व्याख्यान दिया । 
इस वर्ष जुलाई में परग्रहवासियों यानी एलियंस के अध्ययन की एक परियोजना शुरू   हुई । यह परियोजना दस वर्षीय है, जिसका नेतृत्व विश्व प्रसिद्ध वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग कर रहे हैं । अपने ढंग की इस वैज्ञानिक परियोजना की रूपरेखा अमेरिकी भौतिकीविद् यूरी मिलर ने बनाई है । एलियंस के विषय में हम सभी जानना चाहते हैं । एलियंस के अध्ययन में अंतरिक्ष दूरबीन की अहम भूमिका होगी । एक अमेरिकी वैज्ञानिक ने संकेत दिया है है कि २०२५ तक इस रहस्य से पर्दा हट सकता है । 
दिसम्बर में आयोजित एक भव्य समारोह में वर्ष २०१५ के लिए चुने गए आठ वैज्ञानिकों को नोबेल सम्मान प्रदान किया गया । इस बार का चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार मलेरिया और गोलकृमिसे होने वाली बीमारियों पर अनुसंधान के लिए विलियम कैम्पबेल, सातोशी ओमुरा और यूयू तू को मिला । यूयू तू प्रथम चीनी महिला वैज्ञानिक हैं, जिन्हें चिकित्सा विज्ञान का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया है । अभी तक चिकित्सा विज्ञान में २१० व्यक्तियों को नोबेल सम्मान मिल चुका है, जिनमें बारह महिला वैज्ञानिक भी सम्मिलित है । भोतिकी का नोबेल पुरस्कार न्यूट्रीनों की प्रकृतिकी खोज के लिए तकाकी कजिता और मैकडोनाल्ड को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया । असल में न्यूट्रीनो मायावी कण हैं, जो सूर्य और सुपरनोवा तारे में विद्यमान रहते हैं । इस बार का रसायन शास्त्र का नोबेल सम्मान टॉमस लिंडाल, पॉल मॉन्ड्रिक और अजीज सन्कर को संयुक्त रूप से दिया गया । तीनों अध्येताआें ने डीएनए अणु की मरम्मत की क्रियाविधियों की व्याख्या की । 
वर्ष २०१५ का गणित का प्रतिष्ठित एबेल पुरस्कार अमेरिका के दो गणितज्ञों जान नैश और लुई नीरेनबर्ग को प्रदान किया गया । यह पुरस्कार नार्वे की सरकार प्रति वर्ष गणितज्ञ नील्स हेनरिक एबेल की स्मृति में प्रदान करती है । एबेल पुरस्कार को गणित का नोबेल पुरस्कार कहा जाता है । 
इस वर्ष एक जुलाई को हमारे देश में डिजिटल इंडिया कार्यक्रम का शुभारंभ हुआ । इसके साथ ही भारत में सूचना क्रांति के दूसरे दौर का सूत्रपात हुआ । इस कार्यक्रम का उद्देश्य नागरिकों को तकनीकी दृष्टि से सक्षम बनाना औश्र सरकारी सेवाआें को डिजिटल माध्यम से जनता तक पहुंचाना है । डिजिटल इंडिया परियोजना में मोबाइल और इंटरनेट के प्रयोग को काफी महत्व दिया गया है । 
गुजरे साल के अंत में दिल्ली में पहली बार भारत अंतर्राष्ट्रीय विज्ञान महोत्सव आयोजित किया गया, जिसमें सबसे बड़े विज्ञान प्रायोगिक सत्र में लगभग दो हजार स्कूली बच्चें ने विश्व रिकार्ड बनाने के लिए दो प्रयोग किए । दोनों ही प्रयोग उत्प्रेरण पर केन्द्रित थे । यह अपने ढंग का ऐतिहासिक आयोजन था, जिसने विज्ञान उत्सव को स्मरणीय बना दिया । 
बैंगलुरू स्थित नेशनल सेंटर फॉर बॉयोलाजिकल साइंसेज के वैज्ञानिकों की टीम ने तुलसी के जीनोम का अनुक्रमण किया । इस अध्ययन के लिए तुलसी की पांच प्रजातियों को चुना गया था । तुलसी का स्थान भारत की धार्मिक और औषधीय महत्व की वनस्पतियों में   है । निश्चय ही नए शोध से इसमें मौजूद जैव-सक्रिय यौगिकों के बारे में हमारी समझ का विस्तार होगा । 
इसी वर्ष एक जुलाई को भारतीय प्राणि वैज्ञानिक सर्वेक्षण के सौ साल पूरे हुए । यह देश की प्रतिष्ठित वैज्ञानिक संस्था है, जिसने बीते वर्षो में देश के जीव-जन्तुआें के संरक्षण में अहम योगदान किया    है । वर्ष २०१५ में भारत में चलित वैज्ञानिक प्रदर्शनी के पचास वर्ष पूरे हुए और स्वर्ण जयंती मनाई गई । 
बीते वर्ष विज्ञान जगत की जिन बड़ी हस्तियों को हमने खो दिया, उनमें मिसाइलमैन और पीपुल्स प्रेसीडेंट के रूप में लोकप्रिय पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम सम्मिलित है । उन्होनें देश के मिसाइल और अंतरिक्ष कार्यक्रम को नई ऊंचाई तक ले जाने में विशेष योगदान किया । उन्होंने कई किताबें लिखी, जिनमें विंंग्ज ऑफ फायर, इंडिया २०२०, इग्नाइटेड माइंड्स उल्लेखनीय है । उन्होनें १२ जून २०१३ को उज्जैन में मध्यप्रदेश के प्रथम अत्याधुनिक तारामण्डल के लोकार्पण समारोह को संबोधित करते हुए कहा था कि मैं कल्पना करता हॅू कि भविष्य में मंगल ग्रह की यात्रा पर जाने वाला पहला व्यक्ति उज्जैन से होगा । उन्होंने भारत के राष्ट्रपति जैसे सर्वोच्च् पद पर पहुंंच कर यह दिखा दिया कि एक वैज्ञानिक भी राष्ट्रपति बन सकता है। इसी वर्ष अंतरिक्ष वैज्ञानिक और भारतीय मानसून मॉडल के प्रणेता वसंत गोवारीकर का निधन हो    गया । बसंत गोवारीकर प्रधानमंत्री के वैज्ञानिक सलाहकार भी रहे । इस वर्ष २० अक्टूबर को समुद्र जीव विज्ञानी डॉ. एस. जेड कासिम नहीं रहे । उन्होनें अंटार्कटिक अनुसंधान में विशेष योगदान किया । डॉ. कासिम ने लेखन और व्याख्यानों के जरिए विज्ञान को लोकप्रिय  बनाया । एक लंबी अवधि से उड़िया भाषा में विज्ञान को लोकप्रिय बनाने के अभियान में जुटे लोकप्रिय लेखक प्रोफेसर बसंत कुमार बिदुरा १६ फरवरी को चल  बसे । 
गुजरे साल २३ मई को मेधावी गणितज्ञ और अर्थशास्त्री डॉ. जॉन नैश की सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गई । उन्होनें गणित की गेम थ्योरी पर शोध किया और इसे लोकप्रिय बनाया । जॉन नैश ने मस्तिष्क की असाध्य बीमारी शीजोफ्रेनिया से जूझते हुए अपनी विलक्षण प्रतिभा का परिचय दिया । उन्हें १९९४ में अर्थशास्त्र के नोबेल सम्मान के लिए चुना गया था । मेसर के आविष्कार और लेसर के सह-आविष्कारक चार्ल्स हार्डटाउन्स का देहान्त २७ जनवरी को हो गया । उन्हें १९६४ में भौतिक शास्त्र के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था । इसी वर्ष २६ जून को शॉर्ट मैसेजिंग सर्विस यानी एसएमएस की अवधारणा के जनक मैरी मैक्नन का निधन हो गया । 
विदा हो चुके वर्ष के दौरान समाज में लोगों में वैज्ञानिक चेतना जगाने के सक्रिय प्रयास जारी रहे । विज्ञान की मदद से जलवायु परिवर्तन और खाघान्न सुरक्षा जैसी चुनौतियों का समाधान खोजा गया ।  वैज्ञानिकों और शोधार्थियों को वर्ष २०१६ में विज्ञान के हर क्षेत्र में नया इतिहास रचने और वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सम्पन्न समाज के प्रयासों में आगे बढ़ने के लिए शुभकामनाएं । 

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