बुधवार, 20 जून 2018

जन्म दिवस प्रसंग
अनुपम मिश्र : साफ सुथरे समाज के पैरोकार
प्रसून लतांत
अनुपम मिश्रा अपने देश की प्रकृति, धरोहर, जीवन और लोक ज्ञान के अनूठे पैरोकार थे । वे अपने जीवन और लेखन के कारण गांधीवादी, पर्यावरणविद और श्रेष्ठ गद्य लेखक के रुप मेंशुमार किए जा रहे है । ६८ साल का सफर पूरे करने वाले अनुपम मिश्रा का जीवन साफ सूथरे समाज के लिए समर्पित रहा । कम साधनोंमें संतुष्टि रखने वाले अनुपम किसी सत्ता प्रतिष्ठान से नहीं जुड़े थे ।
अपने देश के समृद्ध अतीत को सरल सहज शैली और अनूठी भाषा में अपनी पुस्तकों, व्याख्यानों और वार्ताआें के जरिए जाहिर कर रहे थे, जो साफ माथे वाले समाज की वकालत थी । जिस लोक ज्ञान को नई सभ्यता को ओढ़ने-बिछाने वाले और शहरी संस्कृति में रचे बसे लोगों ने हाशिए पर रख दिया है, उन्हे अनुपम मिश्र ने पूरे सम्मान और विनम्रता के साथ न केवल अपनाया बल्कि पुस्तकोंके रुप मेंदेश के कोने-कोने तक पहुंचाया ।
अनुपम मिश्रा असाधारण थे पर उनकी असाधारणता किसी को फुफकारती नही थी । उनके पास जाने वाला साधारण से साधारण व्यक्ति खुद को छोटा नहीं महसूस करता था । बल्कि उनके संसर्ग मेंरहकर समृद्ध हो जाता था । हर कोई उनसे मिलकर उनके आत्मीय संसार का रहवासी हो जाता था । अनुपम मिश्र पुराने परिचितों को भूलने नहीं देते थे और नए आगंतुको को जोड़ने में कभी उदासीनता नहीं दिखाते थे । अनुपम मिश्र सरल थे, सहज थे और सादगी पसंद थे । किसी को साथ देने का उनका उत्साह अनुपम था । वे जिस किसी से मिलते, खूब खुशी से मिलते और जाते समय विदा करने अपने कार्यलय से निकल कर मुख्य द्वार तक जाते उनकी यह विनम्रता, भद्रता, उदारता और महानता हर किसी को भा जाती थी ।
अनुपम मिश्र अपनी उपलब्धियों पर कभी व्यक्तिगत दावा नहीं करते थे । अपनी लिखी पुस्तकों और व्याख्यानों के अंशो के इस्तेमाल पर रोक नहीं लगाते थे बल्कि हर किसी को खुली छूट देते थे । देश और समाज के हित में हर किसी के साथ रहते थे । अनुपम मिश्र चाहे वह गांव का भोला-भाला किसान हो या शहर का कोई मामूली आदमी वे उन्हेंभी वही और उतना ही सम्मान देते थे, जो वे किसी कहे जाने वाले गणमान्य को दे सकते थे । वे अखबारों की सुर्खियों में नहीं रहते थे पर अपने सैकड़ों मित्रों के दिलों में रहते थे और आगे भी रहेंगे ।
६८ साल का सफर पूरे करने वाले अनुपम मिश्र का जीवन साफ सूथरे समाज के लिए समर्पित रहा । कम साधनों में संतुष्टि रखने वाले अनुपम मिश्र किसी सत्ता प्रतिष्ठान से नही जुड़े थे । वे गांधी मार्ग के संपादक के रुप में गांधी शांति प्रतिष्ठान में काम में जुटे रहते थे । वहीं उनसे देश भर से लोग मिलने आते थे । वे समाज कर्म और पत्रकारों के बीच एकदम जाने पहचाने हुए थे । उन्होनें अपनी उपलब्धियों का न कभी दंभ पाला और न उनसे हस्तांतरित करने के लिए किसी से मोल मांगा । उनके विराट व्यक्तित्व से न कोई असहज होता और न कोई भयभीत होता । उन्हें कई सम्मान मिले पर इसके लिए न कोई लाबिंग की और न उसके प्रचार के भूखे रहे । उनके पास जाने पर लोगों को कुछ मिले या न मिले, पर अपनेपन से कुछ बातेंजरुर मिलती, जो उनके मन में उजाला भर देती ।
सादगी बरतने वाले अनुपम मिश्र सभी को छोड़कर चले गए है । उनके होने का मतलब कुछ लोग समझते थे, लेकिन अब उनके नहीं रहने पर उनकी जरुरत हर किसी को महसूस होगी । आजादी के बाद बहुत सी बातों, परंपराओ, व्यवहारों और तौर-तरीकों को घटिया कहकर नकारा जाता रहा, पर उन्हीं में से अनुपम मिश्र ऐसी बातें खोज कर लाते रहे जो समाधान के द्वार के ताले खोलने की कुंजी साबित हुई और आगे भी होती रहेगी ।
अपने कवि पिता भवानी प्रसाद मिश्र और कृषि विज्ञानी बनवारीलालजी से प्रभावित अनुपम मिश्र के लिए गांधी, गोखले और राजेंद्र प्रसाद की प्रवृत्तियां अनुकूल थी । उन्होने वास्तव मेंइन महान पुरुषों की तरह न केवल जीया बल्कि उनके त्याग और महानता को अपने लेखन का विषय बनाया । वे अपने देश की प्रकृति, धरोहर, जीवन और लोक ज्ञान के अनुठे पैरोकार थे।                                    ***

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