बुधवार, 20 जून 2018

पर्यावरण परिक्रमा
बर्फ तले दबी ३५० किमी लंबी घाटी की खोज
अंटार्कटिका के हिम पर्वतोंके नीचे छिपी पर्वत श्रृंखलाआें और ग्लेशियर के नीचे ३ गहरी घाटियों का पता लगा है । सबसे बड़ी घाटी फाउंडेशन थ्रो ३५० किलोमीटर से अधिक लंबी और ३५ किलोमीटर चौड़ी है । इसकी लंबाई लंदन से मैनचेस्टर तक की दूरी जितनी है ।
रडार से लिए गए आंकड़ों से इस स्थान का वर्णन मिला कि कै से बर्फ की चट्टानों पूर्व और पश्चिम अंटार्कटिका के बीच बहती है । दो अन्य घाटियां भी इतनी विशाल है । यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी पोलरगैप परियोजना के जरिये इसका पता चला है । शोध जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित हुआ है ।
शोधार्थी ने कहा कि दक्षिणी धु्रव के आसपास उपग्रह के डेटा के अंतर और वहां क्या है के बारे मेंहमारी टीम में से कोई नही जानता था । इसलिए हम पोलरगैप परियोजना के नतीजों को जारी करते हुए बेहद खुश है । शोधकर्ता ब्रिटेन के है ।

गौमती को संवारने आगे आए ४१ ग्राम प्रधान
उ.प्र. में गोमती नदी को नया जीवन मिलने वाला है । लखनऊ  की जीवनधारा गोमती नदी को संवारने में अब ४१ ग्राम प्रधान अपना सहयोग देंगे । दरअसल गोमती नदी की जलधारा को वापस लौटानें का संकल्प लेंगे । इस कार्य में डीएम व अन्य प्रशासनिक अधिकारी ग्राम प्रधानों का मार्गदर्शन करेंगे । डीएम कौशल राज शर्मा ने बताया कि गोमती नदी के तटबंध को सुंदर बनाने के लिए ग्राम प्रधानोंके अलावा सचिव, लेखपाल और गोमती के लिए कार्य कर रहे स्वयंसेवी संगठनोंके प्रतिनिधि भी मौजूद रहेंगे । डीएम के मुताबिक ग्रामीण इलाकोंमें गामती नदी के किनारे ४१ गांव है । इन गांव में गोमती नदी के किनारे सौन्दर्यीकरण के लिए पूरी योजना तैयार की गई है । इस योजना के बारे मेंग्राम प्रधानों व अन्य लोगों को विस्तार से जानकारी दी जाएगी ।
गोमती नदी में गांव का कूड़ा, गंदा पानी व कोई नाला न गिरे इसकी मॉनिटरिंग ग्राम प्रधान करेंगे । डीएम का कहना है कि इस प्रयास से गोमती नदी को साफ रखने में मदद मिलेगी । डीएम का कहना है कि जुलाई में बारिश होती है । इसलिए जुलाई से पहले हफ्ते में मनरेगा के अंतर्गत गोमती नदी तटबंध के ४१ गांवोंमें पौधारोपण किया जाएगा ।
डीएम ने बताया कि प्रत्येक गांव में लगाए गए पौधों की देखरेख की जिम्मेदारी अन्य लोगों के अलावा बच्चें को भी दी जाएगी । बच्चें को इसके लिए प्रेरित किया जाएगा । डीएम का कहना है कि इस प्रयास से बच्चों में प्रकृति के प्रति लगाव बढ़ेगा । डीएम ने बताया कि ग्रामीण इलाकों के अलावा शहरी क्षेत्र में भी जल्द पौधारोपण कार्यक्रम की शुरुआत की जाएगी ।

नदियों के प्रति नई सोच जरुरी
नदियां हमारी जीवन रेखाएं तो है ही, उनसे जनमानस की आस्था भी जुड़ी रही है । लेकिन आस्था में नदियों का बचाने की फिक्र कहां है? अब सरकार ने इस दिशा में कदम बढ़ाया है, तो यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम नदियों को साफ नहीं कर सकते तो गंदा भी न करें ।
समुद्र और नदियों के तटों की सफाई के लिए सरकार ने भले देर से ही सही, दुरुस्त कदम उठाया है । केंद्र सरकार ने देश के चौबीस समुद्र तटोंऔर और २४ नदियों-झीलों की सुध ली है । इनमें तटीय राज्यों के समुद्री इलाके और इन राज्योंकी नदियों के अलावा यमुना नदी भी शामिल है । इस सफाई अभियान में १९ टीमें समुद्र तटों, नदियों और झीलों को प्लास्टिक के कचरे से निजात दिलाएंगी । सरकार को यह चिंता इसलिए भी हुई है कि भारत इस बार विश्व पर्यावरण दिवस समारोह का वैश्विक मेजबान है ।
पर्यावरण को बचाने के लिए इस साल की विषयवस्तु प्लास्टिक कचरे से मुक्ति रखी हुई है । लेकिन सवाल उठतो है कि तटों और नदियों की सफाई के लिए हम हमेशा क्यों नही सोचते रहते ? आज नदियां और समुद्र जिस तेजी से प्रदूषित होते जा रहे है वह गहरी चिंता का विषय है । इस तरह के सफाई अभियान के लिए किसी खास दिन या अवसर विशेष पर ही रस्मी तौर पर पहल करने की जरुरत क्यों महसूस की जाती है ? नदियों, झीलों व समुद्र तटों को साफ और कचरामुक्त रखने की जिम्मेदारी तो सरकारों और नागरिकों दोनों की है । पर इसके प्रति सरकारे भी उदासीन रही है और समाज भी । हालात जब गंभीर होने लगते है तो हमारी आंखे खुलती है ।
आज भारत की नदियां कितनी प्रदूषित है, यह किसी से छिपा नहीं है । ऐसे ही चिंताजनक हालात समुद्र तटों के है । अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के तटीय इलाकोंमें जितने शहर है, लगता है उनका कूड़ाघर समुद्र ही बन गए है । पिछले दो-तीन दशकों में तो हालात इतने बिगड़ गए है कि समुद्र से निकलने वाले और तट पर जमा होने वाले कचरे में ज्यादातर कचरा प्लास्टिक का पाया गया । प्लास्टिक का कचरा समुद्रों के गंदा और प्रदूषित होने की सबसे बड़ी वजह इनमें गिरने वाला औद्योगिक कचरा है ।
उत्तर प्रदेश में चलने वाली चमड़ा शोधन इकाइयां गंगा के प्रदूषण की बड़ी वजह रही है । इसी तरह नदियों के किनारे बसे शहरों का सारा अपशिष्ट नदियों में गिरता है । मूर्ति विसर्जन भी एक बड़ी समस्या है । अदालतें इस पर रोक लगा चुकी है, पर नतीजा शून्य ही रहा । गंगा की सफाई के लिए भारी-भरकम बजट रखा गया, लेकिन इस काम की रफ्तार इतनी सुस्त है कि बजट का आधा पैसा भी खर्च नही हो पाया ।
नियंत्रक एवं महा लेखा परीक्षक (कैग) की रिपोर्ट में कहा गया है कि गंगा स्वच्छता मिशन कार्यक्रम के तहत अप्रैल- २०१५ से मार्च-२०१७ तक ६७ अरब रुपए की राशि आवंटित की गई थी, लेकिन गंगा सफाई के लिए इस दौरान साढ़े सोलह अरब रुपए भी खर्च नहीं हो पाए । गंगा किनारे बसे दस में से आठ शहरों में नदी जल नहाने लायक नहीं है । पैसा होने पर भी नदियों की सफाई का अभियान आगे क्यों नहीं बढ़ पा रहा है ? जाहिर है, खामियां हमारे तंत्र में है, जिन्हे दूर किए जाने की आवश्यकता है ।

पर्यावरण को पर्यटन से हानि
वैज्ञानिको के शोध का यह निष्कर्ष सामने आया है कि दुनिया भर में होने वाले ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लिए सबसे ज्यादा पर्यटन जिम्मेदार है । ग्रीनहाउस इमिशन में करीब १२ प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर पर्यटन की वजह से बढ़ा है । इतनी ही नहीं, लोगों के बीच छुटि्टयों में घूमने जाने का उत्साह जलवायु परिवर्तन को और धीमा कर रहा है ।
दरअसल, दुनिया भर में छुटि्टयां आते ही लोगों को घूमने की प्लानिंग और पैकिंग शुरु हो जाती है । क्या पहनना है, क्या खाना है से लेकर किन जगहों पर घूमना है तक कि एडवांस प्लानिंग लोग कर लेते है, लेकिन इन छुटि्टयों की वजह से पर्यावरण को भारी नुकसान हो रहा है । शोध में १६० देशों में किए गए अध्ययन के अनुसार, ज्यादातर घरेलू यात्रियों द्वारा किए जा रहे पर्यटन से अमेरिका, चीन, जर्मनी और भारत में कार्बन डाइऑक्साइड का सबेस ज्यादा स्तर पाया गया । वही मालदीव, मॉरीशस, साइप्रस और सेशेल्स में अन्तराष्ट्रीय पर्यटन की वजह से कार्बन डाइऑक्साइड के स्तर में करीब ३० से ८० प्रतिशत के बीच बढ़त दिखी । इस रिपोर्ट के अनुसार २०१३ में भी फ्लाइट, होटल, खाने-पीने के सामान और बाकी चीज़ो के प्रोडक्शन से करीब ४.५ बिलियन के बराबर कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन हुआ । इस अध्ययन प्रतिवेदन के अनुसार ट्रिलियन डॉलर की टूरिज्म इंडस्ट्री की वजह २०२५ कार्बन डाइऑक्साइड का लेवल करीब ६.५ बिलियन टन तक पहुंच जाएगा । ऑस्ट्रेलिया, ताइवान और इंडोनेशिया द्वारा जारी हालिया रिपोर्ट में बताया गया कि कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ते स्तर के लिए फ्लाइट्स जिम्मेदार है ।
इस संकट से निपटने के लिए बोन में करीब २०० देशों की मीटिंग होने जा रही है, जहां २०१५ के पेरिस अग्रीमेंट के लिए एक रुल बुक बनाई जाएगी, जिसमें ग्रीनहाउस गेैसों के उत्सर्जन स्तर को कम करने से लेकर अन्य आपदाआें को कंट्रोल करने पर भी कुछ कार्ययोजनाएं शामिल की जाएगी । पर्यावरण पर पर्यटन के दुष्प्रभाव को हम योंभी समझ सकते है कि हम उन स्थानों की स्थिति पर अगर नजर डालें जहां लोग पर्यटन करने, भ्रमण करने या पिकनिक मनाने जाते है । वे पर्वत हो, नदियां हो, तालाब हो पार्क हो । हम जाते तो आनन्द पाने के लिए है लेकिन वहां प्लास्टिक या टिन के रुप मेंकितना अपशिष्ट के रुप में या तो फेंक आते है या छोड़ आते है । परिणाम यह होता है कि जहां जितने ज्यादा लोग जाते है, वह स्थान उतना ही ज्यादा गंदा हो जाता है ।

दुनिया में ३० करोड़ लोग डिप्रेशन के शिकार
दुनियाभर के लोगोंकी सेहत पर डिप्रेशन यानी अवसाद का काफी असर पड़ रहा है । दुनिया के ३० करोड़ लोग डिप्रेशन से पीड़ित है ।
सेहत के साथ ही अर्थव्यवस्था पर भी डिप्रेशन का असर पड़ रहा है । दिमागी सेहत संतुलित नहीं होने के कारण दुनिया की अर्थव्यवस्था को करीब ६७ लाख करोड़ रुपए का नुकसान हो रहा है । ये नतीजे विश्व स्वास्थ्य संगठन के एक अध्ययन से निकले है । अमेरिका में तो सबसे खराब स्थिति है । यहां हर ५ में से एक व्यस्क व्यक्ति ने स्वीकार किया कि वो जिंदगी में कभी न कभी डिप्रेशन का सामना कर चुका है । वही पूरे यूरोप में भी ८ करोड़ ३० लाख लोग मानसिक असंतुलन से प्रभावित है ।
डब्ल्यूएचओ के मुताबिक २००५ से २०१५ के बीच दुनिया मेंडिप्रेशन के मरीज करीब १८ % सलाना की दर से बढ़े है । इसके अलावा चिंता और बैचेनी से भी करीब २६ करोड़ लोग पीड़ित है । ये चिंता, बैचेनी ही आगे डिप्रेशन का रुप ले लेती है ।
वर्ष २०१७ के मेंटल हेल्थ अमेरिका के अध्ययन में १९ अलग-अलग इंडस्ट्रीज में काम करने वाले १७ हजार लोगों से बात की गई थी । इसमें पता चला कि नौकरी देने वाले की ओर से उन्हें कोई भी सहयोग नहीं मिलता है । इसके साथ ही उन्हें कार्यक्षेत्र पर भारी तनाव और एककीपन का भी सामना करना पड़ रहा है । दुनिया के ३३% लोग नौकरी से असंतुष्ट है । ८१% लोग काम और निजी जिंदगी के बीच संतुलन ना बन पाने की वजह से तनाव मेंहै । ब्रिटेन में तो २०१७ में ३ लाख लोगों की नौकरी दिमागी समस्याआें की वजह से गई ।

प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पिछले साल ४ अरब डॉलर घटा
भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) में गिरावट आई है । वर्ष २०१६ के ४४ अरब डॉलर की तुलना में २०१७ में एफडीआई घटकर ४० अरब डॉलर रह गया । सरकार के लिए यह चिंता का विषय हो सकता है । संयुक्त राष्ट्र व्यापार एवं विकास सम्मेलन की विश्व निवेश रिपोर्ट २०१८ में यह जानकारी दी गई ।  ***

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