बुधवार, 20 जून 2018

सामयिक
कावेरी जल बंटवारे पर राजनीति क्यों ?
ललित गर्ग
दक्षिण की गंगा, अन्नपूर्णा, पावन  `कावेरी' में आखिर कब तक उबाल आता रहेगा ? कब तक राजनीतिक दल जन-जन की जीवनरेखा-जल के नाम पर राजनीतिक रोटियां सेकते रहेंगे ? कब तक जीवन देने वाली पवित्र नदियों को जहर बनते देखते रहेगें ? `कावेरी 'विवाद ने कर्नाटक और तमिलनाडु को परस्पर `बैरी' बना दिया । कावेरी ने दोनों प्रांतों को जोड़ा था पर राजनीतिज्ञ इसे तोड़ रहे है ।
एक बार फिर कावेरी जल बंटवारें का मसला चर्चा में है । अदालत ने जल बंटवारे के बारे में फैसला फरवरी में ही सुना दिया था । दरअसल सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई को दौरान केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कहा कि ड्राफ्ट कैबिनेट के सामने पेश किया गया है, लेकिन प्रधानमंत्री के  कर्नाटक चुनाव मेंव्यस्त होने के कारण वह अभी तक इसे देख नहीं पाए है । 
केंद्र सरकार के इस जवाब पर सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा, कर्नाटक चुनाव से हमारा कोई लेना देना नही है और न ही यह हमारी चिंता है । कर्नाटक सरकार को तत्काल तमिलनाडु के लिए पानी छोड़ना होगा । कानूनी जानकार मानते है कि इस समस्या के समाधान के कानूनी आधार तो मौजूद है लेकिन जब तक इन चारोंसंबद्ध राज्यों के बीच जल को लेकर चल रही राजनीति खत्म नहीं होती, इस मसले को सुलझाना असंभव होगा । यह दो प्रमुख राज्यों के बीच राजनीतिक वर्चस्व को लेकर भी जोर-आजमाइश का विषय बना हुआ है ।
आखिर केन्द्र सरकार को बार-बार इस ज्वलंत मसले पर सर्वोच्च अदालत की फटकार क्यों सुनना पड़ रही है ? जब अदालत ने जल बंटवारे के बारे में फैसला फरवरी में सुना दिया था और फिर केंद्र की जिम्मेदारी तय करते हुए उसे एक निगरानी तंत्र यानी कावेरी प्रबंधन बोर्ड गठित करने निर्देश दिया था तो दो बार इसकी समय-सीमा बीत जाने के बाद भी बोर्ड का गठन क्यों नही हो पाया है ? इससे तमिलनाडु में खासी नाराजगी है । वहां केन्द्र की तरफ से होती आ रही कोताही के खिलाफ पिछले दिनों काफी विरोध प्रदर्शन हुए है, हिंसा हुई है । गरमी के मौसम में, जब पानी की जरुरत बढ़ जाती है, तमिलनाडु के लोगों का रोष स्वाभाविक है । तमिलनाडु सरकार ने केंद्र के रवैए को सर्वोच्च अदालत की अवमानना करार देते हुए याचिका दायर की थी ।
अदालत ने कर्नाटक को भी खरी -खोटी सुनाई है जिसने न्यायाधिकरण के बताए फार्मूले पर तमिलनाडु को पानी मुहैया नही कराया है । केंद्र की ही तरह कर्नाटक के भी इस रवैए की वजह चुनावी है । क्या नदी जल बंटवारे के झगड़ों का समाधान चुनावी नफा-नुकसाल देख कर होगा ? हालांकि सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में तमिलनाडु के हिस्से में आने वाले पानी में थोड़ी कमी कर दी थी, बेंगलुरु और मैसूर में पेयजल संकट के मद्देनजर । लेकिन निगरानी तंत्र बन जाए तो फिर प्रस्तावित बोर्ड की जिम्मेदारी होगी कि वह पंद्रह साल के दिए गए अदालत के फैसले के अनुरुप तमिलनाडु को कावेरी का पानी मिलना सुनिश्चित करता रहे ।
अदालत में दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने केंद्र से पूछा कि बोर्ड का गठन अब तक क्यों नही हो पाया है । इसके जवाब में केंद्र के महाधिवक्ता ने जो कुछ कहा उससे इस अनुमान की पुष्टि ही होती है कि अब तक बोर्ड का गठन न हो पाने की वजह चुनावी है । महाधिवक्ता ने कहा कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव की वजह से प्रधानमंत्री और केंद्र के अनेक मंत्री लगातार चुनावी दौरों में व्यस्त है, इसलिए बोर्ड का गठन नहीं हो सका । लेकिन सच तो यह है कि व्यस्तता से ज्यादा बड़ा कारण यह डर होगा कि अगर बोर्ड का गठन हो गया तो कर्नाटक चुनाव में केंद्र में सत्तारुढ़ पार्टी को नुकसान उठाना पड़ सकता है । आखिर जनता के जीवन से ज्यादा महत्वपूर्ण चुनाव और उसके परिणाम का होना क्या दर्शाता है ?
धरती का स्वर्ग कही जाने वाली कश्मीर की घाटी, जहां `झेलम' बहती है, अलगाववाद का नारा बुलन्द हो रहा है । शस्य श्यामला, साना उगलने वाली धरती, देश की `ग्रेनरी' पंजाब में बहने वाली `सतलज' के तटों पर नशा बह रहा है । कीमती उत्पाद देने वाली और तरल शक्ति को अपने में समाये हुए असम राज्य में जहां `ब्रह्मपुत्र' बहती है वहां चीनी आतंक फैलाहुआ है ।
भारत की यज्ञोपवित, करोड़ो की पूज्या `गंगा' के तराई क्षेत्र व उत्तरप्रदेश, बिहार में साम्प्रदायिकता और हिंसा ने सिर उठा लिया है । ये नदियां शताब्दियों से भारतीय जीवन का एक प्रमुख अंग बनी हुई है । इन्हीं के तटों से ऋषियों-मुनियों की वाणी मुखरित हुई और जहां से सदैव शांति एवं प्रेम का संदेश मिलता रहा है । इसमें तो पूजा के फूल, अर्ध्य और तर्पण गिरता था वहां निर्दोषों का खून गिरता है । वहां से अलगाव एवं बिखराव के स्वर प्रस्फुटित हो रहे है ?
हमारी सभ्यता, संस्कृति एवं विविधता की एकता का संदेश इन्हींधाराआें की कलकल से मिलता रहा है । जिस जल से सभी जाति, वर्ग, धर्म क्षेत्र के लोगों के खेत सिंचित होते है । जिनमें बिना भेदभाव के करोड़ों लोग अपना तन-मन धोते है । जो जल मनुष्य ही नहीं, भेदभाव, साम्प्रदायिकता का जहर कौन घोल रहा है ?
`कावेरी' विवाद ने कर्नाटक और तमिलनाडु को परस्पर बैरी बना दिया । यह विवाद राष्ट्रीय विघटन की तरफ एक खतरनाक मोड़ ले रहा है । दोनों राज्यों के सांसदों और विधायकों से होता हुआ यह विवाद राज्यों की जनता के दिलों में कड़वाहट घोलता रहा है । कावेरी ने दोनों प्रांतों को जोड़ा था पर राजनीतिज्ञ इसे तोड़ रहे है । लाखों लोग इधर से उधर अपने-अपने घर छोड़कर चले गये है ।
हमारे राजनीतिज्ञ, जिन्हें सिर्फ वोट की प्यास है और वे अपनी इस स्वार्थ की प्यास को इस पानी से बुझाना चाहते है । कर्नाटक और तमिलनाडु का यह विवाद आज हमारे लोकतांत्रिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दे उससे पूर्व आवश्यकता है तुच्छ स्वार्थ से उपर उठकर व्यापक राष्ट्रीय हित के परिप्रेक्ष्य में देखा जाये । जीवन में श्रेष्ठ वस्तुएं प्रभु ने मुफ्त दे रखी है - पानी, हवा और प्यार और आज वे ही विवादग्रस्त, दूषित और झूठी हो गई ।
राजनीतिक लाभ के लिए तमिलनाडु के हितो और सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना किस दृष्टि से जायज कही जाये ? यह कैसी राष्ट्रीयता है ? यह कैसा अखण्ड भारत है ? दो या अधिक राज्यों के बीच प्राकृतिक संसाधन के बंटवारे का झगड़ा हो तो, केंद्र से उम्मीद की जा सकती है कि उसकी मध्यस्थता से समाधान निकल जाएगा । अदालत ने कर्नाटक को भी खरी खोटी सुनाई है जिसने न्यायाधिकरण के बताए फार्मूले पर तमिलनाडु को पानी मुहैया नहीं कराया है । केंद्र की तरह कर्नाटक के भी इस रवैए की वजह चुनावी है । क्या नदी जल बंटवारे के झगड़ों का समाधन चुनावी नफा-नुकसान देखकर होगा ?    ***

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