बुधवार, 20 जून 2018

कविता
कुछ तो नया करें
डॉ. रामसनेही लाल शर्मा
अर्थहीन कोलाहल में, हम वंशी नाद भरे
चलो-चलो प्रिय !
इस मौसम में,  कुछ तो नया करें
गीली रेत पर टहले, कुछ शंख-सीप बीनें,
ऋतु के सम्मोहन से अपना,
अमृत घट छीनें, नदियों की चंचल लहरों पर,
अपना नाम लिखे,
मुग्ध भाव से स्वप्न देखते,
आकुल नयन दिखें,
पर्वत-पर्वत चढ़कर
घाटी-घाटी बिहरें,
ललित रास के भूले पाठों को,
फिर दुहरायें, जियें गीतगोविन्द,
मधुर स्वर में कुछ पद गायें,
निरुद्देश्य भटकें,
अटकें कदम्ब की डालों पर,
अधरों से सम्मोहन लिखें,
परस्पर गालों पर, हो युगनद्ध उड़ें ।
वृन्दावन की रज पर उतरें,
मधु-माधव से मिले
खिलें, चुपके से बतियायें,
यमुना-तट पर बैठे,
कोई नया गीत गायें,
मौन-मुखर हो हंसे चांदनी,
साथ-साथ हंस लें,
काल-नदी के , मुग्ध सलिल में,
चलों चले घंस लें, भूल जाये, 
संत्रास, घुटन, कुण्ठा,
मधुगन्ध बरें
चलो, चलें प्रिय!
इस मौसम में कुछ तो नया करें ।। ***

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