बुधवार, 20 जून 2018

विश्व पर्यावरण दिवस १
प्लास्टिक प्रदूषण और मानवता का भविष्य
डॉ. खुशाल सिंह पुरोहित
इस वर्ष पर्यावरण दिवस के लिए विषय रखा गया है प्लास्टिक प्रदूषण हर वर्ष वैश्विक स्तर पर पर्यावरण के लिए सामान्य जन मेंलोक चेतना पैदा करने के लिए एक विषय चुना जाता है । पर्यावरण दिवस के सारे कार्यक्रम इस विषय को केंद्र में रखकर आयोजित होते है ।
आधुनिक युग में प्लास्टिक एक प्रमुख पदार्थ माना जाता है जिसका उपयोग हमारे दैनिक जीवन में अनेक प्रकार से होता है । प्लास्टिक कई कारणों से बेहतर साबित हुआ है । लकड़ी तथा कागज की तरह प्लास्टिक सड़ता नहीं है तथा लोहे की तरह इसमें जंग नहीं लगता । प्लास्टिक से निर्मित वस्तुएं यदि गिर भी जाएं तो टूटती नही है । बिजली के खतरों से बचने के लिए विद्युत उपकरण प्लास्टिक से बनाए जाते है । आवश्यकतानुसार प्लास्टिक मेंविभिन्न रासायनिक पदार्थ मिलाकर इसे मुलायम, कठोर, पारदर्शी तथा किसी भी रंग का बनाया जा सकता है ।
पिछली एक शाताब्दी की विकास यात्रा के केंद्र में रहा है, प्लास्टिक । इसका इतिहास भी कम रोचक नहीं है । प्लास्टिक का निर्माण सर्वप्रथम सन् १८६८ में संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रसिद्ध वैज्ञानिक जॉन वेसली हयात द्वारा किया गयाथा । प्लास्टिक की खोज वस्तुत एक प्रतियोगिता के कारण हुई ।
संयुक्त राज्य अमेरिका में बिलियर्ड बॉल के निर्माण के लिए उस समय सामान्य तौर पर हाथी दांत का उपयोग किया जाता था । परन्तु हाथी दांत विदेशोंसे आयात करना पड़ता था । विदेशों से आयात करने में यह काफी महंगा पड़ता था और अनेक कठिनाईयों का सामना भी करना पड़ता था । इसी कारण संयुक्त राज्य अमेरिका के अनेक उद्योगपति हाथी दांत के  एक ऐसे विकल्प की खोज में थे जो सस्ता भी हो तथा आयात पर निर्भर न रहना पड़े । इसी प्रकार के वैकल्पिक पदार्थ की खोज करने के लिए १८६८ मेंएक प्रतियोगिता का आयोजन किया गया । इस प्रतियोगिता में हाथी दांत के सर्वोत्तम विकल्प की खोज करने वाले को दस हजार अमेरिकी डॉलर पुरुस्कार देने की घोषणा की गई ।
जॉन वेसली हयात नामक रसायनविद ने इस प्रतियोगिता में भाग लेकर अपनी किस्मत आज़माने ाक निश्चय किया । उसने हाथी दांत के विकल्प के रुप में पाइरोक्सिलीन नामक एक सेलुलोज नाइट्रेट को आज़माने की योजना बनाई ।
इससे कुछ ही समय पूर्व इंग्लैंड के प्रसिद्ध एलेक्जेंडर पार्क्स ने पता लगाया था कि पाइरोक्सिलीन को कपूर में मिलाकर जो मिश्रण तैयार होता है, वह काफी लचीले स्वभाव को होता है तथा इसे आसानी से किसी भी आकृतिमें ढाला जा सकता है । परन्तु पार्क्स को इस दिशा में वांछित सफलता नहीं मिल पाई थी । जॉन वेसली हयात ने पार्क्स द्वारा बनाई गई विधि में कुछ संशोधन किए । उन्होनेंपार्क्स द्वारा बताए गए मिश्रण पर काफी उंचा दाब तथा तापमान आज़माया । इसके फलस्वरुप एक प्रकार का प्लास्टिक पदार्थ तैयार करने मेंसफलता प्राप्त् हुई । जो प्लास्टिक पदार्थ तैयार हुआ था, उसका नाम हयात ने सेलुलॉयड रखा था । परन्तु हयात जिस चीज़ की खोज मेंथे वह नहीं मिल पाई जिसके कारण वे दस हज़ार डॉलर का पुरस्कार प्राप्त् करने में असफल रहे ।
परन्तु इस प्रयोग से उन्हें इतना तो पता चल गया था कि इस पदार्थ को अनेक वस्तुआें के निर्माण में हाथी दांत के विकल्प के रुप मेंउपयोग किया जा सकता है । हयात द्वारा विकसित किए गए रासायनिक पदार्थ से शुरुशुरु में नकली दांत, कमीज़में कॉलर इत्यादि का निर्माण किया जाता था । कुछ समय बाद इस रासायनिक पदार्थ से फोटोग्राफिक फिल्म, स्वचलित वाहनों हेतु खिड़कियों के पर्दे तथा विंडस्क्र ीन  इत्यादि वस्तुएं बनाई जाने लगी ।
उन्नीसवीं शाताब्दी के अंतिम दशक मेंविल्हेलम फ्रिस्क तथा एडोल्फ स्पिट्लर नामक दो जर्मन रसायन वैज्ञानिको ने ब्लैक बोर्ड के निर्माण हेतु स्लेट के विकल्प ढूंढने का प्रयास शुरु किया । कई प्रयोगों के बाद उन्होने यह पता लगाने मेंसफलता प्राप्त् की कि कैसीन पर फार्मेल्डिहाइड की अभिक्रिया से जानवरों के सींग से मिलताजुलता एक प्रकार का प्लास्टिक पदार्थ प्राप्त् होता है जिसका उपयोग अनेक व्यवसायिक उत्पदान प्रारम्भ हो गया । इस पदार्थ का व्यापारिक नाम रखा गया `गैलालीथ' । गैला तथा लीथ ग्रीक भाषा के शब्द है जिनके अर्थ क्रमश: दूध तथा पत्थर होता है । इस प्रकार गैलालीथ का शाब्दिक अर्थ हुआ दुधिया पत्थर । चूंकि  कैसीन प्लास्टिक का रंग दूध की तरह उजला तथा उसकी मज़बूती पत्थर के समान थी, इसीलिए इसे गैलालीथ कहा गया । उद्योग जगत में गैलालीथ काफी उपयोगी साबित हुआ तथा इससे कई वस्तुएं बनाई जाने लगी ।
प्लास्टिक उद्योग के विकास की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले एक अन्य प्रमुख वैज्ञानिक थे बेल्जियम मूल के अमेरिकी नागरिक डॉएडोल्फ बफन, प्रसिद्ध जर्मन रसायनविद डॉ लियो बैकलैंड ।
बेयर ने सन् १८७२ में प्रयोगों से पता लगाया था कि जब अनेक प्रकार के फीनॉल तथा एल्डिहाइड अभिक्रिया करते है तो एक रालनुमा पदार्थ तैयार होता है । परन्तु बेयर द्वारा विकसित किए (रेजिनस) गए इस रालदार पदार्थ को सन् १९०९ तक किसी भी उपयोग में न लाया जा सकता था । परन्तु सन् १९०९ में फीनॉल तथा फार्मेल्डिहाइड की अभिक्रियामें कुछ परिवर्तन करके बेकलैंड एक ऐसा प्लास्टिक निर्मित करने में सफल हुए जिसका उपयोग कई उद्योगो में किया जा सकता था । बेकलैंड के नाम पर ही इस नए प्लास्टिक का नामकरण बेकेलाइट किया गया ।
इसे ताप एवं दाब के प्रभाव से ढालकर विभिन्न आकृतियां प्रदान कि जा सकती थी । घोल के रुप मेंइस पदार्थ का उपयोग लकड़ी के तख्तों, कपड़ों तथा कागज़ इत्यादि को चिपकाने के लिए एडहेसिव के तौर पर किया जा सकता था । इस प्रकार बेकेलाइट सबसे पहला व्यावासायिक कृत्रिम राल था । सन् (रेज़िन) १९०९ से अब तक अनेक नए प्रकार के प्लास्टिक गए सतत प्रयास के फलस्वरुप ही प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है । आज प्लास्टिक से निर्मित वस्तुएं हमारे जीवन के हर क्षेत्र मेंअपना महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी है । आधुनिक काल को यदि प्लास्टिक युग कहा जाए तो गलत नहीं होगा ।
आज विश्व का प्रत्येक देश प्लास्टिक से उत्पन्न प्रदूषण की अत्यन्त विनाशकारी समस्याआें से जूझ रहा है । हमारे देश में तो प्लास्टिक प्रदूषण से विशेषकर नगरीय पर्यावरण बुरी तरह प्रभावित हो रहा है । नगरों में प्लास्टिक थैलियों को खाकर भारी संख्या में पशु और पक्षी मारे जा रहे है । प्लास्टिक नैसर्गिक रुप से विघटित होने वाला पदार्थ नहीं होने के कारण एक बार निर्मित हो जाने के बाद यह प्रकृति मेंस्थाई तौर पर बना रहता है तथा प्रकृति मेंइसे नष्ट कर सकने वाले किसी सक्षम सूक्ष्म जीवाणु के अभाव के कारण यह कभी भी नष्ट नहीं हो पाता इसलिए गंभीर पारिस्थितिकी संतुलन उत्पन्न होता है और सम्पूर्ण वातावरण प्रदूषित होता है ।
प्लास्टिक प्रदूषण से मुक्ति के लिए केवल सख्त कानून बनाने से काम नहींचलेगा, समाज को इसके लिए तैयार करना होगा । दैनिक जीवन की अपनी आवश्यकताआेंमें प्लास्टिक की मात्रा को धीरे-धीरे कम करके वैकल्पिक साधनोंका उपयोग होगा तो प्लास्टिक के उत्पादन, विक्रय और उपयोग तीनो में धीरे-धीरे कमी आने लगेगी ।
जहा तक प्लास्टिक के पुनर्चक्रण का सवाल है, फिलहाल तो पुनर्चक्रण का प्रतिशत बहुत कम है इसके साथ ही पुनर्चक्रण प्रक्रिया भी प्रदूषणकारी है । इसलिए मानवता के भविष्य के लिए प्लास्टिक से मुक्ति ही उचित मार्ग होगा । यह सही समय है जब इस दिशा में कदम उठाये जाये, अन्यथा देरी हो जाएगी ।
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